सीतापुर, उत्तर प्रदेश: अफसाना बानो 18 साल की है, और दिखने में कमजोर लगती हैं। इनके तीन दिन के बच्चे का वजन 2.6 किलोग्राम है, जबकि आदर्श रुप से जन्म के समय बच्चे का वजन 3.3 किलोग्राम होना चाहिए।

अफसाना बानो की स्थिति एक ऐसे चक्र को दर्शाता है, जिसमें लाखों भारतीय माताएं और बच्चे फंसे हैं, विशेष रूप से सबसे अधिक आबादी वाले, सबसे गरीब राज्यों में, जो अल्पशिक्षित हैं और सीखने और अर्जित करने में असमर्थ हैं। इस प्रकार स्थिति भारतीय आर्थिक प्रगति को रोकते हैं, जैसा कि कई शोध से पता चलता है।

अफसाना बानो 18 साल की थी, जब उन्होंने शादी की। गर्भधारण के समय उसका वजन कम था और गर्भावस्था के आठवें महीने में उसका वजन 51 किलो था, जो नौवें महीने में 200 ग्राम से अधिक नहीं बढ़ा। उन्होंने इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा, क्योंकि वह एक कम वजन के बच्चे के परिणामों से अनजान थीं।

कक्षा 12 तक पढ़ाई करने वाली, अफसाना बानो ने ग्रामीण सीतापुर में औसत शिक्षा हासिल की थी, जहां 16.4 फीसदी से अधिक महिलाओं की 10 साल से ज्यादा शिक्षा प्राप्त नहीं थी, जबकि इसी संबंध में उत्तर प्रदेश के लिए आंकड़े 32.9 फीसदी और राष्ट्रीय औसत 35.7 फीसदी है। लेकिन उनपर कभी ध्यान नहीं दिया गया या परामर्श नहीं मिला, जो सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली द्वारा दिया जाना था।

यह विशेष रूप से सीतापुर में महत्वपूर्ण है, जहां उत्तर प्रदेश (यूपी) के औसत 21 फीसदी और 27 फीसदी के राष्ट्रीय औसत की तुलना में 36 फीसदी विवाहित महिलाएं किशोर वय की हैं, जैसा कि 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों से से पता चलता है। हम बता दें कि उत्तर प्रदेश सबसे अधिक आबादी वाला और प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से भारत का तीसरा सबसे गरीब राज्य है।

44 लाख लोगों के साथ, सीतापुर को उत्तर प्रदेश भर में 25 और पूरे भारत में 184 ‘उच्च प्राथमिकता वाले जिलों’ में से एक के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिन्हें बाल विवाह और किशोर गर्भधारण को रोकने के लिए विशेष ध्यान देने के लिए पहचाना गया।

लेकिन जल्दी शादी और किशोर गर्भावस्था को संबोधित करने वाला एक पांच वर्षीय राष्ट्रीय युवा स्वास्थ्य कार्यक्रम, राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यकम (आरकेएसके) को सीतापुर में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) वित्त पोषण का 1 फीसदी मिला है। यह 2016-17 की तुलना में 3 फीसदी से अधिक की गिरावट है।

नई दिल्ली स्थित एक थिंक टैंक अकाउंटबिलिटी इनिशिएटिव द्वारा एनएचएम वित्त के 2019 के विश्लेषण के अनुसार, इस पैसे में से एक तिहाई खर्च नहीं किया गया था, हालांकि कुछ सुधार हुआ है, जैसा कि हम बाद में बताते हैं।

Source: Accountability Initiative, 2019 ((Data shared with IndiaSpend)

किशोर यौन स्वास्थ्य पर व्यापक ध्यान देने और अपनी आवश्यकताओं को व्यापक स्वास्थ्य कार्यक्रमों और प्रभाव परिवर्तन में शामिल करने की अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में आरकेएसके की विफलता को एक सरकारी प्रवक्ता द्वारा स्वीकार किया गया था।

सीतापुर में एनएचएम के जिला कार्यक्रम प्रबंधक सुजीत वर्मा ने इंडियास्पेंड को बताया, " कार्यक्रम के साथ अंतर्निहित समस्या यह है कि आरकेएसके को एनएचएम में निम्न-प्राथमिकता वाले घटक के रूप में देखा जाता है। आरकेएसके द्वारा संस्थागत प्रसव को कुष्ठ रोग, तपेदिक कार्यक्रमों की तरह नहीं देखा गया है। कम्युनिटी सामुदायिक स्वास्थ्य के मुद्दों को महत्वपूर्ण नहीं मानता है, जिसकी एक अस्पताल में चर्चा की जानी चाहिए।

वर्मा ने कहा कि आशाओं (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं) की ओर से उपजी मांग को विकसित करने की आवश्यकता है।

'मांग' का जोर

अफसाना बानो और सीतापुर के साथ, यह मांग स्पष्ट रूप से नहीं हुई है। वर्मा ने कहा, मांग के विकास के व्यापक प्रभाव हैं। 1,000-दिवसीय विंडो में बच्चों और महिलाओं के कुपोषण को रोकना ( एक महिला के गर्भधारण की शुरुआत से लेकर उसके बच्चे के दूसरे जन्मदिन तक ) भारत के सकल घरेलू उत्पाद को $ 15-46 बिलियन (1.03 लाख करोड़ रुपये से 3.17 लाख करोड़ रुपये) के बीच बढ़ा सकता है,जैसा कि एक वैश्विक संस्था, सेव द चिल्ड्रन की 2013 की रिपोर्ट से पता चलता है। यह भारत के 2018-19 के स्वास्थ्य बजट के आकार का छह गुना है।

अफसाना बानो की स्थिति सीतापुर में कई महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती है,जहां बाल विवाह और कम उम्र में गर्भावस्था प्रचलन में है, जैसा कि विशेषज्ञ कहते हैं: सीतापुर में 15-19 वर्ष की महिलाओं के बीच 7.3 फीसदी महिलाएं पहले से ही मां हैं, जैसा कि एनएफएचएस -4 डेटा से पता चलता है। भले ही यूपी में जन्म देने वाली किशोरियों (3.8 फीसदी) की संख्या राष्ट्रीय आंकड़ों (7.9 फीसदी) की तुलना में आधी है, सीतापुर में 35.5 फीसदी महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो जाती है, जो कि यूपी के 21 फीसदी के और 27 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है।

ग्लोबल चाइल्डहुड की रिपोर्ट सेव द चिल्ड्रन के अनुसार, भारत में बाल विवाह को 51 फीसदी तक कम करने में 19 साल का समय लगा है। यदि उन संख्याओं में और गिरावट लानी है, तो ग्रामीण क्षेत्रों में किशोर स्वास्थ्य पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। ऐसा करना पर्याप्त डेटा के बिना मुश्किल हो सकता है।

एक वैश्विक शोध संगठन, पॉपुलेश्न काउंसिल की इंडिया कंट्री डायरेक्टर, निरंजन सग्गुरती ने कहा, "युवा किशोरियों (10-14 वर्ष) पर पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है, और युवा किशोरियों और ज्यादा उम्र की लड़कियों में से, दोनों के लिए अलग-अलग मूल्यांकन की आवश्यकता है। इसके बाद अधिक स्पष्टता मिल सकती है कि प्रजनन स्वास्थ्य के संबंध में किन किशोरियों को सबसे अधिक खतरा होता है।"

अफसाना बानो की शिक्षा ने उन्हें यौन या स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के ज्ञान के लिए तैयार नहीं किया। उन्होंने मदरसे, या इस्लामी मदरसे में अध्ययन किया और कोई भी स्वास्थ्य कार्यकर्ता या स्वास्थ्य कार्यक्रम उसके गांव परसेंडी ( जो राज्य की राजधानी लखनऊ से 90 किमी उत्तर में स्थित है ) में उसके मिट्टी और भूसे के घर तक नहीं पहुंचे। लेकिन ऐसा होना चाहिए था और वास्तव में भारत के अधिक समृद्ध राज्यों, जैसे केरल में होता है।

अफसाना बानो के पति, 21 वर्षीय, मोहम्मद करीम उन्हें सलाह देने की स्थिति में नहीं थे: उन्होंने कक्षा पांच तक पढ़ाई की है और एक ‘टैबलेट बनाने वाली कंपनी’ में कुछ दिनों के लिए काम किया।

गर्भावस्था से पहले, अफसाना बानो ने केवल एक बार आंगनवाड़ी-या सरकारी क्रेच-कम-हेल्थ सेंटर का दौरा किया। पहली बार जब वह गई थीं, तब वह गर्भावस्था के छठे महीने में थीं, और उसे केवल दो के बजाय एक टेटनस टीकाकरण मिला। उन्होंने कहा कि उसे आयरन और कैल्शियम की गोलियां दी गई थीं, लेकिन इससे उन्हें दस्त शुरु हो गया।

अफसाना बानो फिर कभी आंगनवाड़ी केंद्र नहीं गईं।

कुपोषण का चक्र

ऐसी संभावना है कि अफसाना बानो का बच्चा कुपोषित हो जाएगा, जैसा कि कम वजन की माताओं के बच्चों को लेकर ऐसी आशंका होती हैं, और यह भी कहा जा सकता है कि वह कम शिक्षित होगा और अर्जित करने में पीछे रह जाएगा।

कुपोषण भारत के लगभग आधे बच्चों की मौतों के प्रमुख कारणों में से एक है, और यदि वे कम उम्र में प्रभावित होते हैं, तो उनमें संवेदी, संज्ञानात्मक, सामाजिक और भावनात्मक विकास को प्रभावित करने वाले दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं। अधिक शिक्षित महिलाओं वाले राज्यों में ज्यादा स्वस्थ बच्चे थे, जैसा कि मार्च 2017 के एनएफएचएस-4 डेटा पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण से पता चलता है।

स्वतंत्र चिकित्सा एजेंसियों, गैर-लाभकारी संस्थाओं और सरकार द्वारा निर्मित एक रिपोर्ट, इंडिया: हेल्थ ऑफ इंडियाज स्टेट के अनुसार 1990 से भारत में बाल और मातृ कुपोषण के कारण बीमारी का बोझ कम हो रहा है, लेकिन 2016 में भारत में कुल रोग भार के 15 फीसदी के लिए कुपोषण जिम्मेदार था।

राष्ट्रीय स्तर पर, एक दशक पहले की तुलना में 2015-16 में बच्चों की स्टंटिंग दर में 9.6 प्रतिशत अंक की कमी देखी गई थी।एनएफएचएस डेटा के हमारे विश्लेषण के अनुसार, यूपी की सुधार दर 10.5 प्रतिशत अंक थी।

पांच (46.6 मिलियन) वर्ष की आयु के भीतर दुनिया के स्टंट बच्चों का लगभग एक तिहाई घर, भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 2025 वैश्विक पोषण लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए सही रास्ते पर नहीं है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जनवरी 2019 की रिपोर्ट में बताया है।

एनएफएचएस-4 के आंकड़ों के मुताबिक, दो साल से कम उम्र के भारतीय बच्चों को पर्याप्त आहार नहीं मिलता है। 6-23 महीने की आयु के लगभग 18 फीसदी बच्चों ने आयरन युक्त खाद्य पदार्थ खाए, और इस आयु वर्ग के आधे से अधिक बच्चे एनीमिक थे। लगभग 54 फीसदी ने विटामिन ए से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन किया, जिसकी कमी से बचपन में अंधापन और खराब प्रतिरक्षा हो सकती है।

इस स्थिति को दूर करने के लिए, सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को समस्या की जड़ यानी मांओं तक जाना होगा। विशेषज्ञ कहते हैं, और यह तब और मुश्किल है, जब माताएं किशोर वय की हों।

किशोर स्वास्थ्य के मायने

विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार, स्वास्थ्य हस्तक्षेप के लिए किशोर स्वास्थ्य जीवन का सबसे महत्वपूर्ण चरण है।

2002 के डब्ल्यूएचओ के एक बयान में कहा गया है, "रोग के बोझ का 33 फीसदी से अधिक और वयस्कों में समय से पहले होने वाली मृत्यु का लगभग 60 फीसदी व्यवहार या स्थितियों से जुड़ा हो सकता है जो किशोरावस्था में शुरू या होते हैं।"

किशोर लड़कियों और युवा महिलाओं का स्वास्थ्य बच्चों के जन्म के वजन और बाल अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। किशोर माताएं गर्भावस्था और प्रसव से संबंधित समस्याओं की चपेट में आ जाती हैं और उनमें समय से पहले और कम वजन वाले बच्चों की संभावना होती है।

किशोर माताओं में उच्च मातृ और बाल मृत्यु दर और कुल प्रजनन दर (टीएफआर) या एक महिला के बच्चों की संख्या में किशोरों का छोटा, लेकिन महत्वपूर्ण योगदान है। प्रतिस्थापन दर 2.1 की तुलना में, जिस बिंदु पर जनसंख्या समान है, यूपी का टीएफआर 3.1 है, जबकि केरल में 1.8, तमिलनाडु में 1.6 और पश्चिम बंगाल में 1.6 है। ये आंकड़े किशोर स्वास्थ्य को समग्र मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य का हिस्सा बनाने की आवश्यकता को स्पष्ट करते हैं, जैसा कि भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का 2014 का किशोर-स्वास्थ्य रणनीति पत्र से पता चलता है।

यूपी में आरकेएसके: नया उद्देश्य, धीमा खर्च

2014 में लॉन्च किया गया आरकेएसके सरकारी स्वास्थ्य प्राथमिकताओं के केंद्र में किशोर स्वास्थ्य के लिए पहला कार्यक्रम था। आरकेएसके ने बाद में पोषण, गैर-संचारी रोगों और मादक द्रव्यों के सेवन को शामिल करने बाद अपना विस्तार किया और इसके बाद से अपना ध्यान उपचारात्मक से निवारक में स्थानांतरित कर दिया और अपने स्वयं के वातावरण में किशोरों तक पहुंचने का लक्ष्य बनाया।

ये उद्देश्य अभी तक सीतापुर में हासिल नहीं हुए हैं, जहां ‘पीयर एजुकेटर’ कहे जाने वाले प्रशिक्षण, विशेष रूप से हर गांव के 15 से 19 वर्ष की आयु वर्ग के किशोरों के लिए प्रशिक्षण है, और जिसे अन्य 24 ‘उच्च प्राथमिकता वाले जिलों’ में रखा गया है। इन जिलों में से प्रत्येक में एक किशोर अनुकूल स्वास्थ्य केंद्र और एक परामर्शदाता भी होना चाहिए था।

वास्तव में, आरकेएसके और एनएचएम दोनों को उनके द्वारा प्राप्त धन को खर्च करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। 2017-18 में एनएचएम फंड्स का आधा से अधिक (55 फीसदी) यूपी में उपयोग किया गया था, हालांकि यह 2016-17 में 45 पीसदी के आंकड़ों से सुधार है,और, जैसा कि हमने कहा, एएचएम खर्च के अनुपात के रूप में आरकेएसके खर्च 2016-17 में 3 फीसदी से गिरकर 2017-18 में 1 फीसदी हो गया है।

सीतापुर को आरकेएसके के लिए 2018-19 में 1.72 करोड़ रुपये दिए गए थे, जो 2017-18 में दिए गए 1.42 करोड़ रुपये से 21 फीसदी ज्यादा था। इन निधियों का उपयोग 2017-18 में 41 फीसदी से बढ़कर 2018-19 में 45 फीसदी हो गया है।

Source: Accountability Initiative, 2019 (Data shared with IndiaSpend)

यौन स्वास्थ्य के मुद्दों पर काम करने वाले एक शोधकर्ता ने नाम न बताने की शर्त (उन्होंने सरकार के साथ काम किया है ) पर इंडियास्पेंड को बताया कि, “सीतापुर स्पष्ट रूप से फंड के कम इस्तेमाल की कहानी कहता है; आवंटित धन के बावजूद, जिलों को पूरी राशि नहीं मिल रही है जो उन्हें आवंटित की जा रही है। फंड आमतौर पर केवल अंतिम दो तिमाहियों में जारी किया जाता है, यही वजह है कि ज्यादातर फंड का इस्तेमाल नहीं हो पाता है। ”

किशोर स्वास्थ्य सेवाओं की मांग में कमी के मुद्दे पर, शोधकर्ता ने कहा कि आरकेएसके में अधिकांश खर्च मांग पर आधारित नहीं है और फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं, जैसे कि आशा और ‘पीयर एजुकेटर’ पर खर्च किया गया था।

अब एक बार फिर परसेंडी में ... अफसाना बानो ने कहा कि वह अपने पति के साथ एक खुशहाल जीवन जी रही है, जिसके साथ उसे प्यार हो गया था। एक समाज में एक किशोर रोमांस के लिए एक दुर्लभ परिणति सबकी सहमति से शादी है। वह आगे पढ़ाई करना चाहती है। लेकिन अब वह बच्चे के साथ कैसे पढ़ाई कर पाएगी? इस सवाल के जवाब में अफसाना बानो केवल मुस्कुरा देती है।

( अली रिपोर्टर हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 03 जुलाई 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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