लखनऊ: ”उत्तर प्रदेश में टेस्टिंग का काम तेज़ी से बढ़ रहा है। प्रदेश में जब से टेस्टिंग प्रारंभ हुई थी तब से लेकर 24 जून तक (चार महीने में) छह लाख सैंपल की जांच हुई, 24 जून से 30 जुलाई तक (पांच हफ़्ते में) 16 लाख सैंपल की जांच की गई,” राज्य के चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव, अमित मोहन प्रसाद ने 30 जुलाई को एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में यह आंकड़े साझा किए। इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में 24 जून की जो तारीख़ अमित मोहन प्रसाद ने बताई है, वह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी तारीख़ से राज्य में एंटीजन टेस्ट के ज़रिए कोरोनावायरस की जांच शुरु हुई थी। इसका ज़िक्र हम विस्तार से आगे करेंगें।

प्रेस कॉन्फ़्रेंस में अमित मोहन प्रसाद ने 29 जुलाई को हुए टेस्टिंग के आंकड़े भी साझा किए। “कल प्रदेश में कुल 88,967 सैंपल की जांच की गई जिसमें से 51,484 एंटीजन के टेस्ट थे और बाकी RT-PCR और TrueNat के टेस्ट थे,” उन्होंने बताया।

यानी 29 जुलाई को जो टेस्ट हुए उसमें से लगभग 58% सैंपल की जांच एंटीजन टेस्ट के ज़रिए की गई। इसी तरह 5 अगस्त को राज्य में कुल 87,348 सैंपल की जांच की गई जिसमें से 59,028 जांच एंटीजन टेस्ट के ज़रिए हुई। यानी कुल टेस्ट में से लगभग 68% एंटीजन के ज़रिए किए गए। पिछले तीन दिन में राज्य में हर रोज़ औसतन 80,565 सैंपल की जांच की गई जिसमें से 50,438 सैंपल एंटीजन के ज़रिए टेस्ट किए गए, राज्य की चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक, देवेंद्र सिंह नेगी के अनुसार।

यानी उत्तर प्रदेश सरकार ने टेस्टिंग को लेकर जो दावे किए वो एंटीजन टेस्ट के भरोसे किए हैं। राज्य में अभी भी कुल सैंपल में से लगभग एक तिहाई की जांच ही RT-PCR के ज़रिए हो रही है।

एंटीजन, RT-PCR की तुलना में बेहद सस्ता और जल्दी नतीजा देता है। लेकिन एंटीजन से टेस्ट की प्रक्रिया में कई राज्यों में ख़ामियां पाई गई हैं। तमिलनाडु तो अपने यहां इस प्रक्रिया को बंद कर चुका है। दरअसल एंटीजन पॉज़िटिव मामलों में तो 99.3% से लेकर 100% तक सटीक है लेकिन निगेटिव मामलों में 50.6% से लेकर 84% तक ही सटीक है।

एंटीजन से टेस्ट की प्रक्रिया में उत्तर प्रदेश में आईसीएमआर के दिशा-निर्देशों का भी टीक से पालन नहीं हो रहा है। सैंपल निगेटिव आने के बाद लक्षण वाले लोगों की RT-PCR से जांच होनी चाहिए लेकिन राज्य में ऐसे लोगों को पहले 5 दिन के क्वारंटीन में रखा जाता है।

उत्तर प्रदेश में कोरोनावायरस के लिए टेस्टिंग में तो कई गुना की बढ़ोत्तरी हो गई लेकिन टेस्टिंग में लगे स्टाफ़ की संख्या में कोई बदलाव नहीं आया है। इसका नतीजा यह भी हो रहा है कि कई लोगों को ग़लत रिपोर्ट भेजी जा रही है।

एंटीजन और RT-PCR टेस्ट का फ़र्क

RT-PCR से जांच की प्रक्रिया जटिल होती है। इसके लिए लैबोरेटरी की ज़रूरत होती है। इसमें नाक और गले से स्वैब का सैंपल लिया जाता है। सैंपल में से आरएनए को अलग किया जाता है (मनुष्य में जैसे डीएनए होता है, पशुओं में आरएनए होता है)। फिर आरएनए को डीएनए में बदला जाता है। इसका नतीजा आने में वक़्त लगता है। चूंकि सैंपल को लैब में भेजा जाता है इसलिए इसका नतीजा आने में कभी-कभी दो से तीन दिन तक लग जाते हैं।

RT-PCR की तुलना में एंटीजन से जांच की प्रक्रिया में ना केवल समय कम लगता है बल्कि यह सस्ती भी है। इससे हुई जांच के शुरुआती नतीजे 15 मिनट बाद ही दिखने शुरु हो जाते हैं और आधे घंटे में पूरा परिणाम मिल जाता है। एंटीजन से जांच की प्रक्रिया में नाक से सैंपल लेकर वीटीएम में स्वैब को डाल दिया जाता है। किट पर लाल रंग आने पर सैंपल पॉज़िटिव और गुलाबी रंग आने पर सैंपल निगेटिव माना जाता है। यह टेस्ट कहीं भी हो सकता है इसके लिए लैबोरेटरी की भी ज़रूरत नहीं होती।

सस्ती और शीघ्र होने के साथ-साथ जांच की इस प्रक्रिया में एक ख़ामी है। कई मामलों में यह संक्रमण का पता लगाने में नाकाम रहती है।

उत्तर प्रदेश में पूल टेस्टिंग के ज़रिए भी बड़ी संख्या में जांच हो रही है। इसमें एक साथ कईं सैंपल को मिलाकर एक ही बार में एक से अधिक सैंपल की जांच की जाती है। अगर नतीजा निगेटिव आया तो पूल में शामिल सभी सैंपल को निगेटिव मान लिया जाता है और अगर नतीजा पोज़िटिव आया तो फिर सभी सैंपल की अलग-अलग जांच होती है।

राज्य में पांच अगस्त तक हुए कुल टेस्ट में से, एंटीजन टेस्ट के ज़रिए पॉज़िटिव सैंपल 3.16% और बाकी TrueNat और RT-PCR को मिलाकर यह 4.6% है।

एंटीजन से जांच के दौरान आईसीएमआर के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं

उत्तर प्रदेश में कोरोनावायरस की शुरुआत से ही जांच का काम धीमी रफ़्तार से चला है। राज्य में कोरोनावायरस के संक्रमण का पहला मामला चार मार्च को सामने आया था। शुरुआत से लेकर 24 जून तक राज्य में कुल मिलाकर चार लाख सैंपल की जांच की गई। लेकिन 24 जून से अचानक जांच में तेज़ी आनी शुरु हुई, 5 अगस्त तक कुल 2,815,194 सैंपल की जांच की जा चुकी थी। यानी अगले 43 दिन में 24 लाख से अधिक सैंपल की जांच की गई। 24 जून को ही राज्य में एंटीजन टेस्ट के ज़रिए सैंपल की जांच होनी शुरु हुई थी।

लगातार घंटों पीपीई किट में काम करते-करते कई बार ये लैब टेक्नीशियन बेहोश जाते हैं। फोटो: योगेश कुमार

5 अगस्त को राज्य में कुल 87,348 सैंपल की जांच की गई जिसमें से 59,028 जांच एंटीजन टेस्ट के ज़रिए हुई। यानी कुल टेस्ट में से लगभग 68% एंटीजन के ज़रिए किए गए। पिछले तीन दिन में राज्य में हर रोज़ औसतन 80,565 सैंपल की जांच की गई जिसमें से 50,438 सैंपल एंटीजन के ज़रिए टेस्ट किए गए। तीन दिन के औसत में भी एंटीजन टेस्ट लगभग 63% रहे, राज्य की चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक, देवेंद्र सिंह नेगी के आंकड़ों के अनुसार।

इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के 14 जून के दिशा-निर्देशों में साफ़-साफ़ कहा गया है कि एंटीजन टेस्ट में जिनका नतीजा निगेटिव आएगा, उनकी फिर से RT-PCR के ज़रिए जांच की जाएगी। लेकिन उत्तर प्रदेश में इसका पालन नहीं हो रहा है।

“एंटीजन में जब रिपोर्ट निगेटिव आती है तो उस व्यक्ति को पांच दिन के लिए क्वांरटीन में रखकर देखा जाता है। अगर फिर भी बुख़ार, खांसी या कोई और लक्षण दिखता है तो दोबारा से एंटीजन या RT-PCR टेस्ट के जरिए कंफर्म किया जा जाता है,” उत्तर प्रदेश के चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक, डॉ देवेन्द्र सिंह नेगी ने इंडियास्पेंड को बताया।

“कंटेटमेंट ज़ोन में कोई भी व्यक्ति टेस्ट करा लेता है तो वहां के लिए हमारे पास कोई गाइडलाइंस नहीं है कि एंटीजन टेस्ट निगेटिव आने के बाद RT-PCR करना है या नहीं,” स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा।

RT-PCR टेस्ट क्यों ज्यादा जरूरी

देश में कोरोनावायरस के लिए जितने टेस्ट हो रहे हैं उसमें RT-PCR टेस्ट को आईसीएमआर ने सबसे ज्यादा विश्वसनीय बताया है। एंटीजन टेस्ट की प्रक्रिया पॉज़िटिव मामलों में तो 99.3% से लेकर 100% तक सटीक है लेकिन निगेटिव मामलों में 50.6% से लेकर 84% तक ही सटीक है, इंडियास्पेंड की पांच अगस्त 2020 की इस रिपोर्ट के अनुसार।

“एंटीजन अभी उतने विश्वसनीय रिज़ल्ट नहीं दे रहा है, इसलिए ज़रूरी है कि एंटीजन में अगर कोई व्यक्ति कोई व्यक्ति निगेटिव आता है तो उसका RT-PCR टेस्ट होना चाहिए, जो पॉज़िटिव आता है तो वो पॉज़िटिव ही है। अभी लखनऊ में जितने भी टेस्ट हो रहे हैं उनमें एंटीजन और RT-PCR दोनों आधे-आधे के अनुपात में हैं। हम बाकी टेस्टिंग किट पर भी रिसर्च करते रहते हैं कि कौन सी बेहतर है,” लखनऊ की किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की माइक्रोबॉयोलॉजी विभाग की हेड, डॉ अनीता जैन ने इंडियास्पेंड को बताया।

कई राज्यों में एंटीजन टेस्ट की प्रक्रिया में ख़ामियां पाई गईं। तमिलनाडु ने तो अपने यहां एंटीजन टेस्ट को बंद कर, RT-PCR के ज़रिए ही जांच कराने का फ़ैसला किया है, टाइम्स ऑफ़ इंडिया की 26 जुलाई की इस रिपोर्ट के अनुसार।

उधर, राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 30 जुलाई को टेस्टिंग बढ़ाने के निर्देश दिए थे। उन्होंने कहा था कि हर रोज़ RT-PCR से 40 हज़ार और एंटीजन से 65 हज़ार टेस्ट किए जाएं। लेकिन 5 अगस्त तक इसका पालन नहीं हो पाया था।

''सबसे ज़्यादा विश्वसनीय तो RT-PCR टेस्ट को ही माना गया है। लेकिन अब चूंकि केसेज़ तेज़ी से बढ़ रहे हैं और बड़ी संख्या में टेस्टिंग की ज़रूरत है तो विकल्प भी ज़रूरी हैं, जो भले 100% नहीं लेकिन 70% तो सही रिपोर्ट दे सके। जिन जगहों पर अभी लैब नहीं हैं उन्हें सैंपल दूर किसी ज़िले में भेजने पड़ते हैं इसलिए ऐसी जगहों पर एंटीजन टेस्ट बेहतर विकल्प है," लखनऊ के चंदन हॉस्पिटल में कोरोना वार्ड में तैनात डॉ केपी सिंह ने बताया।

''जांच में पारदर्शिता रखने की ज़रूरत है कि कितने एंटीजन और कितने दूसरे टेस्ट हुए। इनकी संख्या बताई जानी चाहिए, जो अभी नहीं बताई जा रही है," उन्होंने कहा।

रिपोर्ट में गड़बड़ी

गोरखपुर के रहने वाले 40 साल के प्रकाश (बदला हुआ नाम) एक मीडिया संस्थान में काम करते हैं। 21 जुलाई को उन्होंने अपनी और अपनी पत्नी की जांच कराई और वह पॉजिटिव पाए गए, जबकि उनकी पत्नी की रिपोर्ट नेगेटिव थी। प्रकाश ने खुद को होम आइसोलेट किया और 22 जुलाई को परिवार के अन्य सदस्यों को भी जांच कराने भेजा।

"मैंने अपने पिता, बेटा, बेटी और भाई को जांच के लिए भेजा। सबकी जांच हुई और इनकी पर्ची पर नेगेटिव लिख कर घर भेज दिया गया। अगले दिन (23 जुलाई) मेरे पास थाने से फोन आया कि आपके बेटे की रिपोर्ट भी पॉज़िटिव आई है। हमें बताया गया कि ज़्यादा लोग थे ऐसे में लिखने में गड़बड़ी हो गई," प्रकाश ने बताया।

शाहजहांपुर की प्रियंका का मामला तो और भी अजीब है। “मैं तीन घंटे तक इंतजार कर चुकी थी और जब पता चला अभी घंटों और बैठना है तो मैं घर लौट आई क्योंकि मेरी रीढ़ की हड्डी में चोट थी और इस तरह घंटों बैठना मेरे लिए मुश्किल था। मैंने सैंपल नहीं दिया लेकिन तीन दिन बाद मेरे पास फ़ोन आता है कि मैं पॉज़िटिव हूं तो मैं हैरान रह गई। पूछने पर उन्होंने बस इतना बताया गया कि लगता है कोई गड़बड़ हो गई है,” प्रियंका ने कहा।

इस तरह के मामले राज्य के कई ज़िलों से सामने आए हैं।

लैब टेक्नीशियन लगातार घंटों कर रहे काम---

प्रदेश में कोविड टेस्टिंग तो कईं गुना बढ़ गई है लेकिन टेस्ट करने में लगे लोग अभी भी उतने ही है लिहाज़ा उनपर काम का बोझ बढ़ गया है।

“पहले जब 100 टेस्ट प्रतिदिन करने थे तब भी उतने ही लोग थे और अब जब 250 करने हैं तब भी उतने ही हैं। हम लगातार 12-12 घंटे काम करने को मजबूर हैं। त्योहार हो या कुछ भी हमारी छुट्टियों से किसी को कोई मतलब नहीं है हमें रोज़ ही टेस्ट करने है,’’ लैब टेक्नीशियन एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेश कुमार ने कहा।

उन्होंने आगे ये भी कहा कि जो पीपीई किट उन्हें मिलती हैं उसकी क्वालिटी भी अच्छी नहीं है उसे पहन कर काम करने में कई बार लोग चक्कर खाकर गिर जाते हैं।

टेस्टिंग की संख्या बढ़ने की वजह से लैब टेक्नीशियन पर काम का बोझ भी बढ़ा है क्योंकि उनकी संख्या अभी भी उतनी ही है। फोटो-योगेश कुमार

“शुरुआत में लैब टेक्नीशियन के रहने के लिए भी व्यवस्था थी लेकिन अब वह भी नहीं है। हम लोग दिन भर सैंपल लेते हैं उसके बाद वापस घर जाते हैं। ऐसे में घर वालों के भी संक्रमित होने का ख़तरा रहता है। कई केस ऐसे आए भी हैं जिनमें लैब टेक्नीशियंस के परिवार वाले पॉज़िटिव पाए गए हैं,” लखनऊ में लैब टेक्नीशियन प्रमोद कुमार ने बताया।

“सरकार टेस्टिंग ज्यादा कर रही है ये अच्छी बात है लेकिन जो लोग ये काम कर रहे हैं उनके बारे में भी सोचना चाहिए,” योगेश कुमार ने कहा।

(इसरार, इंडियास्पेंड हिंदी के संपादक हैं और श्रंख्ला, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं)

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। कृपया respond@indiaspend.org पर लिखें। हम भाषा और व्याकरण की शुद्धता के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार सुरक्षित रखते हैं।