नीतीश के साथ बिहार है विकास की राह पर? –III
इस लेख के पहले भाग में हमने बिहार की आर्थिक विकास एवं निजी एवं सार्वजनिक बुनियादी ढ़ाचों पर चर्चा की जबकि दूसरे भाग में हमनें राज्य में शिक्षा एवं अपराध की स्थिति पर विस्तार से बताया है। लेख के इस तीसरे एवं अंतिम भाग में हम बिहार के अनुसूचित जाति एवं जनजातियों की स्थिति के विषय पर चर्चा करेंगे।
बिहार की राजनीति में हर बार जाति की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है और इस बार भी विधानसभा चुनाव के परिणाम काफी हद तक जाति पर निर्भर करते हैं।बिहार के मुख्यमंत्री, नीतीश कुमार स्वंय भी पिछड़ी जाति ( ओबीसी ) से हैं एवं उनकी राजनीति भी जाति पर ही निर्धारित है। पूर्व मुख्यमंत्री, जीतन राम मांझी भी एक अनुसूचित जाति , मुशहर ( चूहे पकड़ने वाले ) से थे।
वर्ष 2015-16 में बिहार सरकार ने अनुसूचित जाति के लिए 10,006 करोड़ रुपए ( 1.5 बिलियन डॉलर ) आवंटित किया है। यह राशि राज्य में अनुसूचित जाति के समग्र कल्याण एवं विकास के लिए उपयोग किया जाएगा।
हाल ही कुछ वर्षों में हुए सशक्तिकरण के बावजूद, बिहार की 104 मिलियन जनता में से 17.9 मिलियन लोग अनुसूचित जाति एवं जनजाति से हैं, एवं इनकी स्थिति में कुछ खास सुधार नहीं देखा गया है। बिहार में इस श्रेणी के लोगों का आर्थिक विकास सबसे कम पाया गया है।
बिहार की कुल आबादी में अनुसूचित जाति के आबादी 16.5 मिलियन ( 15.9 फीसदी ) दर्ज की गई है। यदि एंपावर्ड एक्शन ग्रूप ( ईएजी ) या गारीब राज्यों से तुलाना की जाए तो अनुसूचित जाति की आबादी के मामले में बिहार पांचवे स्थान पर है। गौरतलब है कि देश के आठ राज्य – बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिसा एवं छत्तीसगढ़ की पहचान ईएजी राज्यों के रुप में हुई है।
अन्य ईएजी राज्यों की तुलना में बिहार में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या कम है ( 1.2 फीसदी ) – छत्तसगढ़ ( 30 फीसदी ), झारखंड ( 26 फीसदी ), ओडिसा ( 22 फीसदी ) – इसलिए हम इस लेख में अनुसूचित जति की स्थिति पर ही चर्चा करेंगे।
अनुसूचित जाति के कर्मचारियों के लिए ग्रामीण रोजगार केवल कागज पर
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी ( नरेगा ) अधिनियम के तहत पंजीकृत सभी कार्यकर्ताओं में से एक चौथाई अनुसूचित जाति से हैं। नरेगा योजना के तहत ग्रामीण इलाके के गरीब लोगों को 100 दिन के लिए रोज़गार दिलाने का प्रावधान दिया गया है।
नरेगा के आंकड़ों के मुताबिक, इस योजना के तहत पंजीकृत कर्मचारियों में से 25 फीसदी अनुसूचित जाति के हैं। सबसे अधिक अनुसूचित जाति के कर्मचारियों का पंजीकरण उत्तर प्रदेश ( 33 फीसदी ) पाया गया है।
लेकिन "सक्रिय " श्रमिकों का अनुपात हतोत्साहित करने वाली है। पंजीकृत कर्मचारियों में से सक्रिय श्रमिकों के अनुपात में बिहार की स्थिति केवल झारखंड से ही बेहतर देखी गई है।
SC Workers Registered For NGREA In Poor States | |||||
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EAG States | Registered Workers (in million) | Active Workers (in million) | SC registered workers (%) | SC active workers (%) | Proportion of Active workers to registered workers (%) |
Chhattisgarh | 1.1 | 0.5 | 9.94% | 47.58% | 47 |
UP | 7.6 | 2.9 | 33.73% | 37.46% | 37 |
Uttarakhand | 4 | 0.13 | 19.57% | 34.60% | 34 |
MP | 4 | 1.3 | 16.17% | 33.18% | 33 |
Rajasthan | 4.5 | 1.4 | 18.36% | 31.19% | 31 |
Odisha | 3.2 | 0.56 | 18.00% | 17.75% | 17 |
Bihar | 5.5 | 0.88 | 25.30% | 16.04% | 16 |
Jharkhand | 9 | 0.06 | 12.10% | 6.34% | 6 |
All India | 53.1 | 18.8 | 19.45% | 35.40% | 35 |
Source: Ministry of Rural Development
झारखंड में सक्रिय श्रमिकों की संख्या सबसे कम है। इस मामले में बिहार एवं ओडिसा का स्थान दूसरे एवं तीसरे नंबर पर है। गरीब राज्यों में सर्वोत्तम सक्रिय श्रमिकों के आंकड़े छत्तीसगढ़ ( 47 फीसदी ) देखे गए हैं।
प्राथमिक स्कूलों में अनुसूचित जाति की लड़कियों की संख्या कम
राज्य के प्राथमिक स्कूलों में अनुसूचित जाति की लड़कियों का नमांकन केवल 19.9 फीसदी दर्ज की गई है। इस मामले में ईएजी राज्यों में बिहार, पांचवे स्थान पर है। हालांकि यह आंकड़ा बिहार की जनसंख्या की तुलाना में अनुसूचित जाति के दर के हिसाब से बेहतर है लेकिन बिहार में कुल लड़कियों की नमांकन की तुलना में अनुसूचित जाति की लड़कियों की नामांकन दर आधी है।
ईएजी के अन्य राज्यों से तुलना की जाए तो प्राथमिक स्कूलों में लड़कियों के नमांकनमामले में बिहार तीसरे स्थान पर है। 49.3 फीसदी के साथ छत्तीसगढ़ पहले एवं 48.9 फीसदी के साथ झारखंड दूसरे स्थान पर है।
ईएजी राज्यों में प्रथमिक स्कूलों में नमांकन, 2013-14
Source: District Information System for Education (primary) 2013-14
अनुसूचित जाति के प्राथमिक शिक्षा नामंकन की ओर नज़र डालें तो 27.8 फीसदी के साथ उत्तर प्रदेश पहले एवं 24 फीसदी के साथ उत्तराखंड पहले एवं दूसरे स्थान पर है।
अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध दर बढ़ा-आधे से अधिक मामले की जांच लंबित
वर्ष 2012 के मुकाबले वर्तमान में बिहार राज्य में अनुसूचित जाति के खिलाफ अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। गौरतलब है कि साल 2012 में बिहार, देश का तीसरा सर्वाधिक अनुसूचित जाति के खिलाफ मामले दर्ज करने वाला राज्य था।
20.5 फीसदी अनुसूचित जाति की आबादी के साथ, देश में कुल अनुसूचित जाति के खिलाफ दर्ज मामले में से 18 फीसदी उत्तर प्रदेश में हुए हैं। बिहार में लिए यह आंकड़े 17 फीसदी ( 6,721) एवं राजस्थान के लिए 16.4 फीसदी ( 6,475 ) दर्ज की गई है।
देश की कुल अनुसूचित जाति की आबादी में से 8 फीसदी आबादी बिहार में रहती है। यही कारण है कि बिहार में अनुसूचित जाति के खालाफ अपराध के मामले अधिक रहे हैं।
अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध, 2013
Source: National Crime Records Bureau
पुलिस के पास अनुसूचित जाति के खिलाफ रजिस्टर्ड मामलों में से करीब 35 फीसदी मामले अब भी लंबित हैं। वर्ष 2013 की आंकड़ों देश में अनुसूचित जाति के खिलाफ कुल लंबित मामलों में से बिहार की हिस्सेदारी 23 फीसदी की है।
बिहार की अदालत में करीब 90 फीसदी मामले लंबित हैं। साथ ही राज्य में रजिस्टर्ड मामलों के लिए सज़ा का दर केवल 13.1 फीसदी दर्ज की गई है। इससे यह साफ होता है कि अपराध मामलों की शिकायत दर्ज कराने के बावजूद कुछ ही मामलों में जांच की प्रक्रिया पूरी की जाती है।
( राष्ट्रीयअपराधरिकॉर्डब्यूरो के मुताबिक अपराध दर को100,000 की आबादी पर अपराध की प्रति संख्या के रुप में परिभाषित किया गया है। अपराध दर, क्षेत्र में हुई घटनाओं की संख्या को रहने वाले लोगों की संख्या से भाग करने के बाद आने वाले परिणाम को 100,000 से गुना करने के बाद अपराध दर निकाला जाता है। )
बिहार की स्थिति पर यह हमारा तीसरा एवं अंतिम भाग है। पहला भाग एवं दूसरा भाग यहां पढ़ सकते हैं।
( सालवे एवं तिवारी इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं। )
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 19 अगस्त 15 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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