मुंबई: राष्ट्रीय स्वास्थ्य आंकड़ों के अनुसार, भारत के लगभग 47 फीसदी गरीब बच्चे पूरी तरह से प्रतिरक्षित नहीं हैं,जो कि सबसे अमीर बच्चों की तुलना में 17 प्रतिशत अंक अधिक हैं। इससे उन पर रोकने योग्य बीमारी के जोखिम में आने का खतरा होता है और उनके घरों में भयावह स्वास्थ्य व्यय होने की आशंका रहती है। आंकड़ों के मुताबिक घरेलू संपदा के अलावा, माता-पिता की साक्षरता, जन्म का क्रम और जन्म स्थान जैसे कारक टीका कवरेज को प्रभावित करते हैं।

12-23 महीने की आयु के बच्चे, जिन्होंने टीबी और खसरा के टीके के लिए बेसिल कैलमेट गुएरिन (बीसीजी) के एक-एक खुराक प्राप्त किया था, और डिप्थीरिया-पर्टुसिस-टेटनस (डीपीटी) वैक्सीन और पोलियो वैक्सीन में से प्रत्येक की तीन खुराकें ली थीं, पूरी तरह से प्रतिरक्षित के रूप में गिने जाते थे। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 (2015-16) (एनएफएचएस-4) के आंकड़ों के अनुसार, देश भर में 38 फीसदी बच्चे पूरी तरह से प्रतिरक्षित नहीं थे।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, दुनिया भर में 2010 और 2015 के बीच टीकों ने 1 करोड़ लोगों की जान बचाई है। इसके अतिरिक्त, निमोनिया, दस्त, खांसी, खसरा, और पोलियो जैसी बीमारियों से जुड़े पीड़ितों और अपंगता से लाखों लोगों को बचाया गया।

इसके अलावा, टीके से खसरा के लिए 84 फीसदी, गंभीर न्यूमोकोकल बीमारी के लिए 29 फीसदी और गंभीर रोटावायरस के लिए 50 फीसदी लगने वाली गंभीर स्वास्थ्य लागत को कम कर सकते हैं, इस प्रकार गरीब परिवारों को चिकित्सा बोझ से बचाया जा सके, जैसा कि 2018 के इस हार्वर्ड टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के कार्लोस रिम्सालो-हर्ल द्वारा किए गए अध्ययन से पता चलता है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2015-16 के अनुसार, यह प्रतिशत सबसे गरीब परिवारों के लिए अधिक है, लगभग 78 फीसदी परिवारों का बीमा नहीं है। भारतीय 50 देशों के निम्न-मध्यम आय वर्ग में छठे सबसे बड़े आउट-ऑफ-पॉकेट स्वास्थ्य खर्चकर्ता हैं, जैसा कि हमने मई 2017 में पोर्ट किया था। ये लागत हर साल लगभग 3.2-3.9 करोड़ भारतीयों को गरीबी रेखा से नीचे धकेल देती है जैसा कि विभिन्न अध्ययन से पता चलता है।

अध्ययन में कहा गया है कि गरीब परिवारों पर गंभीर स्वास्थ्य लागत का बोझ अधिक है। इसमें आगे कहा गया है कि वैक्सीन कवरेज का विस्तार उन्हें वित्तीय जोखिम से बचाएगा।

जॉन्स हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में सचिको ओजवा द्वारा 2018 के एक अध्ययन के अनुसार,टीकाकरण एक दशक में बीमारी के इलाज की लागत से लगभग 16 गुना अधिक शुद्ध लाभ देता है। अध्ययन में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में वैक्सीन कवरेज बढ़ाने के निवेश पर प्रतिफल का आकलन किया गया है (भारत एक निम्न-मध्यम आय वाला देश है)।

गरीब परिवारों के केवल 53 फीसदी बच्चे पूरी तरह से प्रतिरक्षित क्यों हैं?

सेंटर फॉर डिसीज, डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी के हेल्थ इकोनॉमिस्ट सुस्मिता चटर्जी ने इंडियास्पेंड को बताया, " कम वैक्सीन कवरेज के लिए एकमात्र निर्धारक गरीबी नहीं है।" उन्होंने कहा, "अल्पसंख्यक समूह से संबंधित अन्य कारक, और निम्न महिला साक्षरता कुछ अन्य निर्धारक हैं जो गरीबी से जुड़ते हैं और कम कवरेज का कारण बनते हैं।" उन्होंने कहा कि गरीब परिवारों से संबंधित अल्पसंख्यकों का कवरेज कम है।

2016 में दिल्ली के एक शहरी गरीब समुदाय में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ, निवेदिता देवसेनापति द्वारा किए गए इस अध्ययन के अनुसार, पूर्ण टीकाकरण की संभावनाएं महिला बच्चों और मुस्लिम परिवारों में कम थीं। यदि माता साक्षर थी, यदि बच्चा शहर के भीतर पैदा हुआ था (विस्थापित नहीं), एक स्वास्थ्य सुविधा में पैदा हुआ था, या जन्म प्रमाण पत्र था, तो पूर्ण टीकाकरण की संभावना अधिक थी।

एनएफएचएस -4 के आंकड़ों के अनुसार, अन्य (62 फीसदी) की तुलना में मुसलमानों में वैक्सीन कवरेज (55.4 फीसदी) कम था, और स्कूली शिक्षा प्राप्त माताओं के साथ टीकाकरण कवरेज में वृद्धि हुई।

12-23 महीने की उम्र के लगभग 70 फीसदी बच्चे जिनकी माताओं ने 12 या उससे अधिक वर्ष की स्कूली शिक्षा प्राप्त की थी, सभी बुनियादी टीकाकरण प्राप्त की थी जबकि बिना शिक्षा प्राप्त महिलाओं के लिए यह आंकड़े 52 फीसदी थी।

एनएफएचएस-4 के अनुसार, गरीबी साक्षरता के स्तर से भी जुड़ी हुई है: गरीब परिवारों में लगभग 3 फीसदी महिलाओं और 7 फीसदी पुरुषों ने 12 साल या अधिक स्कूली शिक्षा पूरी की है, जबकि अमीर परिवारों में 51 फीसदी महिलाओं और 58 फीसदी पुरुषों ने 12 साल या अधिक शिक्षा प्राप्त की है, जैसा कि एनएफएचएस -4 के आंकड़ों से पता चलता है।

रिपोर्ट के अनुसार, छठे या बाद के बच्चे की तुलना में पहले जन्मे बच्चों को सभी बुनियादी टीकाकरण प्राप्त करने की अधिक संभावना है, जो कि फिर गरीबी से जुड़ा है ( (67 फीसदी बनाम 43 फीसदी )।

प्रति परिवार बच्चों की अधिक संख्या स्वास्थ्य, सूचना और शिक्षा की कमी को बढ़ाती है, जिससे गरीबी बढ़ रही है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 9 जुलाई, 2019 को बताया था। बच्चों वाले परिवारों में 22 फीसदी गरीबी दर है, जबकि बिना बच्चों वाले परिवार 8 फीसदी गरीबी दर दर्ज करते हैं।

मिशन इन्द्रधनुष ने वैक्सीन कवरेज का विस्तार कैसे किया

2014 में, केंद्र ने मिशन इन्द्रधनुष को लॉन्च किया, जो 2020 तक देश की आबादी के पूर्ण कवरेज को तीव्र प्रयासों के माध्यम से प्राप्त करने का इरादा रखता है।

चटर्जी ने इंडियास्पेंड को बताया, "गांवों में आमतौर पर सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) और जहां आशाएं नहीं होती हैं, वहां ग्रामीण क्षेत्रों में उप-केंद्र हैं।लेकिन शहरी क्षेत्रों में, इस तरह का बुनियादी समर्थन आसानी से सुलभ नहीं है। ”

2014 और 2018 के बीच - मिशन इन्द्रधनुष शुरू होने के बाद - 12-23 महीने के भारतीय बच्चों के लिए समग्र टीकाकरण कवरेज 29 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है, 62 फीसदी से 91 फीसदी तक, प्रति वर्ष लगभग 7 प्रतिशत अंक। इससे पहले, 2006 और 2014 के बीच, टीकाकरण कवरेज 18 प्रतिशत अंक बढ़ा था - 44 फीसदी से 62 फीसदी, प्रति वर्ष लगभग 2 प्रतिशत अंक।

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल ने कार्यक्रम को विश्व स्तर पर 12 सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं में से एक के रूप में चुना, जैसा कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने दिसंबर 2018 में बताया था।

अक्टूबर 2017 में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने गहन मिशन इन्द्रधनुष की शुरुआत की - जिसने दिसंबर 2018 तक 90 फीसदी से अधिक टीकाकरण प्राप्त करने का लक्ष्य प्राप्त किया।उन्होंने कहा, "कोई भी बच्चा किसी भी वैक्सीन से बचाव की बीमारी से पीड़ित नहीं होना चाहिए।"

देव सेनापति ने अपने 2016 के>अध्ययन में कहा कि अभियान और सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों से टीकाकरण कवरेज में वृद्धि हो सकती है, महिला साक्षरता में सुधार अधिक टिकाऊ और प्रभावी हो सकता है।देव सेनापति ने अपने 2016 के अध्ययन में कहा कि अभियान और सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों से टीकाकरण कवरेज में वृद्धि हो सकती है, महिला साक्षरता में सुधार अधिक टिकाऊ और प्रभावी हो सकता है।

यह कहानी HEALTH CHECK पर पहली बार यहां प्रकाशित हुई थी।

(पंक्ति अंतानि, न्यूयॉर्क के सीयूएनवाई बारुच कॉलेज से फाइनेंस में ग्रैजुएशन कर रही हैं, साथ ही इंडियास्पेंड में इंटर्न हैं।)

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