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पिछले एक दशक में , ग्रेटर मुंबई नगर निगम (एमसीजीएम) - एशिया के सबसे धनी नगरपालिका संगठनों में से एक - का बजट अनुमान 513 प्रतिशत तक बढ़ा है , 2004-2005 में 5,078.88 करोड़ रुपये की राशि से इस वित्तीय वर्ष के लिए 31,178.19 करोड़ रुपये तक ।

फिर भी, हर वर्ष इसकी काफी निधि अप्रयुक्त ही रह जाती है , मुंबईकर को शहर की अंतहीन अराजकता और विकास की बोझल गति के बीच हताश छोड़ते हुए ।

एमसीजीएम का बजट अनुमान कई वर्षों के दौरान (करोड़ रु में)

इण्डिया स्पेंड के एक विश्लेषण से पता चलता है कि 2004-2005 के बाद से,अलग से तय 58,945.12 करोड़ रुपये में से आधे से कम सड़कों, पुलों, ठोस कचरा प्रबंधन, पानी, सीवरेज, बरसाती पानी की नालियों, और सार्वजनिक स्वास्थ्य देखरेख प्रणाली वास्तव में खर्च किए गए थे।

एमसीजीएम के रिकॉर्ड से पता चलता है कि निगम के बजट का लगभग 25-30%, पूंजीगत व्यय है, । इंडिया स्पेंड ने जैसा कि पहले भी बताया है कि कुल बजट में अनुमानित 52%, स्थापना और प्रशासन खर्च है जिसमे नागरिक कर्मचारियों का वेतन भुगतान भी शामिल है ।

2007 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की भारत में नगर निगम के वित्त पर दी गई एक रिपोर्ट के अनुसार विभिन्न भारतीय शहरों में औसत पूंजीगत व्यय 12.37% है। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार अधिक पूंजी व्यय उन नागरिक बुनियादी सुविधाओं के निर्माण के लिए आवश्यक है ताकि योजनात्मक शहरी विकास किया जा सके ।

मुंबई मे लोक निर्माण कार्यों पर किया गया कम निवश नागरिक सुविधाओं जैसे पानी की आपूर्ति, सीवरेज, परिवहन नेटवर्क और तूफानी जल-जल निकासी व्यवस्था की अपर्याप्त उपलब्धता में परिलक्षित होता है। हालाँकि पूंजीगत व्यय की हिस्सेदारी, भारतीय औसत से अधिक है, लेकिन 2012-2013 तक के आंकड़ों से स्पष्ट है कि 23,327.27 करोड़ रुपये या इस कुल प्रावधान का 39.5% , वास्तव में 2004-2005 के बाद ही इकठ्ठे (एक साथ ) खर्च किया गया है।

इन अनुमानों में, औसतन , कुल वित्त व्यय का जहां 50% तक सड़कों, तूफान पानी नालियों और ठोस कचरा प्रबंधन व्यय के लिए, वहीं लगभग 30% पानी और सीवरेज के लिए निश्चित है में । अन्य प्राथमिक खर्च में औसतन 8.2% सार्वजनिक स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं के लिए और 2% से 4% तक का वार्षिक शेयर, फायर ब्रिगेड और आपदा प्रबंधन सेवाओं के उन्नयन के लिए शामिल हैं।

एमसीजीएम का पूंजीगत खर्च अनुमान (करोड़ रुपये में)

आंकड़ों से पता चलता है कि 2012-13 तक एमसीजीएम द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की बुनियादी व्यवस्था पर वास्तविक व्यय, 2004-05 से 2014-2015 के दशक तक, इस विभाग के लिए निर्धारित पूँजी व्यय की कुल राशि 4714.41 करोड़ रुपये का सिर्फ 40.14% था जो कि बहुत कम है।

एमसीजीएम द्वारा वास्तविक पूंजीगत व्यय, ( करोड़ रु में)

इसी प्रकार, 2004-2005 और 2012-2013 के बीच ठोस कचरा प्रबंधन विभाग में पूंजीगत व्यय के संदर्भ में सबसे अधिक ख़राब प्रवृत्ति देखी गई जहां कुल आवंटित धनराशि में से केवल 29.79% का ही उपयोग किया गया। 2004-2005 के बाद से मुंबई के द्वीप शहर और उपनगरों में सड़क विकास और सुधार के लिए कुल 14,292.46 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, लेकिन इसमें से एक तिहाई से अधिक या मुश्किल से 5,306.82 करोड़ रुपये भी, 2012-13 तक खर्च किए गए थे ।

विशेषतः इस खराब योजना और निष्पादन का कारण बीएमसी बजट का काफी हद तक अपने स्वयं के धन पर बनाया जाना है। निगम अपने बजट के सिर्फ 10% के लिए अनुदान और ऋण पर निर्भर करती है।इस कोष के लिए 70 फीसदी राशि , कर और चुंगी द्वारा अर्जित होती है जिसमे आधे से अधिक राजस्व आय और प्राप्तियों के माध्यम से प्राप्त होता है।

एमसीजीएम आय, 2014-15

आंकड़े, रुपए में भाग की तरह

एमसीजीएम राजस्व आय, 2014-15

आंकड़े, रुपए में भाग की तरह

जयराज फाटक(पाठक) , पूर्व नगर निगम आयुक्त (मई 2007 - अक्टूबर 2009) ने निगम के ट्रैक रिकॉर्ड का बचाव करते हुए कहा कि "पूंजीगत व्यय में विलंब के लिए निगम के (विचारशील) अधिकारहीन या प्रशासनिक विंग को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। फाटक ने इंडिया स्पेंड को बताया कि नगर निगम द्वारा किए गए पूंजी प्रधान मेगा परियोजनाऐं यदि किसी राज्य या केंद्रीय सरकारी एजेंसी द्वारा निष्पादित की जाएँ तो उन्हें भी ऎसी ही समस्याओं का सामना करना पड़ेगा ।

" वे वांछित गति से आगे नहीं बढ़ सकते ,यदि यह पाया जाता है कि काम निविदाओं पर प्राप्त बोलियों अनुपयुक्त हैं या अगर अन्य राज्य या केंद्रीय सरकारी निकायों जैसे पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से भूमि मंजूरी या अनुमतियाँ लंबित हैं। विचारशील प्रक्रिया में देरी अधिकांशतः मामूली तौर पर छोटे अल्पकालिक परियोजनाओं को प्रभावित कर सकती है । "

फाटक कहते हैं कि भरी पूँजी वाली परियोजनाओं जैसे कि 3900 करोड़ रुपये वाली बृहन्मुंबई वर्षा जल नालियों (ब्रिम्स्टोवैड) परियोजना के मुकाबले वार्ड स्तर पर सामान्य छोटी परियोजनाएं तेजी से निष्पादित होती हैं।

फाटक कहते हैं "इन छोटी परियोजनाओं को ग्रामीण क्षेत्र में स्थानीय पंचायत स्तर पर निष्पादित योजनाओं के साथ देखना आसान है(देखना चाहिए) जहां बजट की खपत निश्चित रूप से तेज होती है(बजट तेजी से खर्च हो जाते हैं)" ।

हालाँकि एमसीजीएम के गलियारों में, जैसे नई राज्य सरकार धीरे धीरे रूप ले रही है, निगम अधिकारियों ने स्वीकार किया कि ऐसे अनिश्चित राजनीतिक माहौल (निगम में एक संभव शिवसेना-भाजपा के विभाजन की बात उठ रही है) ने भी पौर संघ को प्रभावित किया है ।

एक निगम आधिकारी ने नाम बताने की शर्त पर बतायाकि "पार्किंग पर नीतिगत फैसले, रिक्त स्थान और लाइसेंस जैसे मुद्दे , लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव के कारण अब आठ महीने से अधिक के लिए लंबित कर दिए गए हैं।

"राजनीतिक दलों इस संवेदनशील चुनावी माहौल में विवादास्पद निर्णय नही लेना चाहती है लेकिन निगम ने अपने को सुरक्षित रखने की ले चाहती है , निगम उन महत्वपूर्ण मुद्दों पर देरी कर दी है जिनके लिए आने वाले वर्ष में बजट की आवश्यकता होगी" अधिकारी ने कहा। "विभिन्न विचारशील समितियों के प्रमुखों को सक्रिय होने की जरूरत है, अनुभवहीन नेता मंजूरी रोक लेते हैं , और प्रशासनिक इंजन को बिना अवरोध बढ़ने नही देते जिससे अंततः नागरिक सेवाएं प्रभावित होती हैं।"

भारत की वित्तीय राजधानी के लिए, ये स्पष्टीकरण कुछ भी बदलते नहीं हैं।

(एलिसन मुंबई में आधारित एक पत्रकार हैं । उनसे alison.saldanha@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है)


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