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इस स्टोरी को लिखते समय– 10 अप्रैल 2015 को हमने भारत के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से– एक, बंगलुरु का बी0टी0एम0 लेआउट इलाका– जहां हाल में नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स लगाया गया है– के बीच पाया | उक्त इलाका आधुनिक रेस्त्रां, निर्मित होते आवासीय भवन , ऑफिस टावर्स और सुंदर चमकती सड़क और हाइवेज से सज्जित दिखते हैं |

उपरोक्त इंडेक्स द्वारा अभी पूरे आंकड़े नहीं आ पाये हैं, –लेकिन एक प्रमुख प्रदूषक, पी0एम0 2.5, जो बी0टी0एम0 इलाके में इंडेक्स में आया– 500 ug/m3 or 1200% मनुष्य के लिए सुरक्षित सीमा से ज्यादा पाया गया | ug का मतलब माइक्रोग्राम या एक ग्राम का मिल्लीओंत्थ हिस्सा– वायु प्रदूषण को मापने की मात्रा है |

PM2.5 सूक्ष्म प्रदूषण के अणु तत्व हैं– 2.5 माइक्रोन्स से भी सूक्ष्म– लगभग अदृश्य तथा फेफड़ों के अंतरतम में पहुँचने में सक्षम– इस प्रदूषित अणुओं के समूह में लगभग 23 तरह के प्रदूषित तत्व पाये गये, जिसमें अम्ल, मेटल्स, रसायन, मिट्टी, धुआँ, कालिख –ये सब कैंसर, ह्रदय रोग और फेफड़ों के रोग पैदा करते हैं |

भारत के सबसे सुंदर कहे जाने वाले बंगुलुरु – जिसको भारत का गार्डेन का खिताब दिया गया– वहाँ आज अति उच्च आय वर्ग वालों के सबसे खूबसूरत आवासीय इलाके कैसे सबसे प्रदूषित और जहरीली हवा से भर गये |

बी.टी.एम. लेआउट आधुनिक भारतीयों की महत्वकांक्षाओं का अड्डा है | रेस्त्रां और दफ्तर में गाड़ियों की कतार लग जाती है | पास के राजमार्ग से अंतर्जनपदीय और लम्बी दूरी के ट्रक और बस का ट्रैफिक रात दिन लगा रहता है | बंगुलुरु में लगातार हो रहे निर्माण कार्य से क्षेत्र प्रभावित रहता है |

बी.टी.एम. लेआउट के वायु प्रदूषण के मानक भारत के सामान्य स्टैंडर्ड प्रदूषण से बहुत ज्यादा है– इसमें कोई नई बात या आश्चर्य नहीं लगती | आज से लगभग 7 साल पहले कर्नाटक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों की शीट के अनुसार वर्ष 2007 में प्रदूषण मात्रा 300 ug/m3 थी– जो कि 7.5% सुरक्षा स्तर से अधिक थी |

भारत में दिल्ली– पूरे देश में सबसे प्रदूषित शहर कहा जाता है, दिल्ली में वायु प्रदूषण पर बहस जारी है | इस परिपेक्ष्य में सरकार का डाटा सही नहीं प्रतीत होता है, लेकिन उससे दो चीज साफ जाहिर होती हैं कि भारत के अन्य बड़े शहर भी उतने ही लगभग प्रदूषित हैं जितनी की दिल्ली | लेकिन कुछ राष्ट्रीय स्तर पर प्रदूषण मुक्त करने/ कम करने के उपाय जो महंगे लगते हैं, पर वास्तव में सस्ते हैं, जब हम देखते हैं कि कुछ न करने की कीमत बहुत ज्यादा चुकनी पड़ेगी |

यह बात केवल बंगलुरु की नहीं, जिसकी आबादी लगभग 9 मिलियन है– जिसका प्रदूषण चीन की राजधानी बीजिंग से भी ज्यादा है | बीजिंग विश्व में दिल्ली के बाद दूसरी सबसे प्रदूषित राजधानी है |

वर्ष 2014, इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा भारत के 13 बड़े शहर (बंगलोर उस समय इस लिस्ट में नहीं था) बीजिंग से ज्यादा प्रदूषित हैं | उक्त लेख के कारण पूरे देश का ध्यान उक्त अखबार के लेखों, जिसका नाम दिया गया था– सांस लेने के कारण मृत्यु | उक्त लेख ने लोगों को जागरूक और चिंतित कर दिया |

जिस दिन बंगलुरु के बी0टी0एम0 लेआउट का प्रदूषण इंडेक्स PM2.5 स्तर/500 ug/m3 आया– उस दिन बीजिंग का स्तर– 309 ug/m3– एयर क्वालिटी वर्ग में ऐसे चिन्हित किया : वेरी अन्हेल्थि (unhealthy) | बीटीएम लेआउट और बंगलुरु में एयर क्वालिटी इंडेक्स मशीन ने बताया AQI को कम्प्युतरीकृत करने के लिए अपर्याप्त डाटा उपलब्ध– इस बात से भारत के शहरी क्षेत्रों में डाटा कलेक्शन की सीमाएं नजर आती हैं | निम्न लिखित में बताया गया है कि एयर क्वालिटी इंडेक्स कैसे काम करता है |

बीजिंग के मानकों के अनुरूप बीटीएम लेआउट की वायु संभवतः सबसे ख़राब हो जाएगी-इमरजेंसी हालतों से भी अधिक ख़राब है, जो सभी के लिए नुकसानदायक हो सकता है | 10 अप्रैल को बीटीएम लेआउट की अति नुकसानदायक स्थिति के बारे में कहीं कोई स्थानीय गतिविधि नहीं हुई |

नवीनतम डाटा : दिल्ली का लगातार घुटता गला

इंडियास्पेंड द्वारा हाल में केंद्रीय पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड (सी0पी0सी0 बी0) की दिल्ली की एयर क्वालिटी डाटा का विश्लेषण करने पर पाया कि सी0पी0सी0बी0 अपने आंकलन की गलतियों को स्वीकार करता है, जिसने दिल्ली का प्रदूषण स्तर सुरक्षित सीमा से 200% ज्यादा पाया |

दिल्ली में रेस्पिरेबल सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (आरएसपीम)- अदृश्य पार्टिकल्स का स्पेक्ट्रम, जहरीले टुकड़े और गाडिओं का धुआं, निर्माण कार्यों से उठ रही धूल और फैक्ट्री का उत्सर्जन-जो सुरक्षा स्तर को पार कर जाते हैं, जिसे नेशनल एम्बिएंट एयर क्वालिटी स्टैण्डर्ड कहते हैं, सीपीसेबी मोनिटरिंग रिपोर्ट के अनुसार बड़े PM10 (दस माइक्रोन से छोटे) 216% और PM2.5 ,242% अधिक हैं ।

निम्न आंकड़े जो कि 05 दिसम्बर, 2014 से 10 फरवरी, 2015 के बीच– प्रत्येक 24 घंटे में– 19 शहरों के लिए मुख्य 8 प्रदूषण के कारक तत्व पाये गए | उक्त सभी 8 शहर– नेशनल कैपिटल रीजन (N.C.R.) में आते हैं |

उक्त मोनिटरिंग नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से दिल्ली के मुख्य बाजार लाजपत नगर के व्यापारिक प्रतिष्ठानों ने उक्त संस्था से संपर्क किया | निम्नलिखित टेस्ट से पता चलता है कि वहाँ के वातावरण मे कितने और कौन से विषैले तत्व है |

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graph1प्रदूषित कणो की साइज बराबर या उसे कम –10 μm (PM10)|

प्रदूषित कणों , जिनका अर्द्ध – व्यास 2.5और 10 um (microns) होता है – उनको “ coarse ” , “मोटा प्रदूषित कण” , कहा जाता है , और उनको PM10 के नाम से जाना जाता है|

NCR क्षेत्र के सभी शहरोँ की औसत PM10 कि मात्रा 100 μg/m³ से 368 μg/m³ मापिगई | सभि NCR के सभी शहरोँ ने नेशनल एम्बिएंट ऐर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स सुरक्षित मनक मात्रा , 100 μg/m³ की सीमा को पार किया - जो की 24- घंटे के चक्र में नापे गये |

68 दिन के मानिटरिंग पीरियड (dec 05.2014 से feb 10.2015 ) ,538 से 545 – ने सुरक्षित सीमा को दिल्ली मे पार किया | जबकि गाजियाबाद , नोएडा और NCR ने सभी सुरक्षित सीमा को पार किया |

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प्रदूषित कणों की साइज बराबर या उससे से कम – 2.5 μm (PM2.5)

ऐसा प्रदूषित कण जिनका साइज 2.5 um (pm 2.5) या उससे से कम है | उक्त प्रदूषित , कण जिनकी साइज़ 2.5 um जिनको फ़ाइन पार्टीकिल और PM2.5. कहा जाता है |

PM2.5 की मानिटरिंग केवल चार शहरों मे की गयी , दिल्ली फरीदाबाद ,गुड़गाँव और रोहतक ,15 अन्य NCR शहरों के डाटा नहीं पाये गए, PM2.5 का औसत इन शहरोँ में 59 ug/m3 और 205 ug/m3 पाया गया |

68 दिन के मानिटरिंग पीरियड ने एयर क्वालिटी स्टेडर्ड्स के 60 ug/m3 – के मानक पार किया – जो की 24 घंटे के अंतराल मे रेकॉर्ड किया गया |

दिल्ली में 458 टेस्ट में 447 ने सुरक्षित सीमा को पार किया लेकिन फरीदाबाद ने सभी सीमाओं को पार किया |

अंत में , एक एयर क्वालिटी इंडेक्स लेकिन आंकड़े संदिग्ध |

CPCB द्वारा मानीटर्ड प्रदूषित तत्व: सल्फर डाइआक्साइड, नाईट्रोजन डाइआक्साइड, RSPM (PM2.5 - PM10), ओज़ोन, कार्बन मोनो ऑक्साइड ,अमोनिया और बेंज़ीन – लेकिन बहुत से आंकड़ों को एकत्र करने वालों के आंकड़ों में अनियमितता पायी गयी जैसे स्टेट पोल्लुसन कंट्रोल बोर्ड्स जिंहोने निश्चित फारमेट में आंकड़े नहीं दिये |

उदाहरण स्वरूप राज्य प्रदूषण बोर्ड ने 24 घंटे आधारित आंकड़ों का औसत प्रदान किया – जिससे सर्वोच्च स्तर और प्रदूषण के सोर्स का पता नहीं लगा |

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल में लांच किये गए नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI)- ये 24 घंटे पर आधारित आंकड़े दे रहे है : पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5, PM10), सल्फर डाइऑक्साइड , नाइट्रोजन डाइऑक्साइड , कार्बन मोनोऑक्साइड और ओज़ोन |

लेकिन ज्यादातर इंडेक्स बताता है अपर्याप्त आंकड़े, AQI को कम्प्यूट करने हेतु |

एक महुत्वपूर्ण कारण दिल्ली – जिसकी आबादी 25 मिल्यन है – की प्रदूषित हवा पर नीतियाँ असंतुलित आंकड़ों पर आधारित है | उदहारण स्वरूप यह गलत अवधारणा है की दिल्ली का वायु प्रदुषण 15 साल पुरानी वाहनो के कारण है |

दिल्ली मे 5.6 मिल्यन 2 पहिया वाहन रजिस्टर्ड है | यह 2.5 पर परिवार का औसत है | ये आंकड़े लगभग गलत प्रतीत होते है – जब हम दिल्ली वालों की औसत आमदनी देखते है |

केवल 59% कारें और 42 % दो पहिया वाहन दिल्ली की सड़कों पर चल रहे है |इनमे से 65 % गाडियाँ 5 साल से कम पुरानी है और 1% 15 वर्ष से ज्यादा पुरानी है ऐसा दिनेश मोहन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा श्री मोहन प्रो. आई0 आई0 टी0 दिल्ली: सेंटर फॉर बायोमेडिकल इंजीन्यरिंग मे है |

दूसरे शब्दो मे ओफ़्फ़िसियल आंकड़े अतिरंजित आंकड़े देते है |

श्री मोहन ने आगे पूछा की ऐसा क्यों है कि दिल्ली में प्रति हजार मनुष्यों में गाड़ियों के मालिकों की संख्या सिंगापूर , लंडन या पैरिस से जब काफी कम है और उनकी तुलना मे कम औद्योगिक संस्थान है – तब भी दिल्ली ज्यादा प्रदूषित क्यों है ? वास्तविकता यह है की इन प्रश्नों के उत्तर आसान नहीं है और न बरदाशत करने लायक है |

वायु - प्रदूषित दिल्ली में ,घुटती जिंदगी : इमजेस कर्टसी – अमित बोस/बूम लाइव

बाहरी राज्यों से आये ट्रक्स भारत के शहरों को प्रदूषित करते हैं , समस्या का हल नई दिल्ली के पास है |

इंडियन एक्सप्रेस की उक्त खबरों के आधार पर नेशनल ग्रीन ट्रिबुनल (NGT) ने पिछले सप्ताह 10 साल पुरानी डीजल की गाड़ियों को दिल्ली मे प्रवेश करने से रोकने का प्रस्ताव कर दिया – 100 कारें तो तुरंत रोक दी गयी दिल्ली मे परिचालन करने से |जैसा की NGT के पुराने आदेश साबित करते है कि उन आदेशों का समय पर पालन नहीं हो पाता |

लगभग 5 महीने पहले NGT ने 15 साल से पुरानी गाड़ियों को दिल्ली मे प्रवेश / चलाने के लिए रोकने का आदेश पारित किया लेकिन आदेश पालन नहीं हुआ |

दिल्ली के NCR क्षेत्र में 80,000 ट्रक वायु प्रदूषण को बढ़ा देते है और उन शहरों में ट्रकों के कारण होने वाला प्रदूषण और भी ज्यादा होता है जिनके शहरी किनारों मे हाइवे नहीं है , जैसे कि बंगलोर और ऐसा प्रत्येक रात होता है |

ये ट्रक प्रदुषण के नियमों का पालन नहीं करते और यही उलंघन 60% प्रदुषण का कारण बनते हैं | ये तत्व हैं , भवन निर्माण धूल , फ़ैक्टरी से निकलने वाला धुआँ, पुरानी गाड़ियां और अन्य ये ट्रक्स प्रदूषण के स्टंडर्ड्स के नियमों का पालन नहीं करतीं , इनके कारण तमाम हैं | लेकिन 10 से 20 साल पुरानी ट्रकों जो कि केरोसीन और डीजल के मिश्रण से चलतीं है – पैसा बचाने के लिए – इनको सड़क पर चलने से रोकना महत्वपूर्ण है |

यद्यपि सर्वोच्च न्यायालया के एक आदेश ने सार्वजनिक वाहनों को CNG (कम्प्रेस्ड नैचुरल गैस) से वाहनो को चलाने का आदेश कर दिया , लेकिन उक्त वाहन दिल्ली राज्य आते तो है लेकिन दिल्ली के नियमों से परिचालित नहीं होते |

दिल्ली ने ईंधन के रूप मे अल्ट्रा लो – सल्फर – भारत स्टेज (BS) |V 2010 में शुरू किया, जो कि 81% ज्यादा क्लीन होता है – BS ||| स्टैंडर्ड को जिनको अन्य राज्य इस्तेमाल करते है |

उक्त समस्या का समाधान यह लगता है कि समस्त देश में बी0एस0 –IV के इस्तेमाल का आदेश सरकार कर दे, जिसकी देश के 50 शहरों में कार्यान्वित्त होने कि संभावना है सन 2015 के अंत तक | लेकिन इस सुधार को पेट्रोलियम और आटोमोबाइल उदद्योग विरोध कर रहे है क्योंकि इस स्विचओवर प्रक्रिया में रू0 32,000 कारोड ($ 5.3 बिल्यन) खर्चा अनुमानिता है केवल प्रथम चरण में |

अगर हम प्रदूषण से होने वाले नुकसान के प्रति सचेत है तो हमको भारत V ईंधन के उत्सर्जन नियमों को लागू 2018 तक करना होगा और भारत vi को 2021 तक और स्थानीय – उपाय करने होगे – ये विचार श्री मोहन आई.आई.टी , दिल्ली ने प्रकट किये |

भारत में ईंधन के कारण होने वाले प्रदूषण को कौन साफ करेगा ?

इस समस्या को बृहद पटल पर देखने की जरूरत और भारत की केंद्रीय सरकार द्वारा इस संबंध में सख्त नियम और आदेश देने से काम हो सकता है – क्योंकि इतने राज्य और मंत्रालयों और प्राइवेट कम्पेनिज में कोई तालमेल जल्दी नहीं बैठ सकता |

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय शहरों से प्रदूषण हटाने की लागत लगाने से 10 टाइम्स फायेदा हो सकता है – जो की अनुमानतः रू0 3.54 लाख करोड़ ( $ 59 बिल्यन ) या 3% सकल घरेलू उत्पाद का हो सकता है |

वायु प्रदूषण को रोकने के लिए हमको डीजल का प्रयोग कम करना होगा – जो की जहर भरा पार्टिकुलेट मैटर होता है और कैंसर पैदा करक होता है |भारत के तेजी से शहरीकरण से होने वाले नुकसान की एक तस्वीर दिल्ली ने दिखाई है – लेकिन अत्याधुनिक कहे जाने वाले बंगलोर के BTML लेआउट के विष भरे माहौल की सच्चाइयों ने आगे आने वाले खतरनाक भविष्य का आतंक भरा दरवाजा खोल दिया है |

दिल्ली में डीजल की बिक्री पिछले 2013 -14 में 40 % बढ़ गयी – साफ जाहिर हैं की डीजल का प्रयोग ज्यादा हो रहा है |

वर्तमान में 0.4 मिल्यन वाहन हैं जो की NCR क्षेत्र में डीजल से चालित है – वास्तव में प्रमाणिक आंकड़े उपलब्ध नहीं है – ये वाहन और ज्यादा हो सकते है |

आपका मोबाइल दिल्ली की आबोहवा को और प्रदूषित करने में कैसे सहायक होता है ?

प्राइवेट - सरकारी वाहनों के अलावा सबसे ज्यादा डीजल इस्तेमाल करने वाला टेलीकॉम सैक्टर है – जो की दिल्ली में दूसरा सबसे बड़ा डीजल खपत करता है |

पूरे भारत में टेलीकॉम सैक्टर ने 3.2 बिल्यन लिटर डीजल का उपभोग किया है | इसकी सन 2020 तक 6 बिल्यन लिटर की खपत होने की संभावना है | यह अध्यन ग्रीन पीस की रिपोर्ट के अनुसार आया है |

प्रत्येक साल 2,123 टन पार्टिकुलेट माटेरियल्स (PM 10) का जहरीला प्रदूषित उत्पादन दिल्ली में 14,328 सेलुलर टावर करते है – ऐसा टेलीकॉम सैक्टर की एक सारिणी / इंवैंट्री से – नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरनमेंटल स्टडीस और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रोपिकल मीटियोरॉलजि के शोध – कर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट्स में कहा है |

उपरोक्त के साथ ही डीजल जनरेटर 6 % - PM 2.5 और 10% PM 10 स्तर का जहरीला पदार्थ वायु में NCR क्षेत्र छोड़ते है – ऐसा U.S. और फ्रेंच शोध कर्ताओं के दल ने सन 2013 के अध्यन में पाया | जहर भरे उत्सर्जन के नियमों का नित्य उल्लंघन होता है |

अतः क्या हम सब दिल्ली छोड़ दें ?

इंडियन एक्सप्रेस के दिल्ली प्रदूषण पर विशेष लेखमाला में कहा गया की दिल्ली का निरंतर बढ़ता वायु प्रदूषण , दिल्ली नागरिकों के जीवन और स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है , उक्त अखबार ने अपनी लेखमाला के प्रथम दिन के लेख का शीर्षक – leave Delhi – यानि कि दिल्ली छोड़ो , रखा था |

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के CNG को इस्तेमाल करने के आदेश स्वरूप , अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान (AIIMS DELHI) ने बताया कि प्रदूषण से होने वाली बिमारियों के होने में सन 2007 तक कुछ कमी आई है | गति 6 सालों मे होस्पिटल्स में सांस और दमे की बीमारियों में 283% की वृद्धि पायी – जो की सन 2008 – 09 में 9,831 केसेस हुए – वो बढ़ कर 37,669 केसेस सन 2014 – 15 में हो गए |

सन 2013 में AIIMS ने सांस दमे की बीमारियों के लिए एक अलग विभाग बना दिया |

स्कूल जाने वाले बच्चों में सांस की बीमारियों काफी तेजी से बढ़ रही हैं – ऐसा इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया – यहाँ तक की चिकित्सकों ने भी बहुत से पैरेंट्स से कहा की आपके बच्चे का एक ही इलाज है की आप दिल्ली छोड़ दें |

कोलकाता के चितरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट ने बताया की दिल्ली मे 4 साल से 17 साल के बच्चों में फेफड़ों , ब्लड प्रैशर , आँखों की बीमारियाँ दिल के रोग भारत के अन्य शहरों से ज्यदा हो रहे हैं |

दिल्ली के 36 स्कूलों के 11,628 बच्चों में सांस – दमे और ततसंबंधी बीमांरियाँ बढ़ती पायी गयी – कंट्रोल ग्रुप के 4,536 बच्चे उत्तरांचल और 15 बच्चे पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र से थे |

आंकड़े बताते है की 4.6% दिल्ली के बच्चे दमा की बीमारी से ग्रस्त है | जबकि कंट्रोल ग्रुप में 2.5% हैं , 15 % आँखों में अक्सर परेशानी की बात करते है , जबकि कंट्रोल ग्रुप के केवल 4% में ऐसा है | उपरोक्त लक्षण जाड़ों में अधिक होते हैं – कारण घने कोहरे में PM10 के प्रदूषण कारक तत्व अधिकतम होते है – सबसे कम मानसून में , जो वर्षा के कारण बह जाते हैं , लेकिन थोड़े समय के लिए |

भारत के तेज़ी से बढते शाहेरिकरण स्वरुप दिल्ली ने खतरे का बिगुल बजा दिया है – लेकिन जैसा कि बी.टी.एम लेआउट इलाके का जहर भरा वायु मंडल संकेत करता है कि हम खतरनाक भविष्य कि ओर .....

साहा जो कि डाटा एडिटर द पोलिटिकल इंडियन में हैं

इमेज क्रेडिट : फ्लिक्क्र/ किरण जोंनालागाद्दा

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