लखनऊ: विद्या देवी (32) दो बच्चों की मां हैं और अब तीसरी बार गर्भ से हैं। हालांकि विद्या तीसरा बच्चा नहीं चाहती थीं लेकिन लॉकडाउन के दौरान उन्हें अनचाहा गर्भ ठहर गया।

“पहले से एक लड़का और लड़की है, इस महंगाई में इनको ही पढ़ाना-लिखाना आसान नहीं है अब तीसरे बच्चे के आने की खबर से मन दुखी हो गया है,” उत्तर प्रदेश के अतिपिछड़े ज़िले श्रावस्ती के जोगिन भइया गांव की रहने वाली विद्या ने बताया। विद्या के पति मुंबई की एक कपड़ा फ़ैक्ट्री में काम करते थे और लॉकडाउन के बाद अपने गांव को लौट आए हैं।

कोरोनावायरस और लॉकडाउन की वजह से उत्तर प्रदेश में परिवार नियोजन कार्यक्रमों को रोक दिया गया था। इसका एक कारण यह भी था इन सभी कार्यक्रमों की अहम कड़ी आशा बहू और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को कोरोनावायरस महामारी को रोकने के काम में लगा दिया गया था। लॉकडाउन के दौरान आने-जाने पर लगी रोक की वजह से भी लोग दवा की दुकानों पर बिना डॉक्टरी सलाह के मिलने वाला मनचाहा गर्भ निरोधक नहीं ले पाए। लॉकडाउन के दौरान बंद पड़े परिवार नियोजन कार्यक्रमों की वजह से राज्य में जनसंख्या विस्फ़ोट की स्थिति पैदा ना हो, इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने 27 मई को नसबंदी को छोड़कर सभी परिवार नियोजन कार्यक्रमों को फिर से शुरु करने का फ़ैसला लिया।

फ़ाउंडेशन फ़ॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज़ ने अपने एक अध्ययन के आधार पर अनुमान लगाया है कि उत्तर प्रदेश में लॉकडाउन की वजह से इस साल 5.80 लाख जोड़ों को उनके चाहने के बावजूद भी गर्भ निरोधक सामग्रियां नहीं मिल पाएंगी। राज्य में अनचाहे गर्भ के मामले 4.21 लाख तक पहुंच सकते हैं। इसकी वजह से 1.2 लाख से अधिक जीवित बच्चों का जन्म हो सकता है। इसके अलावा 2.56 लाख गर्भपात (1.47 लाख असुरक्षित) और 309 मातृ मृत्यु के मामले भी देखने को मिल सकते हैं।

इसके अलावा इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि साल 2020 में, 42 हज़ार ट्यूबल लीगेशन, 1.33 लाख आईयूसीडी, 2.56 लाख ओसीपी, 2.39 लाख ईसीपी और एक लाख मामलों में इंजेक्शन से गर्भनिरोध जैसी सेवाओं का इस्तेमाल नहीं हो पाएगा। इस अनुमान के मुताबिक़ एक करोड़ से ज़्यादा कंडोम भी प्रयोग में नहीं आ पाएंगे।

Source: FRHS

साल 2020 में राष्ट्रीय स्तर पर परिवार नियोजन के कार्यक्रमों की रफ़्तार में 15-23% गिरावट आ सकती है, एफ़आरएचएस के अध्ययन में बताया गया।

लाखों महिलाओं पर अनचाहे गर्भ का बोझ

संयुक्‍त राष्‍ट्र जनसंख्‍या कोष (यूएनएफ़पीए) ने भी इस बात को माना कि करोड़ों दंपतियों तक गर्भनिरोध से जुड़ी सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही हैं। यूएनएफ़पीए की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 114 निम्न और मध्यम आय वाले देशों में करीब 45 करोड़ महिलाएं गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल करती हैं।

छह महीने से अधिक समय में लॉकडाउन से संबंधित दिक्कतों के कारण इन देशों में 4.70 करोड़ महिलाएं आधुनिक गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल से वंचित रह सकती हैं। इनसे आने वाले महीनों में अनचाहे गर्भ के 70 लाख अतिरिक्त मामले सामने आ सकते हैं।

प्रजनन दर के मामले में यूपी दूसरे नंबर पर

परिवार नियोजन कार्यक्रमों को लेकर राज्य सरकार की चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि पहली बार उत्तर प्रदेश में प्रजनन दर (टीएफ़आर) 3 से नीचे गई है, हालांकि अभी भी यूपी देश में दूसरे नंबर पर है। उत्तर प्रदेश में प्रजनन दर 2.9 है। यूपी के अलावा सिर्फ़ बिहार ही जो इस मामले में आगे है। बिहार में यह दर देश में सबसे अधिक, 3.2 जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 2.2 है, सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के 2018 के आंकड़ों के मुताबिक़।

परिवार नियोजन सिर्फ़ जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाने में ही कारगर नहीं होता है। इसके ज़रिए विकास के कई लक्ष्य भी हासिल होते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के 17 सस्टेनेबल डवेलेपमेंट गोल (एसडीजी) में से कम से कम छह गोल को हासिल करने में परिवार नियोजन अहम भूमिका अदा करता है।

Source: United Nations

इसी साल जनवरी में जारी नीति आयोग की सस्टेनेबल डवेलेपमेंट गोल्स इंडेक्स 2019-20 से पता चलता है कि एसडीजी के मामले में बिहार और उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन देश के सबसे ख़राब 6 राज्यों में शामिल है। इन दोनों राज्यों में देश की 24% आबादी रहती है, यानी जब तक एसडीजी में इन राज्यों की तरफ़ से बेहतर प्रदर्शन नहीं होता तब तक भारत के लिए यह लक्ष्य पूरा कर पाना बेहद मुश्किल होगा, इंडियास्पेंड की 14 फ़रवरी की इस रिपोर्ट के मुताबिक़।

लॉकडाउन से टूटी सप्लाई चेन

परिवार नियोजन कार्यक्रम में गांव-गांव बंटने वाले सामग्रियों पर भी लॉकडाउन का असर हुआ है और उनकी सप्लाई चेन प्रभावित हुई है। यही कारण है कि कुछ जगहों पर यह सामग्रियां अभी तक नहीं पहुंच पाई हैं।

“लॉकडाउन में विभाग की तरफ से परिवार नियोजन कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए आशाओं व एएनएम को निर्देश दिए गए हैं कि वह घर-घर जाकर लोगों को सचेत करें। वैसे तो हमारे पास दो महीने का स्टॉक था लेकिन कहीं-कहीं लॉकडाउन के दौरान गर्भनिरोधक सामग्रियां नहीं पहुंच पाईं हैं। हम कोशिश में हैं कि ऐसी स्थिति में लोगों को सावधानी बरतने के लिए जागरूक कर सकें,” राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन कार्यक्रम के लखनऊ के ज़िला प्रोग्राम मैनेजर सतीश यादव ने बताया।

“गांवों में परिवार नियोजन के बारे में समझाना पहले से ही बहुत चुनौती का काम था। घर-घर जाकर हम महिलाओं को गर्भनिरोधक सेवाएं देते थे और उनके इस्तेमाल के बारे में बताते थे लेकिन लॉकडाउन के बाद यह चीजें हम तक ही नहीं पहुंच पाईं। पूरी सप्लाई चेन पर असर हुआ है। ऐसे में महिलाओं तक गर्भनिरोधक साधन पहुंच ही नहीं पाए,” मेरठ ज़िले के दौराला ब्लॉक की आशा बहू शशिलता ने बताया।

लगभग ऐसी ही मिलती जुलती बात देवरिया ज़िले के रामनगर ब्लॉक की आशा बहू रीमा देवी ने भी बताई। “हमें अप्रैल में गर्भनिरोधक गोलियां और कंडोम बांटने के लिए मिलने वाले थे लेकिन लॉकडाउन की वजह से सप्लाई नहीं पहुंच पाई,” उन्होने बताया। रीमा ने यह भी बताया कि इस समय कोरोनावायरस की रोकथाम का ही इतना काम है कि घर-घर जाकर महिलाओं और पुरुषों को सावधानी बरतने के बारे में समझाना मुश्किल है।

असुरक्षित गर्भपात के मामले बढ़े

बहराइच ज़िले के बैनी गांव की रहने वाली 30 साल की मीरा (बदला हुआ नाम) दो साल के एक बच्चे की मां हैं। मीरा ने बिना डॉक्टर की सलाह के गर्भ निरोधक गोली मंगवाकर खा ली। इसके बाद उन्हें लगातार दर्द और ख़ून के रिसाव की वजह से अस्पताल जाना पड़ा।

“मेरे पति अक्सर मुझे मारते-पीटते हैं, हमारे संबंध अच्छे नहीं है लेकिन लॉकडाउन में मैं प्रेग्नेंट हो गई। मेरे पति ने साफ कह दिया कि वह इस बच्चे की ज़िम्मेदारी नहीं लेंगे। मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था इसलिए मैंने ख़ुद ही एक पड़ोसन की मदद से दवा मंगाकर खा ली। बिना किसी डॉक्टरी सलाह के गर्भपात की दवा खाना मीरा की सेहत के लिए ख़तरनाक साबित हुआ। लगातार दर्द और ख़ून के रिसाव की वजह से मुझे अस्पताल जाना पड़ा। वहां इलाज के बाद मैं ठीक हो पाई,” मीरा ने बताया।

लॉकडाउन के दौरान गर्भ निरोधकों की सप्लाई में कमी से उत्तर प्रदेश में अनचाहे गर्भ के मामले तेज़ी से बढ़े हैं, इंडियास्पेंड की 29 मई की इस रिपोर्ट के अनुसार।

घर लौटे प्रवासी मज़दूरों को समझाना बड़ी चुनौती

कोरोनावायरस महामारी ने न केवल स्वास्थ्य संबंधी बल्कि बहुत सी सामाजिक और आर्थिक मुसीबतें भी पैदा की हैं। “जो तबक़ा शहर से लौटा वह इतना जागरूक नहीं है क्योंकि आज भी कुछ लोगों के लिए बच्चे ऊपर वाले की नियामत हैं और ऐसे में इन्हें परिवार नियोजन के मायने समझाना बड़ी चुनौती है,” महिलाओं के मु्द्दों पर लंबे समय से काम करने वाली सामजिक कार्यकर्ता ताहिरा हसन ने इंडियास्पेंड को बताया।

“लॉकडाउन के बाद जब लाखों प्रवासी मज़दूर वापस लौटे तब जनसंख्या विस्फोट का अंदेशा जताया गया। ऐसे में कई जगह सरकार ने स्वास्थ्य कर्मियों की मदद से अभियान भी चलाए जिससे इन लोगों की काउंसलिंग हो सके और इन्हें गर्भनिरोधक सामग्रियां भी दी जा सके। लेकिन जिस स्तर पर इस अभियान को चलाए जाने की ज़रूरत थी उस हिसाब से यह नहीं हो पाया,” ताहिरा हसन ने कहा।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 35 किमी दूर गोसाईंगंज ब्लॉक के फ़रीदपुर गांव की रहने वाली आरती (35) ने बताया कि लॉकडाउन के बाद से जब से पुरुषों का काम-धंधा बंद हुआ है तब से वह घरों में ही हैं और औरतों को न चाहकर भी उनकी हर बात माननी पड़ती है।

लॉकडाउन से पहले स्वास्थ्य केन्द्र खुले होने पर आशा बहुएं महिलाओं को वहीं समझा कर गोलियां दे देती थीं । फ़ोटोः श्रृंखला पाण्डेय

“कई बार आशा बहुओं को जब हम घर-घर जाकर गर्भनिरोधक सामग्रियां देने के लिए कहते हैं तो उनकी तरफ से यह शिकायत आती है कि घर के पुरुष उनसे ठीक से बात नहीं करते, उन्हें लगता है कि वह उनकी पत्नियों को भड़का रही हैं। यहां तक कि वह सामने आकर बैठ जाते हैं जिससे वह सहज होकर बात भी न कर पाएं,” लखनऊ के गोसाईंगंज ब्लॉक की एएनएम उर्मिला ने बताया।

परिवार नियोजन की ज़िम्मेदारी महिलाओं पर

पिछले साल इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ कम्युनिटी मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ में छपे एक अध्ययन के मुताबिक़ भारत में आज भी परिवार नियोजन की ज़िम्मेदारी महिलाओं पर ही ज़्यादा है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्भनिरोधक के आधुनिक तरीकों को लेकर थोड़ी-बहुत जागरूकता बढ़ी है।

“बच्चा न हो इसकी ज़िम्मेदारी हम औरतों की ही है। आदमी को इससे कोई मतलब नहीं होता है, हमको ही ध्यान रखना होता है और गर्भनिरोधक गोलियां या कुछ और उपाय करना होता है। लेकिन इधर लॉकडाउन में सभी केन्द्र बंद थे, हमें समय से दवाएं भी नहीं मिलीं। अब न चाहते हुए भी हमें यह तीसरा बच्चा करना होगा,” विद्या ने कहा।

“अभी भी गांव में परिवार नियोजन के तरीके अपनाने वाले पुरूष न के बराबर ही हैं, महिलाओं को ही इसके उपाय करने पड़ते हैं”, आशा बहू शशिलता ने कहा।

यूपी के कुछ ज़िलों में अभी पहले का स्टॉक बचा था जो हेल्थ वर्कस महिलाओं को बांट रही हैं। फ़ोटोः श्रृंखला पाण्डेय

आने वाले समय में अस्पतालों पर बढ़ सकता है बोझ

जहां एक ओर कोविड के बाद अनचाहे गर्भधारण व गर्भपात के मामले बढ़े हैं वहीं आने वाले समय में जनसंख्या वृद्धि और अस्पतालों पर बढ़ने वाले बोझ का भी अनुमान लगाया जा रहा है।

गोविंद वल्लभ पंत इंस्टीट्यूट ऑफ स्टडीज इन रुरल डेवलमेंट गैर सरकारी संस्था पिछले कई वर्षों से परिवार नियोजन के मुद्दे पर काम कर रही है। इसके प्रोग्राम हेड अभिनव पांडे ने हाल ही में आशा संगनियों को ट्रेनिंग दी है कि कैसे वह कम संसाधनों के साथ महिलाओं को इस समय परिवार नियोजन के बारे में समझा सकती हैं।

यूपी के कुछ ज़िलों में अभी पहले का स्टॉक बचा था जो हेल्थ वर्कस महिलाओं को बांट रही हैं। फ़ोटोः श्रृंखला पाण्डेय

“कोविड-19 के बाद अब जनसंख्या विस्फ़ोट एक बड़ा मुद्दा हो सकता है। यह भी संभव है कि आने वाले समय में भारी संख्या में प्रेग्नेंसी के मामले बढ़ने पर अस्पतालों पर डिलीवरी बोझ बढ़े और प्रजनन दर में बढ़ोत्तरी हो। इसलिए इस समय इस पर सही तरीके से काम करना बहुत जरूरी है। सबसे ज्यादा जरूरी है कि आशाओं को पूरी ट्रेनिंग दी जाए कि वह इस स्थिति को कैसे नियंत्रित करें,” अभिनव पांडे ने कहा।

“अभी आशा बहू और हेल्थ वर्कर्स गांव-गांव, घर-घर जाकर कोरोनावायरस को लेकर स्क्रीनिंग कर रही हैं तो क्यों न इसी समय पर वह परिवार नियोजन के प्रति भी लोगों को जागरूक करें। इससे एक ही समय पर और एक साथ काफ़ी लोगों तक बात पहुंचाई जा सकती है और हेल्थ वर्कस पर जो काम का बोझ बढ़ा है उसे भी नियंत्रित किया जा सकता है,” अभिनव ने कहा।

(श्रृंखला, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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