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उत्तर प्रदेश के राजवाड़ा गाँव के रहने वाले रामलाल, 35, भारत की उच्च कृषि और माध्यम वर्ग से होने के बावजूद, भारत में बढ़ती मानसून की अनिश्चितता से बच नहीं सके | उनके गेहूं के खेत बर्बाद हो गए गए हैं और सरकार से मिलने वाली राहत उनके नुकसान का 13 प्रतिशत भी नहीं है |फोटो:भास्कर त्रिपाठी, गाँव कनेक्शन

रजवाड़ा (उत्तर प्रदेश/मुंबई): दुबले, गंभीर और परेशान, मटर व गेंहूं उगाने वाले किसान रामलाल से संकट में घिरे होने की अपेक्षा नहीं की जाती.

लगभग एक हेक्टेयर से ज्यादा ज़मीन वाले भारत के 19 प्रतिशत बड़े किसानों में से एक, पैंतीस वर्षीय रामलाल (जो सिर्फ पहला नाम ही इस्तेमाल करते हैं), ग्रामीण भारत में तेजी से बढ़ रहे माध्यम वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं. रामलाल के पास 21 हेक्टेयर खेती है (पांच हेक्टयेर में मटर बोई है), एक टीवी, मोटर साईकिल व ट्रेक्टर है| वे अपने आठ सदस्यों वाले परिवार के साथ चार कमरों वाले पक्के घर में रहते हैं, जहाँ एक आँगन और भण्डारण का कमरा भी है| रामलाल का घर दक्षिण-पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है| एक राज्य जहाँ देश के कुल कृषक परिवारों का एक बटा पांच भाग निवास करता हो|

फिर भी, बे-मौसम बारिश और ओलावृष्टि से शीतकालीन या रबी की फसल बर्बाद हो जाने के बाद, और सरकार द्वारा मुआवज़ा दिये जाने की बाद भी, रामलाल पर जो आर्थिक संकट टूट पड़ा, वो भारत के किसानों की नाज़ुक स्थिति दिखाता है, चाहे वो छोटा किसान हो या बड़ा|

“ये ना के बराबर है” मुआवज़े के बारे में रामलाल ने कहा| उन्हें प्रदेश सरकार से 36,000 रूपए का मुआवज़ा मिलेगा.

मुआवज़ा नाकाफी क्यों है, ये समझे के लिए हमने उसकी कृषि लागत की गड़ना की :

एक हेक्टेयर खेत में गेंहूं उगाने की रामलाल की लागत
सामग्री/कार्यखर्च
बीज4900
डीएपी उर्वरक (डाईअमोनियम फोस्फेट)6000
यूरिया1050
खरपतवार नाशक रसायन900
कटाई की मजदूरी 3750
मड़ई/थ्रेशिंग 850
कुल योग17450

रामलाल ने 17,500 रुपये प्रति हेक्टेयर की लागत पर गेंहूं बोया था. सरकार जो 18,000 रुपये प्रति हेक्टेयर का मुआवजा दे रही है, इससे उसकी लागत तो निकल आयेगी, लेकिंन समस्या ये है की नियमों के हिसाब से मुआवजा अधिकतम 2 हेक्टेयर के लिए ही दिया जायेगा, जबकी रामलाल की 16 हेक्टेयर ज़मीन की फसल खराब हुई है|

अगर इस वर्ष मौसम सामान्य रहता तो रामलाल भारतीय खाद्य निगम या अन्य सरकारी संस्थानों को लगभग 58,000 रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपज बेचता| प्रति हेक्टेयर उसे लगभग 30,500 रुपये का मुनाफा होता| अच्छे वर्षों में रामलाल की समृद्धि बढ़ी, पर मौसम की बढती अनिश्चितता ने ग्रामीण उत्तर भारत की पहले से नाज़ुक स्थिति को बदतर कर दिया| कैसे ये भी आगे जानेंगे|

रामलाल का कुल नुकसान 280,000 रुपये का है, जबकी सरकारी मुआवज़े से उसकी कुल लागत के केवल 13 प्रतिशत की ही भरपाई हो पायेगी|

सामग्री/कार्यखर्च
रामलाल की गेंहूं बुआई की लागत (16 हेक्टेयर)2,79,200
कुल आय/मुनाफा- जिसकी आशा थी (16 हेक्टेयर)4,88,000
कुल मुआवजा (2 हेक्टेयर)36,000

उपग्रहों से या खेतों पर से- नुकसान के अंदाज़े की समस्या

रामलाल की गेंहूं की पूरी फसल बर्बाद नहीं हुई है| उसके अंदाज़े के हिसाब से 10 प्रतिशत गेंहूं सही बच गया है, जबकी सरकारी अंदाज़े के हिसाब से 30 प्रतिशत गेंहूं सही बचा है|

इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल है कि जितनी भी फसल बच पाई उससे रामलाल को कितनी पूंजी मिल पायेगी| रामलाल ने बताया कि उपज से जो दाने निकल रहे हैं वो काले और कमज़ोर हैं, जिसका मतलब हुआ कि दाम कम मिलेगा|

भारत के 80 प्रतिशत किसानों की ही तरह रामलाल के पास भी कृषि बीमा नहीं, जो देश की कृषि की ऐसी शिथिलता को दिखता है जिसके लिए सरकारें ज़िम्मेदार हैं- कानूनी रूप से नहीं बल्कि राजनैतिक आवश्यकता के तौर पर| कम से कम 600 मिलियन (60 करोड़) भारतीय आज भी खेती पर निर्भर हैं, फिर भी देश के सकल घरेलू उत्पाद में खेती का हिस्सा घटता जा रहा है|

किसान एक ऐसा चुनावी क्षेत्र है जिसे नज़रंदाज़ नहीं किया सकता, ऐसा खतरे में आ चुकी भारतीय जनता पार्टी को लाइवमिंट की एक रिपोर्ट ने चेताया|

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुआवज़े को बढ़ने का वादा किया और वरिष्ठ मंत्रियों को 14 राज्यों में खेतों पर जाकर नुकसान का जायजा लेने को भेज दिया| इन मंत्रियों में से एक, नितिन गडकरी ने हाल ही में किसानों को सलाह दी थी कि “भगवान या सरकार” पर निर्भर न रहें|

“तुम खुद ही अपने जीवन के निर्माता हो”, गडकरी ने कहा था|

Source: India News

वर्तमान में रामलाल की चिंता का विषय एक ही है कि सरकार उसकी फसल के नुकसान को कैसी मापती है|

उत्तर प्रदेश योजना आयोग के सदस्य डॉक्टर सुधीर पंवार ने बताया कि दो तरीकों से इस नुकसां को नापा जा सकता है:

—एक तरीका है उपग्रह का प्रयोग, इसमें उपग्रह नुकसान वाले क्षेत्र के ऊपर से गुज़रने पर ख़ास नियंत्रक उपकरणों और कैमरे की मदद से खेत में फसल नुकसान को नापता है| रिमोट सेंसिंग कही जाने वाली ये तकनीक सटीक तो है पर केवल तालुका या ब्लाक के स्तर के नुकसान का पता लगाता है|

—दूसरा तरीका है लेखपाल द्वारा व्यक्तिपरक आंकलन का| इस तरीके से हर किसान तक पहुंचना तो आसान है, लेकिन नुकसान के प्राप्त आंकड़े निहायत गलत हो सकते हैं|

हालिया तबाही में बर्बाद हुए यूपी और बाकी 13 राज्य नुकसान की गणना के लिए लेखपालों पर निर्भर हैं|

“बेशक, बहुत सा काम अटकलों के आधार पर होता है,” दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्री हिमांशु ने बताया (वो केवल पहला नाम इस्तेमाल करते हैं)| “नुकसान का पता लगाने की पर्याप्त क्षमता राजस्व अधिकारियों में नहीं है, इनकी संख्या भी काफी कम है जिससे एक बहुत बड़े भौगोलिक भाग की ज़िम्मेदारी इनपर होती है”

इस सब का नतीज़ा होता है “गेसटिमेट” (अंदाज़े से नुकसान का आंकलन), हिमांशु ने कहा| “इसी वजह से फसल नुकसान के आंकड़ों में इतनी उलट फेर होती है”

मार्च 24, 2015, को दिल्ली में कृषि मंत्रालय ने आंकलन किया कि 18 मिलियन (1.8 करोड़) हेक्टेयर- लगभग 30 प्रतिशत रबी की फसल- बर्बाद हो गयी| दो दिन बाद ही मंत्रालय ने इस आंकड़े को घटा कर 11 मिलियन (1.1 करोड़) हेक्टेयर कर दिया|

प्रमुख पाँच राज्यों में रबी फसल का प्रभवित क्षेत्र, 2015
राज्यगेंहूं का नुकसानअन्य रबी फसलों का नुकसान*कुल फसल नुकसान
राजस्थान1.72.854.55
उत्तर प्रदेश2.110.562.68
हरियाणा1.750.131.87
मध्य प्रदेश0.240.330.57
पंजाब0.260.260.29

Source: Press Information Bureau, Figures in million hectares *Other Rabi Crops are barley, pulses, mustard, horticulture, cumin, isabgol, coriander; Figures as on March 27, 2015.

बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से प्रभावित जिलों की संख्या में यूपी में 33 से बढाकर 40 कर दी गयी, गाँव कनेक्शन को अधिकारियों ने बताया| अनुमानित नुकसान भी 744 करोड़ से बढ़कर 1,100 करोड़ हो गया| लगभग 0.5 मिलियन किसान (5 लाख) प्रभावित हुए, और 35 किसानों की मृत्यु हो गयी, जिन्हें सरकार फसल बर्बादी की वजह से हुई मृत्यु या आत्महत्या मानने में आनाकानी कर रही है, जैसा की गाँव कनेक्शन और इंडियास्पेंड ने अपनी पिछली रिपोर्ट में कहा था|

अप्रत्याशित मौसम और खेती की बिगड़ती स्थिति

सरकार जो मानेगी वो ये कि लगातार बढ़ती मौसम की अनिश्चितता रामलाल जैसे किसानों का जोखिम बढाती रहेगी|

रामलाल का गाँव रजवाड़ा ललितपुर जिले में स्थित है| यहाँ वर्ष 2014 में भी किसनों को बे-मौसम बारिश की बर्बादी झेलनी पड़ी थी| पिछले कुछ वर्षों में मौसम में काफ़ी बदलाव देखा गया, जैसा की नीचे दी गयी सारणी दिखाती है

रबी (मॉनसून से पहले की फसल) में बढ़ती मौसम की अनिश्चितता : सामान्य बारिश का स्थानान्तरण, 2013-15

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Source: Indian Meteorological Department

अत्यधिक बारिश के आंकड़े, इस दौरान फसल नुकसान के आंकड़ों से मिलते हैं|

उदाहरण के लिए, मॉनसून से पहले के इस मौसम में पूर्वी राजस्थान में, जो की इस रेगिस्तानी राज्य की कृषि पट्टी है, सामान्य से 13 गुणा अधिक वर्षा हुई|

उपज और खाद्य सुरक्षा के बारे में इंडियास्पेंड की पिछली रिपोर्टें ये साफ़ बताती हैं कि लगातार बढ़ती वर्षा की अनिश्चतता के बाद भी खेती वर्षा पर बहुत निर्भर है|

खेती की किस्मत भारत की अर्थव्यवस्था से जुड़ी है- और उसे प्रभावित भी करती है| लेकिन जैसा की नीचे दी गयी सारणी दिखाती है कि मंद वृद्धि और कम मुनाफे में घिरे कृषि क्षेत्र को छोड़, भारत की बाकी अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन कर रही है|

अर्थव्यवस्था में कृषि कितना पीछे
वर्षजीडीपी की वृद्धि दर (%में)- कृषि व सम्बंधित क्षेत्र (2004-05, स्थिर मूल्यों पर)कुल वृद्धि दर (%में)- (2004-05, स्थिर मूल्यों पर)
2009-100.818.48
2010-118.6010.55
2011-125.026.36
2012-131.424.74
2013-14 (RE)4.715.02

Source: NITI Aayog

आखिरी और तेजी से बढ़ता, पहला सहारा- ऋण

उधर रजवाड़ा गाँव में रामलाल- आगे की तैयारियां करते हुए- एक और परेशानी से निपटने के बारे में सोचने में लगा है: वो समस्या है बैंक के क़र्ज़ की, जो उसने अभी तक नहीं चुकाया है|

समृद्ध किसान की छवि होने के कारण अपने क़र्ज़ के बारे में खुलकर बात करने से कतराते रामलाल ने बस इतना बताया कि उसने पिछले अक्टूबर में बुआई के समय क़र्ज़ लिया था| कितना क़र्ज़ है, इस बारे में रामलाल ने कोई जानकारी नहीं दी|

ये लोन चुकाने के लिए रामलाल के पास कोई जमा पूंजी नहीं है|

“अगली फसल के लिए मुझे फिर से क़र्ज़ लेना ही पड़ेगा,” रामलाल ने कहा, जो की अब भारत के उन 52 प्रतिशत किसानों में शामिल हो चुके हैं, जो क़र्ज़ में हैं| पिछला बकाया निपटने तक बैंक नया क़र्ज़ नहीं देते इसलिए हो सकता है रामलाल को साहूकारों से क़र्ज़ लेना पड़े, हालांकि ऐसा कुछ उसने कहा नहीं|

रामलाल ने कहा कि वो हर “संभव जगह” से पैसे की व्यवस्था करेगा|

रजवाड़ा गाँव के ही एक अन्य 90 वर्षीय किसान, देव जू ने ज्यादा खुलकर जानकारी दी| देव जू के बारे में गाँव कनेक्शन और इंडियास्पेंड ने अपनी पिछली रिपोर्ट में भी विस्तार से बताया था|

जू ने किसान क्रेडिट कार्ड से क़र्ज़ लिया था जिसे वो पिछले कुछ फसली मौसमों में होने वाली आपदाओं से लगातार होते फसल नुकसान की वजह से नहीं भर पाए थे| अब उनके ऊपर ब्याज मिलाकर 18,000 रुपये का क़र्ज़ है| वो किसी साहूकार के पास जा सकते हैं पर इससे क़र्ज़ जारी रहेगा, ख़त्म नहीं होगा| जू के पास एक मात्र मजदूरी करके लोन चुकाने का विकल्प बचता है, इस स्थिति के लिए वे खुद को तैयार कर रहे हैं| कृषि छोड़ मजदूरी अपनाने की यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें लाखों किसान मजबूरी में फस रहे हैं|

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बारिश और ओलावृष्टि से गेहूं की फसल बर्बाद होने के बाद उत्तर प्रदेश के रजवाड़ा गाँव में रहने वाले देव जू (90) की हालत एक मजदूर जैसी हो गयी है | किसान क्रेडिट कार्ड का 18,000 क़र्ज़ चुकाने के पैसे नहीं हैं | जू इन हालात में एक साहूकार के चंगुल में फंसेंगे और उन 40 लाख किसानों में शामिल हो जायेंगे, जो पिछले एक दशक में खेती छोड़ कर मजदूर बन गए | फोटो:भास्कर त्रिपाठी, गाँव कनेक्शन

खेती की आय पर आधारित भारत की समूची जनसँख्या के आधे से ज्यादा लोगो के रोज़गार घटने के साथ-साथ, सरकारी आंकड़ों के आधार पर 2001-2011 के बीच 9 मिलियन (90 लाख) लोगों ने खेती छोड़ दी, और कृषि मजदूरों की संख्या 38 मिलियन (3.8 करोड़) पहुँच गयी|

“मजदूरी करके पूरा करेंगे, और क्या करें?” जू ने कहा| लेकिन मजदूरी से भी जू को 150 रुपये प्रतिदिन ही मिलेंगे, और ललितपुर में मजदूरी के मौके भी ज्यादा नहीं हैं|

जहाँ तक रामलाल की बात है, वो मजदूर बनने के बारे में सोचन भी पसंद नहीं करेगा|

(त्रिपाठी गाँव कनेक्शन के सीनियर रिपोर्टर हैं| गाँव कनेक्शन एक ग्रामीण अखबार है जो कि हिन्दी में लखनऊ से छपता है| तिवारी इंडियास्पेंड की विश्लेषक हैं|)

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इस लेख में अतिरिक्त जानकारी संकलित की गयी है|

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