मुंबई: 31 अगस्त, 2019 को जारी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) ने कहा है कि असम में रह रहे 19 लाख निवासी भारत के नागरिक नहीं हैं। एनआरसी के आंकड़ों के अनुसार असम की आबादी 3.3 करोड़ है।

यह संख्या 2004 में असम की अप्रवासी आबादी के अंतिम उपलब्ध आधिकारिक अनुमान में उद्धृत 50 लाख से काफी कम है, जिसे बाद में वापस ले लिया गया था।

एनआरसी, अवैध प्रवासियों से भारतीय नागरिकों को अलग करने की एक जटिल प्रक्रिया है, जो भारत में बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों की संख्या पर स्पष्टता की कमी के कारण बनाया गया है। जुलाई 2018 को जारी एनआरसी के अंतिम मसौदे ने 41 लाख लोगों को बाहर कर दिया था। हालांकि, सरकार ने अपनी नागरिकता साबित करने के लिए उन्हें 31 दिसंबर, 2018 तक का समय दिया था।

अब बाहर किए गए 19 लाख लोग विदेशी ट्रिब्यूनल में फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं। नागरिकता के लिए अर्हता प्राप्त करने की प्रक्रिया की आलोचना बहुत से लोगों ने की है कि यह एक कठिन प्रक्रिया है, और इसने बहुत से लोग परेशान हो रहे हैं। इस संबंध में हमने अक्टूबर-2017 की रिपोर्ट में विस्तार से बताया था।

आप्रवासियों, अवैध या अन्य लोगों की संख्या विवादास्पद है, पहले भी ऐसा रहा है। सरकार का अनुमान 23 लाख से 2 करोड़ के बीच है।

एनआरसी निष्कर्ष

एनआरसी में शामिल करने के लिए, 33,027,661 लोगों के लिए 6,837,660 आवेदन हुए हैं, जैसा कि 31 अगस्त को एक सरकारी बयान में कहा गया है। अपील और दावों की समीक्षा हुई और दावे प्रस्तुत नहीं करने वालों सहित, 1,906,657 को छोड़ कर, 31,121,004 लोगों को शामिल किया गया।

कौन हैं अवैध प्रवासी

असम समझौते के अनुसार, 24 दिसंबर, 1971 के बाद भारत आने वाला कोई भी विदेशी, अवैध प्रवासी माना जाएगा, और निर्वासित होने के लिए उत्तरदायी होगा। जनवरी 1966 और दिसंबर 1971 के बीच भारत में प्रवेश करने वालों को 10 साल तक भारत में रहने के बाद नागरिकता प्रदान की जानी थी। जिन लोगों ने 1966 से पहले भारत में प्रवेश किया, वे ज्यादातर 1947 में विभाजन के बाद बनी स्थितियों पर नागरिकता प्राप्त कर लेते थे।

अनुमान 23 लाख से 2 करोड़ तक अलग-अलग

जनगणना के अनुसार, प्रवासियों की संख्या, 16 नवंबर, 2016 को राज्यसभा में गृह मामलों के राज्य मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा दिए गए 2 करोड़ के आंकड़े से 90 फीसदी कम है। उन्होंने संख्या के स्रोत के बारे में नहीं बताया था।

जनगणना के आंकड़ों के अनुसार 2011 में, भारत में 54 लाख प्रवासी थे, जिनमें से बांग्लादेशी आप्रवासी सबसे ज्यादा थे। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2010 में, भारत में रहने वाले बांग्लादेश के प्रवासियों ने वैश्विक रूप से अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों के सबसे बड़े समूह (33 लाख) का गठन किया है।

लोकसभा में दिए गए इस जवाब के अनुसार, 11 नवंबर, 2016 को गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री ने कहा कि "पूर्व-1971 और 1971 के बाद की अवधि में, बांग्लादेश से असम आने वालों की घुसपैठ और धार्मिक संरचना के आधार पर कोई प्रामाणिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।"

राज्य सभा में इस उत्तर के अनुसार, 27 नवंबर, 2016 को गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री ने कहा कि असम में घुसपैठियों की संख्या ‘पता नहीं’ लगाई जा सकती है, क्योंकि घुसपैठ ‘गुप्त और चोरी-छिपे’ होते हैं।

सरकार और अन्य लोगों द्वारा उद्धृत आंकड़ों में 23 लाख से 2 करोड़ तक के अनुमानों के साथ, हमारा विश्लेषण भारी विसंगतियां दर्शाता है और भारत में रहने वाले अवैध आप्रवासियों की सही संख्या स्पष्ट नहीं है।

2011 के आप्रवासियों का डेटा अब जनगणना वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है, जहां एक नोट कहता है कि डेटा ‘जांच के तहत’है और ‘जल्द ही जारी किया जाएगा।’ इंडियास्पेंड newsclick.in के एक रिपोर्टर के डेटा तक पहुंचा, जिन्होंने जनगणना वेबसाइट से नीचे ले जाने से पहले इन डेटा को डाउनलोड किया था।

विभाजन, बांग्लादेशी युद्ध के समय और दशकों पहले आर्थिक कारणों से बांग्लादेशी अप्रवासी भारत आए थे। अमेरिका में ब्रैंडिस यूनिवर्सिटी के चंदन नंदी की 2005 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत और बांग्लादेश के जनगणना के आंकड़ों और विभिन्न जनसांख्यिकीय अध्ययनों के आधार पर अवैध प्रवासियों का अनुमान व्यापक रुप से भिन्न है।

मार्च 1992 में भारतीय गृह मंत्री द्वारा प्रदान की गई संख्या के अनुसार, 1991 तक, 700,000 से अधिक बांग्लादेशी सीमा से सटे भारतीय राज्यों में अवैध तरीके से रह रहे थे, जैसा कि भारत सरकार के रक्षा थिंक-टैंक इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (आईएसडीए) ने इस रिपोर्ट में बताया है।

आईएसडीए की रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्सर बांग्लादेशी कानूनी रूप से आते हैं लेकिन अपने वीजा पर बने रहते हैं। 1972 और 1997 के बीच, 900,000 से अधिक बांग्लादेशी अपने वीजा की अवधि समाप्त होने के बाद बांग्लादेश नहीं लौटे, ऐसा अनुमान है।

रिपोर्ट में कहा गया है, तत्कालीन गृह मंत्री इंद्रजीत गुप्ता ने कहा कि मई 1997 में, भारत में 1 करोड़ अवैध प्रवासी थे। इससे पहले, जुलाई 2004 में, तत्कालीन गृह मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने राज्यसभा को बताया था कि अवैध प्रवासियों की संख्या 1.2 करोड़ है, लेकिन तब यह कहते हुए इसे नजरअंदाज किया गया कि यह आंकड़ा पक्षपाती दलों के ‘सुनी हुई बातों’ पर आधारित था।

वाशिंगटन डीसी स्थित थिंक-टैंक, माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट के अनुसार, 2009 में प्रकाशित एक पुस्तक में, शिकागो विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर, कमल सादिक ने अनुमान लगाया कि मुस्लिम समुदायों और अप्रकाशित सरकारी रिपोर्टों के विकास के आधार पर भारत में 1.5 करोड़ से 2 करोड़ बांग्लादेशी अप्रवासी थे।

जनगणना के आंकड़े क्या कहते हैं, और यह सही क्यों नहीं हो सकता है?

1951 और 1991 के बीच बांग्लादेश में हिंदू और मुस्लिम आबादी के विकास की दर पर 2005 के एक अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला कि बांग्लादेश से भारत में हिंदुओं का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ था।

अमेरिका में ब्रांडीस विश्वविद्यालय के नंदी द्वारा किया गए अध्ययन के अनुसार, 1951 और 1991 के बीच, बांग्लादेश में मुस्लिम आबादी लगभग 300 फीसदी बढ़ी, जबकि हिंदू आबादी केवल 20 फीसदी बढ़ी है। उन्होंने लिखा, "यह मानना ​​सुरक्षित है कि 1947 के बाद से कई लाख हिंदू भारत आए और 1974 के बाद उनके आने की गति तेज हो गई। उस साल बांग्लादेश ने अपने इतिहास में सबसे खराब सूखे और अकालों का सामना किया। तब मुसलमान भी भारी संख्या भी देश से बाहर गए।"

1981 और 1991 के बीच, बांग्लादेश की जनसंख्या, उस दशक के लिए अनुमानित 3.13 फीसदी के मुकाबले 2.2 फीसदी बढ़ी, जो यह बताते हैं कि जनसंख्या ( 70 लाख से 1.4 करोड़ के बीच अनुमानित) के एक हिस्से ने देश छोड़ दिया है। यह अनुमान लगाया गया कि, इसका परिणाम कम जनसंख्या वृद्धि दर में हुआ है। नंदी ने लिखा, "ये गायब लाखों, भारत में बांग्लादेश से 1981-1991 में प्रवासन की मात्रा का प्रतिनिधित्व करते हैं।"

16 दिसंबर 2016 को राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में, किरेन रिजिजू ने कहा, "देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले ऐसे बांग्लादेशी नागरिकों का सटीक डेटा संभव नहीं है। उपलब्ध इनपुट के अनुसार, भारत में लगभग 2 करोड़ अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं।"

हालांकि, जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि बांग्लादेशी अप्रवासी पश्चिम बंगाल (1.8 मिलियन), त्रिपुरा (215,353 मिलियन) और असम (64,116) में सबसे अधिक प्रवासियों के साथ लगभग ग्रामीण और श==हरी भारत में समान रूप से देखे जा सकते हैं, जैसा कि 2011 की जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है।

ये संख्याएं उस देश पर आधारित हैं जिस देश के उत्तरदाताओं ने कहा था कि वे इससे पहले भारत में रहते थे; शोधकर्ताओं का कहना है कि अवैध आप्रवासियों को झूठ बोलने के लिए प्रोत्साहन मिला होगा।

जैसे-जैसे बांग्लादेश विकसित होगा, भारत में पलायन कम होने की संभावना है

भारतीय सांख्यिकी संस्थान की प्रणति दत्ता द्वारा 2004 के एक अध्ययन में कहा गया है कि उत्तरदाताओं में से 56 फीसदी ने कहा कि औद्योगीकरण, रोजगार और आर्थिक असुरक्षा की कमी के कारण वे पलायन कर गए, जबकि लगभग 35 फीसदी ने कहा कि बांग्लादेश में गरीबी एक कारण थी।

2011 की जनगणना में बांग्लादेश के अपने निवास स्थान के रूप में रिपोर्ट करने वालों में से तीन-चौथाई (77.4%) से अधिक 1991 से पहले भारत आए थे, जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है।

जैसे-जैसे बांग्लादेश विकसित हुआ, इससे भारत में प्रवासियों की संख्या में कमी आई है।

विश्व बैंक के आंकड़ों के आधार पर, बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय 1970 में $ 393.4 से 169 फीसदी बढ़कर 2017 में $ 1,053 हो गई है। सेकेंड्री स्कूल में दाखिला लेने वाले बच्चों का अनुपात 1980 में 18.5 फीसदी से बढ़कर 2017 में 67.3 फीसदी हो गया है और शिशु मृत्यु दर 1970 में प्रति 1,000 जन्म पर 148.3 मौतों से 81 फीसदी गिरकर 2017 में 26.9 हो गई है, जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है।

इसके अलावा, अधिक बांग्लादेशी अब फारस की खाड़ी में जा रहे हैं, जैसा कि जुलाई 2019 में लाइवमिंट के लेख में चिन्मय तुमबे ने लिखा है, जो अहमदाबाद में भारतीय प्रबंधन संस्थान में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं।

(खेतान लेखक / संपादक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह आलेख मूलत: अंग्रेजी में 31 अगस्त 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। कृपया respond@indiaspend.org पर लिखें। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार सुरक्षित रखते हैं।