ग़ाज़ियाबाद/लखनऊ: "कोविड-19 के संक्रमण को बढ़ने से रोकने और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर उसके दुष्प्रभाव को रोकने के लिए ज़रूरी है कि कोविड-19 के बायोमेडिकल कचरे को बाकी के बायोमेडिकल कचरे से अलग किया जाए,” नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के चेयरमैन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली बैंच ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान 21 जुलाई 2020 को यह बात कही।

एनजीटी ने सुनवाई के दौरान बायोमेडिकल कचरे के प्रबंधन में अनियमितताएं पाईं और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इसका उचित ढंग से निपटारा करने के निर्देश दिए। एनजीटी उस याचिका की सुनवाई कर रही थी जिसमें ऐसे अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों को बंद करने की मांग की गई थी जहां बायोमेडिकल कचरे के निपटारे के लिए बनी गाइडलाइंस का पालन नहीं होता।

कोविड-19 महामारी के दौरान बायोमेडिकल कचरे का निपटारा एक चुनौती बन गया है। महामारी की वजह से यह कचरा कई गुना बढ़ गया है। बायोमेडिकल कचरा, इलाज और अनुसंधान के दौरान अस्पतालों और प्रयोगशालाओं से निकलता है। हाल ही में एनजीटी में पेश अपनी रिपोर्ट में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा था कि देश में लगभग आधे से अधिक अस्पताल, नर्सिंग होम और स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं जिन्हें बायोमेडिकल कचरे के निपटारे से संबंधित अनुमति नहीं है।

तेज़ी से बढ़ रहे संक्रमण के मामलों के साथ ही उत्तर प्रदेश में भी बायोमेडिकल कचरे का निपटारा एक चुनौती बन गया है। हालांकि सरकार का कहना है कि उसके पास इस कचरे के निपटारे के समुचित उपाय मौजूद हैं लेकिन राज्य के अलग-अलग हिस्सों से आ रही मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि कईं जगहों पर यह कचरा ऐसे ही खुले में फेंका जा रहा है, जिससे संक्रमण का ख़तरा और बढ़ गया है।

केजीएमयू में बायोमेडिकल कचरे को लेने पहुंचा कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसेलिटी की टीम का एक सदस्य। फ़ोटोः रणविजय सिंह

बायोमेडिकल कचरे से संक्रमण का सबसे ज़्यादा ख़तरा सफ़ाई कर्मचारियों को होता है। कोरोना वार्ड की सफ़ाई का जिम्मा इन्हीं के पास होता है। हालांकि इनके लागातार टेस्ट किए तो जा रहे हैं पर उत्तर प्रदेश की कर्मचारी यूनियन ने इस प्रक्रिया में कई ख़ामियों की शिकायत की है।

इधर उत्तर प्रदेश सरकार ने बिना लक्षणों वाले मरीज़ों के लिए होम आइसोलेसन को मंज़ूरी तो दे दी है लेकिन इस दौरान निकलने वाले बायोमेडिकल कचरे के निपटारे के लिए कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किए हैं।

क्या होता है बायोमेडिकल कचरा

बायोमेडिकल वेस्ट नियम.1998 में मनुष्यों और जानवरों की बीमारियों के निदान, इलाज, टीकाकरण, अनुसंधान और जैविक उत्पादन और परीक्षण के दौरान निकलने वाले कचरे को बायोमेडिकल कचरा माना गया है। बायोमेडिकल कचरे के कईं प्रकार होते हैं। अस्पतालों और प्रयोगशालाओं में अलग-अलग तरह के बायोमेडिकल कचरे के लिए अलग-अलग प्रबंधन किया जाता है।

शारीरिक, रासायनिक, गंदे कपड़े, दवाइयों और प्रयोगशाला से संबंधित कचरे के लिए पीले रंग के कूड़ेदान होते हैं। ट्यूबिंग, प्लास्टिक की बोतलों, सीरिंज आदि के लिए लाल कूड़ेदान और कांच की बोतलों, शीशियों आदि के लिए नीला कूड़ेदान होता है।

देश भर में आमतौर पर लगभग 600 मीट्रिक टन बायोमेडिकल कचरा निकलता है, एनजीटी में पेश केंद्रीय प्रदूषण निंयत्रण बोर्ड के अनुसार।

कोविड-19 और बायोमेडिकल कचरा

देश भर में कोविड-19 के तेज़ी से फैल रहे संक्रमण की वजह से बायोमेडिकल कचरे की मात्रा भी तेज़ी से बढ़ती जा रही है। देश में कोविड-19 की वजह से हर रोज़ 101 मीट्रिक टन अतिरिक्त बायोमेडिकल कचरा निकल रहा है, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में पेश केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण की 17 जून 2020 की इस रिपोर्ट में बताया गया।

लखनऊ के केजीएमयू में बने आइसोलेशन वार्ड से कोरोना का कचरा इकट्ठा करता एक सफाई कर्मचारी। फ़ोटोः रणविजय सिंह

कोविड-19 की वजह से जो बायोमेडिकल कचरा निकल रहा है उसका आधे से अधिक यानी 50.2% सिर्फ़ चार राज्यों से निकल रहा है। महाराष्ट्र से 17.5, गुजरात से 11.7, दिल्ली से 11.1 और तमिलनाडु से 10.4 टन प्रतिदिन के हिसाब से कचरा निकल रहा है।

जिस तरह से कोरोनावायरस के मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है, आने वाले वक़्त में इस कचरे की मात्रा और बढ़ेगी। अकेले 24 जुलाई को ही देश भर से एक दिन में 49 हज़ार से अधिक नए मामले सामने आए हैं। कोविड-19 से निकले बायोमेडिकल कचरे के लिए हाल ही में जारी संशोधित गाइडलाइंस से भी इस कचरे की मात्रा कईं गुना बढ़ने के आसार हैं। अब कोविड-19 अस्पतालों से निकलने वाला सभी प्रकार का कचरा बायोमेडिकल कचरे की श्रेणी में माना जाएगा, नई गाइडलाइंस के मुताबिक़। अब तक सिर्फ़ पीपीई किट और मास्क आदि ही इस श्रेणी के कचरे में शामिल था।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट और एनजीटी का आदेश

साल 2019 तक देश भर के कुल 2.70 लाख अस्पतालों/स्वास्थ्य केंद्रों में से 1.1 लाख ने ही बायोमेडिकल कचरे के संबंध में ज़रूरी अनुमति ली है। बाकी के 1.6 लाख अस्पताल/स्वास्थ्य केंद्र बिना अनुमति के अवैध रूप से चल रहे हैं। इसके अलावा 1.1 लाख अस्पतालों/स्वास्थ्य केंद्रों ने इसके लिए आवेदन किया है जबकि लगभग 50 हज़ार अस्पताल/स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं जिन्होंने इसके लिए आवेदन तक नहीं किया, एनजीटी में पेश अपनी 17 जून की अपनी रिपोर्ट में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया।

लखनऊ के केजीएमयू में बने आइसोलेशन वार्ड से इकट्ठा किया गया कचरा यहां रखा जाता है। यहीं से कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसेलिटी की टीम कचरे को ले जाती है। फ़ोटोः रणविजय सिंह

देश के 7 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों-अरुणाचल प्रदेश, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, गोवा, लक्षद्वीप, मिज़ोरम, नागालैंड और सिक्किम- में बायोमेडिकल कचरे के निपटारे के लिए कोई सार्वजनिक सुविधा नहीं है।

ग्रीन ट्रिब्यूनल ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर राज्यों को निर्देश दिया कि वो शीघ्र ही इस संबंध में कार्रवाई कर 31 दिसंबर 2020 तक बोर्ड को अपनी रिपोर्ट जमा करें। एनजीटी ने बायोमेडिकल कचरे के निपटारे की निगरानी के लिए हर ज़िले में एक कमेटी बनाने का भी निर्देश दिया।

उत्तर प्रदेश में भी कई गुना बढ़ा बायोमेडिकल कचरा

एनजीटी में पेश केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश से कोविड-19 की वजह से हर रोज़ 7 टन कचरा निकल रहा है। यह रिपोर्ट 17 जून को एनजीटी में पेश हुई थी, तब से अब तक हालात बहुत बदल गए हैं। राज्य में 17 जून को कोरोनावायरस के कुल मामले 15,181 थे जो 26 जुलाई तक लगभग 4 गुना बढ़कर 66,988 हो गए। संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ने के साथ ही कोविड की वजह से निकले बायोमेडिकल कचरे में भी तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई है।

"अभी उत्तर प्रदेश में क़रीब 20 टन कोविड वेस्ट हर दिन निकल रहा है। नॉन कोविड वेस्ट करीब 18 टन हर दिन निकल रहा है। राज्य में कुल 38 टन वेस्ट निकल रहा है और हमारी क्षमता 52 टन की है। यूपी में 18 कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट फ़ैसिलिटी हैं जो सुचारू रूप से चल रही हैं," उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मेंबर सेक्रेटरी आशीष तिवारी ने इंडियास्पेंड को बताया।

"अगर बहुत ज़्यादा मरीज़ बढ़ जाते हैं और 52 टन से भी ज़्यादा वेस्ट निकलता है तो कानपुर देहात में हमारे दो हेज़रडस वेस्ट इंसीनरेटर हैं, जिनकी क्षमता 68 टन प्रतिदिन की है। हमने वहां एक कमेटी बना दी है, जो इसकी तैयारियों में लगी है," आगे की तैयारियों के बारे में पूछे जाने पर आशीष तिवारी ने बताया।

कोविड संक्रमण की वजह से बड़ी संख्या में राज्य के अस्पतालों और नर्सिंग होम्स में ओपीडी सेवाएं बंद हैं। उनके खुलने से इस कचरे की मात्रा और बढ़ेगी। इसके अलावा राज्य के कुल 15,046 अस्पतालों, नर्सिंग होम और स्वास्थ्य केंद्रों में से 6.573 ने ही बायोमेडिकल कचरे के निपटारे के संबंध में अनुुमति ली है, जैसा कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की साल 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है।

“हमारे प्लांट पर आने वाले बायोमेडिकल कचरे में करीब 40% का इज़ाफा हुआ है। पहले हर दिन करीब 2 हज़ार किलो कचरा आता था, अब साढ़े तीन से लेकर 4 हज़ार किलो तक आता है। इस कचरे में पीले रंग की थैली वाले कचरे की मात्रा क़रीब 600 से 700 किलो तक होती है,” लखनऊ से 23 किलोमीटर दूर स्थित बायोमेडिकल कचरे का निपटारा करने वाली कंपनी 'एसएमएस वॉटरग्रेस' के एक अधिकारी ने अपना नाम ना लिखे जाने की शर्त पर बताया।

"हमें कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हमारा प्लांट जहां है उस एरिया के लोगों को डर लगने लगा है। कोरोना से संबंधित कचरा उसी सड़क से होकर जा रहा है जहां से उन्हें भी गुजरना है," इस अधिकारी ने कहा।

लखनऊ की किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) से 18 जुलाई को पीले रंग की थैली में 392 किलो कचरा निकला। जबकि लाल रंग की थैली में 80 किलो कचरा निकला। इसी तरह 19 जुलाई को पीले रंग की थैली में 494 किलो और लाल रंग की थैली में 66 किलो कचरा निकला था। केजीएमयू में कोरोनावायरस के मरीज़ों के लिए 240 बेड उपलब्ध‍ हैं। साथ ही यहां बड़ी संख्या में कोरोनावायरस की जांच होती है, जिससे बड़ी मात्रा में यहां से बायोमेडिकल कचरा निकल रहा है।

केजीएमयू के एनवायरमेंट डिपार्टमेंट के प्रोफ़ेसर मो. परवेज़। फ़ोटोः रणविजय सिंह

"यह कचरा बेहद संक्रमित होता है। बचाव के सारे उपाय अपनाने के बाद भी संक्रमण का डर तो रहता ही है। हमारे कर्मचारी भी पहले डरे हुए थे, कई काम छोड़कर भी चले गए," केजीएमयू के एनवायरमेंट डिपार्टमेंट के प्रोफ़ेसर मो. परवेज़ ने इंडियास्पेंड को बाताय।

सफाई कर्मियों पर ख़तरा

कोरोनावायरस से संबंधित बायोमेडिकल कचरा, नष्ट होने से पहले यह अस्पताल से लेकर प्लांट तक कई लोगों के संपर्क में आता है। इसमें सबसे पहला नाम सफाई कर्मियों का है जो कोरोना वार्ड में यह कचरा इकट्ठा करते हैं।

"मेरी ड्यूटी कोरोना वार्ड में लगी थी। मैंने सारे नियमों का पालन किया, लेकिन पता नहीं कैसे कोरोना हो गया। मुझे लगता है जब मैं एक डेड बॉडी को भेज रहा था, तभी कुछ ग़लती हो गई," राम मनोहर लोहिया में सफ़ाई कर्मचारी के तौर पर काम करने वाले प्रदीप (बदला हुआ नाम) ने बताया। हाल ही में हुई उनकी जांच के दौरान 20 साल के प्रदीप कोरोनावायरस से संक्रमित पाए गए हैं।

लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में कर्मचारियों ने कोरोना जांच में लापरवाही को लेकर अस्पताल के न‍निदेशक से मुलाकात की। फ़ोटोः रणविजय सिंह

हाल ही में राम मनोहर लोहिया अस्पताल के कर्मचारियों ने उनकी अपनी जांच में लापरवाही का आरोप भी लगाया। “कोविड वार्ड में कर्मचारियों की ड्यूटी 14 दिन के लिए लगाई जाती है, लेकिन कर्मचारियों की कोरोनावायरस की जांच 12 दिन पर ही कर देते हैं। ऐसे में जांच के अगले दो दिन कर्मचारी कोविड वार्ड में ही ड्यूटी कर रहे हैं और उनके संक्रमित होने का ख़तरा बना हुआ है,” संविदा कर्मचारी संघ के महामंत्री सच्चितानंद मिश्र ने बताया।

''अब तक केजीएमयू में करीब 20 सफ़ाई कर्मचारी कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। डॉक्टर कोरोना वार्ड में नहीं जाते, लेकिन सफ़ाई कर्मियों को तो साफ़-सफ़ाई के लिए जाना ही होता है। ऐसे में वह कोरोना मरीज़ों या उनके कचरे के संपर्क में सीधे आ रहे हैं,'' संयुक्त स्वास्थ्य आउट सोर्सिंग संव‍िदा कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष रीतेश मल ने इंडियास्पेंड को बताया।

संयुक्‍त स्‍वास्‍थ्‍य आउट सोर्सिंग संव‍िदा कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्‍यक्ष रीतेश मल। फ़ोटोः रणविजय सिंह

रीतेश मल की बात का समर्थन केजीएमयू के कोरोना वार्ड में काम करने वाले वार्ड बॉय अमित कुमार वाल्मीकि भी करते हैं। “केजीएमयू में करीब 50 स्वास्थ्य कर्मी संक्रमित हुए हैं। इसमें से क़रीब 20 डॉक्टर हैं और बाकी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी हैं, ज‍िसमें वार्ड बॉय, नर्स और सफ़ाई कर्मी शामिल हैं,” अमित ने बताया।

हालांकि, केजीएमयू के प्रवक्ता सुधीर सिंह का कहना है कि "अब तक कुल 28 स्वास्थ्यकर्मी संक्रमित हुए हैं, इसमें से 18 डॉक्टर हैं और 10 अन्य कर्मचारी हैं जिसमें सफ़ाई कर्मी भी शामिल हैं।"

केजीएमयू के अलावा अन्य अस्पतालों में भी बहुतायत में सफ़ाई कर्मचारी संक्रमित हो रहे हैं। 22 जुलाई को लखनऊ के सिविल अस्पताल में एक साथ 12 सफ़ाई कर्मचारी संक्रमित पाए गए। इस अस्पताल में कोरोनावायरस के मरीज़ों का सैंपल लिया जाता है। इसके अलावा लखनऊ के ही राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भी एक सफ़ाई कर्मचारी सहित 9 मेडिकल स्टाफ़ संक्रमित पाए जा चुके हैं।

होम आइसोलेशन के नियम से बढ़ेगी दिक्कत

इन सब के अलावा यूपी में बायोमेडिकल कचरे के प्रबंधन को लेकर चुनौतियां और बढ़ने वाली हैं। यूपी सरकार ने कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए बिना लक्षणों वाले मरीज़ों को होम आइसोलेशन की मंजूरी दी है। लेकिन सरकार की ओर से जारी आदेश में होम आइसोलेशन के दौरान कोरोनावायरस से संबंधित बायो मेडिकल कचरे पर कुछ नहीं कहा गया है।

हालांकि, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी गाइडलाइंस में इसका जिक्र किया है। गाइडलाइंस के मुताबिक, घरों में साधारण कचरे एवं बायोमेडिकल कचरे के कूड़ेदान अलग होने चाहिए। होम आइसोलेशन की देखरेख करने वाले कर्मचारी को बायोमेडिकल कचरे का ट्रीटमेंट करने वाले कर्मचारियों को समय-समय पर बुलाना है। इन घरों से निकलने वाले बायोमेडिकल कचरे को ‘domestic hazardous waste’ के तौर पर ट्रीट करना है।

लखनऊ के राजाजीपुरम के रहने वाले विजय (बदला हुआ नाम) और उनकी मां कोरोना पॉजिटिव हैं। इन्हें कोई लक्षण नहीं है तो यह लोग होम आइसोलेशन में रह रहे हैं।

"मेरा तीन मंज़िल का मकान है। सबसे नीचे परिवार रह रहा है, दूसरे पर मैंने खुद को आइसोलेट किया है और तीसरी मंज़िल पर मेरी माता जी आइसोलेटेड हैं," विजय बताते हैं।

विजय के मुताबिक उन्हें अलग से बायोमेडिकल कचरे से संबंधित कोई जानकारी नहीं दी गयी है। "वैसे तो ज़्यादा कचरा निकलता नहीं है क्योंकि मैं कमरे में ही रहता हूं, लेकिन जो भी थोड़ा बहुत कचरा निकल रहा है वो पन्नी में बांध कर कचरा इकट्ठा करने वाले को दे देते हैं," विजय ने बताया।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइडलाइंस के मुताबिक़, इस्तेमाल किये जा चुके मास्क और दस्तानों को डिस्पोज़ करने से पहले कम से कम 72 घंटे तक काग़ज़ की थैली में रखना है। साथ ही मास्क और दस्तानों को काट देना है जिससे यह फिर से इस्‍तेमाल करने लायक न रहें। यह नियम सभी पर लागू होता है, चाहे व्‍यक्‍ति संक्रमित है या नहीं है।

(इसरार, इंडियास्पेंड हिंदी के संपादक हैं और रणविजय, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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