दिल्ली में नई सरकार के सत्ता में आने के बाद से 'बड़े आर्थिक सुधारों ' का बिगुल बार बार दोहराया जाता रहा है। यह निर्विवादित विषय है कि भारत में कई तरह से विभागों और मंत्रालयों में सुधार की जरूरत है, लेकिन किस तरह के सुधार , देश के ढहते शहरों के आर्थिक विकास में विशेष रूप से तेज़ी ला सकते हैं , जीवन की गुणवत्ता में सुधार और समावेशी विकास सुनिश्चित कर सकते हैं ?

वर्ष 2050 तक , भारत की शहरी आबादी में 400 करोड़ से 800 करोड़ तक वृद्धि होने की संभावना है। मुंबई की आबादी भी वर्ष 2050 तक 18 करोड़ से 38 करोड़ तक बढ़ने की संभावना है । जैसे जैसे हमारे शहर आर्थिक विकास का इंजन बनने की ओर अग्रसर हो रहे हैं भारत के शहरों द्वारा वर्ष 2020 तक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 3/4 तक योगदान करने की उम्मीद है।

वैश्विक स्तरीय शहरों की प्रतिद्वंदता में शहर-प्रणाली विकसित करने के लिए, हमें द्विआयामी दृष्टिकोण की जरूरत है; रचनात्मक क्षमता और बढ़ते संसाधन - मानव और वित्तीय दोनों। प्रभावकारी सुधार लाने के लिए आवश्यक है सफल निष्पादन और हमारे नगरों को इन सुधारों से आए हुए बदलाव को वहन करने की पर्याप्त क्षमता के लिए तैयार किए बिना हमारे शहरों में सही मायनों में परिवर्तन नही आ सकता है.जहां हमारे शहरों की जेब राज्य और केंद्र सरकार से प्रभावित होती है नगर निगम- जो शहर का मुख्य प्रबंधक है - के व्यय को करीब से देखने पर शहरीकरण संकट की सही तस्वीर दिखाई देती है।

मैकिन्से और उच्चाधिकार विशेषज्ञ समिति (एमओयुडी द्वारा स्थापित) द्वारा दी गई रिपोर्ट से संकेत मिलता है की अगले दो दशकों में शहरी बुनियादी सुविधाओं और सेवाओं में किया गया निवेश कहीं भी 800 $ बिलियन से $ 1 ट्रिलियन के बीच हो सकता है। भारत की वाणिज्यिक और वित्तीय राजधानी मुंबई, को हमेशा अन्य भारतीय शहरों की तुलना में एक अपेक्षाकृत बड़ा बजट मिलता रहा है।

2013-14 के बजट में ग्रेटर मुंबई नगर निगम के लिए (12.44 मिलियन की आबादी के साथ) 29,415 करोड़ रुपये(प्रति व्यक्ति बजट-23,641 ) दिए गए थे जबकि बंगलौर के नगर निगमों (8.44 मिलियन की आबादी के साथ) और अहमदाबाद (5.57 मिलियन की आबादी के साथ ) प्रस्तावित बजट क्रमशः 9,730 करोड़ रुपये (प्रति व्यक्ति बजट -11,523) और 4,136 करोड़ रुपये (प्रति व्यक्ति बजट -7,414) दिया गया था । यदि न्यूयॉर्क जैसे शहरों से तुलना की जाए तो यह राशि फीकी पड़ जाती है जहां 2014-15 में संचालन बजट के लिए एक चौंका देने वाली राशि, 4,62,357 करोड़ रुपए निर्धारित की गई थी

यहां तक कि प्रति व्यक्ति पूंजीगत व्यय के मामले में मुंबई 7587 रुपये के साथ सबसे ऊपर स्थान पर आती है उसके बाद दो अन्य शहर, जिनका व्यय 4000 रूपये से अधिक है- तिरुअनंतपुरम और पुणे का नाम आता है। मुंबई का प्रति व्यक्ति पूंजी व्यय लंदन और न्यूयॉर्क जैसे बड़े दिग्गजों की तुलना में जो क्रमश: 15,177 और 21,322 रुपये व्यय करते हैं , बहुत कम है।यदि हम हमारे शहरों को विश्व स्तरीय विकास का शहरी केंद्र का उदाहरण बनाने का लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हैं , तो तेजी से बढ़ती शहरी जनसंख्या के साथ साथ उसी अनुपात में हमे निवेश में भी वृद्धि करते रहना होगा।

भारतीय शहरों का निगम बजट, 2013-14

* आंकड़े 2013-14 में नगर निगम के बजट से ; ^ चंडीगढ़ और देहरादून के लिए 2012-13 का बजट इस्तेमाल किया गया ^^ सूरत के लिए 2014-15 के बजट का इस्तेमाल किया

यह मानते हुए कि हमारा देश हमारे शहरी क्षेत्रों में पर्याप्त पूंजी प्रदान करता है , हमारे शहरों में प्रभावी ढंग से इस पूँजी के अभिनियोजन के लिए पर्याप्त मानव संसाधन नहीं हैं। भारत में सभी शहरों में मात्रा और नागरिक कर्मचारियों की गुणवत्ता के दोनों मामलों में गहन बाध्यता हैं। कई राज्यों में स्टाफ के स्वरूप को परिभाषित करने वाले काडर और भर्ती नियम आजादी के पूर्व युग के अवशेष हैं और तब से उनमे संशोधन नहीं किया गया है|

भारतीय शहरों के बीच, मुंबई अपनी निगम के कर्मचारियों की संख्या के मामले में अच्छा प्रदर्शन करता है । प्रति1,00,000 नागरिकों पर 895 कर्मचारियों के साथ, मुंबई केवल दिल्ली के 1,260 से ही पीछे है। अन्य भारतीय शहरों यह संख्या प्रति 1,00,000 नागरिक मात्र 444 ही है। हालांकि, दिल्ली और मुंबई दोनों ही क्रमशः न्यूयॉर्क के 5338, लंदन के 2961 और डरबन के 3109 प्रति 1,00,000 जनसंख्या की तुलना में कहीं खड़े नही हो पाते ।

प्रमुख भारतीय शहरों में नगर कर्मचारी

नोट: कुल कर्मचारियों में स्थायी और अनुबंधित कर्मचारियों शामिल हैं

प्रमुख शहरों की वैश्विक तुलना

* पीपीपी रूपांतरण के बाद प्रति व्यक्ति बजट; ** लंदन में एक केंद्रीकृत प्रशासन है , इसलिए वहाँ संघीय और केंद्र सरकार द्वारा बजट खर्च अधिक है और यह केवल परिषद के बजट को इंगित करता है

एक नागरिक के रूप में, हमें अपने शहरों की समस्याओं के बारे में स्पष्ट रूप से जानकारी है - जनसंख्या विस्फोट, बुनियादी सुविधाओं की कमी और शहर की नागरिक सुविधाओं की स्थिति में आई गिरावट। हमारे शहरों का चेहरा बदलने के लिए विधानों के सुझावों की कोई कमी नही है।

हालांकि, जनशक्ति और पूंजी के बिना, जो दोनों ही प्रभावी निष्पादन के शक्तिशाली समर्थक हैं , हमारे शहर किये गए सुधारों के सकारात्मक परिणामों को नागरिकों तक पहुंचने में विफल रहते हैं। आप इस परिदृश्य को इस प्रकार समझ सकते हैं जैसे कि एक घटिया विमान पर दुनिया की सैर करने की चाह तो है पर हल्का सा जोखिमयह भी है शायद वह विमान आकाश में ऊंची उड़ान भरने में सक्षम ही न हो पाए ।

(लेखक,बंगलौर स्थित एक गैर-लाभकारी संगठन जनाग्रह , जो भारतीय शहरों और कस्बों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए नागरिकों और सरकार के साथ कार्यशील है, के साथ जुड़ा हुआ है।)

छवि आभार : फ्लिकर

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