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दिल्ली के विशाल निम्न वर्ग - जिसमें 60% से अधिक 13,500 प्रति महीने रुपये से कम कमाते हैं- से हमेशा से अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी (आप) का समर्थन करने के लिए उम्मीद थी । आश्चर्य की बात तो यह है कि मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग क्षेत्रों ने भी इस नई पार्टी के लिए मतदान कैसे किया है।

एएपी का वोट शेयर 2013 के मुकाबले अधिक 25% बढ़ा है जिसका सीधा सीधा संकेत है कि अन्य वर्ग समूहों ने भी इन्हे व्यापक समर्थन दिया है। भाजपा का वोट प्रतिशत 1% से कुछ अधिक गिरा है, लेकिन भारत में फर्स्ट पास्ट द पोस्ट (सर्वाधिक मतप्राप्त व्यक्ति की विजय), के कारण उसे 2013 के मुकाबले 29 सीटों से अधिक का घाटा हुआ ।

एएपी की जीत दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों की कीमत पर हुई है, ऐसा लगता है कि कांग्रेस के वोट सामूहिक रूप से एक नौसिखिया (नई नवेली ) पार्टी को हस्तांतरित हो गए हैं ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की लहर जो कुछ महीने पहले महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में स्पष्ट रूप से चल रही थी, लगता है वह अब ठंडी पड़ चुकी है।

और जहां तक कांग्रेस की बात करें तो वह दिल्ली के चुनावी पटल से साफ़ हो चुकी है , जैसा कि इस चार्ट से पता चलता है :

दिल्ली विधानसभा चुनावों में सीटें , 2008-2015

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Source: Election Commission

एएपी ने 70 सीटों में से 67 जीती है; जो कि एग्जिट पॉल के अनुमानों से कहीं अधिक है।पार्टी दिल्ली में किसी भी अन्य पार्टी की तुलना में अधिक सीटें जीतेगी। अब तक, कांग्रेस के पास ही सबसे अधिक संख्या थी,1998 में : 52 सीटें।

थोड़ा सा पीछे की ओर देखें : 2013 दिल्ली के चुनाव एक त्रिशंकु (हंग) विधानसभा में समाप्त हो गए। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सबसे बड़ी पार्टी थी, एएपी की विडंबना यह रही कि उन्हें उनकी सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के समर्थन के साथ, सरकार का गठन करना पड़ा।

2013 में एक मजबूत सत्ता विरोधी लहर दिल्ली में कांग्रेस की हार के लिए जिम्मेदार रही , और बाद में 2014 में राष्ट्रीय चुनावों में भी । 2013 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव के परिणाम इस बात का संकेतक हैं कि कैसे कांग्रेस किस तरह से सिमट कर रह गई है :

2013 की मुख्य विशेषताएं:

  • कांग्रेस ने 35 सीट खो दी
  • भाजपा को कांग्रेस की 17 सीटें मिली
  • एएपी को कांग्रेस की 17 सीटें मिली
  • एएपी मिला भाजपा की सीटों में से 11
  • शिरोमणि अकाली दल (शिरोमणि अकाली दल) को एक कांग्रेस सीट मिली
  • एएपी ने 28 सीटें जीती

हालांकि भाजपा और एएपी दोनों के बीच कांग्रेस की सीटें विभाजित हुई :

  • एएपी ने कांग्रेस की 39% सीटें (17/43 कांग्रेस की सीटें एएपी को मिली) जीती
  • एएपी ने 47% भाजपा की सीटें (11/23 भाजपासीटें एएपी को मिली) जीती

इंडिया स्पेंड ने पहले विश्लेषण किया था कि कैसे भाजपा ने राष्ट्रीय चुनाव में आप के वोट शेयर का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की । इस बार लेकिन, पार्टियों की किस्मत उलट गई है ।

वोट हिस्सेदारी के मामले में, आप के पास 54% है, पिछले दो विधानसभाओं में किसी भी पार्टी से तुलना में ज्यादा । 2015 में भाजपा का वोट शेयर 32% है। भाजपा ने अपने वोट शेयर में से 1% खोया है लेकिन अपने मूल वफादार बनाए रखें हैं।

दिल्ली विधानसभा चुनावों में वोट शेयर प्रतिशत %, 2005-2015

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Source: Election Commission

जहाँ इंडिया स्पेंड ने अपनी रिपोर्ट में भाजपा की हानि और एएपी की जीत के कारणों का विश्लेषण किया है, वहीं केजरीवाल ने पहले ही एक चेतावनी दी है : "" अभिमान मत करना , कांग्रेस और भाजपा, अपने अहंकार की वजह से ही हार गए। "

एएपी सरकार के पास इस 14 फरवरी को रामलीला मैदान में शपथ लेने के तुरंत बाद काम करने के लिए चुनौतियों की कमी नहीं है।

एक नई प्रेम कहानी की शुरुआत आप की दिल्ली में निश्चित है।

अपडेट(अद्यतन ): आंकड़े नवीनतम निर्वाचन आयोग संख्या को प्रतिबिंबित करने के लिए संशोधित किए गए हैं ।

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