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बैंकॉक: 200 करोड़ लोग, या चार व्यक्तियों में से लगभग एक व्यक्ति, छिपी हुई भूख या विटामिन और पोषक तत्वों की कमी से पीड़ित है, जिसके परिणामस्वरूप, मानसिक कमजोरी, खराब स्वास्थ्य, कम उत्पादकता और यहां तक ​​कि मृत्यु भी हो सकती है, जैसा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बताया गया है।

बच्चे विशेष रूप से सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की चपेट में आने से बीमारी के प्रति संवेदनशील होते हैं। बचपन में जिंक की कमी से खराब विकास और स्टंटिंग होती है, विटामिन ए की कमी से रतौंधी और खराब प्रतिरक्षा शक्ति हो सकती है, जबकि आयरन की कमी से मानसिक और शारीरिक विकास में बाधा आती है।

पोषण की खुराक एक समाधान है, लेकिन ये महंगे हैं। भारत के पूर्ण कवरेज में 14 आवश्यक पोषण हस्तक्षेप देने के लिए प्रति वर्ष $ 5.9 बिलियन या 41,764 लाख करोड़ रुपये की लागत आएगी, जैसा कि मातृ एवं पोषण पत्रिका में 2016 के अध्ययन में कहा गया है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2015-16 के अनुसार अनुपालन एक और चुनौती है। पिछले 50 वर्षों में पूरकता के माध्यम से एनीमिया को संबोधित करने वाले एक नेश्नल न्यूट्रिश्नल संबंधी एनीमिया प्रोफिलैक्सिस कार्यक्रम के बावजूद, 2016 में पांच वर्ष की आयु तक आधे से अधिक बच्चे (58.6 फीसदी) और महिलाएं (53.1 फीसदी) एनीमिक थी।

लोगों को भोजन से आवश्यक पोषक तत्व क्यों नहीं मिल सकता है, यह 1990 के दशक में अमेरिकी अर्थशास्त्री हॉवर्ड 'हाउडी' बूइस से पूछा गया था। बोइस सूक्ष्म पोषक तत्वों और उच्च-उपज वाले बीज किस्मों को विकसित करने के विचार के साथ आए, एक अवधारणा जिसे बाद में 'बायोफोर्टिफिकेशन' कहा गया।

बोइस ने वर्ष 2003 में वाशिंगटन डीसी के 'अंतर्राष्ट्रीय खाद्य और नीति अनुसंधान संस्थान’ (IFPRI) में कृषि अनुसंधान गैर-लाभकारी हार्वेस्टप्लस की स्थापना की, जिसमें मक्का, चावल, बाजरा और गेहूं के विटामिन बी, जिंक और आयरन के साथ बायोफोर्टिफाइड सहित प्रमुख फसलों की उच्च उपज वाली बीजों की किस्में विकसित की गईं।

सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के प्रारंभिक संदेह के सामने, बोइस ने दशकों से छिपी हुई भूख के समाधान के रूप में बायोफोर्टिफिकेशन को लोकप्रिय बनाने के लिए अथक परिश्रम किया - धन जुटाना, बीज के किस्मों को विकसित करने के लिए काम करना, प्रभावकारिता साबित करने के लिए अनुसंधान का संचालन करना और प्रौद्योगिकी में निवेश करने के लिए सरकारों को आश्वस्त करना।

बायोफोर्टिफिकेशन में निवेश किए गए प्रत्येक $ 1 में देश को $ 17 का रिटर्न मिलता है, जो 2003 से 2016 तक हार्वेस्टप्लस साक्ष्यों की 2017 की समीक्षा से पता चलता है, जिसके सह-लेखक बोइस हैं।

आज, बायोफोर्टिफाइड-खाद्य पदार्थों का उपयोग दुनिया भर में 30 मिलियन से अधिक किसानों द्वारा किया जा रहा है, विशेष रूप से अफ्रीका और एशिया में।

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा संचालित इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च ने 2017 की बुलेटिन में कहा है, आईसीएआर ने अनाज, दलहन, तिलहन, सब्जियों और फलों की एक दर्जन से अधिक बॉर्टिफाइड-विविधता वाली किस्मों को भी विकसित किया है।

आईसीएआर ने आयरन और जिंक के न्यूनतम स्तर को भी स्थापित किया है, जिससे मोती बाजरे की किस्मों (बाजरा, कांबू) को विकसित किया जा सके। इसके बाद भारत ऐसा पहला देश बन जाएगा जहां बाजरे की किस्मों के लिए ऐसे मानक हैं। इंडियास्पेंड ने सितंबर 2018 में बताया कि भारतीय किशोरों के आहार में पेश किए जाने वाले बायोफोर्टिफाइड मोती बाजरे से आयरन की कमी और सीखने की क्षमता में सुधार होता है।

छिपी हुई भूख को कम करने में अपने काम के लिए बोइस को 2016 वर्ल्ड फूड अवार्ड से सम्मानित किया गया था। बोइस ने नवंबर, 2018 में बैंकॉक, थाईलैंड में 'एक्सेलरेटिंग द एंड ऑफ हंगर एंड कुपोषण' सम्मेलन में एक साक्षात्कार में इंडियास्पेंड को बताया, "आपको दृढ़ रहना होगा और अपने आप को दोहराते रहना होगा।" यह सम्मेलन आईएफपीआरआई और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था। उनसे बातचीत के संपादित अंश।

आपको बायोफोर्टिफाइड फसलों को विकसित करने का विचार कैसे आया?

मैं पोषण बैठकों में भाग ले रहा था, जहां पोषण विशेषज्ञ पूरक और फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों को विटामिन ए की कमी को दूर करने के लिए आवश्यक बता रहे थे। वे कहते थे कि छह महीने तक रोजाना एक विटामिन-ए का कैप्सूल लेने से बाल मृत्यु दर में 23 फीसदी की कमी आएगी। एक विटामिन-ए कैप्सूल की कीमत एक डॉलर है। एक दशक में हर साल 50 करोड़ टैबलेट प्रदान करने के लिए $ 5 ट्रिलियन का खर्च आएगा। लेकिन लोग पहले से ही भोजन के माध्यम से विटामिन ए प्राप्त कर रहे थे, इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न इन विटामिनों को फसलों में डाला जाए, जिससे आहार के माध्यम से पर्याप्त पोषण प्रदान किया जाए।

मैंने तब वैज्ञानिकों से बात की और पूछा कि क्या उच्च पोषक तत्वों और उच्च उपज वाली फसलों दोनों को विकसित करना संभव है। लेकिन उन्होंने कहा कि यह उच्च पैदावार और उच्च पोषक तत्वों के बीच एक असमंजस की स्थिति होगी।

फिर मैं वैज्ञानिकों के एक और समूह से मिला, जिन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति नहीं होगी। पौधों के लिए अधिक खनिज युक्त होना अच्छा था, क्योंकि यह पौधों के पोषण के लिए अच्छा होगा। तो यह -उच्च पोषण और उच्च उपज किस्मों का विकास- में कोई दुविधा नहीं थी। वास्तव में ये एक दूसरे के पूरक थे।

अगर हमने 1960 के दशक में ऐसा किया होता तो हमारे पास इन सभी सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी नहीं होती। तब इन कमियों के बारे में हर किसी को बहुत जानकारी नहीं थी।

क्या आप एनीमिया को दूर करने के लिए भारत के आयरन और फोलिक एसिड टैबलेट वितरण कार्यक्रम जैसे पूरक प्रयासों के समर्थन के रूप में बायोफोर्टिफिकेशन को देखते हैं? बायोफोर्टिफिकेशन सप्लीमेंट की जगह ले सकता है?

वास्तव में यह स्थिति पर निर्भर करता है। आयरन की दैनिक आवश्यकता का लगभग 40 फीसदी बायोफोर्टिफिकेशन के माध्यम से जोड़ा जा रहा है। यदि आयरन की आवश्यकता का 60 फीसदी आहार के माध्यम से पूरा किया जाता है, तो (बायोफोर्टिफिकेशन) इसे 100 फीसदी तक ले जा सकता लेकिन अगर आयरन की आवश्यकता का केवल 20 फीसदी आहार के माध्यम से पूरा किया जाता है, तो (बायोफोर्टिफिकेशन) इसे 60 फीसदी तक ले जाएगा, इस स्थिति में सप्लीमेंट की जरूरत होगी।

एक महत्वपूर्ण अंतर-बायोफोर्टिफिकेशन और सप्लीमेंटेशन के बीच- लागत है। आपको बायोफोर्टिफाइड बीजों को विकसित करने के लिए एक बार निवेश करने की आवश्यकता है इसके बाद, आपके लिए कोई लागत नहीं है। बायोफोर्टिफिकेशन के साथ, लागत साल दर साल समान रहेगी। लेकिन सप्लीमेंट बहुत महंगे हैं।

क्या आयरन जैसे पोषक तत्व भोजन के माध्यम से बेहतर अवशोषित होते हैं?

बहुत सी चीजें निर्धारित करती हैं कि शरीर द्वारा कितना आयरन अवशोषित होता है। मुख्य कारक एक व्यक्ति का पोषण स्तर है। यदि आयरन में बहुत कमी है, तो वे पर्याप्त आयरन के स्तर वाले व्यक्ति की तुलना में बहुत अधिक आयरन को अवशोषित करेंगे।

आप भारत सरकार के साथ कितना काम करते हैं और वे बायोफोर्टिफिकेशन के कितने साथ हैं?

हार्वेस्टप्लस से स्वतंत्र बायोफोर्टिफिकेशन में निवेश करने के लिए हमने तीन सरकारों - चीन, भारत और ब्राजील - पर ध्यान केंद्रित किया था और हम ऐसा करने में कामयाब हुए हैं।

सभी तीनों सरकारें अब स्वतंत्र रूप से बायोफोर्टिफाइड उर्वरक फसलों पर शोध करती हैं। यह तुरंत नहीं हुआ। इसमें कई सहभागिता हुई, लेकिन अब भारत सरकार ने फसलों पर स्वतंत्र रूप से वित्त पोषित बायोफोर्टिफाइड-शोध किया है। इसलिए वे क्षमता को लेकर उत्साहित हैं।

क्या प्रति फसल केवल एक पोषक तत्व एक बार में फोर्टीफाइड हो सकता है? भविष्य में, क्या प्रति फसल एक से अधिक पोषक तत्वों को फॉर्टफाइड किया जा सकता है?

हम एक समय में दो पोषक तत्व नहीं करना चाहते थे, क्योंकि यह एक जटिल प्रक्रिया है । एक पोषक तत्व के साथ बीजों को मज़बूत करने में 10 साल तक का समय लगता है। हमें इसे एक समय में एक पोषक तत्व करना था।

एक अच्छा उदाहरण मक्का है। हमने 10 साल में मक्का में विटामिन ए फोर्टीफाइड करने के लिए काम शुरु किया। अब हमारे पास जिंक जोड़ने के लिए 10 साल हैं। लैटिन अमेरिका में मक्के की ज्यादा खपत है, लेकिन विटामिन ए की कमी वहां कोई बड़ी समस्या नहीं है, जिंक की कमी है। इसलिए हम लैटिन अमेरिका के लिए मक्का की ऐसी किस्मों का विकास कर रहे हैं, जिसमें जिंक हो। हमने अफ्रीका में मक्का के लिए विटामिन ए बायोफोर्टिफिकेशन के साथ जो काम पूरा किया है, उसे हम लैटिन अमेरिका के लिए शुरू कर रहे हैं।

कितने किसान बायोफोर्टिफाइड फसलें उगा रहे हैं?

भारत में 170,000 गेहू के किसान बायोफोर्टिफाइड-उत्पादक फसलें उगा रहे हैं। यह एक महासागर में एक बूंद है । भारत में 12.7 करोड़ किसान हैं। लेकिन आपको कहीं से तो शुरुआत करनी होगी। मिशन यह है कि अब से 20 साल बाद, वर्तमान में उगाई जा रही अधिकांश गेहूँ की किस्में बायोफोर्टिफाइड-आधारित हों और बाजार में 75 फीसदी की हिस्सेदारी हो।

क्या उपज के बाद खनिजों की पैदावार में बायोफोर्टिफाइड फसलें अधिक होती हैं, या किसानों को हर फसल के बाद बायोफोर्टिफाइड बीज खरीदना पड़ता है?

बायोफोर्टिफाइड बीजों की किस्में संकर नहीं हैं, इसलिए प्रत्येक वर्ष पिछली फसलों से लगाया जा सकता है। हालांकि, यह कई वर्षों तक नहीं किया जा सकता है। उन्हें हर तीन साल में खरीदा जाना चाहिए, जैसा कि नियमित किस्मों के साथ होता है।

अफ्रीका में, आपने बायोफोर्टिफिकेशन के लिए मक्का को चुना है, क्योंकि यह उनकी मुख्य फसल है। जबकि भारत में यह चावल और गेहूं है। जैसे-जैसे आहार बदलते हैं, क्या हम तय करेंगे कि कौन से खाद्य पदार्थ बायोफोर्टिफाइड हैं?

यह इतना अधिक भोजन प्रधान नहीं है, जो बदलती आहार आदतों के साथ बदलता है, यदि आप देखते हैं कि गरीब और अमीर लोग क्या खाते हैं, तो यह आहार में शामिल अन्य चीजें हैं। दक्षिण भारत में, गरीब और अमीर लोग समान रूप से चावल खाते हैं, लेकिन वे अन्य चीजें जैसे फल, नट या मांसाहार जोड़ सकते हैं। एक भारतीय कंपनी निर्मल सीड्स है जो बायोफोर्टिफिकेशन की सफलता की कहानी है। मोती बाजरा दो चीजों के कारण चावल और गेहूं से अलग है - यह खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम का हिस्सा नहीं है कर्नाटक ने 2012 में अपने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बाजरा शामिल किया था और उसमें से अधिकांश निजी बीज कंपनियों द्वारा बेचे गए संकर बीजों से उगाया गया था।

निर्मल के पास एक विशेष किस्म थी, जो आयरन के साथ बायोफोर्टिफाइड थी और 10 फीसदी ज्यादा उपज भी थी। अपने सभी 100,000 ग्राहकों को उन्होंने इस किस्म को खरीदने के लिए कहा। इसकी पैदावार अधिक थी और इस पर एक लोगो लगा था, जिसमें दिखाया गया था कि इसमें आयरन ज्यादा है। एक या दो वर्षों के भीतर, 100,000 किसान बायोफोर्टिफाइड उर्वरक मोती की अधिक किस्में उपजाने लगे हैं।

बायोफोर्टिफिकेशन में तेजी लाने के लिए भारत सरकार क्या कर सकती है?

भारत सरकार के साथ हमारी चर्चा 2004-05 में शुरू हुई। उस समय, वैज्ञानिकों में बहुत उत्साह नहीं था, लेकिन हम साल-दर-साल आगे बढ़ते रहे।

भारत में अब एक नई नीति है कि बाजरा की सभी किस्मों को भारत में जारी होने से पहले एक निश्चित स्तर के पोषण को पूरा करना होगा। कई देशों में, आप एक बीज की किस्म जारी नहीं कर सकते हैं, जब तक कि यह पहली बार सरकार द्वारा रोग प्रतिरोधक क्षमता, सूखा प्रतिरोध और आयरन के घनत्व का एक निश्चित स्तर से ऊपर परीक्षण नहीं किया जाता है। तो कम आयरन के स्तर वाली उच्च उपज वाली किस्म भी जारी नहीं की जा सकती है। भारत ऐसा पहला देश है, जहां बाजरा के लिए ऐसे मानक हैं।

हम चाहते हैं कि वे बायोफोर्टिफिकेशन को सर्वोच्च प्राथमिकता दें। सरकार को सार्वजनिक हित में किसानों को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है, और वे खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम में बायोफोर्टिफाइड-उत्पादित उपज को शामिल करके बाजार को आकर्षित कर सकते हैं।

क्या आप उस प्रगति से संतुष्ट हैं जो बायोफोर्टिफिकेशन ने की है?

नहीं, कदापि नहीं। मिशन का उद्देश्य किसी देश में उगाई जाने वाली 90 फीसदी फसलों को कवर करना है। अब दुनिया भर में बायोफोर्टिफाइड फसलों का उपयोग करने वाले 1 करोड़ किसान हैं और हम चाहते हैं कि 2030 तक यह 20 करोड़ किसान हों।

लेकिन बाजार में बायोफॉर्टिफाइड किस्मों को जारी करने में समय लगता है। उच्च पोषक तत्व वाले बीज की किस्म के प्रजनन में 10 साल और बाजार में आने में 20 साल लगते हैं। आदर्श बनने तक आपको साल-दर-साल किस्मों की एक पाइपलाइन बनानी होगी।

1970 के दशक में विकसित आधुनिक बीज के किस्मों ने पैदावार में भारी अंतर किया, इसलिए किसानों ने उन्हें बंद कर दिया। लेकिन अगर कोई नया बीज (जैव उर्वरक किस्मों सहित) केवल 3 फीसदी अधिक उपज प्रदान करता है, तो इसमें किसान स्विच नहीं कर सकते हैं। इसलिए समय लगता है।

इसके लिए आपको लंबे समय तक ऐसा करना होगा। मैंने 1993 में धन जुटाना शुरू किया और 2003 में हार्वेस्टप्लस का काम शुरू हुआ। पहले 10 वर्षों के लिए थोड़ा सा धन प्राप्त करने में 10 साल लग गए, लेकिन यह केवल प्रयोगों के लिए पर्याप्त था, न कि अन्य कार्यक्रमों के लिए। कोई निजी कार्यक्रम नहीं थे। इसलिए हम निजी बीज कंपनियों के साथ काम करते हैं। नए विचारों को आजमाने के लिए आपके पास कुछ पैसे होने चाहिए। अब हम उस बिंदु पर हैं, जहां लोग इसे करना चाहते हैं और धन दाताओं की बायोफोर्टिफिकेशन में दिलचस्पी है।

(यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह साक्षात्कार मूलत: अंग्रेजी में 17 फरवरी 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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