private_620

गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) के तहत 5 फीसदी की सबसे कम स्लैब पर कर लगाए जाने से निजी शिक्षा की लागत में 2 से 3 फीसदी अधिक वृद्धि हो सकती है। बिल के प्रावधानों पर हमारे विश्लेषण में यह बात सामने आई है।

लोकसभा (संसद का निचला सदन) द्वारा 29 मार्च, 2017 को पारित जीएसटी विधेयक में एक ऐसा प्रावधान है, जो कहता है कि सरकार या स्थानीय प्राधिकरण द्वारा प्रदान की जाने वाली कुछ सेवाएं कर से मुक्त होंगे।

वित्तीय विशेषज्ञों का मानना ​​है कि सरकार या स्थानीय प्राधिकरण द्वारा प्रदान की जाने वाली अन्य सेवाओं की सूची के अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को मुक्त करने के लिए प्रावधान किया गया था।

प्रावधान का मतलब यह हो सकता है कि जीएसटी कानून बनने के बाद भारत में निजी शिक्षा पर कर जरूरी होगा।

शिक्षा प्रदान करने में लगे हुए सार्वजनिक और निजी दोनों संस्थाओं को टैक्स छूट दी गई है। उनकी व्यावसायिक सफलता को देखते हुए, निजी स्कूलों के लिए कर में छूट का लाभ बढ़ाने को लेकर लोगों का ज्यादा समर्थन प्राप्त नहीं हुआ ।

कानून में ‘कल्याणार्थ उद्देश्य’ यानी गरीबों के कल्याण, शिक्षा, चिकित्सा राहत, और सामान्य सार्वजनिक उपयोगिता के किसी अन्य अभियान की उन्नति के लिए राहत शामिल है।

‘लाभ की किसी भी गतिविधि में नहीं शामिल होने को’ वित्त अधिनियम, 1983 द्वारा मुक्त रखा गया था।

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा 2008 में जारी एक परिपत्र में स्पष्ट है कि गरीबों के कल्याण में लगी संस्थाओं तथा शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं को प्रदान करने वाली संस्थाओं को छूट की अनुमति दी जाएगी, भले ही इसकी प्रासंगिकता व्यावसायिक गतिविधियों में हो।

जीएसटी लागू होने के बाद अब शैक्षणिक गतिविधियों सहित पहले का स्थिति बदलेगी।

जीएसटी एक अप्रत्यक्ष कर है। माल और सेवाओं के उपभोग पर कर। अप्रत्यक्ष कर में एक अंतर्निहित बात यह होती है कि कर का भार उद्योग (निर्माता या व्यापारी या सेवा प्रदाता) पर नहीं, उपभोक्ता पर होता है।

अगर इसे लागू किया जाता है तो निजी शिक्षा पर जीएसटी शिक्षा सेवाओं का लाभ लेने वालों द्वारा वहन किया जाएगा। इसलिए इसपर विचार करना जरुरी है।

शिक्षा को एक समय में परोपकारी गतिविधि के रूप में देखा जाता था। अब 100 बिलियन डॉलर (6.5 लाख करोड़ रुपए) के उद्योग में रूपांतरित हो गया है। निजी क्षेत्र में यह उद्योग निवेशक के रिटर्न और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाने में जूझ रहा है तोसार्वजनिक क्षेत्र अपर्याप्त शिक्षकों और पुराने पाठ्यक्रम के साथ संघर्ष कर रहा है।

ग्रीस से लेना होगा सबक

ग्रीस ने 2015 में निजी शैक्षिक संस्थानों पर 23 फीसदी वैट(वैल्यू एडेड टैक्स) लगाया था।

‘द इकोनोमिस्ट’ की 30 अक्टूबर 2015 की इस रिपोर्ट के अनुसार, "यह फैसला एक दोहरी जीत की का फार्मूला लग रहा था। एक तरफ लेनदारों को खुश करने की कोशिश और दूसरी ओर वंचितों की मदद करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता का प्रदर्शन । लेकिन आश्चर्यजनक बात यह हुई कि इनमें से ऐसा कुछ नहीं हुआ। "

कुछ महीनों के भीतर ही जायज फीस लेने वाले निजी स्कूलों पर ताले लग गए। इससे जो पीड़ित हुए, उसमें सिर्फ समृद्ध ही नहीं थे, मध्यम और निम्न-आय वाले लोग भी थे।

मजदूर वर्ग के इलाकों में स्थित निजी स्कूलों ने अपनी फीस कम कर उन मजदूर माता-पिता को आकर्षित किया, जो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के इच्छुक थे। राज्य की शिक्षा प्रणाली पहले से ही विवादित थी, वेट ने उसे और भी बाधित कर दिया।

भारत में भी निजी स्कूलों पर जोर

ग्रीस की तरह ही भारत में भी प्राइवेट स्कूलों को तवज्जो दी जाती है. सिर्फ संपन्न वर्ग के लोग ही नहीं, बल्कि हर तबके के लोग प्राइवेट स्कूलों में ही बच्चों को भेजना पसंद करते हैं।

उदाहरण के लिए वर्ष 2015-2016 में भारत में लगभग 31 फीसदी बच्चों ने निजी स्कूलों में दाखिला लिया था, वहीं 11.5 फीसदी बच्चे सरकारी वित्त पोषित स्कूलों में रजिस्टर्ड हैं। ये आंकड़े शिक्षा के लिए एकिकृत जिला सूचना प्रणाली के हैं।

उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे कम आय वाले राज्यों में भी प्राइवेट स्कूलों पर निर्भरता ज्यादा है. यूपी में 51.37 फीसदी और राजस्थान में 49.23 फीसदी बच्चे प्राइवेट स्कूलों में जाते हैं।

इसके अलावा, निजी स्कूल नामांकन केवल एक शहरी घटना नहीं है। एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट-2016 के आंकड़ों के मुताबिक, मध्यप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में 6-14 वर्ष की आयु के 24.7 फीसदी छात्रों ने निजी स्कूलों में दाखिला लिया है जबकि उत्तर प्रदेश में यह आंकड़े 52.1 फीसदी थे।

निजी संस्थानों को भारतीय क्यों देते हैं प्राथमिकता

Source: National Sample Survey Organisation

कुछ कम आय वाले परिवार भी अपने बच्चों का निजी स्कूलों में दाखिला दिलाते हैं, वहीं कई माता-पिता निजी स्कूली शिक्षा को गुणवत्ता से जोड़ कर देखते हैं। ऐसे में शिक्षा पर टैक्स प्रतिगामी हो सकता है।

माता-पिता मानते हैं कि निजी स्कूल अच्छी शिक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन कुछ राज्यों के सरकारी स्कूलों ने पिछले दो वर्षों में भी सुधार किया है। इस बारे में इंडियास्पेंड ने 18 जनवरी, 2017 को विस्तार से बताया है।

इसके अलावा वर्ष 2014 के अध्ययन में यह बात सामने आई थी कि निजी स्कूलों में अध्ययन करने वाले बच्चों के माता-पिता के शिक्षित होने की अधिक संभावना होती है। उनके कम भाई बहन होते हैं और इस प्रकार उन्हें अभिभावकों का अधिक ध्यान मिलता है। साथ ही सरकारी स्कूलों में अध्ययन करने वालों की तुलना में वे अपेक्षाकृत समृद्ध परिवार से होते हैं

प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने के बुनियादी स्तर में सुधार

1-desktop

Source: Annual Status of Education Report, 2016

अगर सरकार निजी शिक्षा को सबसे कम स्लैब दर (लगभग 5%) पर टैक्स करने का विकल्प चुनती है और फर्निचर और सेवाओं (जैसे किराया) जैसे निवेश पर पहले से ही चुकाई गई टैक्स पर विचार किया जाता है, प्रभावी टैक्स दर भी कम होगी।

अगर कानून को ध्यानपूर्वक तैयार किया जाए, यानी शिक्षा के संबंध में कर की दर और इनपुट इनपुट टैक्स क्रेडिट अंश मिलकर शिक्षा पर कर के प्रभाव को कम कर सकते हैं, और परिणामस्वरूप शिक्षा की लागत में लगभग 2 से 3 फीसदी तक की वृद्धि हो सकती है।

(परदीकर चार्टर्ड एकाउंटेंट है और बेंगलुरु में रहती हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 30 मार्च 17 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।

__________________________________________________________________

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :