बेंगलुरु, मुंबई और कोलकाता: जिस मिट्टी के घर में रुखसाना अपने माता-पिता के साथ रहती है, वहां कभी बिजली नहीं थी। पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े जिले दक्षिण 24 परगना के बसंती शहर और भारत में ‘मानव और बाल तस्करी के लिए बदनाम जिले’ में से एक, में 16 वर्षीय लड़की के घर पर धान के खेतों की एक पंक्ति के अंत में एक छोटी सी रोशनी अंधेरे में टिमटिमा रही थी।

रुखसाना पर चार दिनों में तीन बार यौन हमला किया गया था। ये हमले उसी व्यक्ति ने किए थे,जिसने उसे बहला-फुसला कर घर से भगाया था। रुखसाना किस्मत वाली थी कि वह उसके चंगुल से भागने में कामयाब रही। लेकिन उसकी ही तरह की हजारों लड़कियों की किस्मत ऐसी नहीं होती। इन लड़कियों को यौन गुलामी में धकेल दिया जाता है, जहां से उनका निकलना मुश्किल होता है।

रुखसाना को लगा, जिस लड़के से वह स्कूल के बाहर मिली थी, उसके साथ उसे प्रेम हो गया है। इंडियास्पेंड के साथ बात करते हुए उसने बताया कि, “ बातचीत में मुझे उसने बताया कि वह मुझसे प्रेम करता है और उसकी मां की मृत्यु हो गई है।” घर से भाग जाने और तस्कर विरोधी काउंसलर से मदद मिलने के बाद यह उसे महसूस हुआ कि वह व्यक्ति शायद तस्कर था। इससे पहले उसे इस विषय के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

रुखसाना की ही तरह, पश्चिम-बंगाल में हजारों लड़कियां हैं, जिन्हें लालच दे कर या बहला-फुसला कर देह व्यापार के लिए तस्करी की जाती है।

2016 में, जिस वर्ष के लिए नवीनतम आंकड़े उपलब्ध हैं, पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा बच्चों के तस्करी के मामले रिपोर्ट किए गए हैं ( कुल आंकड़ों में से 3,113 या 34 फीसदी ), जैसा कि राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है। इनमें से 86 फीसदी या 2,687 लड़कियां थी।

भारत के अन्य राज्यों की तुलना में यह राज्य सबसे ज्यादा मानव तस्करी की भी सूचना देता है – सबसे ज्यादा लोगों के तस्कर होने की सूचना ( 4,164 या 28 फीसदी ), सबसे ज्यादा मामले रिपोर्ट (3,579 या 44 फीसदी ) उच्च अपराध दर ( प्रति 100,000 आबादी पर 3.81 मानव तस्करी मामलों की रिपोर्ट )।

एक जनकल्याण संस्था, वर्ल्ड विजन इंडिया के 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, “सीएसई के लिए तस्करी में लड़कियों के लिए बॉयफ्रेंड के साथ भागने की सूचना मिलती है, लड़कियों को अक्सर लड़कियों को फर्जी शादी या नौकरी का झांसा दे कर फंसाया जाता है, जिन्हें वे लड़के बाद में तस्करी के लिए बेच देते हैं।”

तस्करी का दूसरा कारण गरीबी ( माता-पिता के पास उनकी लड़कियों के लिए पेशकश की गई नौकरी पर भरोसा करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं होता ) और अपहरण है, जैसा कि कॉंबैट चाइल्ड ट्रैफिकिंग फॉर सेक्सुअल एक्सपोलाइटेशन इन वेस्ट बंगाल नामक रिपोर्ट में कहा गया है।

“ जैसे ही वह टिकट खरीदने गया...मैं भाग गई...”

अगस्त 2018 में, रुखसाना ने ‘नाइट कोच’ - यानी एक स्लीपर बस में आदमी के साथ यात्रा की। "शुरुआत में, वह अच्छी तरह से व्यवहार किया गया था, लेकिन घटना के बाद, मुझे लगा कि वह बुरा था।"

रुखसाना ने बताया, "वह हंसा जब मैंने उसे घर वापस ले जाने के लिए कहा। हालांकि मैंने भागने और घर वापस आने के बारे में सोचा था, मुझे शुरू में कभी मौका नहीं मिला, क्योंकि वह हमेशा आस-पास रहता था।"

आखिरकार, उसे तब शक हुआ, जब उसने उसे हिंदी में बोलते हुए सुना। हिंदी एक ऐसी भाषा है, जिसे वह नहीं समझती है, उसने केवल ‘दिल्ली’ शब्द समझा।

रुखसाना ने कहा, "जब वह मुझे इंतजार करने को कह टिकट खरीदने के लिए गया तो मैं भाग गई। शायद वह दिल्ली की टिकट लेने गया था।"

ट्रेन से चार-पांच घंटे की यात्रा करने के बाद, एक स्टेशन से जिसका नाम उसे याद नहीं है, रुखसाना बसंती से लगभग 70 किलोमीटर दूर सियालदह स्टेशन पहुंची। घर छोड़ने से पहले उसने 100 रुपये लिए थे और इसी पैसे से वह घर वापस आई।

हालांकि वह डरती है कि ट्रैफिकर वापस आ सकता है। रुखसाना उन लडकियों में से है, जो घर लौटने में सक्षम रही। उस लड़के का अब तक पता नहीं चला है।

रुखसाना ने कहा, "मैं दूसरी लड़कियों से कहूंगी कि अगर अनजान लोग दोस्ती बढ़ाने के कोशिश करें, तो वे उसमें न फंसे।"

कम जागरूकता

वर्ल्ड विज़न इंडिया के अध्ययन में पाया गया कि 59 फीसदी किशोरियों में तस्करी से खुद को बचाने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, और 72 फीसदी को उन सेवाओं के बारे नहीं पता था, जो उनकी मदद कर सकते थे।

इसने पश्चिम बंगाल के तीन जिलों - कोलकाता, दार्जिलिंग और 24 दक्षिण परगना में सीएसई के लिए बाल तस्करी से संबंधित मुद्दों का अध्ययन किया। पश्चिम बंगाल फोकस में है, क्योंकि तीन जिले (उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और मुर्शीदाबाद) बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय सीमा के साथ लगे हुए हैं और तस्करी के लिए प्रवण हैं। राज्य नेपाल और भूटान के साथ-साथ बिहार, ओडिशा, झारखंड, सिक्किम और असम की सीमाओं से भी लगा है, जिससे तस्करी आसान हो जाती है।

अध्ययन में गंतव्य क्षेत्रों में सीएसई के लिए 136 महिलाओं की तस्करी, स्रोत क्षेत्रों में 885 किशोर (12-17 वर्ष की आयु), और 1,180 देखभाल करने वालों का सर्वेक्षण किया गया था - जो लोग सबसे अधिक समय बच्चों की देखभाल में बिताते हैं, जैसे कि जैविक मां, चाची , दादी या पिता।

इसके अलावा, गुणात्मक अध्ययन किए गए, जिसमें 211 प्रतिभागियों के साथ 12 फोकस समूह चर्चाएं शामिल थीं, 13 प्रमुख मुखबिर साक्षात्कार ( पुलिस कर्मियों, गैर-सरकारी संगठनों के कार्यकर्ताओं और सरकारी अधिकारियों के साथ बाल-तस्करी विरोधी काम में शामिल ) और सीएसई में शामिल महिलाओं के साथ 10 गहन साक्षात्कार। सर्वेक्षण और साक्षात्कार 2018 के फरवरी में आयोजित किए गए थे।

स्रोत क्षेत्रों में 52 फीसदी देखभाल करने वाले और 45 फीसदी किशोरों ने कहा कि वे तस्करी के बारे में जानते हैं, जबकि 14 फीसदी देखभाल करने वालों ने कहा कि उन्हें अपने क्षेत्र में 12 महीने से पहले की तस्करी की घटनाओं का पता है।

गंतव्य क्षेत्रों में, सीएसई में 26 फीसदी महिलाएं, जिन्हें सर्वेक्षण में शामिल किया गया था, उन्होंने कहा, उन्होंने नाबालिगों के रूप में शुरुआत की थी; 18 और 25 साल के बीच 44 फीसदी, और 25 साल और उससे अधिक पर 29 फीसदी। पहले यौन अनुभव के लिए औसत आयु 15 वर्ष थी; 43 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्हें मजबूर किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि सीएसई में लगभग आधी महिलाओं को यौन हिंसा का सामना करना पड़ा था।

तस्करी-रोधी इकाइयों में कम संसाधन

मुंबई स्थित एक वकील, मिशेल मेंडोंका ने कहा कि वर्तमान में मानव तस्करी विरोधी इकाइयों में कम संसाधन हैं और उन्हें ज्यादा फंड की जरुरत है। मेंडोंका अब 14 साल से बच्चे और यौन-तस्करी के मामलों को संभाल रही हैं, और उन्होंने इन मुद्दों पर अभियोजकों को प्रशिक्षित किया है।

मेंडोंका कहती हैं, " अगर बच्चे का एक अलग राज्य से तस्करी हो रही है तो पुलिस के पास गहन जांच के लिए संसाधनों की कमी है। तस्करी के मामलों से निपटने में पुलिस को तभी जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, जब वे प्रशिक्षित हों। उन्हें भी अधिक संसाधनों की आवश्यकता है।

मेंडकेना ने कहा कि यौन तस्करी से बचाव के लिए गवाह बनने में नागरिक स्वयं सहायता कर सकते हैं, और फिर अदालत में साक्ष्य उपलब्ध करा सकते हैं।

गरीबी और हताशा लोगों को असुरक्षित प्रवास की ओर ले जाती है, जिससे वे मानव तस्करों की चपेट में आ जाते हैं। "लेकिन एक अन्य महत्वपूर्ण कारक, जो तस्करी को सक्षम बनाता है, वह है असुरक्षा की संस्कृति। एक ही आदमी एक गांव से कई कमजोर बच्चों को बार-बार ला सकता है, क्योंकि गिरफ्तारी आमतौर पर शोषण की जगह पर केंद्रित होती है और न कि तस्करी के अन्य चरणों में अपराधियों की मिली-भगत पर।"

महिला अधिकारों की वकील और महिलाओं और बच्चों को कानूनी सेवाएं प्रदान करने वाली संस्था, मजलिस के सह-संस्थापक, फ्लाविया एग्नेस ने इंडियास्पेंड को बताया, “युवा बच्चे पूरी तरह से तस्करों के गिरफ्त में होते हैं।”

एग्नेस ने कहा, "हमें यह सोचना बंद करना होगा कि जन्म देने वाला परिवार छोटे बच्चों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल है और पुनर्वास की नवीन रणनीतियों को विकसित करता है। देश में बाल तस्करी रोकने के लिए राज्यों को पहल करनी होगी।"

व्यापक रूप से पूरे भारत में तस्करी

2016 में, पांच में से तीन-या 15,379 में से 9,034– लोगों की तस्करी की गई थी ( 18 वर्ष की कम आयु ), जैसा कि एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है। इनमें से 4,911 (54 फीसदी) लड़कियां थीं और 4,123 (46 फीसदी) लड़के थे।

पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक बच्चों की तस्करी की गई, उसके बाद राजस्थान (2,519), उत्तर प्रदेश (822) और गुजरात (485) का स्थान रहा है।

संयुक्त राष्ट्र कार्यालय द्वारा ड्रग्स एंड क्राइम पर निकाली गई मानव-तस्करी रोधी रिपोर्ट पर इंडिया कंट्री असेसमेंट रिपोर्ट 2013 के अनुसार पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और ओडिशा भारत भर में लाल बत्ती क्षेत्रों की तस्करी के लिए सामान्य स्रोत क्षेत्र हैं।

2016 में, वेश्यावृत्ति के लिए यौन शोषण (22 फीसदी) भारत में मानव तस्करी के लिए दूसरा प्रमुख उद्देश्य था। पहला जबरन श्रम (45 फीसदी) था, जैसा कि बचाए गए पीड़ितों और अभियुक्तों के बयान के आधार पर एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है।

2016 में 23,000 से अधिक पीड़ितों को बचाया गया था, जिनमें से 61 फीसदी या 14,183 बच्चे और 39 फीसदी वयस्क थे। 14,183 बच्चों में, 61 फीसदी लड़के और 39 फीसदी लड़कियां थीं।

राजस्थान ने सबसे ज्यादा लोगों को बचाने की रिपोर्ट दी है – 18 साल से कम आयु के सभी पीड़ितों में से 5,626 या 40 फीसदी। इसके बाद मध्य प्रदेश (2,653), पश्चिम बंगाल (2,216), उत्तर प्रदेश (852) और तमिलनाडु (648) का स्थान था।

पश्चिम बंगाल ने 18 साल से कम उम्र की सबसे अधिक (1,819) महिला पीड़ितों को बचाया, इसके बाद मध्य प्रदेश (1,678) और तमिलनाडु (433) का स्थान रहा है।

डेटा और अंडर-रिपोर्टिंग में अंतर

वर्ल्ड विजन की रिपोर्ट में कहा गया है कि “सीएसई के लिए मानव तस्करी के लिए मौजूदा प्रसार डेटा (माध्यमिक स्रोतों से) मौजूद नहीं है, जैसा कि पीड़ितों की एक छिपी हुई संख्या है और इसे ट्रैक करने के लिए कोई वैध सर्वेक्षण विधि नहीं है। सीएसई में महिलाओं और लड़कियों का अनुमान भारत में 70,000 से 30 लाख तक है।”

वर्ल्ड विजन इंडिया के एंटी-चाइल्ड ट्रैफिकिंग प्रोग्राम के प्रमुख जोसेफ वेस्ले ने इंडियास्पेंड को बताया कि एनसीआरबी डेटा केवल रिपोर्ट किए गए मामलों को प्रकट करता है। "अपने अनुभव से मैं कह सकता हूं कि सभी मामलों की रिपोर्ट नहीं की जाती है, केवल इसलिए क्योंकि माता-पिता रिपोर्ट करने में बहुत संकोच करते हैं या कई बार माता-पिता खुद शामिल होते हैं।"

उन्होंने कहा, “ पुलिस को तस्करी के प्रावधानों के तहत मामले दर्ज करने में सक्रिय होना चाहिए।अक्सर मामलों का अपहरण या गुमशुदा व्यक्ति के मामलों के रूप में दर्ज किया जाता है, भले ही तस्करी के स्पष्ट सबूत हों।"

वर्ल्ड विजन इंडिया जैसे संगठनों के लिए अपर्याप्त डेटा बाधा बनती है। वेस्ले ने कहा कि सरकारी एजेंसियों का काम भी प्रभावित होता है - डेटा की कमी से उच्च-प्रसार क्षेत्रों का पता लगाना और लक्षित करना मुश्किल हो जाता है, जिससे रोकथाम और कानून प्रवर्तन प्रयासों पर प्रभावी ढंग से ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो जाता है।

एग्नेस ने कहा, "डेटा की कमी से स्थिति की गंभीरता को ट्रैक करना बहुत मुश्किल हो जाता है और कम संख्या दर्शाती है कि कोई तत्काल समस्या नहीं है। अधिकारी समस्या को खारिज या कम करते हैं। इस तरह के एक गंभीर मुद्दे पर सटीक डेटा होना प्रभावी रणनीतियों को विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है। कई गैर सरकारी संगठन अब बाल तस्करी के बारे में डेटा संकलन की प्रक्रिया में हैं। हालांकि यह आधिकारिक डेटा नहीं है, यह सूचक के रूप में उपयोगी है।"

मेंडोंका ने कहा, "तस्करी की रिपोर्टिंग में एक वैश्विक डेटा अंतर है। तस्करी के शिकार लोगों के लिए रिपोर्ट करना आसान नहीं है, क्योंकि उनमें से कई समाज के सबसे कमजोर और हाशिए वाले वर्गों में से हैं, और एक एकीकृत डेटा संग्रह प्रणाली की कमी के कारण बहुत सारा डेटा खो जाता है।"

मेंडोंका ने कहा, “पुलिस द्वारा एकीकृत रिपोर्टिंग और पुलिस द्वारा डिजिटल डेटाबेस के उपयोग का परिणाम अधिक सटीक राष्ट्रीय संयोजन में होगा । एक बार जब पहली सूचना रिपोर्ट और चार्जशीट एक डिजिटल सिस्टम में दर्ज की जाती हैं, तो अपराधों की तस्करी की अधिक सटीक रिपोर्टें होती हैं।"

(यह लेख चाइल्ड ट्रैफिकिंग पर वर्ल्ड विजन इंडिया-एलडीवी फेलोशिप का एक हिस्सा है।)

(मल्लापुर एक वरिष्ठ विश्लेषक हैं और पालियथ एक विश्लेषक हैं । दोनों इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 11 जुलाई 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। कृपया respond@indiaspend.org पर लिखें। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार सुरक्षित रखते हैं।