मुंबई: वर्ष 2016 में दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में आत्महत्या की सबसे ज्यादा दर भारत में दर्ज की गई है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) की हाल ही में आई एक रिपोर्ट में ये बात सामनने आई है। देश में आत्महत्याओं की संख्या और उनके कारणों को दर्शाने वाले आधिकारिक आंकड़े पिछले तीन साल से सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। यही वजह है कि आत्महत्याओं की रोकथाम के लिए ना तो सही नीतियां बन पा रही हैं और ना ही इस बारे में डब्ल्यूएचओ की सिफारिशों को ठीक से लागू किया जा रहा है।

डब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में भारत में आत्महत्या की दर प्रति 100,000 लोगों पर 16.5 थी। ये दुनियाभर के औसत से भी ज़्यादा है। आत्महत्याओं के मामले में दुनियाभर का औसत 10.5 है।

रिपोर्ट में 2016 के लिए डब्ल्यूएचओ ग्लोबल हेल्थ एस्टीमेट के डेटा का उपयोग करने वाले देशों और क्षेत्रों के लिए आत्महत्या की दर प्रस्तुत की गई है। इस रिपोर्ट में भारत को दक्षिण-पूर्व-एशिया क्षेत्र और आय के हिसाब से निम्न मध्यम वर्ग आय वाले देशों में शुमार किया गया है। भारत में आत्महत्या की दर (16.5) इन दोनों ही पैमानों पर औसत से अधिक है। दक्षिण-पूर्व एशिया में आत्महत्या की औसत दर 13.4 है जबकि निम्न मध्यम वर्ग आय वाले देशों में ये दर 11.4 है।

महिलाओं की आत्महत्या के मामले में भारत दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में सबसे ऊपर (14.5) है। हालांकिपुरुष आत्महत्या दर के मामले में भारत ज़रूर इस क्षेत्र में तीसरे नम्बर पर है मगर 18.5 की दर महिला आत्महत्या दर और संयुक्त आत्महत्या दर से ज़्यादा थी। पुरुष आत्महत्या दर के मामले में श्रीलंका (23.3) पहले और थाईलैंड (21.4) दूसरे नम्बर पर थे।

डब्ल्यूएचओ की सिफारिशें

आत्महत्या की दर दुनियाभर के औसत से अधिक होने के बावजूद, भारत में आत्महत्याओं की रोकथाम के लिए डब्ल्यूएचओ की सिफारिशों पर काम नहीं हुआ है। 2014 में, डब्ल्यूएचओ ने आत्महत्याओं की रोकथाम के लिए कईं सुझाव और सिफ़ारिशों के साथ एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में आत्महत्या की रोकथाम के लिए नीचे दिए गए चार चरणों के सार्वजनिक स्वास्थ्य मॉडल का प्रस्ताव था:

  1. निगरानी

  2. ख़तरे और बचाव के उपायों की पहचान

  3. हस्तक्षेपों का विकास और मूल्यांकन

  4. कार्यान्वयन

2014 में आई डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में परिभाषित आत्महत्या और आत्महत्या के प्रयासों के मामलों में भारत पहले चरण यानी निगरानी से आगे नहीं बढ़ पाया है। हालांकि, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 2016 में अचानक आत्महत्या के आंकड़े जारी करने बंद कर दिए। एनसीआरबी पिछले 49 साल से ये आंकड़े जारी कर रहा था। एनसीआरबी ने आखिरी बार 2015 के आत्महत्या के आंकड़े जारी किए थे, और उसके बाद से आत्महत्या के आंकड़ों को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।

किसानों की आत्महत्या

एनसीआरबी 2015 तक आत्महत्या और दुर्घटनाओं के आंकड़े, ‘एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया’(एडीएसआई) के नाम से अपनी वार्षिक रिपोर्ट में जारी करता आया था। इस रिपोर्ट में देश में आत्महत्या से होने वाली मौतों की कुल संख्या को उनके कारण, साधन, व्यवसाय, शैक्षिक स्थिति और आर्थिक स्थिति के आधार पर प्रस्तुत किया है।

2014 और 2015 में, एनसीआरबी ने कृषि क्षेत्र से सम्बंधित आत्महत्याओं के आंकड़े देने शुरु किेये थे। इसमें बताया गया था कि देश में, 2014 और 2015 में, आत्महत्या करने वाले किसानों में पांच राज्यों-महाराष्ट्र, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक- के किसानों की संख्या 90 फीसदी थी।

लेकिन इसके दो साल बाद ही, एनसीआरबी ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट को प्रकाशित करना -बंद कर दिया।

सरकार ने संसद को बताया कि एनसीआरबी ने 2016 के लिए पेश किए गए आंकड़ों में विसंगतियां पाईं और राज्यों को डेटा का पुन: सत्यापन करने के लिए कहा था।

निगरानी के तरीके

हालांकि एनसीआरबी का दावा है कि 2016 की एडीएसआई रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जा रहा है, लेकिन डब्लूएचओ की आत्महत्या की रोकथाम की सिफारिशों के पैमाने पर इसे देखा जाए तो भारत का डेटा संग्रह अपर्याप्त है।

डब्लूएचओ की 2014 की रिपोर्ट ने सुझाव दिया था कि देशों को कई स्रोतों से डेटा की निगरानी करनी चाहिए जैसे कि जन्म और मृत्यु पंजीकरण की संख्या, अस्पताल आधारित सिस्टम और सर्वेक्षण। लेकिन एनसीआरबी अपनी एडीएसआई रिपोर्ट के लिए सिर्फ़ एक ही स्रोत से आत्महत्या के आंकड़े इकट्ठा करता है। वह स्त्रोत है राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस विभाग।

आत्महत्या के आंकड़ों को तैयार करने के लिए प्रमाणिक और वास्तविक पंजीकरण डेटा के उपयोग के दावे के बावजूद डब्लूएचओ की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में मृत्यु पंजीकरण डेटा डब्लूएचओ के मानकों पर खरा नहीं उतरता है।

दुनियाभर मे्ं आत्महत्या के आंकड़ों पर आई इस रिपोर्ट में प्रत्येक देश के मृत्यु पंजीकरण डेटा की गुणवत्ता को पांच के स्केल पर रखा गया है। एक उच्चतम स्कोर और पांच सबसे कम स्कोर। भारत को चौथे पायदान पर रखा गया है। गुणवत्ता के मानक पर भारत के डेटा को ‘अनुपयोगी या अनुपलब्ध’ करार दिया गया।

भारत राष्ट्रीय स्तर पर आत्महत्या के प्रयासों के आंकड़ों का संकलन और प्रकाशन भी

नहीं करता है। डब्ल्यूएचओ ने आत्महत्या के प्रयासों पर नजर रखने के लिए अस्पताल आधारित प्रणालियों और सर्वेक्षणों का उपयोग करने की सिफारिश की थी।

वर्ष 2014 डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले कभी आत्महत्या का प्रयास, आत्महत्या के लिए एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण कारण हो सकता है। आत्महत्या के प्रयासों के रिकॉर्ड रखने में असफल रहने से कई तरह के जोखिम सामने सकते हैं। डब्लूएचओ का अनुमान है कि जब कोई एक व्यक्ति आत्महत्या करता है तो उसी दरमियान 20 अन्य लोग आत्महत्या का प्रयास कर रहे होते हैं।

राष्ट्रीय रणनीति की जरूरत

डब्ल्यूएचओ की सिफारिश है कि आत्महत्या की दर को कम करने के लिए, भारत को पहले उच्च गुणवत्ता वाले प्रमाणिक डेटा को इकट्ठा करना चाहिए और एक व्यापक निगरानी प्रणाली बनानी चाहिए।

प्रमाणिक आंकड़ों के साथ एक राष्ट्रीय रणनीति और कार्य योजना से ही आत्महत्या की रोकथाम के लिए चार चरण वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य मॉडल को बेहतर दिशा मिल सकती है।

हालांकि भारत ने एक राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम लागू किया है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इसका कोई रेस्पॉंस सिस्टम नहीं है। एक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे के रूप में आत्महत्या के बारे में जागरूकता बढ़ाने और आत्महत्या की रोकथाम के लिए एक राष्ट्रीय नीति की ज़रूरत है। जैसा कि भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने भी 2018 में इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट सकाइट्री के एक कार्यक्रम में अपने संबोधन में कहा था।

(अहमद केंट विश्वविद्यालय से आर्किटेक्चर में ग्रैजुएट हैं और इंडियास्पेंड से जुड़ी हैं।)

यह आलेख मूलत: अंग्रेजी में 04 अक्टूबर 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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