मुंबई: मई-जुलाई, 2018 (प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के अंतिम वर्ष की शुरुआत ) के दौरान सर्वेक्षण किए गए 70 फीसदी से ज्यादा भारतीयों ने कहा कि रोजगार के अवसरों की कमी और बढ़ती कीमतें भारत की सबसे प्रमुख चुनौतियां हैं, जैसा कि हाल ही में जारी किए गए ‘न्यू प्यू रिसर्च सेंटर’ सर्वेक्षण में कहा गया है।

2017-18 के लिए एक लीक नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में बेरोजगारी की दर 45 वर्ष के उच्च स्तर पर होने का अनुमान है और यह शहरी क्षेत्रों में 7.8 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्रों में 5.3 फीसदी तक पहुंच गया है।

यह किसी तरह से यह बताने के लिए हो सकता है कि देश में " जैसे हैं, हम खुश हैं" मानने वालों का अनुपात पिछले वर्ष के बाद से 15 प्रतिशत अंक (2017 में 70 फीसदी से 2018 में 55 फीसदी) तक गिर गया है।

यह 2015 के संतुष्टि स्तरों की ओर लौटाता है ( नरेंद्र मोदी की सरकार के पहले पूरे वर्ष के बाद ) लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार के पिछले दो वर्षों की तुलना में स्तर अभी भी काफी उच्च है, जैसा कि 2,591 लोगों के सर्वेक्षण के आधार पर रिपोर्ट में कहा गया है। भ्रष्ट अधिकारी, आतंकवाद और अपराध पहचानी जाने वाली और प्रमुख समस्याएं हैं। 60 फीसदी से अधिक लोगों ने कहा कि यह एक 'बहुत बड़ी समस्या' है। निष्कर्षों में पिछले साल की स्थिति में बदलाव नहीं हुआ है, जब देश के सामने सबसे बड़ी समस्या रोजगार के अवसरों की कमी थी।

नौकरियों और मुद्रास्फीति -बड़ी समस्याएं

थोड़ी प्रगति, बिगड़ती स्थिति

सर्वेक्षण में पाया गया कि रोजगार, भ्रष्टाचार और मुद्रास्फीति जैसे प्रमुख मुद्दों पर, उत्तरदाताओं में से अधिकांश ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में थोड़ा सुधार हुआ है, जो कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के कार्यकाल की अवधि है।

नौकरियां: करीब 21 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में रोजगार की स्थिति में सुधार हुआ है। जबकि 67 फीसदी ने कहा कि यह खराब हो गया है। भारत के सिकुड़ते रोजगार के अवसरों को तीन चौथाई आबादी ने एक महत्वपूर्ण चिंता के रूप में देखा है। 64 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि नौकरियों की तलाश में प्रवासन भी, देश को प्रभावित करने वाली एक और बड़ी समस्या है।

भ्रष्टाचार: भ्रष्टाचार को रोकने के लिए दृष्टिकोण समान थे। 65 फीसदी ने कहा कि स्थिति बदतर हो गई है और 21 फीसदी ने कहा कि इसमें सुधार हुआ है। वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती कीमतें एक और प्रमुख चिंता का विषय है। 65 फीसदी ने कहा कि पांच साल पहले की तुलना में मुद्रास्फीति तीव्र हुई है।

2014 से नौकरी, भ्रष्टाचार और मुद्रास्फीति बद्तर

असमानता:

धन की खाई, सांप्रदायिक संबंधों और वायु प्रदूषण पर, सर्वेक्षण में कम से कम एक चौथाई ने कहा कि स्थिति में सुधार हुआ है। आनुपातिक रूप से, अधिक लोगों ने कहा कि नौकरियों, मुद्रास्फीति और भ्रष्टाचार की तुलना में इन मुद्दों पर सुधार हुआ है। फिर भी, बहुमत ने कहा कि चीजें बदतर हो गई हैं।

सिर्फ आधे से अधिक (54 फीसदी) ने कहा कि भारत में अमीर और गरीब के बीच की खाई पिछले पांच वर्षों में चौड़ी हो गई है। 27 फीसदी ने कहा कि यह संकुचित हो गया है।

असमानता पर 2019 की ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, सबसे अमीर 1 फीसदी भारतीयों के पास मौजूद संपत्ति में केवल एक वर्ष में 15 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। 2018 में 58 फीसदी से 2019 में 73 फीसदी तक, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 24 जनवरी, 2019 को बताया था।

वायु प्रदूषण:

लगभग 51 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि 2014 के बाद से वायु की गुणवत्ता में गिरावट आई है। 27 फीसदी ने कहा कि वायु प्रदूषण में सुधार हुआ है।

टॉप 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 15 अब भी भारत में हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 5 मार्च, 2019 को बताया था।

सांप्रदायिकता:

करीब आधे उत्तरदाताओं (45 फीसदी) ने कहा कि 2014 के बाद से सामुदायिक रिश्ते खराब हो गए हैं, जबकि 28 फीसदी ने कहा कि स्थिति में सुधार हुआ था।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक 2015 में सांप्रदायिक दंगों की संख्या 243 फीसदी बढ़ी है। 2015 में 703 से बढ़कर 2016 में 869 हो गई है। भारत में 2017 और 2018 के लिए वार्षिक अपराध की रिपोर्ट जारी होने के साथ, पिछले दो वर्षों के रुझान स्पष्ट नहीं हैं।

भेदभाव: रिपोर्ट में कहा गया है कि राजनीतिक स्पेक्ट्रम के दोनों ओर काफी अलग-अलग विचार देखने को मिलते हैंऔर देश की दिशा और भारत के सामने आने वाली चुनौतियों पर एक निश्चित रूप से पक्षपातपूर्ण कार्रवाई" हुई है।

उदाहरण के लिए, विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस) पार्टी के समर्थकों का मानना ​​है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थन की तुलना में, नौकरी के अवसर पिछले पांच वर्षों में खराब होने की संभावना 21 प्रतिशत अधिक है।

पक्षपातपूर्ण रवैया समान रूप से धन असमानता, भ्रष्टाचार, आतंकवाद और सांप्रदायिक संबंधों के मुद्दों मेंर पाया जाता है। बीजेपी समर्थक 17 प्रतिशत अंक कम सोच सकते हैं कि असमानता और अधिक हो गई है, और 12 प्रतिशत अंक कम यह कहने की संभावना है कि मोदी सरकार के तहत भ्रष्टाचार बदतर हो गया है, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है।

भारत का लोकतंत्र कितनीच्छी तरह काम कर है?

भारत के आर्थिक स्वास्थ्य, सुरक्षा और वायु गुणवत्ता पर चिंता के बीच, भारत के लोकतांत्रिक प्रदर्शन के प्रति मिश्रित प्रतिक्रिया है। रिपोर्ट में कहा गया है, "भारतीयों ने चुनाव और निर्वाचित अधिकारियों के बारे में मजबूत आवाज उठाई है।" 64 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि अधिकांश राजनेता भ्रष्ट हैं और 58 फीसदी ने कहा कि चुनावों के बाद कुछ भी नहीं बदलता है।

33 फीसदी से अधिक ने कहा कि निर्वाचित अधिकारी वास्तव में परवाह करते हैं कि आम लोग क्या सोचते हैं। 54 फीसदी ने माना कि अधिकांश लोग उन क्षेत्रों में रहते हैं जहां रात में घूमना बहुत खतरनाक है, जो आधे से अधिक आबादी के बीच सुरक्षा के बारे और कानून के शासन के बारे में चिंताओं के संकेत देते हैं।

ये दृष्टिकोण समझा सकते हैं कि 54 फीसदी से अधिक लोगों ने यह क्यों नहीं कहा कि वे लोकतंत्र से 'बहुत संतुष्ट' हैं। यह एक साल पहले के 79 फीसदी से नीचे है, यानी 25 प्रतिशत अंकों की गिरावट हुई है।

फिर भी, 58 फीसदी ने कहा कि मुफ्त भाषण सुरक्षित है और 59 फीसदी ने कहा कि उनका मानना ​​है कि अधिकांश लोगों के पास अपने जीवन स्तर में सुधार करने के लिए ‘एक अच्छा मौका’ है।

हालांकि, आधे से कम ने कहा कि अदालत प्रणाली सभी के साथ उचित व्यवहार करती है (47 फीसदी), एक बड़े अनुपात (37 फीसदी) ने यह कहा कि उन्हें विश्वास नहीं था कि ऐसा नहीं है।

मोदी के नेतृत्व के विदेशी मामले और वैश्विक धारणाएं

75 फीसदी से अधिक उत्तरदाताओं ने पाकिस्तान को एक गंभीर खतरे के रूप में देखा, और केवल 7 फीसदी ने कहा कि पाकिस्तान राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कोई खतरा नहीं है।

हालांकि, यह सर्वेक्षण कश्मीर में पुलवामा आतंकी हमले, जिसमें 40 से अधिक सीआरपीएफ अधिकारी मारे गए थे, से नौ महीने पहले किया गया था। ये आंकड़े हमले के बाद की धारणाओं और भारत की बाद की सैन्य प्रतिक्रिया के बाद किसी भी बदलाव के लिए जिम्मेदार नहीं हैं, जैसा कि रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है।

पाकिस्तान एक खतरा

पुलवामा हमले से पहले, 53 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि कश्मीर की स्थिति पिछले पांच वर्षों में खराब हो गई है। केवल 18 फीसदी को विश्वास था कि इसमें सुधार हुआ था। इसके अलावा, 58 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि सरकार को पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करनी चाहिए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, इस मुद्दे पर पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण स्पष्ट है। प्रधानमंत्री पर कम विश्वास की तुलना में ‘नरेंद्र मोदी में विश्वास’ व्यक्त करने के साथ, 70 फीसदी उत्तरदाताओं ने पाकिस्तान को खतरे के रुप में देखा है। मोदी के लिए कम अनुकूल दृष्टिकोण रखने वालों में- 51 फीसदी, ने पाकिस्तान को खतरे के रूप में देखा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधान मंत्री मोदी के कार्यकाल में भारत की अंतर्राष्ट्रीय धारणाएं काफी हद तक स्थिर बनी हुई हैं।

ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और जापान सहित कई देशों ने 2014 और 2018 के बीच भारत के प्रति सुधार के दृष्टिकोण को दर्ज किया, जो कि फिलीपींस में सबसे अधिक 13 प्रतिशत वृद्धि है। अमेरिका और जापान दोनों ने ‘नगण्य’ पांच प्रतिशत-बिंदु की गिरावट दर्ज की है।

इस बात में कुछ विरोधाभास है कि कैसे भारतीय अपने देश की स्थिति को विश्व मंच पर देखते हैं, और भारत को व्यापक समूहों द्वारा कैसे देखा जा रहा है। हालांकि 56 फीसदी भारतीय उत्तरदाताओं ने कहा कि उनका देश अब वैश्विक मामलों में अधिक भूमिका निभा रहा है। 26 सर्वेक्षण किए गए देशों में केवल 28 फीसदी से अधिक लोगों ने औसत ने सहमति व्यक्त की।

हालांकि, कई धनी देशों में बड़े समूहों ने कहा कि भारत की भूमिका बढ़ रही है, जैसे कि फ्रांस (49 फीसदी), जापान (48 फीसदी), दक्षिण कोरिया (48 फीसदी), स्वीडन (47 फीसदी) और यूके (46 फीसदी)।

सर्वेक्षण में शामिल देशों (34 फीसदी) के अधिकांश लोगों ने कहा कि भारत की भूमिका पिछले एक दशक से समान है। इस श्रेणी में ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका, दो साथी ब्रिक्स राष्ट्र हैं, जहां बड़े समूहों (क्रमशः 32 फीसदी और 37 फीसदी) ने भारत को 10 साल पहले की तुलना में आज दुनिया में कम महत्वपूर्ण भूमिका के रूप में देखा है।

( संघेरा शोधकर्त्ता और लेखिका हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। ) यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 26 मार्च 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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