मुंबई : पिछले दस साल के आंकड़े बताते हैं कि दूसरों की मदद करने के मामले में भारत दुनियाभर के 128 देशों की लिस्ट में 82वें स्थान पर है। दसवी वर्ल्ड गिविंग इंडेक्स (डब्ल्यूजीआई) में ये बात सामने आई है ।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, एक तिहाई भारतीयों ने किसी अजनबी की मदद की, चार में से एक ने पैसे दान किए और पांच में से एक ने अपना समय दूसरों की मदद में लगाया। रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग कम होने की वजह, परिवार, समुदाय और धार्मिक कामों में अनौपचारिक रूप से दी गई मदद को बताया गया है। रिपोर्ट में परोपकार में दान करने के लिए और अधिक औपचारिक तरीकों की सिफारिश की गई है।

पिछले 9 साल (2009-2018) में 128 देशों के 13 लाख लोगों का सर्वे करने के बाद अक्टूबर 2019 में ये रिपोर्ट ऑनलाइन प्रकाशित की गई। सर्वे के दौरान लोगों से पूछा गया कि क्या उन्होंने किसी अजनबी की मदद की है, परोपकार के काम में पैसे दान किए हैं या पिछले महीने में दूसरों की मदद में अपना समय दिया है? सर्वे में गैलप वर्ल्ड पोल डेटा का इस्तेमाल किया गया था। ये सर्वे, यूनाइटेड किंगडम की चैरिटी एड फाउंडेशन (सीएएफ), की तरफ़ से कराया गया। सीएएफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मदद करने वाली संस्थाओं और परोपकार करने वालों की सहायता करता है।

इंडेक्स में भारत की रैंकिंग में काफ़ी उतार-चढ़ाव रहा है। भारत 2010 में सबसे कम 134वें और पिछले साल सबसे अच्छे 81वें स्थान पर रहा। इस साल की रिपोर्ट में सभी देशों का पिछले 10 साल के आंकड़े दिये गए हैं। इस साल डब्ल्यूजीआई में, भारत का कुल स्कोर 26% था।

Source: World Giving Index 2019 report

भारत और विश्व

रिपोर्ट में कहा गया है कि इंडेक्स में शुरु के 10 देशों में से सात दुनिया के सबसे धनी देश हैं। लेकिन फिर भी, दुनियाभर में उदारता कम हो रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों की मदद करने के लम्बे इतिहास वाले अमेरिका, कनाडा और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में व्यक्तिगत तौर पर दान देने की आदत अब कम हो गई है।

सीएएफ़ इंडिया की प्रमुख मीनाक्षी बत्रा ने बताया, "टॉप रैंकिंग वाले देशों में आमतौर पर दान की एक मज़बूत संस्कृति होती है, या अधिक परिपक्वता होती है।" मीनाक्षी ने आगे कहा, "व्यक्तियों के पास दान करने के लिए अधिक संसाधन हैं और औपचारिक संगठनों को दान देने के लिए इन्फ़्रास्ट्रक्चर है।"

Source: World Giving Index 2019 report

भारत का 26% डब्ल्यूजीआई स्कोर, अमेरिका के 58% के आधे से भी कम है। इस लिस्ट में अमेरिका सबसे ऊपर है जबकि चीन, 16% के स्कोर के साथ, इंडेक्स में सबसे नीचे है। एशिया के इस सबसे बड़े देश को इंडेक्स के तीनों मानकों (अजनबी की मदद करने, धन दान करने और स्वयं सेवा करने) में सबसे कम स्कोर मिला है।

दूसरी तरफ़, न्यूज़ीलैंड अकेला देश है, जो तीनों मानकों के स्कोर में पहले 10 देशों में शामिल है।

भारत, एशिया की स्पीड से मेल नहीं खाता

जिन 10 देशों ने अपनी रैंकिंग में सुधार किया है उनमें से 5 देश एशिया के हैं। इंडोनेशिया ने अपनी रैंकिंग में सबसे अधिक सुधार किया है। पैसे दान करने और स्वयं सेवा के मामलों में इंडोनेशिया, शुरु के 10 देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है। स्वयं सेवा के पैमाने पर श्रीलंका ने दुनिया में सबसे ज़्यादा स्कोर (46%) हासिल किया है जो स्वयं सेवा में भारत के स्कोर (19%) का दोगुने से भी ज़्यादा है।

रिपोर्ट में, रैंकिंग में बढ़ोत्तरी के पीछे सांस्कृतिक कारण बताए गए हैं। उदाहरण के लिए, म्यांमार में ज़्यादातर लोग बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं, जिनमें से 99% लोग थेरावादा शाखा के अनुयायी हैं जिसका मुख्य संदेश ही दान करना है। श्रीलंका में भी थेरावादा बौद्धों की आबादी काफ़ी ज़्यादा है।

इसी तरह, दुनिया में मुसलमानों की सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश, इंडोनेशिया में दान, ज़कात के रूप में एक धार्मिक दायित्व है ।

देशों के आर्थिक विकास की वजह से भी उनकी रैंकिंग बेहतर हुई है। हरियाणा के सोनीपत में अशोका यूनिवर्सिटी के सेंटर फ़ॉर सोशल इम्पेक्ट एंड फ़िलेंथ्रोपी के इंग्रिड श्रीनाथ ने कहा, " इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि ये एशियाई देश अपनी बढ़ती आर्थिक संपन्नता की वजह से अपनी रैंकिंग सुधार रहे हैं।"

उदारता के मामले में भारत, दक्षिण एशिया के कई देशों से भी पिछड़ गया है। भारत इस इंडेक्स में अपने पड़ोसी देशों, पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका से भी पीछे है। श्रीनाथ ने कहा कि हाल के दशकों में भारत के आर्थिक विकास का फ़ायदा बहुत कम लोगों को मिला है, जो ये समझाने के लिए काफ़ी है कि परोपकार के मामले में भारत, बाकी एशियाई देशों के समान क्यों नहीं बढ़ पा रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले एक साल मे कम आय वाले परिवारों के दान या मदद करने की सम्भावना (69%) उन परिवारों के मुक़ाबले कम है, जिनकी घरेलू आमदनी 1.7 लाख रुपये (~ $ 2,400) महीने से अधिक (82%) है। सीएएफ इंडिया की मीनाक्षी ने बताया, "इस अध्ययन में सिर्फ़ इस बात को शामिल किया गया है कि कोई दान दे रहा है या नहीं, किसने कितना दान दिया इस बात का हिसाब नहीं रखा गया है।"

श्रीनाथ ने कहा, "दूसरे देशों की तुलना में भारत में धर्म, वर्ग और जाति के मामले में अधिक दरारें हैं। संभव है कि ये विभाजन लोगों का झुकाव राष्ट्रीय परोपकार की तरफ़ कम कर देते हों।"

दान की अंडर-रिपोर्टिंग

मीनाक्षी ने कहा, "भारत में एक-दूसरे की मदद करने और सहायता करने की एक मज़बूत परंपरा है।" सीएएफ़ ग्लोबल अलायंस की भारत पर आधारित इंडिया गिविंग रिपोर्ट के मुताबिक, ज़्यादातर भारतीयों (64%) ने कहा कि वे ज़रूरतमंद लोगों और परिवारों को या फिर चर्च या धार्मिक संगठनों को सीधे पैसा देते हैं। गैर-लाभकारी या धर्मार्थ संगठनों को देने वाले 58% थे। सीएएफ़ ग्लोबल अलायंस, परोपकार और सिविल सोसायटी में काम करने वाले संगठनों का एक नेटवर्क है।

इसके अलावा, भारत में धार्मिक दान के 500 से ज़्यादा पारंपरिक तरीके हैं। जैसे, हिंदू दान और उत्सर्ग, इस्लामी ज़कात , खुम्स और सदका । मीनाक्षी ने कहा, "ये तरीके इंडेक्स में दिखाई नहीं दे सकते क्योंकि भारतीय इसे एक पारिवारिक या धार्मिक दायित्व मानते हैं। उदाहरण के लिए, भारतीयों के लिए पूजा स्थलों के बाहर ग़रीबों को खाना खिलाना, या धर्मपरायण और संन्यासियों को भोजन परोसना आम बात है। सर्वे का जवाब देने वाले लोगों ने इसे दान के रूप में नहीं माना होगा, क्योंकि वे इसे अपना कर्तव्य समझते हैं।”

एक ख़ास बात ये है कि 38% तक भारतीयों ने कहा कि अगर उन्हें ये पता हो कि उनके पैसे का इस्तेमाल कैसे होगा तो वे और ज़्यादा दान करेंगे। 32% ने कहा कि अगर उनके दान के पैसे ख़र्च करने में ज़्यादा पारदर्शिता रहेगी तो वे और ज़्यादा दान करेंगें । सीएएफ़ के बेन रसेल ने कहा, "संगठित गैर-लाभकारी संगठनों में क्षमता है कि वे दान के और ज़्यादा औपचारिक विकल्प प्रदान कर सकें।"

अरबपतियों में दान देने की इच्छा कम होती है

ऑक्सफैम इंडिया की इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में, भारत के सबसे धनी 1% लोगों की संपत्ति 20,913 अरब रुपये (303 बिलियन डॉलर) बढ़ी। ये रकम उस वित्त वर्ष के केंद्र सरकार के कुल बजट के बराबर थी।

इस वर्ष की शुरुआत में इंडियास्पेंड ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि भारत के सबसे ज़्यादा अमीरों में परोपकार की गतिविधियां, उनकी सम्पत्ति में हुई बढ़ोत्तरी की तुलना में काफ़ी धीमी हैं। अल्ट्रा-हाई नेट वर्थ वाले लोगों (25 करोड़ रुपये से ज़्यादा सम्पत्ति वाले) के बड़े योगदान (दस करोड़ रुपये से ज़्यादा) में 2014 के मुक़ाबले, 4% की कमी आई है ।

पिछले छह साल में भारत का सबसे कम डब्ल्यूजीआई स्कोर (2018 में 22%), उसी साल हुआ जिस साल देश में 121 अरबपतियों की रिकॉर्ड संख्या सामने आई थी, चीन और अमेरिका के बाद सबसे ज़्यादा।

( एल्फ़ी, यूनिवर्सिटी ऑफ़ मैनचेस्टर से ग्रेजुएट हैं और इंडियास्पेंड के साथ इन्टर्न हैं।)

(ये रिपोर्ट मूलत: अंग्रेज़ी में 11 नवंबर 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुई है।)

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