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“बिहार चुनाव में पुरुषों के मुकाबले महिला मतदाताओं की संख्या अधिक”

“बिहार में महिला मतदाताओं की प्रतिशत सबसे कम है”

पहली लाइन भारतीय चुनाव पर्यवेक्षकों के लिए एक परिचित शीर्षक हो सकता है लेकिन शायद दूसरी लाइन के लिए यह नहीं कह सकते हैं। दोनों वाक्य न तो गलत है और न ही असंगत है।

बिहार में पांच चरणों की चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से नई सरकार का जन्म होने के लिए पूरी तरह से तैयार है। इसी बीच राजनीतिक विश्लेषकों ने चुनावी नतीजों का अनुमान उसी प्रकार लगाना शुरु कर दिया है जिस प्रकार किसी गर्भवती महिला के बढ़े हुए वज़न एवं पेट के आकार और आकृति देख कर होने वाले बच्चे के लिंग का अनुमान लगाते हैं।

मतदान के पहले चार चरण में, पुरुषों के मुकाबले महिला मतदाताओं की प्रतिशत अधिक दर्ज की गई है। इससे बड़ी संख्या में महिलाओं का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को समर्थन देने का अनुमान लगाया जा रहा है। महिला मतदाताओ की संख्या पुरुषों से अधिक होने का कारण को जानने के लिए काम के लिए बिहारी पुरुषों का राज्य से बाहर जाना एवं चुनाव में वोट देने के लिए न आना, बिहारी महिलाओं के सशक्तिकरण के इच्छापत्र, बेहतर कानून -व्यवस्था की स्थिति, निर्वाचन आयोग की उच्च दक्षता सहित कई अन्य तथ्यों की व्याख्या करने की कोशिश की गई है।

अन्य स्पष्टीकरण काफी सरल एवं रंगीन हैं – अन्य राज्यों के मुकाबले बिहार की महिलाएं राजनीति में अधिक आगे आ रही हैं।

यदि हम अंतर्निहित आंकड़ों को मानें तो इसका स्पष्टीकरण बेहद सरल है। भारत के 12 बड़े राज्यों, जहां कुल मतदाताओं में से 80 फीसदी मतदाता रहते हैं ( उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार , तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, उड़ीसा और केरल ) में से बिहार के मतदाताओं के रूप में पंजीकृत कराने वाली महिलाओं की प्रतिशत सबसे कम है।

जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, बिहार में 18 वर्ष से अधिक आयु की 77 मिलियन महिलाओं में से केवल 38.5 फीसदी महिलाओं ने मतदाता के रुप में पंजीकृत किया है। वहीं राज्य में 18 वर्ष से अधिक आयु के 41 फीसदी पुरुषों ने मतदाता सूची में पंजीकृत कराया है। यहां तक की खराब कानून एवं व्यवस्था के लिए जाने जाने वाले राज्य, उत्तरप्रेदश में भी महिला मतदाताओं की संख्या 41 फीसदी है।

मतदाता के रुप में महिलाओं की इतनी कम प्रतिशत पंजीकृत होने के साथ ये स्वीकार्य लगने लगने लगता है कि खेल में आत्म चयन तंत्र है यानि कि केवल वो महिलाएं मतदाता के रुप में पंजीकृत करती हैं जो वोट डालने के लिए उत्सुक होती हैं और वास्तव में वोट भी यही महिलाएं करती हैं।

इसलिए, पुरुषों की तुलना में महिलाओं मतदाताओं की संख्या अधिक होने के बावजूद वर्ष बिहार में हुए 2014 चुनाव के दौरान 18 वर्ष के अधिक की केवल 22 फीसदी महिलाओं ने वोट दिया था। यह आंकड़े 12 राज्यों में से सबसे कम है। गौरतलब है कि 2010 के चुनाव में केवल 22.4 फीसदी 18 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों ने वोट दिया था।

कुल मिला कर ऐसा लगता है राजस्थान के साथ बिहार में मतदाताओं के रुप में पंजीकृत महिलाओं और पुरुषों की संख्या सबसे कम है। यह स्वीकार्य है कि मतदान के आंकड़े प्रतिकूल चयनात्मक है यानि कि जो मतदान के संबंध में गंभीर है वो ही मतदान के लिए पंजीकृत करते हैं और इसलिए चुनाव में मतदान भी वो ही करते हैं।

वास्तविकता यह है कि 18 वर्ष से अधिक आयु की कुल आबादी के अनुपात के रुप में, बिहार में मतदात करने वाले पुरुषों एवं महिलाओं की संख्या कम है। इसके लिए विभिन्न स्पष्टीकरण हो सकता है लोकिन इनमें से कोई भी बेहतर कानून, पुरुष प्रवासी श्रमिकों या महिलाओं के सशक्तिकरण की व्याख्या नहीं करते हैं।

हालांकि इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि बिहार में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के मतदान की संख्या अधिक है ( जैसा कि तमिलनाडु में है ), और यह महिलाओं बहुत उत्सुक मतदाता हैं जो मताधिकार का अधिकार गंभीरता से लेती हैं लेकिन अब भी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या यह कानून व्यवस्था या बिहारी बड़े समाज का प्रतीक है।

pravchak

Note: Bars represent men/women ratio for the following: 1) population > 18, 2) registered voters, 3) actual voters. It is defined as no. of men divided by no. of women for each of the above parameters.

(यह लेख बिहार पर इंडियास्पेंड के विशेष विश्लेषण का हिस्सा है। आप इस श्रृंखला की अन्य लेख यहां पढ़ सकते हैं )

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 4 नवंबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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