नई दिल्ली: दुनिया में तीसरे नंबर का दवा सप्लायर भारत का फार्मेसी उद्योग कई तरह की समस्याओं से घिरा हुआ है। हाल ही में आई एक

रिपोर्ट में सामने आया है कि इन समस्याओं में ड्रग इंस्‍पेक्‍टरों की कमी, नियमों का उल्लंघन करने वाले दवा निर्माताओं का कोई रिकॉर्ड न होना, और कुल मिलाकर ऐसे निर्माताओं का लाइसेंस छीनने या उन्‍हें दंडित करने की क्षमता की कमी शामिल हैं। साथ ही राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के ड्रग रेगुलेटरी के बीच संवाद ना होना समस्या को और जटिल बना देता है।

ये रिपोर्ट, ‘ड्रग रेगुलेशन इन इंडिया: द वर्किंग एंड परफोर्मेंस ऑफ़ सीडीएससीओ एंड एसडीआरए’ के नाम से जारी हुई है। रिपोर्ट में ये निष्कर्ष, हाल ही में सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दायर तीन आवेदन पत्रों के जवाब, बैठकों में चर्चाओं और सर्कुलर और अन्य दस्तावेज़ों के ज़रिये निकाला गया है। ये सभी दस्तावेज़ सरकारी वेबसाइटस् पर उपलब्ध हैं। इस रिपोर्ट को वकील श्री अग्निहोत्री और सुमति चंद्रशेखरन ने संकलित किया है। नौ महीने के प्रयास के बाद गैर लाभकारी संस्था ठाकुर फ़ाउंडेशन की वेबसाइट पर अक्टूबर, 2019 में ये रिपोर्ट प्रकाशित हुई है।

इससे पहले जून, 2019 में भारतीय फार्मास्‍युटिकल उद्योग पर इकोनॉमिक टाइम्स ने भी एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीय फार्मास्‍युटिकल उद्योग में जनेरिक दवा निर्माता हावी हैं। इस उद्योग का कारोबार वर्ष 2017 में 33 बिलियन डॉलर (2.3 लाख करोड़ रुपए) का था। अगर इस उद्योग में हर साल 11 से 12% की वृद्धि होती है तो वर्ष 2030 तक इसके 120 से 130 बिलियन डॉलर (8.5 लाख करोड़ रूपए) तक पहुंचने का अनुमान है।

इंडियन फार्मास्युटिकल एलायंस और ग्‍लोबल कंसल्टेंसी फर्म मैकिनज़े की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय दवाओं के दुनिया भर में खरीदार हैं। भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग का दुनिया में मात्रा के हिसाब से तीसरा और मूल्‍य के हिसाब से 10वां स्थान है।

भारत में बनने वाली दवाओं की क्वालिटी पर चिंता की वजह से भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग की इस वृद्धि पर ग्रहण लगा हुआ है। डाउन टू अर्थ की अगस्त, 2019 में जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि यूनाइटेड स्टेट्स फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (यूएसएफडीए) ने इस साल अगस्त तक जो 38 नोटिस जारी किए हैं उनमें से 13 नोटिस भारतीय दवा कंपनियों को भेजे गए हैं। ये नोटिस दवाओं की गुणवत्ता, दूषित सक्रिय फार्मास्यूटिकल घटक, डेटा प्रबंधन और स्वच्छता के बारे में थे।

इस समस्या की चर्चा देश के अंदर भी हो चुकी है। द हिंदू बिज़नेस लाइन की जून 2019 की रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्यूरो ऑफ फार्मा पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स ऑफ इंडिया (बीपीपीआई) ने पाया कि जनवरी, 2018 से प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) के तहत कम लागत वाली जनेरिक दवाओं की आपूर्ति करने वाली 18 फार्मास्युटिकल कंपनियों की दवाओं के 25 बैच घटिया क्वालिटी के थे। प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषिध परियोजना (पीएमबीजेपी) कम कीमत पर वैकल्पिक दवा उपलब्ध कराने की सरकारी योजना है।

सिर्फ़ फ़रवरी 2018 में ही इस योजना के तहत, बीपीपीआई, कर्नाटक से इन दवाओं के चार बैच वापस मंगा चुका है। ये दवाएं कर्नाटक ड्रग रेगुलेटरी के क्वालिटी कंट्रोल में फ़ेल हो गई थीं। इसके अलावा 2017 में एक राष्ट्रव्यापी दवा सर्वेक्षण में दवाओं के 47,000 सैंपल में से 3.16% की क्वालिटी ठीक नहीं पाई गई और 0.02% सैंपल नकली पाए गए।

वकीलों के इस शोध में उन वजहों पर प्रकाश डाला गया है जिनके कारण इनमें से कुछ समस्याएं पैदा हुईं हैं। अग्निहोत्री और चंद्रशेखरन ने पाया कि कानून को सख़्ती से लागू नहीं किया गया जिससे अपराधियों को बहुत कम संख्‍या में सज़ा मिल सकी। नाम न उजागर करने की शर्त पर एक वरिष्ठ नियामक अधिकारी ने इससे असहमति जताई। उनका कहना था कि भारत में सबसे सख़्त कानून है। अगर एक दवा नकली पाई जाती है तो इसके लिए उम्रकैद भी हो सकती है। उन्होंने दावा किया कि "किसी दूसरे देश के कानून में इस तरह की सज़ा का प्रावधान नहीं है। हम दवाओं के प्रभावी रेगुलेशन के लिए काम कर रहे हैं।"

विशाल क्षेत्र और बहुत कम नियंत्रक

कानून लागू करने वाली एजेंसियों में सख़्त कानून को लागू करने की क्षमता नहीं है। ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के प्रावधानों के तहत, दवाओं के उत्पादन, बिक्री और वितरण का रेगुलेशन मुख्य रूप से राज्यों की ज़िम्मेदारी है। केंद्र में ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया (डीसीजीआई) की ज़िम्मेदारी लाइसेंस जारी करना, दवाओं की क्वालिटी सुनिश्चित करना, नई दवाओं को मंजूरी देना और क्लिनिकल ट्रायल (दवा के प्रभावों की जांच) को नियंत्रित करता है। डीसीजीआई, ड्रग टेक्निकल एडवाइज़री बोर्ड (डीटीएबी) और द ड्रग कंसलटेटिव कमेटी (डीसीसी) की सलाह पर और सेंट्रल ड्रग्स स्टेंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइज़ेशन (सीडीएससीओ) के तहत काम करता है।

इस विषय पर हेल्‍थचेक ने अक्‍टूबर, 2019 में डीसीजीआई से एक इंटरव्यू का अनुरोध किया और ईमेल के ज़रिये सवाल भेजे थे। अभी तक उनकी ओर से हमें कोई जवाब नहीं मिला है।

राज्यों की ड्रग रेगुलेटरी अथोरिटी (एसडीआरए) का काम ड्रग रेगुलेशन है और ये संबंधित राज्य के स्वास्थ्य विभाग के तहत काम करते हैं। इसमें सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी ड्रग इंस्पेक्टर की होती है। जिनका काम दवा बनाने वालों के लिए बने रेगुलेशन और नीतियों को अमल करवाना होता है।

इस संबंध में सीएसआईआर के पूर्व महानिदेशक रघुनाथ अनंत मल्शेकर की कमेटी ने ड्रग रेगुलेशन में सुधार के लिए सिफ़ारिशें की है। कमेटी ने दवा बनाने वाली हर 50 इकाइयों और 200 खुदरा विक्रेताओं पर एक ड्रग इंस्पेक्टर रखने का सुझाव दिया था।

रिपोर्ट में पाया गया है कि अधिकतर राज्यों में ड्रग इंस्पेक्टरों की संख्या पर्याप्त नहीं थी। उदाहरण के लिए गुजरात में ड्रग इंस्पेक्टरों की संख्या, अनुशंसित संख्या की आधी थी, महाराष्ट्र और पंजाब में इनकी संख्या की गई सिफारिश से एक-तिहाई थी। पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर में 84 स्‍वीकृत पदों में 15% यानि कि 13 पद खाली थे। हिमाचल प्रदेश में 22 में से छह (27%) पद खाली थे। कर्नाटक में 28 में से 15 (53%) और त्रिपुरा में 23 में से छह (26%) पद खाली पाए गए।

इतना ही नहीं रिपोर्ट में ये भी पाया गया कि केंद्रीय नियामक संस्था के पास भी पर्याप्त संख्या में ड्रग इंस्पेक्टर नहीं हैं। सीडीएससीओ में 287 पदों में से, 64 पद (22%) खाली थे।

क्षमता और प्रक्रिया का अभाव

इस रिपोर्ट में पाया गया कि एसडीआरए के तहत काम करने वाले ड्रग इंस्पेक्टरों के निरीक्षण करने की कोई समय सीमा नहीं है। मंथली इंडेक्स ऑफ़ मेडिकल स्पेशलिटीज़ के संपादक चंद्रा एम. गुलाटी ने बताया कि एक बार जब कोई दवा या ब्रांड घटिया पाया जाता है, तो ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के प्रावधानों के मुताबिक बची हुई सारी दवाइयां बाजार से वापस लेनी पड़ती हैं। सीडीएससीओ के पास इस बात का अधिकार है कि वो दवा कंपनियों को बाज़ार से दवाइयां वापस लेने का निर्देश दे, लेकिन ऐसा बमुश्किल ही हो पाता है क्योंकि दवा के बाज़ार में आने के बाद उसकी ख़ामियां पता करने में महीनों लग जाते हैं।

गुलाटी ने ईमेल के ज़रिये बताया, “जब तक कोई अधिसूचना जारी होती है, उसके पहले ही ज़्यादातर दवाओं के स्टॉक बिक चुके होते हैं। खुदरा बाज़ार से स्टॉक, अक्सर ढीलेढाले कार्यान्वयन के कारण वापस नहीं लिया जाता है। अपर्याप्त इंस्पेक्टर, सहायकों की कमी और भ्रष्टाचार समस्या को और बढ़ा देता है।"

इसके अलावा रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र किया गया है कि सीडीएससीओ वास्तविक प्रतिबंध को लागू करने में सक्षम नहीं है। "फ़िलहाल, ये सुनिश्चित करने के लिए कि दवाएं वापस लेने का आदेश लागू हो, कोई व्यवस्था नहीं है। जुलाई 2018 के प्रस्ताव में, एक असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर ख़राब दवाओं की बाज़ार से वापसी सुनिश्चित करने के लिए और इंटेलीजेंस यूनिट बनाने के लिए एक दूसरे असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर की मांग की गई थी।

क्षमता की कमी के कारण ज़िम्मेदारी में चूक हो सकती है, जैसा कि हाल ही में दिल में जलन की रैनिटिडिन नाम की एक दवा का मामला प्रकाश में आया था। यूएसएफडीए ने 13 सितंबर, 2019 को बताया था कि रैनिटिडिन के शुरुआती परीक्षणों में दूषित करने वाले एन-नाइट्रोसोडायमेथोलामीन (एनडीएमए) की एक छोटी मात्रा पाई गई है, जिससे कैंसर हो सकता है।

अमेरिकी एजेंसी, यूएसएफडीए की इस घोषणा के बाद, यूरोपीयन मेडिसिन्स एजेंसी ने कहा कि वे दवा की सुरक्षा प्रोफ़ाइल का अध्ययन कर रहे हैं, यहां तक ​​कि कनाडा और फ्रांस के रेगुलेटर्स ने दवा को बाजार से हटाने का आदेश भी जारी कर दिया।

लेकिन भारत में डीसीजीआई के प्रमुख वी. जी. सोमानी ने ये काम दवा निर्माताओं पर छोड़ दिया कि मरीज़ों की सुरक्षा सुनिश्चित करें। डीसीजीआई ने, सितंबर के अंतिम सप्ताह में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के दवा रेगुलेटर्स को जारी एक निर्देश में रैनिटिडिन दवा बनाने वालों को "अपने उत्पादों को सत्यापित करने और मरीज़ों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय करने" के लिए कहा।

बाद में डीसीजीआई ने राज्यों के ड्रग कंट्रोलर्स से कहा कि वे रेनिटिडिन के प्रमुख निर्माताओं से सैम्पल लेकर कोलकाता की सेंट्रल ड्रग लेबोरेटरी में परीक्षण के लिए भेजें।

वैश्विक स्तर पर जालसाज़ी के ख़िलाफ़ काम करने वाली संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली गैरलाभकरी संस्‍था ऑथंटिकेशन सॉल्यूशन प्रोवाइडर्स एसोसिएशन के प्रमुख नकुल पसरीचा ने बताया कि देश में दवाओं की बिक्री के लिए कोई नियम नहीं है। उन्होंने कहा कि दवाओं की जालसाज़ी रोकने के लिए 2018 में डीटीएबी ने टॉप 300 भारतीय फार्मास्युटिकल कम्पनियों को कुछ सिफ़ारिशें की थीं। जिसमें एसएमएस आधारित ऑथंटिकेशन कोड के साथ प्रत्येक उपभोक्ता-स्तर पैक के लिए एक यूनीक कोड के एप्‍लीकेशन का प्रावधान था। लेकिन इनका अमल कंपनियों के विवेक पर छोड़कर इसे अप्रभावी कर दिया गया। उन्होंने कहा, "चूंकि यह स्वैच्छिक है, इसलिए इसे अपेक्षा के अनुरूप अपनाया नहीं जा सका।"

असंगत दंडात्मक कार्रवाई

ड्रग इंस्पेक्टर को किसी भी दवा को नकली या गुणवत्ता के अनुरूप न होने की घोषणा करने का अधिकार है। नकली होने की दशा में इसे आपराधिक इरादा माना जाता है। इसके बाद राज्य की ड्रग रेगुलेटरी अथोरिटी पर निर्भर करता है कि वो मुकदमा दर्ज कराए, दवा वापस लेने का आदेश दे और अगर कम्पनी आदेश का पालन नहीं करती है तो उसका लाइसेंस रद्द कर दे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर कम्पनी आदेश का पालन नहीं करती है तो उसकी सज़ा तय करना पूरी तरह से राज्य रेगुलेटरी अथोरिटी के विवेक पर है। कुछ मामलों में, घटिया क्वालिटी वाली दवाओं और नकली दवाओं के लिए एक ही तरह की सजा निर्धारित की गई।

इसके अलावा रिपोर्ट में इस बात की तरफ़ भी इशारा किया गया है कि न तो ड्रग इंस्‍पेक्‍टर और न ही एसडीआरए के लिए ये ज़रूरी है कि वे आदेश ना मानने वाले भ्रष्ट और कानून का उल्लंघन करने वाले दवा निर्माताओं का रिकॉर्ड रखें। दवा वाले या खुदरा दवा विक्रेता के खिलाफ विभागीय कार्रवाई का कोई रिकॉर्ड या डेटाबेस भी नहीं था।

रिपोर्ट के लेखकों के अनुसार रिकॉर्ड्स की कमी या रिकॉर्ड्स न रखे जाने का मतलब है कि कानून तोड़ने वालों को शायद ही कभी सजा मिलेगी। आरटीआई से मिले जवाबों में भी पाया गया है कि डेटा की कमी के कारण बार-बार नियमों का उल्लंघन करने वालों की पहचान करना मुश्किल है। अप्रैल 2015 से जनवरी 2019 तक के चार साल में, मिज़ोरम ने 131 मामलों में से सिर्फ चार के ख़िलाफ़ अभियोग (2.8%) चलाया, ओडिशा ने 876 मामलों में से सिर्फ़ छह (0.6%) के ख़िलाफ़ और झारखंड ने 1723 मामलों में से सिर्फ़ सात (0.4%) के ख़िलाफ़ अभियोग दर्ज किया।

Inspections & Prosecutions By State Drug Regulatory Authorities
State / UT inspections Non-compliant Prosecutions Prosecutions (As % of non-compliant cases)
Jammu and Kashmir 27,520 0 0 0%
Jharkhand 8,966 1723 7 0.4%
Uttar Pradesh 907 0 0 0%
Odisha 6,260 876 6 0.6%
Mizoram 1,205 141 4 2.8%
Telangana 16,575 3,853 0 0%
Uttarakhand 1,858 0 0 0%
Andaman and Nicobar 120 0 0 0%
Daman and Diu 407 19 0 0%

Source: Drug Regulation in India: The Working and Performance of CDSCO and SDRAs report, 2019

अगर कानून का उल्लंघन करने वाली दवा कंपनियों का एक डेटाबेस होता, तो मुकदमा चलने पर उन्हें कठोर दंड मिलता, बजाय इसके कि अपराधी और ख़ास तौर पर बार-बार अपराध करने वाले सज़ा से बच निकल जाते।

सूचना की कमी

रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र और राज्यों के बीच और एक राज्य की दूसरे राज्यों के साथ, कम या बिल्कुल भी सूचना साझा नहीं होने से ‘सूचना विषमता’ की स्थिति पैदा हो जाती है। रिपोर्ट में कहा गया है, “केंद्रीय प्राधिकरण के पास जो जानकारी है, वह न तो पर्याप्त रूप से साझा की जाती है और न ही राज्य स्तर पर अधिकारियों को बताई जाती है, जिनसे नीति को लागू करने की उम्मीद की जाती है। यह अभियोजन की संख्या और गुणवत्ता को प्रभावित करता है, और कुल मिलाकर दवा उद्योग की स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।"

चंद्रशेखरन ने कहा कि सूचना के साझा ना होने की वजह से, एक जोखिम-आधारित रेगुलेटरी तंत्र (पिछले अनुपालन, उत्पाद जोखिम और उत्पादन स्थल और ज़्यादा जोखिम वाली सुविआधों का प्राथमिकता स्तर पर निरीक्षण) को भारत में लागू करना असंभव हो जाता है।

यही कारण है कि केंद्र और राज्यों के बीच सूचना का आदान-प्रदान बहुत महत्वपूर्ण है। चंद्रशेखरन ने कहा, "न केवल सूचना स्पष्ट होनी चाहिए बल्कि ज़िम्मेदारी और जवाबदेही भी तय की जानी चाहिए। और इसकी काफी गुंजाइश है।"

वर्ष 2011 में जॉनसन एंड जॉनसन के दोषपूर्ण ‘हिप इम्पलांट’ के खिलाफ कार्रवाई करने वाले महाराष्ट्र के फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) के पूर्व प्रमुख महेश ज़गाडे ने कहा कि भारत के ड्रग रेगुलेशन सिस्टम की समस्या स्टाफ़ की कमी या सूचना के साझा करने को लेकर नहीं है, बल्कि कानून को लागू करने को लेकर है। ज़गाडे ने कहा, “कानून को लागू करने में ढिलाई नज़र आती है और हो सकता है कुछ एसडीआरए भ्रष्ट भी हों।"

(स्वागता, इंडियास्पेंड और हेल्थचेक में विशेष संवाददाता हैं। )

(ये रिपोर्ट मूलत: अंग्रेज़ी में 13 नवंबर 2019 को Health-check.in पर प्रकाशित हुई है।)

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