नई दिल्ली: ‘राष्ट्रवाद, आतंक और स्वास्थ्य नहीं’ के मुद्दों पर केंद्रित चुनावी बहस का जिक्र करते हुए, भारत की पूर्व स्वास्थ्य सचिव के सुजाता राव ने 13 मई, 2019 को ट्विटर पर लिखा, "देशभक्त होने के लिए जिंदा रहना होगा।"

आंकड़े भी देश में गलत प्राथमिकताओं के बारे में राव के ट्वीट का समर्थन करते हैं।

2017 में, आतंकवाद के कारण 766 भारतीयों की जान गई थी या यूं कहें कि होने वाली सभी मौतों में आंतकवाद से मौत की हिस्सेदारी 0.007 फीसदी थी। दूसरी ओर खराब स्वास्थ्य के कारण 66 लाख भारतीयों या 90 फीसदी लोगों की मृत्यु हुई है।

2017 में, जिसके लिए तुलना करने लायक डेटा उपलब्ध है, भारत का रक्षा पर खर्च, स्वास्थ्य व्यय से दोगुना था। 2017-18 के बजट से यह पता चलता है।

स्वास्थ्य और शिक्षा में कम निवेश सीधे देश की उत्पादकता और आर्थिक विकास को प्रभावित करता है। एक भारतीय का श्रेष्ठ उत्पादकता का औसत वर्ष साढ़े छह साल का है। यानी एक भारतीय साढ़े छह साल तक श्रेष्ठ उत्पादकता में काम करता है, जबकि चीन में 20 वर्ष, ब्राजील में 16 और श्रीलंका में लोग 13 वर्ष चरम उत्पादकता वर्ष में काम करते हैं। मानव पूंजी की अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग में 195 देशों में से भारत 158वें स्थान पर है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने सितंबर 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

आतंकवाद की तुलना में बीमारियों से 8,000 गुना अधिक मौतें

2018 में वाशिंगटन विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित बीमारियों और मृत्यु दर पर एक वैश्विक आकलन ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) के अनुसार, प्रति 100,000 लोगों पर 717.79 मौतों की दर के साथ, 2017 में भारत में 99 लाख मौतें हुईं थी।

संचारी, मातृ, नवजात और पोषण संबंधी रोगों के कारण भारत में सभी मौतों में 26.6 फीसदी और गैर-संचारी रोगों के कारण 63.4 फीसदी मौतें हुई। वहीं दुर्घटनाओं से मौत का प्रतिशत 9.8 फीसदी था।

जीबीडी डेटा के अनुसार, संघर्ष और आतंकवाद से होने वाली मौतें ‘परस्पर हिंसा’ की श्रेणी में आती हैं, जो सभी मौतों का 0.007 फीसदी या 766 है।

एक अन्य डेटाबेस के अनुसार आतंकवाद से कम जाने गई हैं। दक्षिण एशिया आतंकवाद पोर्टल के अनुसार, 2017 में देश में 178 आतंकी घटनाएं हुईं, जिसमें 77 की मृत्यु हुई और 295 घायल हुए।

मधुमेह से (254,500), आत्महत्या से (210,800), संक्रामक रोगों से (20 लाख) और गैर-संचारी रोगों से (62 लाख) होने वाली मौतों को एक साथ जोड़ दिया जाए तो जो संख्या सामने आएगी, वह आतंकवाद (766) के कारण हुई मौतों से 8,000 गुना ज्यादा है।

रक्षा बनाम स्वास्थ्य बनाम शिक्षा खर्च

राव ने अपने ट्वीट में लिखा, "स्वास्थ्य और शिक्षा पर टॉप और कम से कम 8 फीसदी जीडीपी आवंटित करने की आवश्यकता है।"

भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय कम है। दुनिया की आबादी का पांचवे हिस्से के साथ, भारत का सार्वजनिक व्यय 2015 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.02 फीसदी था, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जून 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

जबकि 2017-18 में भारत का सार्वजनिक-स्वास्थ्य व्यय का अनुमान सकल घरेलू उत्पाद का 1.4 फीसदी लगाया गया था, वहीं मालदीव में स्वास्थ्य पर खर्च किए जाने वाले सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात 9.4 फीसदी है। श्रीलंका में यह अनुपात 1.6 फीसदी, भूटान में 2.5 फीसदी और थाईलैंड में 2.9 फीसदी है।

रक्षा पर खर्च करने के मामले में भारत दुनिया में पांचवे स्थान पर है।

थिंक टैंक, इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस, के अनुसार, 2017-18 में रक्षा बजट 4.31 लाख करोड़ रुपये था (2017 की दरों का उपयोग करें तो $ 72.1 बिलियन) या जीडीपी का 2.5 फीसदी था। हमारे विश्लेषण के अनुसार यह उस वर्ष के स्वास्थ्य बजट से दोगुना है।

रक्षा बजट का लगभग एक चौथाई, या 24 फीसदी, पेंशन की ओर जाता है।

Defence Budget Almost 50% Higher than Health Budget In 2017-18
Sector Budget (Rs lakh crore) Budget (As % Of Gross Domestic Product) Budget (As % Of Total Government Expenditure)
Defence 4.31 2.5 9.8
Education 4.41 2.6 10
Health 2.25 1.4 5.1

Source: Economic Survey 2017-18, Institute of Defence Studies and Analyses

2017 में, भारत का स्कूल शिक्षा बजट, जिसमें केंद्रीय और राज्य खर्च शामिल थे, लगभग 4.41 लाख करोड़ रुपये ($ 73.8 बिलियन) या सकल घरेलू उत्पाद का 2.6 फीसदी था, जो रक्षा और स्वास्थ्य से अलग और ज्यादा था। एनुअल स्टेटर एजुकेशन रिपोर्ट (एएसईआर) 2018 के अनुसार भारत के लगभग ग्रेड V के आधे छात्र ग्रेड II का पाठ नहीं पढ़ सकते हैं और 70 फीसदी से अधिक डिवीजन(भाग) नहीं कर सकते हैं। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने जनवरी 2019 की रिपोर्ट में विस्तार से बताया है।

2016 में दक्षिण एशिया में शिक्षा की गुणवत्ता के लिए दूसरा सबसे कम स्कोर भारत (संभावित 100 में से 66, अफगानिस्तान के 64 स्कोर से ठीक आगे) का था और ग्रुप लीडर श्रीलंका (75) से पीछे था, जैसे कि इंडियास्पेंड ने 25 सितंबर, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

स्वास्थ्य और शिक्षा को अधिक धन की आवश्यकता

हालांकि भारत का स्वास्थ्य बजट बढ़ रहा है, (2018 में यह 2010 से दोगुना था) जैसा कि इंडियास्पेंड ने जनवरी 2019 की रिपोर्ट में बताया है, फिर भी यह अपर्याप्त है। यह देखते हुए कि भारत दुनिया के एक तिहाई स्टंट बच्चों के लिए घर है, सबसे ज्यादा टीबी रोगियों की संख्या यहीं है और दुनिया में सबसे ज्यादा आउट ऑफ पॉकेट खर्च में भी भारत के लोग शामिल हैं, कहा जा सकता है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा विफलताओं का यह एक संकेत है।

2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में 2025 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य-व्यय को जीडीपी के 2.5 फीसदी तक बढ़ाने के बारे में बात की गई थी, लेकिन भारत अभी तक जीडीपी के 2 फीसदी के 2010 के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाया है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अप्रैल 2017 के रिपोर्ट में बताया है।

शिक्षा के लिए भारत के दृष्टिकोण का मार्गदर्शन करने के लिए शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति ने 1968 के बाद से शिक्षा पर न्यूनतम 6 फीसदी जीडीपी की सिफारिश की है, लेकिन यह लक्ष्य कभी पूरा नहीं हुआ है। 2016 के दस्तावेज में कहा गया है कि "संसाधनों के उप-इष्टतम उपयोग के लिए कार्यान्वयन में व्यापक और लगातार विफलताएं हुई हैं।"

( यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। )

यह आलेख मूलत: 12 जून 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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