नई दिल्ली: महिलाएं अपने जीवन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव महसूस करने की अधिक संभावना रखती हैं और इस तरह के प्रभाव के प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं, जैसा कि ‘ऐनक्डोटल एवीडेंस’ से पता चलता है। फिर भी, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन में महिलाओं की भूमिका और जुड़ाव को मापने के लिए कोई विश्वसनीय डेटा मौजूद नहीं है।

महिलाएं अपने घरों के भीतर प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। निम्न और मध्यम आय वाले देशों (लो एंड मीडिल इनकम कंट्रीज) में, 10 में से 8 महिलाएं अपने घर के लिए पानी इकट्ठा करने के लिए जिम्मेदार हैं। विश्व स्तर पर पानी से संबंधित 70 फीसदी काम और प्रबंधन के लिए महिलाएं जिम्मेदार हैं। अकेले भारत में, महिलाएं 65 फीसदी से अधिक कृषि कार्यबल का गठन करती हैं।

वैश्विक रूप से इस बात की सहमति है कि महिलाएं जलवायु परिवर्तन संवाद के अभिन्न अंग हैं, न केवल उनकी भूमिका और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता के कारण, बल्कि जलवायु परिवर्तन के खतरों के प्रति असुरक्षित होने के कारण भी। फिर भी, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन में महिलाओं की भूमिका और जुड़ाव से संबंधित डेटा प्रलेखन की कमी है, जैसा कि हमने बताया है। हम इन मुद्दों पर केंद्रित एक भी मानक उपाय की पहचान नहीं कर सके। महिलाओं और जलवायु परिवर्तन कार्रवाई पर वैश्विक संकेतकों का भी अभाव है।

हालांकि, मार्च 2019 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा के 4 वें सत्र, जिसमें सभी 193 संयुक्त राष्ट्र सदस्य राज्यों द्वारा भाग लिया गया, जलवायु कार्रवाई योजना और उनके प्रभाव की निगरानी में महिलाओं के अधिक से अधिक जुड़ाव की उम्मीद देता है। इस सभा में अपनाए गए एक संकल्प ने न केवल महिलाओं और लड़कियों पर जलवायु परिवर्तन के असम्बद्ध बोझ को स्वीकार किया, बल्कि ‘उनके ज्ञान और सामूहिक कार्रवाई की शक्ति’ , पर्यावरण-निर्णय लेने में महिलाओं की भागीदारी और नेतृत्व को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता ( स्थानीय से अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ) और ‘लिंग मुख्यधारा पर प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण प्रयासों का समर्थन करने और वैश्विक प्रक्रियाओं में सार्थक भागीदारी सुनिश्चित करने’ पर भी जोर दिया।

प्रस्ताव पर्यावरणीय नीतियों और कार्यक्रमों पर प्रगति का आकलन करने के लिए लैंगिक समानता और सशक्तिकरण पर डेटा के संग्रह का भी अनुरोध करता है।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल की नवीनतम रिपोर्ट (आईपीसीसी) के अनुसार पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में मानव गतिविधियों के कारण पहले से ही 1.0 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म हुआ है 2030 तक, या मध्य शताब्दी तक, ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने की संभावना है।

इस प्रकार, वैश्विक तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ, भारत ने पहले ही चरम मौसम की घटनाओं का अनुभव किया है जैसे कि केरल में बाढ़, उत्तराखंड में जंगल की आग और उत्तर और पूर्व में गर्म लहरें बताते हैं कि ये मामला कितना संवेदनशील है।

महिलाएं, विशेष रूप से जो कृषि और मत्स्य पालन से जुड़ी हैं, असुरक्षित हो सकती हैं।

जबकि पुरुषों की तुलना में महिलाएं कृषि उत्पादकता, पशुधन की समस्याओं और जल की उपलब्धता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अनुभव करने की संभावना ज्यादा रखती हैं लेकिन पुरुषों की तुलना में जलवायु चिंताओं के लिए योजना बनाने की अनुमति देने वाले जलवायु और कृषि संबंधी जानकारी प्राप्त करने की कम संभावना रखते हैं, जैसा कि अक्टूबर 2015 में युगांडा के रकाई शोध से पता चलता है।

मई 2018 में जारी युगांडा के एक दूसरे अध्ययन में जलवायु परिवर्तन और दुरुपयोग के लिए महिलाओं के जोखिम के बीच लिंक पर प्रकाश डाला गया है। फसल की विफलता के कारण वित्तीय तनाव और घरेलू आय में वृद्धि के परिणामस्वरूप वैवाहिक तनाव में वृद्धि होती है, और इसके परिणामस्वरूप महिलाओं के खिलाफ छिटपुट हिंसा हो सकती है। यह महिलाओं के आर्थिक शोषण का भी परिणाम हो सकता है, क्योंकि पुरुष अक्सर अपनी पत्नी को निर्णय में शामिल किए बिना, उनकी पत्नी द्वारा सूखे मौसम में उगाई गई फसल बेचना चाहते हैं।

जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाएं भी महिलाओं के लिए अधिक जोखिम पैदा करती हैं। 2004 में थाईलैंड में सुनामी में, पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओं की मृत्यु हो गई, क्योंकि वे अपनी लैंगिक भूमिकाओं के अनुसार बच्चों और रिश्तेदारों की तलाश में वहीं रुके रहे और पुरुषों और लड़कों के विपरीत वे तैराकी और पड़ों पर चढ़ना नहीं जानते थे।

प्राकृतिक आपदाएं, जिसकी जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ने की आशंका है, महिलाओं और लड़कियों को यौन दुर्व्यवहार और शोषण के लिए संवेदनशील बनाती हैं, विशेष रूप से पहले से मौजूद आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के संदर्भों में। हैती में 2016 के तूफान के बाद, लड़कियों के यौन तस्करी के मामले बढ़ गए, क्योंकि इस क्षेत्र में आर्थिक अभाव तेजी से बढ़ा। नेपाल में 2015 के भूकंप के बाद, अनाथ लड़कियों की जोखिम के बारे में चिंताओं के कारण लड़कियों की जल्द शादी के मामलों में वृद्धि हुई।

जलवायु परिवर्तन पर लिंग डेटा और लक्ष्य की कमी

अपर्याप्त डेटा के कारण जलवायु परिवर्तन से संबंधित महिलाओं के बोझ के पैमाने और दायरे को अच्छी तरह से नहीं समझा जा सका है। संयुक्त राष्ट्र के लिंग संकेतक के न्यूनतम सेट में लिंग समानता और जलवायु पर कोई उपाय नहीं है।

विकास और स्वास्थ्य के मुद्दों पर लैंगिक समानता और सशक्तीकरण के उपायों की पहचान करने और साझा करने के लिए बनाए गए इएमइआरजीई प्रोजेक्ट के व्यापक प्रयासों के तहत,हमने जलवायु परिवर्तन कार्रवाई से संबंधित इन मुद्दों पर विशेष रूप से, उपायों को देखा। लेकिन हमें कुछ नहीं मिला।

सतत विकास लक्ष्य-एसडीजी -13, "जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभाव का मुकाबला करने के लिए तत्काल कार्रवाई" के लिए कहता है, और लचीलापन और अनुकूली क्षमता को मजबूत करने के लिए विशिष्ट संदर्भ बनाता है। मौजूदा एसडीजी-13 संकेतक मौसम आधारित और भूवैज्ञानिक संकेतकों जैसे कि वैश्विक तापमान, वर्षा, कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन, ऊर्जा की खपत, भूमि उपयोग और अन्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

हालांकि, इन उपायों में लैंगिक समानता के दृष्टिकोण का अभाव है। एसडीजी-13 के लिए कोई लिंग-संवेदनशील लक्ष्य या संकेतक नहीं हैं।

संबंधित एसडीजी, # 6 पानी और स्वच्छता पर, # 7 ऊर्जा पर, # 14 पानी के नीचे जीवन और # 15 जीवन पर, जलवायु परिवर्तन संवाद में योगदान करते हैं, लेकिन लिंग-संवेदनशील संकेतकों का भी अभाव है।

एसडीजी 5 (लिंग समानता) के भीतर एक संकेतक है, जो लिंग द्वारा कृषि आबादी के बीच भूमि स्वामित्व के माप को शामिल करके इस संवाद को आगे बढ़ाता है। हालांकि यह स्वामित्व पैटर्न को समझने में मदद करता है, लेकिन यह भूमि स्वामित्व जलवायु परिवर्तन नियोजन प्रयासों में महिलाओं की व्यस्तता को मापने का माध्यम नहीं है, हालांकि यह इस मुद्दे पर कुछ अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है।

समाधान: परिवर्तन एजेंट के रूप में महिलाएं

नैरोबी में मार्च 2019 सभा से रिपोर्ट अगले तीन से पांच वर्षों में हमारे काम को आगे बढ़ाने के लिए तत्काल जलवायु कार्रवाई योजना बनाने की बात कहती है और इस प्रक्रिया में महिलाओं को संलग्न करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है - विशेष रुप से अग्रिम परिवर्तन में मदद करने के लिए राजनीतिक नेतृत्व में महिलाओं की भूमिका।

राजनीतिक नेतृत्व में महिलाओं का महत्व हालांकि, महिलाओं की अधिक व्यस्तता और जलवायु परिवर्तन कार्य योजना में लिंग समानता के मुद्दों के लिए वैश्विक मांग है। डेटा की या मानक उपायों की अनुपस्थिति का मतलब है कि हम इस आकलन में सक्षम नहीं हैं कि क्या हम इस लक्ष्य को प्राप्त करने की राह पर हैं। जल्द से जल्द एसडीजी परिवर्तन के लिए एक आधारभूत स्थापना करने की जरुरत है और इसके लिए हमें लिंग और जलवायु परिवर्तन पर एकत्र किए गए गुणवत्ता और डेटा के प्रकार में सुधार करना होगा।

जलवायु कार्रवाई योजना में महिलाओं के मूल्य के बारे में बढ़ते प्रमाण के साथ सभा से मार्गदर्शन सुसंगत है। जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिए महिलाओं को एक साथ ‘शॉक अब्जॉर्बर’ और ‘एजेंट्स ऑफ चेंज’ के रूप में वर्णित किया जाता है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझ रही महिलाओं द्वारा असमानताओं और चुनौतियों का सामना करने के बावजूद,महिलाओं के नेतृत्व वाले जलवायु परिवर्तन की योजना और अनुकूलन प्रयासों के कई उदाहरण हैं।

पूर्वोत्तर केन्या में एक अन्य कार्यक्रम में महिलाओं को जलवायु परिवर्तन के बारे में बोलने के लिए समुदाय-संचालित फोटो कहानियों का इस्तेमाल किया गया - विशेष रूप से उनके समुदाय को प्रभावित करने वाले सूखे पर। महिलाएं पशुचारक मुस्लिम परिवारों से थे, और पारंपरिक रूप से उन्हें बोलने के लिए कभी प्रोत्साहित नहीं किया जाता रहा है। सामुदायिक चर्चा और छोटे वीडियो के निर्माण के माध्यम से, ये महिलाएं लंबे समय तक सूखे से बचने के लिए अपने अनुभवों और रणनीतियों को साझा करने में सक्षम थीं। इस समुदाय के पुरुष सदस्य जलवायु परिवर्तन के मुद्दों और अनुकूलन रणनीतियों को बेहतर ढंग से समझने के लिए इन वीडियो को देखना चाहते थे।

उड़ीसा के भद्रक में, महिलाओं के सामूहिक या स्वयं सहायता समूह (सेल्फ हेल्फ ग्रुप-एसएचजी) समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और मानसून में कमी के कारण स्थानीय भूजल में बढ़ी हुई लवणता के कारण, पीने योग्य पानी सुनिश्चित करने के लिए समाधान उत्पन्न करने के लिए एक साथ आए हैं, जैसा कि जैसा कि इंडियास्पेंड ने फरवरी 2019 की रिपोर्ट में बताया है।

महिलाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, क्योंकि पानी इक्ट्ठा करने के लिए उनके समय और दूरी की यात्रा बढ़ जाती है और वे अपने और अपने बच्चों के स्वास्थ्य परिणामों के बारे में चिंतित हैं। एसएचजी महिलाओं को बाढ़ और उससे जुड़ी महिलाओं-विशिष्ट चिंताओं जैसे मासिक धर्म और स्वच्छता के दौरान गोपनीयता की कमी पर चर्चा करने के लिए एक मंच प्रदान करते हैं।

कई अन्य प्रयास और प्रयोग हैं-जैसे कि भारत के पश्चिम बंगाल में नाही समुदाय का मामला।नाही महिलाओं ने तालाबों के ऊपर अपने चिकन कॉप लगाना शुरू कर दिया। महिलाओं ने महसूस किया कि तालाब में गिरे चिकन मल मछली के आहार का काम कर सकते हैं और इसके परिणामस्वरूप बड़ी मछलियां पैदा हो सकती हैं। इस पद्धति से इन महिलाओं और उनके परिवारों को बहुत आर्थिक लाभ मिला है, और आजीविका को बनाए रखने या सुधारने में मदद मिली है।

ऐसे कार्यक्रम जलवायु परिवर्तन कार्रवाई में महिलाओं की व्यस्तता और मूल्य को उजागर कर सकते हैं। इन प्रयासों को बेहतर ढंग से पकड़ने और जलवायु अनुकूलन योजना के एजेंडे में महिलाओं के समावेश को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय और वैश्विक संकेतकों की आवश्यकता है।

( नम्रता राव कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सैन डिएगो (यूसीएसडी) में ‘सेंटर ऑन जेंडर एक्वटी एंड हेल्थ’ के साथ नई दिल्ली में रिसर्च कोऑर्डिनेटर हैं। अनीता राज टाटा चांसलर प्रोफेसर ऑफ सोसाइटी एंड हेल्थ, मेडिसिन एंड एजुकेशन स्टडीज की प्रोफेसर और यूसीएसडी में ‘सेंटर फॉर जेंडर इक्विटी एंड हेल्थ’ की निदेशक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 1 जुलाई 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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