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मुंबई: भारत के सातवें सबसे अधिक आबादी वाले राज्य राजस्थान में 7 फीसदी का विकास दर है, जो राष्ट्रीय औसत से ज्यादा जरूर है, लेकिन यह राज्य पर्याप्त रोजगार बनाने, महिलाओं की साक्षरता में सुधार करने या उच्च मातृ और शिशु मृत्यु दर से लड़ने के लिए इस विकास का उपयोग करने में सफल नहीं है। इंडियास्पेन्ड ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस), राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) और नीति आयोग जैसे विभिन्न स्रोतों का उपयोग करते हुए 11 अन्य राज्यों के साथ स्वास्थ्य, कृषि और बेरोजगारी पर राजस्थान के संकेतकों की तुलना की है। हमने इन 12 राज्यों ( पंजाब, कर्नाटक, तमिलनाडु, झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और केरल) को उनके आकार और विकास के लिए चुना।

2017-18 में राजस्थान के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) मे 7.2 फीसदी की वृद्धि थी, जो 6.7 फीसदी राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि से अधिक थी।

हालांकि, राजस्थान हमारी 12-राज्य की सूची में आठवें स्थान पर है। (नीचे टेबल देखें)

12 राज्यों में राज्य घरेलू उत्पाद 2017-18 की वृद्धि दर

कृषि और उद्योग सफल ,लेकिन रोजगार में गिरावट

राजस्थान में कृषि उत्पादन में 23 फीसदी की वृद्धि हुई है। 2011-12 में 119,103 करोड़ रुपये (24 बिलियन डॉलर) से 145,948 करोड़ रुपये (23 बिलियन डॉलर) तक, जैसा कि नीचे दिए गए टेबल से पता चलता है। हमारे द्वारा विश्लेषण किए गए राज्यों में, मध्य प्रदेश में पिछले आठ वर्षों में उच्चतम वृद्धि (67 फीसदी) दर्ज की गई है और राजस्थान पांचवें स्थान पर रहा है। हालांकि, वर्तमान भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार के नेतृत्व में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की अगुआई में, कृषि उत्पादन 2013-14 और 2017-18 के बीच केवल 9 फीसदी तक बढ़ा है।

इसके अलावा, विनिर्माण, निर्माण और बिजली सहित राज्य के द्वितीयक क्षेत्र में 28 फीसदी की वृद्धि और सेवा क्षेत्र में 40 फीसदी की वृद्धि हुई है, जैसा कि सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के 2017-18 के आंकड़ों से पता चलता है।

2012-2018 के बीच 12 राज्यों में कृषि में जोड़ा गया ग्रास स्टेट वेल्यू

हालांकि, यह वृद्धि रोजगार को प्रेरित करने में सक्षम नहीं रहा है।श्रम ब्यूरो डेटा के अनुसार, बेरोजगारी ( आमतौर पर आधिकारिक डेटा में कम से कम अनुमानित ) राजस्थान में 2011-12 में 1.7 फीसदी से बढ़कर 2015-16 में 7.1 फीसदी हो गया है। 2011-12 में, ग्रामीण बेरोजगारी 1.6 फीसदी थी, लेकिन 2015-16 में यह 7.7 फीसदी हो गई है। इसी अवधि में शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 2 फीसदी से 4.3 फीसदी तक बढ़ी है।

शिशु, पांच वर्ष के अंदर और मातृ मृत्यु दर अभी तक नियंत्रित नहीं

स्वास्थ्य सूचकांक पर, नीति आयोग के रैंकिंग में राजस्थान चौथे स्थान पर है (जो स्वास्थ्य परिणामों, शासन और सूचना और महत्वपूर्ण इनपुट और प्रक्रियाओं पर आधारित हैं)। लेकिन हमारे विश्लेषण में इसके शिशु और पांच वर्ष के अंदर मृत्यु दर तीसरी सबसे ज्यादा खराब है। यह इस तथ्य के बावजूद है कि कि 2005-06 में शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जन्मों पर 65 मृत्यु से 2015-16 में 43 हो गई और इसी अवधि में पांच वर्ष के अंदर बच्चों की मृत्यु दर 85 से गिर कर 50 हो गई है। 2015-16 के नमूना पंजीकरण सर्वेक्षण आंकड़ों के मुताबिक, इनके लिए राष्ट्रीय औसत 41 और 49 है।

12 राज्यों में शिशु मृत्यु दर और पांच वर्ष की आयु के अंदर मृत्यु दर, 2015-16

संस्थागत जन्म के मामले में राष्ट्रीय औसत की तुलना में राज्य अच्छा प्रदर्शन नहीं करता है। यह औसत 84 फीसदी है, जबकि राष्ट्रीय औसत 78.9 फीसदी है। प्रसवपूर्व देखभाल (82.7 फीसदी) के लिए भी इसका रिकॉर्ड 79.3 फीसदी की राष्ट्रीय औसत से अधिक है।

राज्य में मातृ स्वास्थ्य चिंता का विषय है। इसकी मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) प्रति 100,000 जीवित जन्मों में 199 मौतें हैं, जो देश में तीसरी सबसे ज्यादा है। हमारे 12 राज्यों के विश्लेषण में, प्रति 1,000 लड़कों पर 973 लड़कियों पर राज्य का लिंग अनुपात पांचवे स्थान पर है। टीकाकरण कवरेज में भी इसका चौथा सबसे कम स्थान पर है। इस संबंध में आंकड़े 54.8 फीसदी हैं।

12 राज्यों में मातृ एवं बाल स्वास्थ्य संकेतक, 2015-16

Source: National Family Health Survey 2015-16

अधिक स्वास्थ्य सुविधाएं, लेकिन कई तरह कमी

2005-06 के बाद से राजस्थान के प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढांचे में सुधार हुआ है, लेकिन अभी तक रिक्तियों से निपटना बाकी है। इन सुविधाओं तक पहुंच और बिजली की आपूर्ति भी अपर्याप्त रहती है।

राजस्थान के लिए स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा संकेतक

Health Infrastructure Indicators For Rajasthan
Indicators2010-112017-18
Sub-centres1148714406
Primary Health Centres (PHC)15282079
Community Health Centres (CHC)368579
Doctors possessing recognised medical qualifications28797*40,559
Vacancy of specialists in district hospitals41.5#45.8^
District hospitals3334
Sub-centres without female health worker/ANM3281775
PHCs functioning without a doctor70167
Shortfall of surgeons at CHCs218452
Shortfall of physicians at CHCs206390
Shortfall of total specialists at CHCs9801819
Medical officer posts vacant at PHCsSurplus282
Sub-centres without regular water supply21.80%34.90%
Sub-centres without electric supply7.50%36.10%
Sub-centres without all-weather motorable approach road2.60%10.20%
PHCs with labour room79.30%80.00%
PHCs with 4-6 beds99.90%77.80%
PHCs without regular water supply0.00%10.20%
PHCs without electric supply0.00%4.60%
PHCs without all-weather motorable approach road0.00%7.80%
PHCs with referral transport facility36.20%65.90%
CHCs with all four specialists20.10%7.40%
CHCs with functional laboratory98.40%96.50%
CHCs with functional O.T81.50%77.70%
CHCs with functional labor room98.40%95.60%
CHCs with referral transport facility77.20%91.50%

Source: Rural Health Statistics 2017 and National Family Health Survey 2015-16

*refers to 2010, #refers to 2014-15, ^refers to 2015-16

ग्रामीण स्वास्थ्य आंकड़े 2017 के मुताबिक, 2010-11 और 2017-18 के बीच उप-केंद्रों की संख्या में 25 फीसदी की वृद्धि हुई है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में 36 फीसदी और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र 57 फीसदी तक की वृद्धि हुई है। हालांकि, स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि जरूर हुई है, लेकिन चिकित्सा स्वास्थ्य पेशेवरों और आसपास के बुनियादी ढांचे में समान वृद्धि नहीं देखी गई है।

उदाहरण के लिए, डॉक्टर के बिना काम कर रहे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 2010-11 में 70 थी, जो बढ़कर 2017-18 में 167 हो गई है। एक सहायक नर्स या महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता के बिना उप-केंद्रों की संख्या 2010-11 में 328 थी, जो बढ़कर 2017-18 में 1,775 हो गई है।

भौतिक आधारभूत संरचना में कमी भी बढ़ी है। नियमित जल आपूर्ति के बिना उप केंद्र 2010-11 में शून्य से 2017-18 में 10 फीसदी तक बढ़े हैं, जबकि 2010-11 और 2017-18 के ग्रामीण स्वास्थ्य आंकड़ों के मुताबिक, इसी अवधि के दौरान वाहन की पहुंच वाली सड़क के साथ पीएचसी की संख्या शून्य से 8 फीसदी तक बढ़ी है।

महिलाओं की साक्षरता और रोजगार

महिला शिक्षा संकेतक बच्चों के स्वास्थ्य और मातृ स्वास्थ्य में राज्य की खराब रेटिंग की व्याख्या करते हैं। अधिक शिक्षित महिलाओं वाले राज्य बच्चों के लिए बेहतर स्वास्थ्य परिणाम दिखाते हैं, जैसा कि इंडियास्पेन्ड ने 20 मार्च, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

12 राज्य: महिला साक्षरता और सशक्तिकरण संकेतक

ऊपर दिए गए टेबल से पता चलता है कि राजस्थान में, महिलाओं की साक्षरता और अर्थव्यवस्था में भागीदारी कम है। महिला साक्षरता के मामले में राजस्थान नीचे से दूसरे स्थान पर है। 68.4 फीसदी के राष्ट्रीय औसत की तुलना में 56.5 फीसदी, जैसा कि 2015-16 एनएफएचएस से पता चलता है। यह उन महिलाओं की सूची में आखिरी है, जिन्होंने 10-11 साल की शिक्षा पूरी की है। श्रम बल में महिला भागीदारी 21.5 फीसदी है, जो राष्ट्रीय औसत के 23.7 फीसदी से कम है।

( सालवे प्रोग्राम मैनेजर हैं और इंडियास्पेंड से जुड़ी हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 05 दिसंबर 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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