भारत में साक्षरता में वृद्धि के बावजूद, स्कूलों में अधिक वर्ष बिताए हुए लोगों का मीडिया से रिश्ते में गिरावट हुई है। यह जानकारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के 2005-06 और 2015-16 के रिपोर्ट पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आई है। जबकि पूरे भारत में मीडिया एक्सपोजर पूरी तरह से बढ़ा है।

शोध से पता चलता है कि मीडिया तक एक्सपोजर और पहुंच ( जो आमतौर पर उच्च शिक्षा और आय के स्तर के साथ- साथ चलता है ) बेहतर स्वास्थ्य परिणामों के लिए महत्वपूर्ण हैं। 2014 के इस अध्ययन में कहा गया है कि, " अखबारों, रेडियो या टेलीविजन तक पहुंच पुरुषों और महिलाओं, दोनों में 2 फीसदी और 12 फीसदी के बीच बेहतर एचआईवी के बारे में जागरूकता की संभावना बढ़ाता है। " नई दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्री दीपा सिन्हा ने अपने 2016 की किताब “वुमन, हेल्थ एंड पब्लिक सर्विस इन इंडिया : वाय आर स्टेटस डिफ्रेंट? ” में कहा है, “इस संबंध में ज्ञान तक महिलाओं की पहुंच विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।”

दो एनएफएचएस दौरों के बीच, साक्षरता की हिस्सेदारी में( ऐसा व्यक्ति जो एक वाक्य या हिस्सा पढ़ सकता है और छठी या उच्च कक्षा की पढ़ाई पूरी की है ) पुरुषों के लिए 7 प्रतिशत अंक की वृदधि हुई है। यानी 2005-06 में 77.5 फीसदी से बढ़ कर 2015-16 84.4 फीसदी हुआ है। वहीं महिलाओं के लिए इन आंकड़ों में 13 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है। यह 55 फीसदी से बढ़ कर 68 फीसदी हुआ है।

जबकि, 2005-06 के दौर में 15 से 54 वर्ष आयु वर्ग के 74,36 9 पुरुष और 15-49 वर्ष आयु वर्ग के 124,385 महिलाओं का सर्वेक्षण किया गया, और 2015-16 के दौर में 15-54 वर्ष आयु वर्ग के 112,122 पुरुष थे और 15-49 आयु वर्ग की 699,686 महिलाएं उत्तरदाताओं के रुप में शामिल थी।

साक्षरता* दर वित्त वर्ष 2006-16

लगभग 3 प्रतिशत अधिक महिलाएं, जिन्होंने आठ साल या उससे ज्यादा स्कूल में बिताए हैं, उन्होंने कहा कि वे 2005-06 के मुकाबले 2015-16 में नियमित रूप से किसी भी मीडिया के संपर्क में नहीं थी।" केवल उन पुरुषों के लिए, जो स्कूल में आठ से नौ साल पूरे कर चुके थे, उस आंकड़े में 3 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई। उन लोगों में, जिन्होंने पांच से सात साल या 10 साल या अधिक स्कूल में बिताए हैं, उन्होंने कहा कि वे नियमित रूप से मीडिया के संपर्क में नहीं थे। इसमें लगभग 01 प्रतिशत अंक की मामूली बढ़ोतरी हुई है।

15-19 वर्ष आयु वर्ग के किशोरों की हिस्सेदारी, जो नियमित रूप से किसी भी मीडिया के संपर्क में नहीं थे, उनकी संख्या में भी एक दशक से 2015-16 तक 01 प्रतिशत अंक की मामूली वृद्धि हुई है। केवल ऐसे पुरुष और महिलाएं, जो कभी स्कूल नहीं गए, उन्होंने उन लोगों की हिस्सेदारी में वृद्धि की सूचना दी, जिन्होंने ‘सप्ताह में कम से कम एक समाचार पत्र या पत्रिका पढ़ी’। महिलाओं के लिए, इस दशक में 0.3 प्रतिशत अंकों से मामूली बढ़त हुई है, जबकि पुरुषों के लिए, इसमें 2.9 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई है।

सप्ताह में कम से कम एक बार टीवी देखे जाने वाले लोगों की संख्या सभी श्रेणियों में बढ़ी है। लेकिन ऐसी महिलाएं, जिन्होंने 12 या अधिक वर्ष की स्कूली शिक्षा पूरी की हैं, उनके और मीडिया के बीच के रिश्ते कमजजोर हुए हैं। ऐसी महिलाओं की संख्या 2005-06 में 90.9 फीसदी से 0.8 प्रतिशत अंक गिरकर 90.1 फीसदी हुआ है।

कुल मिलाकर, उन लोगों का हिस्सा, जो सप्ताह में कम से कम एक बार भी किसी प्रकार के मीडिया का उपयोग नहीं करते हैं, उनकी संख्या में भी गिरावट हुई है। ऐसी महिलाओं की संख्या 2005-06 में 35 फीसदी से कम हो कर 2005-16 में 25 फीसदी हुई है। जबकि पुरुषों की संख्या 18 फीसदी से कम होकर 14 फीसदी हुआ है।

सर्वेक्षण ने उत्तरदाताओं से यह नहीं पूछा कि वे कितनी बार ऑनलाइन पढ़ते हैं। दिसंबर 2014 के अंत में, भारत में ग्रामीण इलाकों में 92.18 मिलियन इंटरनेट उपभोक्ता थे और शहरी क्षेत्रों में यह संख्या 175.21 मिलियन थी। भारत के आधिकारिक डेटा पोर्टल पर 21 मई 2015 के इस लेख के अनुसार 267.39 मिलियन उपभोक्ताओं के 34.5 फीसदी ग्रामीण भारत से हैं।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत के 1.21 बिलियन लोगों में, 833 मिलियन ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे।

मीडिया एक्सपोजर वित्त वर्ष 2006-16: महिलाएं

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मीडिया एक्सपोजर वित्त वर्ष 2006-16: पुरुष

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(विवेक विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 22 फरवरी, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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