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देश भर के ग्रामीण इलाकों के सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में - 29 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों - में 3,000 से अधिक डॉक्टरों की कमी है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार यह कमी पिछले 10 वर्षों में 200 फीसदी (या तिगुनी) बढ़ी है।

यह आंकड़ा एक चेतावनी है कि, मौजूदा वर्ष (2015-16) में पूंजीगत खर्च में 15 फीसदी की कटौती - जिसमें अधिक डॉक्टरों की नियुक्ति करना और स्वास्थ्य केंद्रों को बेहतर सुविधाओं से लैस करना शामिल है - से भारत में पहले से अपर्याप्त ग्रामीण सरकारी-स्वास्थ्य मूलभूत सुविधाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

पिछले वर्ष में केंद्रीय स्वास्थ्य-बजट में कटौतियों की भरपाई वास्तव में राज्यों के स्वास्थ्य पर खर्च में अनुरुप वृद्धि से हुई है, जो कि कटौती के लिए एक तर्क था एवं जैसा कि कल हमने इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में विस्तार से बताया था। लेकिन यह वृद्धि सभी राज्यों में एक समान नहीं थी, और हो सकता है कि खराब स्वास्थ्य संकेतों वाले राज्य और पिछड़ जाएं।

स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी राज्य की होने के साथ, केंद्र सरकार ने अपने कुल स्वास्थ्य बजट में 20 फीसदी की कटौती की है (‘योजनागत’ और “गैर-योजनागत” दोनों खर्च में कमी) यदि आंकड़ों पर नज़र डालें तो यह 2014-15 में 30,645 करोड़ रुपए से कम हो कर 24,549 करोड़ रुपए हुआ है। योजनागत खर्च में सामाजिक और भौतिक बुनियादी ढांचे भी शामिल हैं, जैसे कि डॉक्टरों और नर्सिंग कर्मचारियों की नियुक्ति, नए स्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण और नए उपकरण की खरीद; गैर-योजनागत खर्च में वेतन और प्रशासनिक खर्चों पर खर्च शामिल होते हैं।

देश के सबसे गरीब राज्य ऐसे स्वास्थ्य संकेंतों की मार झेल रहे हैं जो कि उनसे भी गरीब देशों से बदतर हैं। भारत का स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) देशों- जैसे उसके स्वास्थ्य संकेत- में सबसे कम है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने पहले भी विस्तार में बताया है।

जैसा कि हमने पहले भी बताया है कि ग्रामीण इलाकों में कम से कम 58 फीसदी भारतीय निजी क्षेत्र की स्वास्थ्य सुविधाओं (शहरी इलाकों में 68 फीसदी ) को चुन रहे हैं क्योंकि सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं, और स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च से प्रत्येक वर्ष अतिरिक्त 3.9 करोड़ लोग वापस गरीबी में पहुंच जाते हैं, लांसेट पेपर में यह जानकारी दी गई है।

इसके अतिरिक्त, सुधार के बावजूद, भारत में अब भी पांच साल से कम उम्र के 40 मिलियन बच्चे अविकसित (अपनी उम्र के हिसाब से छोटे) एवं 17 मिलियन बच्चे कमजोर (वजन में कम) हैं। यह आंकड़े दुनिया में सबसे अधिक है। यह असफल सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था का परिणाम भी है। इस संबंध में भी इंडियास्पेंड ने पहले ही विस्तार से जानकारी दी है।

2013 में राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत के बावजूद जब बात स्वास्थ्य सुविधाओं और चिकित्सकों, और शहरी स्वास्थ्य सुविधाओं के संबंध में आंकड़ों की आती है तो राज्यों के बीच व्यापक असमानता है।

गुणवत्ता पर काम होनी चाहिए, लेकिन चार साल में पहली बार स्वास्थ्य पर खर्च में कमी

जैसा कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 29 फरवरी के केंद्रीय बजट में घोषणा करेंगें, स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च में वृद्धि की उम्मीद होगी, विशेषकर स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे और ग्रामीण क्षेत्रों में मानव संसाधन के खर्च में वृद्धि की उम्मीद होगी। नियोजन के इस चरण के लिए मूल योजना भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को बढ़ावा देना था।

स्वास्थ्य आवंटन (योजना व्यय), 2012-2017

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के लिए 12 वीं पंचवर्षीय योजना परिव्यय में 113 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। यदि आंकड़ों पर गौर करें तो 11वी पंचवर्षीय योजना के दौरान यह आंकड़े 125,922.2 करोड़ रुपए (31.3 बिलियन डॉलर) थे जबकि 12 वीं पंचवर्षिय योजना में बढ़ कर 268,551 करोड़ रुपए (49.4 बिलियन डॉलर) हुआ है। यह वृद्धि मुख्य रूप से वितरण सेवाओं में सुधार करने के लिए की गई थी।

योजना आयोग को खारिज कर दिया गया है, लेकिन 2016-17 पंचवर्षीय योजना का अंतिम वर्ष है, और सरकारी दस्तावेज अब भी इसी शब्दावली का प्रयोग करते हैं।

किस प्रकार ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा प्रणाली करती है काम

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य की आधारभूत सुविधाओं को तीन स्तरों में बांटा गया है; उपकेंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) जिसके तहत कम से कम छह उप केंद्र आते हैं; और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी)।

उप केंद्र सबसे नजदीकी और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और समुदाय के बीच पहला संपर्क बिंदु है। प्रत्येक उप केंद्र में एक सहायक नर्स मिडवाइफ (एएनएम) और एक पुरुष स्वास्थ्य कार्यकर्ता होता है।

इसके बाद पीएचसी आता है, जो ग्रामीण समुदाय और चिकित्सा अधिकारी के बीच पहला संपर्क बिंदु है।

एक पीएचसी में एक चिकित्सा अधिकारी और उसकी सहायता के लिए 14 पैरामेडिकल और अन्य कर्मचारी होते हैं। इसमें मरीजों के लिए चार से छह बिस्तर होते हैं और इसमें उपचारात्मक, निवारक, प्रारंभिक और परिवार कल्याण सेवाओं को शामिल किया गया है।

ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा संस्थानों के नेटवर्क के तीसरे स्तर सीएचसी में दवा, शल्य चिकित्सा, बाल चिकित्सा और स्त्री रोगों के लिए चार विशेषज्ञ; मरीजों के लिए 30 बिस्तर; ऑपरेशन थियेटर; प्रसूति कक्ष, एक्सरे मशीन, पैथोलॉजिकल प्रयोगशाला और एक जनरेटर होने के साथ दवाएं और पैरामेडिकल कर्मचारी होने की अपेक्षा की जाती है।

2005 से 2015 के दौरान जहाँ उप केंद्रों की संख्या में 5 फीसदी की वृद्धि हुई, पीएचसी 8 फीसदी बढ़े हैं और सीएचसी की संख्या में 61 फीसदी की वृद्धि हुई।

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्र

ग्रामीण सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में डॉक्टरों, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की व्यापक कमी

2015 में 5 फीसदी से अधिक उप केंद्र बिना एएनएम के चल रहे थे और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में 46 फीसदी पुरुष स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की कमी है।

स्वास्थ्य कर्मियों की कमी

राजस्थान के आधे से अधिक (54 फीसदी) उप केंद्रों ऐसे हैं जिनमें एएनएम या पुरुष स्वास्थ्य कार्यकर्ता नहीं है।

डॉक्टरों के मामले में भी स्थिति अलग नहीं है: वर्ष 2005 में पीएचसी में रिक्त पदों की संख्या 4,282 थी जो 2015 में बढ़कर 9,389 हो गई है।

पीएचसी में डॉक्टरों की कमी

डॉक्टरों की कमी वर्ष 2005 में 1,004 से बढ़कर 2015 के अंत में 3,002 तक पहुँच गई है, डॉक्टरों की कमी के मामले में पश्चिम बंगाल, 72 फीसदी कमी के साथ सबसे आगे है, 51 फीसदी कमी के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर है।

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के कारण अब सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र, विशेषकर ग्रामीण इलाकों में, पहले की तुलना में अधिक लोग पहुँचते हैं।

यहां तक कि, यदि आय बढ़ने के साथ अगर केंद्र सरकार खर्च नहीं बढ़ाती है तो यह आंकड़े जुटाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की निगरानी, गुणवत्ता के लिए उनका मूल्यांकन, दक्षता पर ध्यान केंद्रित कर सकती है और किस प्रकार गरीबों को बहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिले, इस संबंध में राज्यों के साथ काम करना चाहिए।

(सालवे इंडियास्पेंड के साथ एक विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 27 फरवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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