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वर्ष 2004 के बाद से, जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र हिंसा की तुलना में वाहन दुर्घटनाओं में 46 फीसदी ज्यादा लोगों की मौत हुई है। इनमें नागरिक, सुरक्षा बल और आतंकी सभी शामिल हैं। यह जानकारी राज्य पुलिस और भारतीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आई है।

सशस्त्र हिंसा की तुलना में वाहन दुर्घटनाओं में 46 फीसदी ज्यादा मौतें

Source: J&K Traffic Police, Ministry of Home Affairs

जम्मू और कश्मीर यातायात पुलिस और गृह मंत्रालय (एमएचए) के रिकॉर्ड के अनुसार, वर्ष 2004 के बाद से 13 वर्षों में सशस्त्र हिंसा की तुलना में यातायात दुर्घटनाओं में अधिक नागरिकों की मौत हुई है।

वर्ष 2013 में किए गए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के सर्वेक्षण में जम्मू-कश्मीर "उच्च आकस्मिक मृत्यु-प्रवण क्षेत्रों" की सूची में सबसे ऊपर रहा है। सर्वेक्षण में पाया गया कि जम्मू-कश्मीर में दुर्घटना में मौत की संभावना 64 फीसदी है। हम बता दें कि देश के अन्य हिस्सों में यह संभावना 36.4 फीसदी है।

जम्मू एवं कश्मीर के यातायात पुलिस ने दुर्घटनाओं का मुख्य कारण मुश्किल और घुमावदार पहाड़ी सड़क पर लापरवाही भरा ड्राइविंग बताया है । निवासियों का कहना है कि सार्वजनिक परिवहन विकल्पों की कमी से वाहन के स्वामित्व में वृद्धि हुई है और यह अधिक दुर्घटनाओं का कारण है।

तबाह जीवन और फिर अंत

14 वर्षीय आदिल अहमद एक मेधावी छात्र था। वह अपने पिता गुलाम हसन पर्रे और परिवार के बेहतर भविष्य के लिए आशा की किरण था। वर्ष 2007 में शरद ऋतु के एक दिन, केंद्रीय कश्मीर के बड़गाम जिले के वडवुन गांव में वह ईद की खरीददारी करने जा रहा था। तभी एक मिनीबस ने उसे टक्कर मार दी। इस दुर्घटना में आदिल की जान चली गई।

वर्ष 2004 से 2016 तक 13 वर्षों में हुए 77,786 सड़क दुर्घटनाओं में हुई 14,407 नागरिकों की मौत में से आदिल एक था। इन घटनाओं में 1,07,622 लोग घायल भी हुए थे।

मौत के ये आंकड़े कश्मीर में 26 वर्ष के विद्रोह में मारे गए 13,936 नागरिकों की संख्या से ज्यादा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि करता है।

Ghulam Hassan Parray during a recent visit to Srinagar’s Motor Accident Claims Tribunal (MACT) -- Pho credit -- Athar Parvaiz_620 (1)

वर्ष 2007 में अपने 14 वर्षीय बेटे आदिल अहमद को खो चुके गुलाम हसन पैरे। पैरे श्रीनगर में मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल (एमएसीटी) में एक दशक से एक कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, जहां दुर्घटनाग्रस्त लोगों को मुआवजे पाने के लिए कानूनी सहायता दी जाती है।

पैरे किसान हैं और खेती पर निर्भर हैं। वह कहते हैं कि उन्होंने पिछले सात सालों में श्रीनगर की 150 बार से ज्यादा यात्रा की है, "मैंने हजारों रुपए बस किराए पर खर्च किया है।"

अधिकारियों ने इंडियास्पेंड को बताया कि एमएसीटी में 1,624 मामले लंबित हैं और कई मामले तो कई सालों से चल रहे हैं। नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा, “कई मामलों में दुर्घटनाग्रस्त वाहनों के दस्तावेज नकली या अपूर्ण पाए गए हैं। ”

कई पीड़ित और उनके परिवार के लोग व्यवस्था में विश्वास की कमी की वजह से या जागरूकता की कमी के कारण ट्राइब्यूनल नहीं जाने का निर्णय लेते हैं।

शमीमा बेगम उत्तरी बारामुल्ला जिले में नरबेल की रहने वाली हैं। उनके पति एक वाहन चालक थे। वे वर्ष 2012 में एक सड़क दुर्घटना में अक्षम हो गए थे। शमीमा के पास केस लड़ने के लिए कोई नहीं है। दो बच्चों की मां शमीमा कहती हैं, “जब मेरे पति कमाने में असमर्थ हो गए तो घर चलाने की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई। अब मैं अपने घर चलाने के लिए लोगों के घरों में काम करती हूं।”

पुलिस के अनुसार दुर्घटना का कारण ड्राइविंग में लापरवाही

जम्मू और कश्मीर में घातक यातायात दुर्घटनाओं से नीति निर्माता चिंतित हैं और यह स्थानीय समाचार पत्रों की सुर्खियां बनी हैं।

यातायात अधिकारियों ने लापरवाह से ड्राइविंग को दोषी ठहराया है। राज्य के यातायात पुलिस महानिरीक्षक जगजीत कुमार ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए कहा, “राज्य में यातायात दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण तेज गति से गाड़ी चलाना है। ज्यादातर ड्राइवर दुर्घटनाओं का शिकार तब होते हैं, जब वे नियमों का पालन नहीं करते हैं। ”

कुमार आगे बताते हैं कि दूरदराज के इलाकों में यातायात पुलिस कर्मियों की बहुत कम तैनाती, सड़कों की खराब स्थिति और कुछ पहाड़ी सड़कों पर खतरनाक मोड़ भी दुर्घटनाओं का कारण हैं।

सड़क सुरक्षा में सुधार के लिए प्रयास जारी

जम्मू एवं कश्मीर के परिवहन आयुक्त सौगात बिस्वास ने बताया ने इंडियास्पेंड से बताया कि राज्य सरकार ने एक राज्य सड़क सुरक्षा नीति बनाई है, जो ट्रैफिक नियमों को लागू करने, सड़कों और पुलों की इंजीनियरिंग, दुर्घटना के आंकड़ों का विश्लेषण और लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए दिशानिर्देश देती है।

बिस्वास के मुताबिक “दिशा निर्देश कहते हैं कि सरकार को ट्रैफिक पुलिस और मोटर वाहन विभाग जैसे यातायात कानून प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता में सुधार करना चाहिए, जिससे कि सड़क दुर्घटनाओं को कम से कम किया जा सके। "

वह आगे कहते हैं, " दिशा-निर्देश में यातायात कर्मियों को तेज गति से गाड़ी चलाने, रेड-लाइट तोड़कर भागने और शराब पी कर गाड़ी चलाने का पता लगाने के लिए उन्नत उपकरणों से लैस करने की सलाह है।

इसी तरह, सड़क इंजीनियरिंग पर दिशानिर्देशों में दुर्घटनाग्रस्त स्थानों की पहचान करने और सड़क डिजाइन में सुधार पर जोर है। बिस्वास कहते हैं, "उचित स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा बनाना एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र है। उदाहरण के लिए, आघात केंद्रों की स्थापना, समय पर एम्बुलेंस और रिकवरी क्रेन आसानी से उपलब्ध कराना भी बड़ा काम है। "

वाहनों की संख्या में वृद्धि

नीति निर्माताओं को वाहनों की बढ़ती संख्या के साथ भी संघर्ष करना पड़ता है, जिसके लिए व्यवहार्य सार्वजनिक परिवहन की कमी आंशिक रूप से दोषी है।

सड़कों पर वाहनों की संख्या वर्ष 2010 में 7 लाख से बढ़कर मार्च 2017 में 14 लाख से अधिक (14,881,90) हो गई है, जैसा कि जम्मू एवं कश्मीर परिवहन आयुक्त कार्यालय के आंकड़ों से पता चलता है।

जम्मू-कश्मीर में वाहनों की संख्या, वर्ष 2010 से 2017

Source: J&K Transport Commissioner’s office

कश्मीर विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के प्रमुख पीरजादा मोहम्मद अमीन कहते हैं, “यदि लोगों को सुविधाजनक सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने का विकल्प होता है, तो वे कार क्यों खरीदते और ईंधन पर खर्च क्यों करते? ” पीरजादा मानते हैं कि कारों की बढ़ती संख्या विकास का संकेत नहीं है, "यह एक नीति दुर्घटना का नतीजा है, क्योंकि लोगों को आसान गतिशीलता के लिए वाहन खरीदने में मजबूर होना पड़ता है।"

दिल्ली की ‘इनोवेटिव ट्रांसपोर्ट सॉल्यूशंस’ की सीईओ अंविता अरोड़ा ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए कहा, “सड़क पर कारों की अधिक संख्या न केवल विस्तारित आबादी के लिए टिकाऊ गतिशीलता समाधान बनाने के लिए नीति विफलता को इंगित करती है, बल्कि इससे अधिक प्रदूषण भी होता है।”

अंविता अरोड़ा मानती हैं कि गैर-मोटर चालित परिवहन जैसे साइकिल और बेहतर सार्वजनिक परिवहन से आवागमन स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है।

(परवेज पत्रकार हैं, श्रीनगर में रहते हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 08 अगस्त 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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