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अक्तूबर और दिसंबर 2016 के बीच 144 किसानों की जान गवांने की बात सामने आई थी । इस संबंध में मीडिया रिपोर्ट में विस्तार से (एक और दो) बताया गया था। इसके बाद 10 जनवरी 2017 को तमिलनाडु सरकार ने अपने राज्य में सूखा घोषित किया है। 5 जनवरी, 2017 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा राज्य सरकार को जारी नोटिस के अनुसार, एक महीने में कम से कम 106 किसानों के आत्महत्या करने की सूचनी मिली है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 में, पूर्वोत्तर मानसून ( आमतौर दक्षिण पश्चिम मानसून को महत्व देते हुए इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है ) पिछले 140 वर्षों में सबसे बद्तर रहा है।

कोयम्बटूर में तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के कृषि जलवायु अनुसंधान केंद्र के प्रोफेसर और प्रमुख एस पन्नीरसेल्वम ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया कि, “ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। तमिलनाडु के 32 जिलों में से 21 जिले इससे गंभीर रुप से प्रभावित हुए हैं।”

5 जनवरी, 2017 को तमिलनाडु के जलाशयों में उनकी क्षमता की तुलना में 20 फीसदी कम पानी था, जिसे राज्य में सबसे बद्तर स्थिति के रूप में उद्धृत किया गया है।

वर्ष 1871 के बाद से मानसून का रिकॉर्ड रखना आरंभ हुआ है, लेकिन अक्टूबर और दिसंबर के बीच पूर्वोत्तर इलाकों में मानसून की ऐसी खराब हालतक, जिसका भौगोलिक क्षेत्र तमिलनाडु, तटीय आंध्र प्रदेश, दक्षिण आंतरिक कर्नाटक और केरल तक फैला है, केवल 1876 में दर्ज किया गया है। पिछले 145 वर्षों में वर्ष 2016 मानसून के लिए दूसरा सबसे बदतर साल रहा है।

कुल मिलाकर इस अवधि के लिए पूर्वोत्तर मानसून औसत से 45 फीसदी कम था। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव तमिलनाडु पर पड़ा है, जहां इस मौसम के लिए वर्षा सामान्य से 62 फीसदी कम दर्ज की गई है। हालांकि दक्षिण-पश्चिम मानसून (जो जून और सितंबर के बीच उपमहाद्वीप को पानी उपलब्ध कराता है) देश भर में सामान्य रुप में दर्ज किया गया था। फिर भी तमिलनाडु में इसमें 19 फीसदी की कमी दर्ज की गई है।

कृषि मंत्रालय द्वारा साप्ताहिक अद्यतन नवीनतम फसल की बुआई की स्थिति की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों मानसून से प्रभावित तमिलनाडु में सर्दियों की चावल की बुआई में 33 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। हम बता दें कि तमिलनाडु में किसी भी अन्य भारतीय राज्य की तुलना में सर्दियों की फसल पूर्वोत्तर मानसून पर ज्यादा निर्भर है।

चार राज्यों में अक्टूबर-दिसंबर की वर्षा में 60 फीसदी से ज्यादा की कमी

उपमहाद्वीप से दक्षिण-पश्चिम मानसून के वापसी के बाद पूर्वोत्तर मानसून सक्रिय हो जाता है। हालांकि, दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी के लिए कोई विशेष तिथि नहीं है और पूर्वोत्तर मानसून की शुरुआत अक्टूबर महीने को ही माना जाता है।

1876 के बाद तमिलनाडु में बद्तार पूर्वोत्तर मानसून

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Source: Monthly rainfall dataset, Indian Institute of Tropical Meteorology

दो मानसून के अलावा, तमिलनाडु पूर्व-मानसून वर्षा भी प्राप्त करता है, जो कृषि के लिए महत्वपूर्ण है।

पूर्वोत्तर मानसून वर्षा में कमी, 2011-16

Source: Weekly Weather Update, India Meteorological Department

तमिलनाडु में नागपट्टिनम, तिरूवरूर और तंजावुर जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।

नागपट्टिनम के पूर्वी तटीय जिले में कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक जे शेखर कहते हैं, “कावेरी डेल्टा में आने वाले हमारे नागपट्टिनम जिले में 175,000 लाख किसानों में से 135,000 धान के किसान हैं। आधे किसानों ने धान के फसल की बुआई की है लेकिन 20 फीसदी से कम फसल ही तैयार होने की दिशा में हैं।”

“प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत जिले में करीब 130,000 (95 फीसदी) धान किसानों का बीमा हुआ है। करीब 11 करोड़ रुपए का प्रीमियम एकत्र किया गया है। यह हमारे किसानों के लिए एक सुरक्षा तंत्र प्रदान करेगा।” हालांकि, शेखर के दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो पायी है।

दक्षिण में तेलंगना को छोड़कर पूर्वोत्तर मानसून की विफलता स्पष्ट है, जहां खेती ज्यादातर वर्षा पर आधारित है और दक्षिण-पश्चिम मानसून पर निर्भर है।

दक्षिण में जलाशयों का भी एक संकट

पूर्वोत्तर मानसून के विफल होने और दक्षिण-पश्चिम ढांचे के साथ दक्षिणी राज्यों में जलाशय संकट में हैं या संकट के काफी करीब हैं। देश भर में तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और केरल में जल की भारी कमी की सूचना दी गई है। तमिलनाडु के जलाशयों में पानी की 82 फीसदी कमी है, जो कि वर्तमान में भारत में सबसे ज्यादा है। आंध्र प्रदेश में 53 फीसदी, कर्नाटक में 39 फीसदी और और केरल में 37 फीसदी की कमी दर्ज की गई है।

राज्य अनुसार भारत के जलाशय (5 जनवरी, 2017 तक)

Source: Central Water Commission

अक्तूबर 2016 में कर्नाटक ने 22 जिलों और कुछ अतिरिक्त तालुकों में सूखा घोषित किया है। राज्य को केंद्र सरकार से 1,782 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं। पूरे केरल को सूखाग्रस्त घोषित किया गया है।वर्ष 2016 के समाप्त होने के साथ, दक्षिण भारत का संयुक्त जलाशय का स्तर क्षमता का 34 फीसदी था। पिछले 10 वर्षों में औसत पानी की उपलब्धता 56 फीसदी रहा है। ऐसे में वर्तमान हालत में पानी की 22 फीसदी किल्लत है।

तमिलनाडु में एक-तिहाई क्षेत्र में बुआई नहीं

6 जनवरी, 2017 को अंकित कृषि मंत्रालय की साप्ताहिक बुवाई स्थिति रिपोर्ट के अनुसार किसी भी अन्य राज्य की तुलना में तमिलनाडु ने वर्ष 2016-17 में चावल के लिए 14.5 लाख हेक्टेयर का लक्ष्य रखा था। लेकिन 5 जनवरी, 2017 तक 7.18 लाख हेक्टेयर से अधिक में बुआई नहीं हुई है। पिछले पांच साल की औसत बुआई 10.68 लाख हेक्टेयर रही है। साफ है इस वर्ष औसत से 3.5 लाख हेक्टेयर या 33 फीसदी कम रकवे पर बुआई हुई है।

जनवरी के पहले सप्ताह में देश भर में औसत 17.28 लाख हैक्टेयर में बीज बोए गए हैं और 12.74 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की फसल लगाई गई है, जो 4.54 लाख हेक्टेयर, यानी 26 फीसदी कम है।

सरकार की बुवाई रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश राज्यों में पहले की तुलना में कम क्षेत्रों पर खेती की खबर है। यह कमी कुछ इस प्रकार दर्ज की गई है।“तमिलनाडु में 3.50 लाख हेक्टेयर, आंध्र प्रदेश में 0.31 लाख हेक्टेयर, कर्नाटक में 0.15 लाख हेक्टेयर, तेलंगाना में 0.13 लाख हेक्टेयर, असम में 0.12 लाख हेक्टेयर, ओडिशा में 0.09 लाख हेक्टेयर और केरल में 0.09 लाख हेक्टेयर जोतों पर खेती का काम नहीं हो पाया है।”

(वाघमारे विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत:अंग्रेजी में 10 जनवरी 2017 indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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