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स्वच्छ भारत अभियान के तहत जिन राज्यों ने सबसे खराब प्रदर्शन किया है, उनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और झारखंड का नाम शामिल है। याद रहे, कुछ दिन पहले ही पूरे देश ने गांधी जयंति (2 अक्टूबर 2016) के मौके पर स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) की दूसरी वर्षगांठ बड़े ही धूमधाम से मनायी है।

सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो इस अभियान के तहत सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले इन पांच राज्यों में 23 फीसदी से अधिक घरों में शौचालयों का इस्तेमाल नहीं किया गया है। यह आंकड़ा 28 सितंबर, 2016 तक का है। रिपोर्ट बताती है कि पिछले 15 वर्षों में इन पांच राज्यों में शौचालयों का इस्तेमाल करने वाले घरों में केवल 2 फीसदी की वृद्धि हुई है।

कहते हैं, इतिहास खुद को दोहराता है और यह बात भारत के स्वच्छता कार्यक्रम के लिए सही है। यहां एक और बात गौर करने वाली है कि 2016 में स्वच्छ भारत मिशन के तहत सबसे खराब प्रदर्शन वाले राज्य इससे पहले भी साफ-सफाई के मामले में फिसड्डी साबित हुए हैं। 17 वर्ष पहले जब पहली बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ‘एनडीए-1’ सत्ता में आया था तो ‘संपूर्ण स्वच्छता अभियान’ शुरू हुआ था। इस अभियान में भी इन पांच राज्यों का प्रदर्शन बेहद निराश करने वाला था। बाद में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने इसका नाम बदल कर निर्मल भारत अभियान रखा और इसे 607 जिलों तक ले जाया गया।

भारत की 120 करोड़ की जनसंख्या में से इन पांचों राज्यों की कुल 37 फीसदी की हिस्सेदारी है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और झारखंड में 44.8 करोड़ लोग रहते हैं। इन पांच राज्यों की तुलना में केवल चीन (130 करोड़ ) की आबादी अधिक है। यहां इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता है कि इन राज्यों में प्रदर्शन बेहतर किए बगैर स्वच्छ भारत मिशन के सफल होने की संभावना नहीं है।

28 सितंबर, 2016 तक देश भर में कम से कम 2.3 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया गया है। इसका मतलब है कि 55 फीसदी भारतीय घरों में शौचालयों का निर्माण हुआ है। 2014 की तुलना में शौचलयों के निर्माण के आंकड़ों में 42 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

कम से कम 1,536 गांवों को खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया है। 2014 में ऐसे गांवों की संख्या 697 थी। आंकड़ों की बात करें तो 23 जिलों में लोग खुले में शौच जाने को अब मजबूर नहीं हैं। 2014 की तुलना में सात ऐसे जिलों की संख्या बढ़ी है, जहां लोग खुले में शौच करने को बाध्य नहीं हैं। उनके पास शौचालय हैं।

घरों में शौचालय कवरेज, नीचे से पांच राज्य

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Source: Swachh Bharat Mission and Ministry of Rural Development

सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि 2016 में, बिहार में शौचालयों के साथ घरों का अनुपात सबसे कम रहा है, केवल 25 फीसदी। 2014 में यह आंकड़े 22 फीसदी थे। जाहिर है, मौजूदा हालात में 3 फीसदी का सुधार हुआ है।

स्वच्छता मिशन में खराब प्रदर्शन करने वाले नीचे से पांच राज्यों में शौचालयों के साथ वाले घरों के अनुपात में वृद्धि को देखा जाए तो ओडिशा में कुछ हद तक सुधार हुआ है। 2014 में, ओडिशा में 12 फीसदी ऐसे घर थे, जो शौचालय के साथ थे। 2016 में यह अनुपात बढ़ कर 33 फीसदी हुए हैं। लेकिन शौचालय के साथ घरों का राष्ट्रीय औसत फिलहाल 55 फीसदी है और इस लिहाज में भी ओडिशा अभी पीछे है।

फरवरी 2016 में स्वच्छता मंत्री द्वारा लोकसभा में दिए गए एक सवाल के जवाब के अनुसार, ओडिशा भी खुले में शौच करने वाले परिवारों का बड़ा अनुपात, लगभग 77 फीसदी दर्ज किया गया है। इस संबंध में 76 फीसदी के आंकड़ों के साथ बिहार दूसरे और 64 फीसदी के साथ झारखंड तीसरे स्थान पर है।

खुले में शौच करने वाले परिवारों की संख्या, नीचे से पांच राज्य

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Source: Lok Sabha and Census 2011

पिछले स्वच्छता अभियान के तहत बिहार में 19 फीसदी से अधिक परिवारों में शौचालय नहीं थे। जबकि झारखंड में यह आंकड़ा 32 फीसदी के करीब था। वर्ष 2011 की बात करें तो खुले में शौच करने वाले परिवारों के मामले में झारखंड की हालत और भी दयनीय थी।झारखंड में 91 फीसदी से अधिक परिवार खुले में शौच करते थे। मध्य प्रदेश में यह आंकड़ा 86 फीसदी का था और ओडिशा में 84 फीसदी।

उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और झारखंड को स्वच्छता कार्यक्रमों के लिए राष्ट्रीय बजट का 45 फीसदी दिया गया है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अक्टूबर 2012 में विस्तार से बताया है।

नियंत्रक महालेखा परीक्षक और जनरल (कैग) की 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, इन राज्यों में स्वच्छता अभियान के सफल न हो पाने के पीछे के मुख्य कारण साफ-सफाई के प्रति जागरूकता की कमी, जानकारी का आभाव और शिक्षा की कमी हैं। विशेष रुप से मध्य प्रदेश में, जहां बड़ी संख्या आदिवासियों की भी है। मध्यप्रदेश की 21 फीसदी आबादी आदिवासियों की है, जो कम से कम सात भाषाएं बोलते हैं, जबकि सरकार द्वारा प्रचार के लिए बांटी गई सामग्रियां हिंदी में होती हैं।

कैग रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि 13 राज्य की सरकारों ने स्वच्छता धनराशि का इस्तेमाल अन्य प्रयोजनों के लिए किया। इन राज्यों की सरकारों ने इस राशि का उपयोग अग्रिम वेतन देने, कर्मचारियों की छुट्टियों के लिए भुगतान करने और वाहन खरीदने के लिए किया। कहीं-कहीं तो इस राशि का इस्तेमाल पेंशन योगदान और पूंजीगत परिसंपत्तियों की खरीद के लिए भी किया गया।

(सालवे विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत:अंग्रेजी में 1 अक्टूबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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