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काले धन पर सरकारी कमीशन की एक रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2007 में लगभग 5.3 लाख करोड़ रुपए भारत से अवैध रुप से बाहर गए हैं। यह रकम वर्तमान में 64 रुपए प्रति अमरीकी डालर के विनिमय दर पर है। अगर देखा जाए तो देश में पानी की कमी और बाढ़ के मुद्दे को हल करने करने के लिए जल संसाधन मंत्रालय ने नदियों को जोड़ने के लिए जो अनुमानित लागत बताया है, यह राशि लगभग उसके बराबर है।

देश के नदियों को जोड़ने की लागत का अनुमान 5.6 लाख करोड़ रुपए है। अवैध रूप से बाहर गया धन इससे मात्र 5 फीसदी कम है। ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ के सहयोग के साथ ‘इकोनोमिक एंड पॉलिटिकल वीकली’ ने हाल ही में काले धन पर ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनैन्स एंड पॉलिसी’ (एनआईपीएफपी) की रिपोर्ट अपलोड की है। 1200 पेज की इस रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं को 3 मई, 2017 को ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ ने प्रकाशित किया है। ‘द हिंदू’ में इसे अगस्त, 2014 में प्रकाशित किया गया है। रिपोर्ट को अभी तक उसे सार्वजनिक किया जाना बाकी है।

वर्ष 2012 में रिपोर्ट पर काम अधिकृत किया गया था। इसे वर्ष 2013 में कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के तहत ‘सेंट्रल बोर्ड ऑफ डाइरेक्ट टैक्स ’ के सामने रखा गया था। वर्तमान राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार द्वारा अब तक इस रिपोर्ट को जारी नहीं किया गया है।

‘फार्मास्यूटिकल्स सेक्टर’ ने वर्ष 2009-10 में 46,200 करोड़ रुपए का काला धन उत्पन्न किया है। यह आंकड़े उतने ही हैं, जितने एयर इंडिया के चेयरमैन ने कुछ दिन पहले एयरलाइन के बदलाव के लिए अपनी जरूरत बताए थे। इस संबंध में 15 मई, 2017 को इंडियन एक्सप्रेस की इस रिपोर्ट में बताया गया है।

वर्ष 2010 में भारत से अंडर- या ओवर-बिलिंग निर्यात या आयात में 2.3 लाख करोड़ रुपए का काला धन उत्पन्न हुआ है। यह राशि वर्तमान में 64 रुपए प्रति अमरीकी डालर के विनिमय दर पर है।

यह राशि ग्रामीण क्षेत्र पर खर्च करने की सरकार की योजना (1.87 लाख करोड़ रुपए) से 28 फीसदी अधिक है। जबकि 2017-18 में सड़कों, रेलवे, नौवहन और परिवहन के अन्य तरीकों (2.4 लाख करोड़ रूपए) के लिए बजट की तुलना में सिर्फ 4 फीसदी कम है।

एनआईपीएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2000 से 2010 के बीच विदेशों में काले धन का प्रवाह भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से 1 फीसदी से 7 फीसदी तक कम है।

संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और मेक्सिको जैसे देशों तक अवैध रूप से धन भेजने के लिए निर्यात का उपयोग किया जाता है। हांगकांग, नीदरलैंड, स्विटजरलैंड और सिंगापुर जैसे देशों के लिए निर्यात और आयात दोनों ही अवैध धनों के प्रवाह से जुड़े हैं।

सिंगापुर से सबसे ज्यादा काला धन देश में आता है, जबकि देश से सबसे ज्यादा काला धन स्विट्जरलैंड को जाता है।

अवैध वित्तीय प्रवाह, 1997-2009

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एनआईपीएफपी की रिपोर्ट में 11 ऐसे क्षेत्रों की पहचान की गई है, जो ‘अलिखित आय’ के बड़े स्त्रोत हैं। ये क्षेत्र हैं रसायन और रासायनिक उत्पाद, निर्माण, भूमि परिवहन, कृषि, पेट्रोलियम उत्पाद, लोहा और धातु उत्पाद, बिजली, संचार, खनन, मशीनरी विनिर्माण और व्यापार और व्यापार सेवाएं। रियल एस्टेट तथा सोने के आभूषणों की पहचान उन क्षेत्रों के रूप में की गई है, जहां बड़ी संख्या में आकर लोग अपनी बेहिसाब आय को छुपाते हैं।

रियल एस्टेट तथा सोने के आभूषणों की पहचान उन क्षेत्रों के रूप में की गई है, जहां बड़ी संख्या में आकर लोग अपनी बेहिसाब आय को छुपाते हैं।

बड़े कर चोरी करने वाले अक्सर पेशेवर

एनआईपीएफपी की रिपोर्ट में कहा गया है कि, “ चिकित्सा पेशेवरों, फैशन डिजाइनरों, कानूनी पेशेवरों के यहां नकदी / बिना बिल के लेन-देन के कारण अलिखित आय की संभावना बढ़ जाती है। ”

पेशेवरों द्वारा दायर आय और सेवा कर के रिटर्न के बीच कोई संबंध नहीं है। रिपोर्ट कहती है कि इससे स्पष्ट रुप से बड़े पैमाने पर अलिखित या असूचित आय और मुद्रास्फीति का संकेत मिलता है।

रिपोर्ट में व्यावसायिक खर्चों की संभावित सीमा के लिए बेंचमार्क की स्थापना और सेवा कर भुगतान और आय के बीच संबंध सुधारने के लिए टैक्स फॉर्म में सुधार जैसे उपाय सुझाए गए हैं।

खनन और फार्मा को बेहतर विनियमन की आवश्यकता

रिपोर्ट कहती है, “ अपर्याप्त निगरानी और विनियमन के कारण खनन में लाइसेंस का व्यापक दुरुपयोग हुआ है। यह भ्रष्टाचार की बड़ी वजह भी है।”

औसत अलिखित आमदनी का जो प्रतिशत बताया गया है, वह खनन से मिलने वाले जीडीपी के बराबर है... यह पिछले एक दशक में 2001-0 [इस प्रकार] से 10.32 प्रतिशत अनुमानित है और इसमें अवैध खनन शामिल नहीं हैं।

सात राज्यों में गैरकानूनी खनन के अध्ययन के लिए यूपीए सरकार द्वारा जस्टिस एम बी शाह के नेतृत्व में 2010 में गठित समिति तीन साल बाद अचानक खत्म कर दिया गया है। शाह समिति केवल कर्नाटक पर फाइनल रिपोर्ट जमा कर सकी थी।

रिपोर्टिंग खनन और एनआईपीएफपी अनुमान के बीच विसंगति, 2000-10

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एनआईपीएफपी की रिपोर्ट कहती है कि फार्मास्युटिकल क्षेत्र में कई नियंत्रक एजेंसियों के बीच समन्वय के अभाव से वर्ष 2000 से 2010 के बीच बिक्री की अपर्याप्त रिपोर्टिंग और अवैध दवाओं की बिक्री की कम रिपोर्टिंग को बढ़ावा मिला है।

बेहिसाब दवा उत्पादन, 2002-10

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द नेशनल ड्रग्स सर्वे 2014-16 ने 47,012 दवाओं के नमूने के परीक्षणों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में अवैध और नकली दवाओं (लाइसेंस प्राप्त खुदरा दुकानों और सरकारी दुकानों पर) का हिस्सा क्रमशः 3.16 फीसदी और 0.0245 फीसदी होने का अनुमान लगाया गया है।

हालांकि, अवैध और नकली दवाओं में रिटेल आउटलेट की हिस्सेदारी क्रमशः 3 फीसदी और 0.023 फीसदी है और सरकारी दुकानों की हिस्सेदारी क्रमशः 10.02 फीसदी और 0.059 फीसदी है।

एनआईपीएफपी की रिपोर्ट में कहा गया है कि फार्मा क्षेत्र में छोटे पैमाने की इकाइयों की बड़ी संख्या भी निगरानी मुश्किल बनाती है।

इस अध्ययन में कहा गया है कि ‘द नेशनल रुरल हेल्थ मिशन’ (एनआरएचएम) ने वर्ष 2006-08 में सरकारी खरीद के दौरान बेहिसाब बिक्री की जांच की थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि, सरकारी खरीद बेहिसाब उत्पादन को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है।

ड्रग व्यापार को नियंत्रित करने के लिए अमेरिकी राज्यों में प्रीपेड टैक्स टिकटों के इस्तेमाल का हवाला देते हुए रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि उत्पादन किए जाने वाले प्रत्येक इकाई पर चिपकाने के लिए फार्मा कंपनियों को एकल उपयोग वाली टिकटें जारी की जानी चाहिए।

वर्ष 2011-12 में पीडीएस केरोसीन को हटाने से 11,000 करोड़ रुपए का काला धन

रिपोर्ट के अनुमान के मुताबिक, डीजल में मिलावट के लिए पब्लिक डिस्ट्रब्यूशन सिस्टम (पीडीएस) केरोसीन का इस्तेमाल धड़ल्ले से हुआ। एनआईपीएफपी अनुमानों के मुताबिक कुल बिक्री का लगभग 36 फीसदी। इससे वर्ष 2011-12 में 11,910.1 करोड़ रुपए की आय हुई है।

यह राशि पेय जल और स्वच्छता मंत्रालय के लिए सरकार के बजट ( 11,005.24 करोड़ रुपए ) से 8 फीसदी अधिक है। यह रकम वर्ष 2011-12 में महिला और बाल विकास मंत्रालय के लिए अपने बजट (12,733 करोड़ रुपए ) से मात्र 6 फीसदी कम है।

केरोसिन की कीमत पर नियंत्रण और दोनों उत्पादों पर लगाए गए कर को इसके लिए दोषी माना जाता है।जुलाई 2015 में पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2013-14 में आवंटित पीडीएस केरोसिन का 41 फीसदी रिसाव में चला गया।

काली अर्थव्यवस्था का आकार

जीडीपी के आकलन के लिए जिस आय की रिपोर्ट नहीं की गई उसे बेहिसाब आय या अलिखित के रूप में परिभाषित किया गया है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2009-10 में कुल अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद का 41.7 फीसदी या सकल घरेलू उत्पाद का 71.5 फीसदी काला धन है।

काली अर्थव्यवस्था का आकलन करने के तरीकों में से एक यह मानता है कि बेहिसाब आय का हिस्सा किसी अर्थव्यवस्था में स्टॉक धन के प्रवाह में परिलक्षित होता है। चूंकि अवैध लेन-देन ज्यादातर नकदी में होता है, इसलिए आधिकारिक अर्थव्यवस्था से कोई भी चोरी मुद्रा की मांग बढ़ाएगा। मुद्रा की मांग में बदलाव को देखते हुए, एनआईपीएफपी ने ज्ञात स्टॉक के धन से जीडीपी के आकार का अनुमान लगाया है। अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद का रिपोर्ट की गई जीडीपी के साथ तुलना की जा रही है। एनआईपीएफपी की रिपोर्ट के अनुसार, दो जीडीपी के बीच का अंतर काली अर्थव्यवस्था है।

वर्ष 2010 की विश्व बैंक के वर्किंग पेपर के मुताबिक, वर्ष 2007 में भारत की काली अर्थव्यवस्था जीडीपी का 24 फीसदी होने का अनुमान था। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अरुण कुमार ने 1999 में भारत में काले अर्थव्यवस्था पर एक किताब लिखी थी। प्रोफेसर कुमार का अनुमान है कि यह वर्ष 2013 में बढ़कर 62 फीसदी हुआ है।

अर्थशास्त्री आमतौर पर एक भौतिक सूचक का उपयोग करते हैं, जिसे काली अर्थव्यवस्था के आकार का अनुमान लगाने के लिए बेहिसाब आर्थिक गतिविधि से संबंधित माना जाता है। एनआईपीएफपी रिपोर्ट ने भूमि माल परिवहन का उपयोग किया क्योंकि इसका उपयोग अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में एक इनपुट के रूप में किया जाता है। उदाहरण के लिए, अवैध खनन से निकाले गए अयस्क को जाने के लिए ट्रकों की आवश्यकता होगी। वास्तव में, भूमि परिवहन और निर्माण में बेहिसाब आय खनन में बेहिसाब गतिविधियों से जुड़ी हुई हैं, जैसा की रिपोर्ट में बताया गया है।

रिपोर्ट में भूमि माल परिवहन के लिए एक ट्रक की औसत उम्र 6-7 वर्ष मानते हुए वर्ष 2011-12 के सकल घरेलू उत्पाद का 63.4 फीसदी अलिखित या अघोषित जीडीपी के रूप में बताया गया है।जब ट्रकों की औसत आयु 15 साल माना जाता है, तो वर्ष में हिस्सा 164 फीसदी माना जाता है। रिपोर्ट के अनुमान के अनुसार, देश के उत्पादन में सड़क परिवहन का हिस्सा 1980-81 और 2010-11 के बीच 3से 5 फीसदी के बीच था।

अवैध आर्थिक गतिविधियों के लिए प्रॉक्सी संकेतकों के आधार पर (मांग और सावधिक जमा और अन्य जमाओं में मुद्रा में मुद्रा का अनुपात) रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बेहिसाब आय का हिस्सा 1980-81 में 70-75 फीसदी से 2009-10 में 40 फीसदी तक गिरा है। रिपोर्ट किए गए जीडीपी के हिस्से के रूप में 1980 के दशक में 200-300 फीसदी से 2009-10 में करीब 70 फीसदी गिरा है।

1980 में जीडीपी में बेहिसाब आय का दशकीय हिस्सा 70 से 75 फीसदी था। 1990 में 60 फीसदी और 2000 में करीब 45 फीसदी था। रिपोर्ट ने आंशिक रूप से 1980 के दशक के बाद से कर और अन्य आर्थिक सुधारों को जिम्मेदार ठहराया है।

आंकड़ों की कमी के कारण रिपोर्ट के आधार पर निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि क्या उच्च स्तर के कर, बेरोजगारी आदि काले धन के लिए जिम्मेदार हैं या इसका उल्टा है।

काली अर्थव्यवस्था के आकलन की सीमाएं

सीमाओं के संबंध में रिपोर्ट में कहा गया है कि नीति विकल्पों के विश्लेषण में संगठित और सुसंगत डेटा की कमी का सामना करना पड़ा है।

उदाहरण के लिए, खनन पर विभिन्न अधिकारियों द्वारा दी गई सूचनाओं में बड़े अंतर थे, जो सार्वजनिक डेटा की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है, "भारत में सोने की बिक्री और खरीद के एकमात्र आधिकारिक आंकड़े विश्व गोल्ड काउंसिल से हैं।"

रिपोर्ट यह भी कहती है कि, "यह प्रतीत होता है कि ज्यादातर नीति विश्लेषण अनुभव और अनुमानों पर आधारित होगा।"

रिपोर्ट में खनन क्षेत्र के लिए ‘भारतीय खनिज ईकाई की अति अविश्वसनीयता’ से सेटेलाइट इमेजरी जैसे प्रौद्योगिकियों की ओर बढ़ने की सलाह दी गई है।

(विवेक विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 19 मई 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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