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मुंबई: जनवरी 2018 में, नकली आधार कार्ड का उपयोग कर बैंक से फर्जी ऋण लेने और मोबाइल फोन खरीदने वाले आठ लोगों को चंडीगढ़ में गिरफ्तार किया गया था। आरोपियों में एक पूर्व बैंकर और वित्त कंपनी के कर्मचारी शामिल थे। इन लोगों ने बैंक से ऋण लेने के लिए दूसरों के आधार कार्ड पर अपनी तस्वीरें लगाई थी। इन लोगों को भारतीय दंड संहिता के के तहत धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक षड्यंत्र के तहत गिरफ्तार किया गया है।

भारत की विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) आधार कार्यक्रम के दुरुपयोग की 73 घटनाओं में से यह केवल एक है, जिन्हें इस साल तक अंग्रेजी भाषा के मीडिया में रिपोर्ट की गई है (7 मई, 2018 तक)। स्वतंत्र शोधकर्ता अनमोल सोमाची और विपुल पाइक्रा द्वारा बनाए गए एक नए डेटाबेस के मुताबिक, औसतन यहां हर हफ्ते करीब चार घटनाएं होती है।

इनमें से, 52 मामलों में फर्जी या नकली आधार संख्या शामिल हैं ( फर्जी विवरणों के आधार पर पूरी तरह से नए आधार नामांकन के साथ आ रहे हैं, या तस्वीरों जैसे कुछ विवरणों को बदलकर मौजूदा कार्ड धोखाधड़ी ) और 21 आधार से संबंधित बैंकिंग धोखाधड़ी के मामले शामिल हैं।

सितंबर 2011 में आधार कार्यक्रम के लॉन्च होने के बाद छह वर्षों में, अंग्रेजी भाषा के मीडिया में फर्जी या नकली आधार संख्याओं और आधार से संबंधित बैंकिंग धोखाधड़ी के 164 मामले रिपोर्ट किए गए हैं, जैसा कि डेटाबेस में उल्लेख किया गया है। इनमें फर्जी या नकली आधार संख्या या कार्ड के 123 मामले और आधार से संबंधित बैंकिंग धोखाधड़ी के 41 मामले शामिल हैं।

सोमाची ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए कहा, "इस डेटाबेस में आधार से संबंधित धोखाधड़ी और जालसाजी की सभी घटनाओं को शामिल नहीं किया गया है। हमने शुरुआत में हिंदी में छपी खबरों को शामिल किया था और ऐसी कई घटनाएं मिलीं। चूंकि हम अन्य सभी क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल नहीं कर सके, इसलिए हमने डेटाबेस को अंग्रेजी समाचार रिपोर्टों तक सीमित कर दिया। "

डेटाबेस के निष्कर्षों पर टिप्पणी के लिए कई प्रयासों के बाद भी यूआईडीएआई से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। 30 अप्रैल, 2018 को, इंडियास्पेंड ने यूआईडीएआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के कार्यालय तक ईमेल के माध्यम से संपर्क किया। 2 मई, 2018 को, हमने फिर से संपर्क किया और संचार टीम ने बताया कि यूआईडीएआई हमसे वापस संपर्क करेगा। 3 मई, 2018 को, इंडियास्पेंड ने तीसरी बार टेलीफोन के जरिए संपर्क साधा। 8 मई, 2018 को, हमने एक तीसरा ईमेल भेजा।

अगर हमे प्रतिक्रिया प्राप्त होती है तो लेख प्राधिकरण की प्रतिक्रिया के साथ अपडेट की जाएगी।

साफ तस्वीर नहीं

सोमाची कहते हैं, "आधार के आस-पास की अस्पष्टता ने बढ़ती संख्या में ऐसे मामलों को जन्म दिया है, जहां नागरिक अपने पैसे से जूझ रहे हैं। भारत अभी भी सीमित वित्तीय तकनीकी साक्षरता से जूझ रहा है-लोग इस बात से निश्चित नहीं हैं कि उन्हें क्या साझा करना चाहिए या नहीं साझा करना चाहिए और अधिकारी स्पष्टता प्रदान करने में असफल रहे हैं। "

सोमांची ने आगे कहा, "एक तरफ वे आधार संख्या की विशिष्टता की बात करते हैं कि इसमें सब कुछ परत दर परत सुरक्षित है - दूसरी ओर वे आधार विवरण साझा करने पर सावधानी बरतने की सलाह देते हैं। तो नागरिकों को क्या विश्वास करना चाहिए? "

अप्रैल 2018 तक, 1.2 बिलियन से अधिक भारतीयों ( 99.7 फीसदी आबादी ) ने आधार कार्यक्रम के तहत नामांकन किया था।आधार डेटाबेस, जिसे सरकार नीति, विनियमन और लाभ-हस्तांतरण कार्यक्रमों के साथ एकीकृत करने के इच्छुक है, में प्रत्येक नामांकित व्यक्ति के फिंगरप्रिंट, आईरिस स्कैन और जनसांख्यिकीय विवरण शामिल हैं। 1 जुलाई, 2018 से, सिस्टम में पहचान प्रमाणीकरण के लिए चेहरे की पहचान सुविधाएं भी शामिल होंगी।

वर्ष-वार आधार नामांकन और नकली या धोखाधड़ी आधार के मामलों की रिपोर्ट

Year-Wise Aadhaar Enrolment And Cases Of Fake Or Fraud Aadhaar Reported
YearCitizens Enrolled (Cumulative)Reported Incidents Of Aadhaar Misuse
2011100 million
2012210 million3
2013510 million1
2014720 million4
2015930 million6
20161.11 billion13
20171.18 billion65
2018*1.21 billion73

Source: Unique Identity Authority of India; Somanchi & Paikra's database of media reports on Aadhaar-related forgery, counterfeit and fraud

Note: *Data as of May 2018

एक तिहाई मामलों में कई यूआईडी नंबर शामिल

नकली या फर्जी आधार संख्या या कार्ड के मामलों में, रिपोर्ट की गई 123 घटनाओं में से 52 (42 फीसदी ) में केवल आधार विवरणों की जालसाजी शामिल है, जैसा कि डेटाबेस से पता चलता है।

कम से कम 38 मामलों में, अन्य दस्तावेज जैसे स्थायी खाता संख्या ( आयकर विभाग द्वारा चालक को आवंटित एक अद्वितीय 10-अंकीय अल्फान्यूमेरिक पहचान ) चालक का लाइसेंस और मतदाता पहचान पत्र भी जाली या फर्जी पाया गया था, जैसा कि डेटाबेस से पता चलता है।

हाल ही में मुंबई से मिली धोखेधड़ी के मामले में, आधार सहित जाली दस्तावेजों का उपयोग करके 40 बैंक खाते खोले गए थे, जैसा कि 31 मार्च, 2018 की हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, जिसे डेटाबेस में शामिल किया गया है। अभियुक्त ( जिसने नकली आधार संख्याओं का उत्पादन करने के लिए आंख और उंगली स्कैनर हासिल किया था ) फर्जी आधार कार्ड बनाने के लिए 2,000 रुपये, नकली पैन कार्ड के लिए 800 रुपये, नकली चालक के लाइसेंस के लिए 10,000 रुपये और नकली मतदाता पहचान पत्र के लिए 1,000 रुपये लेते हैं, जैसा कि रिपोट में बताया गया है।

27 से 33 फीसदी मामलों में कितने दस्तावेज जाली थे, इस बारे में जानकारी अनुपलब्ध थी, इसे डेटाबेस में नोट कर किया गया है।

फर्जी या नकली आधार कार्ड / संख्या के मामलों में से एक तिहाई (43) से अधिक में कई आधार संख्याओं की जालसाजी शामिल हैं, जिसे शोधकर्ता सोमाची ने डेटाबेस में "आधार रैकेट" के रूप में वर्णित किया है। इनमें पांच मामले शामिल हैं जहां आधार संख्या सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का दुरुपयोग करने के लिए नकली की गई है, जिसके अंतर्गत देश भर में वंचित नागरिकों को सब्सिडी वाले अनाज और गैर-खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराए जाते हैं।

उदाहरण के लिए, बेंगलुरु में, कर्नाटक राज्य के खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग ने राज्य की अन्ना भाग्य योजना के तहत वितरित सब्सिडी वाले खाद्यान्न को बंद करने के लिए नीचे गरीबी रेखा (बीपीएल) राशन कार्ड से फर्जी आधार पर फर्जी आधार संख्याओं का बड़े पैमाने पर गलत उपयोग के बारे में पता लगाया है, जैसा कि 13 अक्टूबर 2016 को ‘डेक्कन क्रॉनिकल’ की रिपोर्ट में बताया गया है, जिसे डेटाबेस में सूचिबद्ध किया गया है।

विवाद और प्रतिवाद

हालांकि, आधार से संबंधित गड़बड़ी पीडीएस के लाभार्थियों की पहुंच को रोकने वाली अन्य समस्याओं की तुलना में बहुत कम हैं, जैसा कि 17 मई, 2018 को जारी ‘फिलांथ्रोपिक इंवेस्टमेंट फर्म ओमिदियार नेटवर्क’ द्वारा स्टेट ऑफ आधार 2017-18 रिपोर्ट में बताया गया है। सितंबर और दिसंबर 2017 के बीच, ग्रामीण आंध्र प्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में लगभग 2 मिलियन पीडीएस लाभार्थियों, जो सभी पीडीएस लाभार्थियों का 0.8 फीसदी, 2.2 फीसदी या 0.8 फीसदी के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें आधार से संबंधित कारकों के कारण राज्यों के पीडीएस कार्यक्रमों से बाहर रखा गया था। हालांकि, गैर-आधार कारकों (जैसे कि राशन की अनुपलब्धता) के कारण लाभार्थियों का एक बड़ा हिस्सा, 6.5 फीसदी को बाहर रखा गया था, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि, 2014-15 से 2017-18 तक, आधार की प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण प्रणाली के साथ-साथ डिजिटलीकरण और अन्य पहलों ने सरकार को 27.5 मिलियन नकली और डुप्लिकेट राशन कार्ड का पता लगाने और हटाने के लिए सक्षम किया है, जो पीडीएस कार्यक्रम में 16,792 करोड़ रुपये बचा रहा है।

हालांकि, सरकार ने इस दावे के समर्थन में डेटा उपलब्ध नहीं कराया है। यह भी स्पष्ट नहीं किया कि विलोपन को कैसे गिना जाता है, अगर वे सिस्टम के तकनीकी स्नैग में पकड़े गए वास्तविक लाभार्थियों को शामिल करते हैं, और कैसे आधार विशेष रूप से नकली हटाने में योगदान देता है, जैसा कि रिपोर्ट में बताया गया है।

पहचान भ्रष्टाचार को खत्म करना आधार कार्यक्रम के प्राथमिक उद्देश्यों में से एक रहा है, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना ​​है कि आधार एकीकरण ने कल्याण कार्यक्रमों के लिए कोई महत्वपूर्ण लाभ नहीं उठाया है, जैसा कि अर्थशास्त्री रीतिका खेरा ने दिसंबर 2017 में ‘इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली’ में प्रकाशित इस अध्ययन में कहा था।

खेरा ने अपने अध्ययन में तर्क दिया कि आधार-लिंकिंग ने प्रशासनिक नियंत्रणों के अति-केंद्रीकरण की सुविधा प्रदान की है । वह आगे कहती हैं, "अगर किसी व्यक्ति की प्रमाणिकता साबित नहीं होती है, तो कोई दूसरा आसान या सुलभ समाधान उपलब्ध नहीं है।"

सोमाची ने इंडियास्पेंड को बताया, "तेजी से इस तरह की होने वाली घटनाएं, बताते हैं कि पहचान या योग्यता धोखाधड़ी से अधिक धोखाधड़ी कल्याण के मामले में है। आधार के बावजूद, पीडीएस के तहत खाद्यान्न आवंटन और राशि के मामले कथित अनियमिताएं और भ्रष्टाचार से निजात नहीं मिल पाई है। "

आधार रैकेट के अलावा, भारत में रहने के लिए नकली आधार पहचानों को बनाने या धोखाधड़ी करने वाले अवैध प्रवासियों के 19 मामलों की भी सूचना मिली है, जिसे डेटाबेस में शामिल किया गया है। चार मामलों में, बैंक से ऋण प्राप्त करने के लिए आधार संख्या धोखाधड़ी की गई थी। दो मामलों में, आतंकवादियों ने देश में अपने प्रवास को वैध बनाने के लिए नकली / जाली आधार संख्याएं खरीदी थीं।

आधार कार्यक्रम हमेशा विवादास्पद रहा है। विशेष रूप से 2016 के सरकार के आधार के साथ कई सरकारी सेवाओं और लाभों को अनिवार्य रूप से जोड़ने के लिए कदम उठाने के बाद से, जैसा कि जैसा कि इंडियास्पेंड ने 31 मार्च, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने आधार की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं का एक समूह सुनना अभी खत्म कर दिया है ( शीर्ष अदालत के इतिहास में दूसरी सबसे लंबी मौखिक सुनवाई ) और जुलाई या अगस्त में एक फैसले की घोषणा करने की संभावना है, जैसा कि 11 मई, 2018 को डीएनए ने अपनी रिपोर्ट में बताया है।

‘द फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ ने 5 अप्रैल, 2018 की रिपोर्ट में बताया है कि एक सुनवाई के दौरान, राज्य के लिए उपस्थित अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने तर्क दिया कि कार्यक्रम बैंक धोखाधड़ी, अवैध वित्तीय लेनदेन, और आतंकवादियों द्वारा दूरसंचार नेटवर्क के दुरुपयोग को रोक देगा।

हालांकि, ‘द फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट में बताया गया है कि “शीर्ष अदालतों ने माना है कि बैंकिंग धोखाधड़ी को रोकने के लिए आधार से कुछ नहीं हो सकता है और ‘कुछ आतंकवादियों को पकड़ने के लिए’ देश की पूरी आबादी के मोबाइल फोन को आधार से जोड़ने के सरकार के उठाए गए कदम पर सवाल भी उठाए।”

सोमाची कहते हैं, "इसे आतंकवाद या बैंकिंग धोखाधड़ी के लिए कारण समझना एक गलतफहमी है। सभी समस्याओं के लिए आधार को एक रामबाण के रूप में समझना भी गलत है। "

इसके अलावा, ऐसे मामले रहे हैं जहां व्यक्ति पहचान पत्र के रूप में अपने आधार कार्ड का उपयोग करने में असमर्थ रहे हैं क्योंकि उनके बॉयोमीट्रिक डेटा रिकॉर्ड के साथ मेल नहीं खाते थे।

हाल ही में एक अदालत की सुनवाई में, यूआईडीएआई ने स्वीकार किया कि फिंगरप्रिंट (927,123 लेन-देन) का उपयोग करते हुए आधार प्रमाणीकरण अनुरोधों का 6 फीसदी असफल होने के लिए जाना जाता है और आईरिस स्कैन का उपयोग के संबंध में यह आंकड़े 8.5 फीसदी (36.9 मिलियन लेनदेन) हैं, जैसा कि लाइव लॉ ने 3 अप्रैल, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

29 मार्च, 2018 को ‘द क्विंट’ में छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक, कुल मिलाकर, सरकारी सेवाओं तक पहुंचने के लिए आधार आधारित बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण 12 फीसदी मामलों में असफल दर्ज किया गया है, यह बात यूआईडीएआई ने अदालत को बताई है। हालांकि, इसने इनकार किया कि इसका मतलब सब्सिडी या लाभों से बहिष्कार है और यह कहा कि प्रमाणीकरण अनुरोध एजेंसी को ऐसे मामलों में पहचान के वैकल्पिक साधनों का उपयोग करना चाहिए, जैसा कि लाइव लॉ की रिपोर्ट में बताया गया है।

सोमांची कहते हैं, “संयुक्त रुप से डेटाबेस के निष्कर्षों के साथ अदालत में यूआईडीएआई की प्रस्तुति से जो बात सामने आती हैं, वह यह है कि न तो आधार बॉयोमीट्रिक्स विश्वसनीय हैं, न ही कार्ड अचूक हैं।

(सलदानहा सहायक संपादक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। लेख में मनप्रीत सिंह का इनपुट है। मनप्रीत पुणे के ‘सिम्बियोसिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ से स्नातक हैं और इंडियास्पेंड में इंटर्न हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 23 मई, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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