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संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 तक चीन को पछाड़ते हुए भारत दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। संयुक्त राष्ट्र ने पहले इस जनसंख्या विस्फोट होने का अनुमान साल 2028 में किया था।

संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक साल 2015 में भारत की जनसंख्या 1.311 बिलियन दर्ज की गई है जबकि इसी साल चीन की आबादी 1.376 बिलियन देखी गई है। यानि दोनो देशों के बीच का अंतर 65 मिलियन लोग ही हैं।

इससे पहले साल 2020 तक चीन की1.43 बिलियन आबादी के मुकाबले भारत की आबादी 1.35 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान किया गया था। साल 2028 तक भारत की आबादी 1.454 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान किया गया था जबिक चीन की आबादी 1.453 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद थी।

जनसंख्या : भारत एवं चीन 2015-2100

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Source: World Population Prospects: The 2012 Revision & 2015 Revision (medium variant); figures in thousand.

संयुक्त राष्ट्र की विश्व जनसंख्या संभावनाएं: पूर्व आंकड़े जिसमें की 2010 की राष्ट्रीय जनसंख्या जनगणना सर्वेक्षण के परिणाम अलावा विश्व के विशेष जनसांख्यिकीय और स्वास्थ्य सर्वेक्षण के परिणाम शामिल हैं, इनके आधार पर 2015 का पूर्वानुमान किया गया है।

यह वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या प्रवृति के आकलन के लिए जनसांख्यिकीय आंकड़ा और संकेतक एवं संयुक्त राष्ट्र प्रणाली द्वारा इस्तेमाल के लिए कई महत्वपूर्ण संकेतक प्रदान करता है।

यदि पूर्वानुमान की गई संभावनाएं लागू होती हैं तो जल्द ही भारत चीन को पीछे छोड़ते हुए विश्व में सर्वाधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। भारत की जनसंख्या घनत्व पहले से ही चीन के मुकाबले दोगुनी है। चीन के लिए यह आंकड़े 141 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है जबकि भारत के लिए यही आंकड़े 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है।

कैसे आई तारीख 2050 से 2022 तक

प्रोफेसर शिवा राजू, मुंबई में टाटा समाज विज्ञान संस्थान में जनसंख्या , स्वास्थ्य और विकास केंद्र के अध्यक्ष के अनुसार भारत में जनसंख्या का प्रभाव सबसे पहले साल 2050 में होने का अनुमान किया गया था।फिर धीरे-धीरे यह अनुमान 2040 और फिर 2030 में होने का अनुमान किया गया।

लेकिन भारत की तुलना मेंचीन की जनसंख्या विकास तेजी से धीमी होने के साथ संयुक्त राष्ट्र की संभावनाएं बदल गई हैं, जो यह बताती हैं कि साल 2022 में भारत सर्वाधिक आबादी वाला देश बन जाएगा।

जनसंख्या वृद्धि दर चीन एवं भारत – 1950-2100

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Source: World Population Prospects: The 2015 Revision (medium variant); figures in %

हाल ही में जुलाई 29 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी किए गए रिपोर्ट के अनुसार विश्व की कुल जनसंख्या में चीन एवं भारत की हिस्सेदारी 19 फीसदी और 18 फीसदी की है।

एशिया के पांच देश, चीन, भारत, इंडोनशिया, बंग्लादेश एवं पाकिस्तान, विश्व के 10 सबसे बड़े देशों में से है। दो लैटिन अमेरिका ( ब्राजील और मेक्सिको) , एक अफ्रीका (नाइजीरिया) में प्रत्येक , उत्तरी अमेरिका में (अमरीका), और यूरोप (रूसी संघ ) में हैं।

विश्व की आबादी 1.3 बिलियन है। साल 2030 तक यह संख्या 8.5 बिलियन, 2050 तक 9.7 बिलियन और 2100 तक 11.2 बिलियन तक पहुंचने की संभावना है।

रिपोर्ट यह भी बताती है कि साल 2015 से 2050 के बीच दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या में वृद्धि इन नौ देशों में होगी - भारत , नाइजीरिया, पाकिस्तान , कांगो, इथियोपिया , तंजानिया, अमेरिका , इंडोनेशिया और युगांडा।

डॉ फौज़दार राम, मुंबई में अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान के निदेशक, ने इंडियास्पेंड से बातचीत करते हुए बताया कि पहले जनसंख्या मामले में 2035 तक भारत के चीन को पीछे छोड़ने का अनुमान किया गया था।

चीन के प्रजनन दर में, जीवन काल में एक महिला की बच्चे जन्म देने की औसत संख्या, भारत के मुकाबले तेजी से गिरावट देखने मिली है। यही कारण है कि चीन में भारत की तुलना में कम जनसंख्या वृद्धि हो रही है।

प्रजनन दर भारत एवं चीन 1950-2015

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Source: World Population Prospects: The 2015 Revision (medium variant); figures in no. of children born per woman

फ्रांसकोइस पेलेटियर , प्रमुख, जनसंख्या अनुमान और अनुमानों धारा, न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग ने इंडियास्पेंड से बातचीत के दौरान बताया कि संयुक्त राष्ट्र के ताज़ा राय के अनुसार 2010 से 2015 के बीच चीन के कुल प्रजनन दर 1.55 शिशु प्रति महिला अनुमान की गई थी। जबकि भारत के लिए यह आंकड़े 2.48 अनुमान किए गए थे।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भारत के प्रजनन दर में सराहनीय गिरावट देखने मिली है। 1951 में 5.9 से गिरकर अब यह आंकड़े 2.48 तक पहुंच गए हैं। हालांकि भारत के मुकाबले चीन में यह प्रक्रिया और तेजी से गिरी है। साल 1951 में चीन की प्रजनन दर 6.11 दर्ज की गई थी। भारत की उच्च प्रजनन दर का जनसंख्या वृद्धि में काफी योगदान रहा है।

अंत में, पिछले कुछ सालों में चीन के जनसंख्या वृद्धि का कारण “जनसंख्या आवेग”है (आबादी की कुल प्रजनन 1990 के दशक के बाद से प्रतिस्थापन के स्तर से नीचे गिर गया है ) एवं यह भी आने वाले दशकों मेंभारत में जनसंख्या वृद्धि में योगदान होगा।

जन्म दर , भारत एवं चीन 2015 – 2100

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Source: World Population Prospects: The 2015 Revision (medium variant); figures in no. of births per 1,000 people.

साल 2001 से 2010 के दौरान पिछले दश्क की तुलना में भारतीय जनसंख्या में हर साल 1.64 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी। डॉ राम के अनुसार चूंकि बेस इतना बड़ा था, 18 मिलियन प्रति दशक या 2 मिलियन प्रति वर्ष के साथ जनसंख्या वृद्धि बेहद “महत्वपूर्ण” रहा है।

क्या कहते हैं सरकारी अनुमान

मई 2015 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, जे. पी नड्डा ने राज्य सभा में कहा कि देश की आबादी साल 2028 तक चीन की जनसंख्या को पार कर जाएगी। नड्डा ने यह संयुक्त राष्ट्र के 2012 के संशोधन के दौरान कहा था।

हालांकि स्वास्थ्य मंत्री ने सरकारी जनसंख्या नियंतत्रण उपायों का बचाव किया है जोकि 1991-2000 के दौरान 21.54 फीसदी से गिरकर 2001 से 2011 के दौरान 17.64 फीसदी दर्ज की गई है।

नड्डा ने नमूना पंजीकरण प्रणाली उद्धृत के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि किस प्रकार कुल प्रजनन दर 1991 में 3.6 से घट कर 2013 में 2.3 हो गया है। कम से कम 24 राज्य एवं केंद्रीय शासित प्रदेश में कुल प्रजनन दर में 2.1 या उससे भी कम दर्ज करने में सफल हुआ है जोकि शून्य जनसंख्या वृद्धि सुनिश्चित करता है।

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा किए गए अनुमान मात्र संभावनाएं हैं जोकि संभव हो भी सकता है और नहीं भी। भारत की आबादी चीन की आबादी को पार तो करेगी लेकिन कब यह अभी ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता है।

सोना शर्मा, संयुक्त निदेशक, भारत की जनसंख्या फाउंडेशन, दिल्ली स्थित एक गैर सरकारी अनुसंधान समूह, के अनुसार आबादी के मुद्दे पर किया गया यह अनुमान वास्तविक विकास पर आधारित है, जोकि पहले किए गए विकास के अनुमान से अलग है।

सोना शर्मा के मुताबिक भारत अनुमान से अधिक नहीं बढ़ रहा था, पिछले दशक के दौरान विकास दर में गिरावट दर्ज की गई है।

भारतीय जनसंख्या में वृद्धि का कारण देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा प्रजनन आयु के युवाओं का होना है जिन्होंने देश की जनसंख्या बढ़ाने में बड़ा योगदान दिया है।

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा 3.7 बिलियन लोगों के अतिरिक्त विकासशील देशों की आबादी और अधिक बढ़ेगी। यह आंकड़े 2013 में 5.9 बिलियन से बढ़कर 2050 तक 8.2 बिलियन तक एवं 2100 तक 9.6 बिलियन तक पहुंचने सी संभावना है।

जनसंख्या मुख्य रुप से 15 से 59 ( 1.6 बिलियन ) वर्ष की आयु एवं 60 या अधिक ( 1.99 बिलियन ) वर्ष की आयु बढ़ेगी। 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों की संख्या में खास वृद्धि नहीं होगी।

भारत में आयु के आधार पर संभावित जनसंख्या, 2020 -2100

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Source: World Population Prospects: The 2015 Revision (medium variant); figures in thousand.

शर्मा के मुताबिक चीन की कहानी काफी मिश्रित है। भारत के विपरीत, चीन ने 70 के दशक में ही शिक्षा एवं स्वास्थ्य में निवेश कर जमीनी स्तर पर विकास कर लिया था।

चीन में एक बच्चे की नीति लागू होने से पहले ही प्रदनन दर में गिरावट दर्ज होने लगी थी। भारत मेंइस तरह की नीति लागू करना अलोकतांत्रिक रहेगा क्योंकि यह नीति एक से अधिक बच्चे की जन्म के निर्णय पर रोक लगाती है।

हालांकि साल 1950 में भारत में पहली बार परिवार नियोजन कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी, जोकि विश्व स्तर पर सबसे पहली और सबसे बड़ी योजना थी। परिवार नियोजन कार्यक्रम को 1975 और 1977 के बीच राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान महिलाओं और पुरुषों के ज़बरदस्ती नसबंदी के दौरान बड़ा झटका लगा। इस साल जून में ही इसकी 40वीं सालगिरह मनाई गई है।

केरल का बेहतर प्रदर्शन

शर्मा के मुताबिक, मानव विकास पर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट के अनुसार चीन और भारत के बीच विसंगति का असली सबकसभी मोर्चे पर समाजिक प्रगति के संकेतक में नीहित है।

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Source: World Population Prospects: The 2015 Revision, National Population Stabilisation Fund; figures in no. of children born per woman.

केरल एवं श्रीलंका ने चीन से पहले ही 2.1 ( महिला से जन्म लेने वाले बच्चे ) की प्रतिस्थापन स्तर पर पहुंच कर अपवाद साबित कर दिया है। इंडियास्पेंड ने पहले ही बताया है कि कर्नाटाक को छोड़ कर दक्षिण के सभी राज्य इसी पथ पर अग्रसर हैं।

हम देख सकते हैं कि दक्षिण के राज्य जनसंख्या मामले में स्थिर हैं। जनसंख्या वृद्धि में अधिक योगदान, उच्च प्रजनन दर के साथ पूर्वी राज्यों का है। हालांकि पिछले कुछ सालों में इसमें कुछ गिरावट देखने ज़रुर मिली है।

विश्व जनसंख्या संभावनाएं महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह इस समय जारी किए गए हैं जब संयुक्त राष्ट्र के सहस्राब्दि लक्ष्य, जिसका निर्धारित समय मौजूदा साल था, और अधिक स्थायी विकास लक्ष्यों से बदले गए हैं।

( डी मोंटे भारत के पर्यावरण पत्रकारों की मंच के अध्यक्ष है। अतिरिक्त रिसर्च – सौम्या तिवारी )

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 1 अगस्त 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।


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