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नई दिल्‍ली में नीति आयोग की बैठक में उपस्थित विभिन्‍न प्रदेशों के मुख्यमंत्री, मार्च 27,2015

पिछले सप्‍ताह नीति आयोग के अन्‍तर्गत देश के सभी मुख्यमंत्रियों ने केन्‍द्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं के भविष्‍य को लेकर एक बैठक की । सीएसएस केन्‍द्रीय सरकार का सबसे बड़ा संगठन है, जो कि सामाजिक क्षेत्र की राज्‍य और केन्‍द्र की योजनाओं को वित्‍त प्रदान करता है, जो पिछले सप्ताह लोगों में चर्चा का विषय बना रहा.

भारत सरकार द्वारा फरवरी में स्‍वीकृत चौदहवें वित्‍त आयोग ने वितरणीय साझा केन्‍द्रीय करों का राज्‍यों के अंतरण में 32% से 42% स्‍थायी वृद्धि को

अनिवार्य बनाते हुए केन्‍द्र पुरोनिधानित योजनाओं के आधारभूत पुनर्गठन के लिए मंच तैयार किया है।

इस वृद्धि का सीधा संकेत राज्‍य के केन्‍द्रीय धनराशि (बिना शर्त) में वृद्धि से है जिसे वह यथोचित विनिवेश कर सकेंगे। यह अतीत से एक उल्‍लेखनीय प्रस्‍थान बिंदु है जिसमें राज्‍यों की आधे से अधिक प्राप्तियां नानप्‍लान अनुदानों,केन्‍द्रीय सहायताओं एवं केन्‍द्र पुरोनिधानित योजनाओं के रूप में

पूर्वनिर्धारित व्‍यय शर्तों के अधीन हुआ करती थीं।

उक्‍त परिप्रेक्ष्‍य में सन 2010-11, राज्‍यों को हस्‍तान्‍तरित समस्‍त धन में 44 प्रतिशत धन का टैक्‍स डिवाल्‍यूशन होता था, लेकिन 2015-16 में यह बढ़कर 62 प्रतिशत हो गया है। साथ ही साथ पिछले प्‍लानिंग कमीशन की तुलना में चौदहवें कमीशन द्वारा संस्‍तुत वित्‍तीय सहायता धन का 13 प्रतिशत हिस्से को मुक्‍त यानि कि इच्‍छानुसार राज्‍य सरकारों को खर्च करने के लिए संस्‍तुत कर दिया गया है।

इस तरह पिछले वित्तीय वर्षों की तुलना में, इस बार नीति आयोग ने राज्‍य सरकारों को एलाटेड धन 1.8 लाख करोड़ (29 बिलियन डालर) को मुक्‍त व्‍यय यानि कि इच्‍छानुसार खर्च करने के लिए छोड़ दिया है।

उक्‍त निर्णयों का निहितार्थ यह हुआ कि गत योजनाओं में पूर्व निर्धारित केन्‍द्रीय योजनाओं में वित्‍तीय सहायताओं की जगह राज्‍य सरकारों को अपनी-अपनी जरूरतों के अनुसार खर्च करने की व्‍यवस्‍था नीति आयोग ने किया।

उक्‍त निर्णयस्‍वरूप, केन्‍द्रीय सहायता राशि सन 2010-11 में जो कि केन्‍द्र द्वारा पूर्व निर्धारित लक्ष्‍यों में 46 प्रतिशत हुआ करती थी- वह अब घटकर 25 प्रतिशत हो गयी है। परिणामस्‍वरूप केन्‍द्र के बजट 2015-16 में जबरदस्‍त कटौती केन्‍द्रीय वित्‍तीय सहायता की राशि में राज्‍य सरकारों द्वारा की जा रही, सामाजिक योजनाओं जो कि सीएसएस के जरिए होती थी- में कर दिया है।

नीति आयोग के उक्‍त निर्णयों ने देश में एक जबरदस्‍त बहस/ चिन्‍ता का माहौल भी बना दिया है क्‍योंकि सामाजिक कार्यक्रमों में नीति आयोग द्वारा डकत कटौतियों के निहितार्थ समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं।

उक्‍त जबरदस्‍त कटौतियों के लिए राज्‍य सरकारें सोचें और अतिरिक्‍त धन संसाधनों का इन्‍तजाम करें।

नीति आयोग के उक्‍त निर्णय पर केन्‍द्रीय सरकार ने यह प्रतिक्रिया किया कि उक्‍त निर्णय पिछले चौदहवें वित्‍त कमीशन के निर्णयों के परिणामस्‍वरूप हैं। अत: अब यह राज्‍य सरकारों पर निर्भर करता है कि उक्‍त केन्‍द्रीय कटौतियों की भरपाई वह 50 प्रतिशत स्‍वतंत्र रूप से धन खर्च करने की क्षमता का कैसे उपयोग करे।

उक्‍त निर्णयों पर हम सिद्धान्‍तत: सहमत हैं, लेकिन वास्‍तविकता यह है कि उक्‍त निर्णयों का कार्यान्वित करने का व्‍यावहारिक रूप क्‍या होगा, इस पर भ्रम की स्थिति है।

नीति आयोग ने केन्‍द्र द्वारा प्रायोजित योजनओं का वर्गीकरण किया है। अ. ऐसी योजनाएं जिनको अब बन्‍द कर दिया जाए ब. ऐसी योजनाएं जो पूरी तरह से केन्‍द्र द्वारा प्रायोजित हैं उनको पूरा फण्‍ड दिया जाए. (वर्तमान सिस्‍टम पूर्वानुसार) स. ऐसी योजनायें जो कि केन्‍द्र द्वारा अंशत: फण्‍ड दी गयीं। नीचे ग्राफ देखें- ग्राफ 15,16,17

What’s Changed, What’s Not
Type of SchemeNo. of SchemesChange from last year
Discontinued/delinked from Central support though states can continue to fund

(Backward Regions Grant Fund, Jawaharlal Nehru National Urban Renewal Mission, National E-Governance Plan, Rajiv Gandhi Panchayat Sashaktikaran Abhiyaan, National Scheme for the modernisation of Police)

8

+

16

-100%
States will need to shoulder a greater share of resources

(Integrated Child Development Services, National Health Mission, Sarva Shiksha Abhiyaan, Rashtriya Krushi Vikas Yojna, Swachh Bharat Mission)

24-44%
Centre to continue to bear full share

(Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme, National Social Assistance Plan, Member of Parliament Local Area Development Scheme, Integrated Child Protection Scheme)

310%

लेकिन उक्‍त बजटीय प्राविधानों में हिस्‍सेदारी का क्‍या तरीका होगा- इस बारे में स्‍पष्‍टता नहीं है। उपरोक्‍त स्थिति इसलिए भी और बदतर नजर आ रही है क्‍योंकि राज्‍य सरकारों ने अपने बजट 2015-16 को पास कर दिया है और सभी केन्‍द्रीय मन्‍त्रालयों का अगले कुछ सप्‍ताहों में वार्षिक प्‍लानों और केन्‍द्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं को मंजूरी दे दी है।

केन्‍द्रीय सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं में उक्‍त विशिष्‍ट एलाटेड फण्‍डस किस तरह खर्च किए जावेंगे यह दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है कि कैसे और कितना धन राज्‍य और केन्‍द्र की योजनाओं पर नियोजित किया जायेगा।

उक्‍त बजटीय कतरन को भरने के लिए क्‍या राज्‍य सरकारों के पास पूरा फिजिकल स्‍पेस है जिससे वे सब सामाजिक योजनाओं का पूरा कर सकें।

उपरोक्‍त गम्‍भीर चिन्‍ताओं के बीच पिछले सप्‍ताह हुई नीति आयोग की बैठक और उसके निर्णयों ने जनता के बीच चिन्‍तनीय बहस चला दिया है।

सभी राज्‍य मिले धन का उपयोग कैसे करेंगे

समाचार बताते हैं कि मुख्‍यमंत्रियों के लिए नीति आयोग द्वारा बनायी उक्‍त समिति केन्‍द्र द्वारा प्रायो‍जित योजनाओं का पुन: रिस्‍टक्‍चरिंग अप्रैल के अंत तक कर देंगी। इस बीच जबकि उक्‍त उपसमिति अपना पुन: पुन:सुधार/ निर्माण सीएसएस का कर रही- यह जानना उचित होगा कि हम सीएसएस के बारे में कितना जानते हैं। वस्‍तुत: चौदहवें कमीशन की उक्‍त प्रस्‍तावित योजनायें कितनी सीमाओं के बीच सहायताएं प्राप्‍त करती हैं, नीति आयोग के उक्‍त निर्णय सीएसएस को निरावरण कर देगी।

निम्‍नलिखित कुछ तथ्‍य इस प्रकार हैं

सामाजिक योजनाओं पर बजट कर (2015) पर हमारी चिन्‍ताओं के बावजूद हम अपने का विवश पाते हैं कि राज्‍य सरकारें एलाटेड बजट मद का प्रत्‍येक वित्‍तीय वर्ष में समुचित इस्‍तेमाल नहीं करतीं या कर पातीं।

उक्‍त बजटों का विश्‍लेषण करने के लिए तीन विभिन्‍न आंकड़ों/ स्थितियों को पाते हैं। प्रत्‍येक वित्‍तीय वर्ष में राज्‍य साल भर अनुमानित खर्च/धन का बजट पेश करते हैं- जो जन वित्‍तीय भाषा में बजट एस्‍टीमेट (बीई) कहा जाता है। प्रत्‍येक दिसम्‍बर माह में बजट एस्‍टीमेट को तब तक किए धन खर्च के आधार पर रिवाइज किया जाता है। इनको पुन: संशोधित रिवाइज एस्‍टमेट (आरई) कहा जाता है। तीसरा भाग वास्‍तविक धन व्‍यय (एक्‍चुअल) कहा जाता है। जैसा कि निम्‍न दिए गये ग्राफों से साफ दिखता है कि इन तीन बजटीय रूपों बीई, आरई और एक्‍चुअल में गम्‍भीर असंतुलन एवं अन्‍तर्विरोध है।

graph1

Source: Union Budget, “Budget at a Glance”, for years 2015-16, 2014-15, 2013-14. Actuals for 2014-15 kept as 0.

विभिन्‍न योजनाओं में उक्‍त आवंटन कैसे कार्य करता है, उदाहरणस्‍वरूप अप्रैल 2007 और मार्च 2013 में 1.69 लाख करोड़ (27.2 बिलियन) केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण को एलाट किया गया जिसमें से केवल 69 प्रतिशत खर्च हुआ।

इसी तरीके से स्‍वच्‍छ भारत मिशन के अन्‍तर्गत गत माह फरवरी, 2015 में केन्‍द्र ने केवल 33 प्रतिशत आबंटित बजट का खर्च किया। परिणामस्‍वरूप रिवाइज्‍ड एस्‍टीमेट (बीई)) 38 प्रतिशत कम हुआ, सन 2014-15 के संदर्भ में। उक्‍त बजटीय प्राविधानों के सामने उक्‍त गैप को काफी कम करना पड़ेगा।

व्‍यय-क्षेत्र में ये गैप्‍स क्‍या दर्शाते हैं

दिल्‍ली सरकार द्वारा राज्‍य सरकारों का उत्‍तरोत्‍तर नियन्‍त्रण की गलाघोंट बढ़त के स्‍पष्‍ट संकेत

सच्‍चाई यह है कि भारतीय सरकार अपने को सही प्‍लानिंग धन आबंटन तथा खर्चों के क्षेत्र में अपने का अक्षम पा रही है।

वास्‍तव में सामाजिक क्षेत्रों में व्‍यय को लेकर हुए भ्रष्‍टाचार में काफी जनता की शक्ति का दोहन हो चुका है लेकिन सबसे बड़ा पापाचार केन्‍द्रीय सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं पर दिल्‍ली सरकार का केन्‍द्रीय नियन्‍त्रण होना है। यह तब होता है जब केन्‍द्र सारी प्राथमिकताएं पहले ही तय कर देता है।

इस तरह राज्‍य सरकारों की अपनी प्राथमिकताएं बजट प्राविधानों से खटाई में पड़ जाती हैं जब हम सीएसएस के प्‍लानिंग बजटीय अभिलेखों/ आंकड़ों का अवलोकन करते हैं।

स्‍वयं पाठक सर्व शिक्षा अभियान (यूनियन एजूकेशन स्‍कीम, एसएसए) का अवलोकन करें एक उदाहरण काफी होगा। एक राज्‍य अपने टीचर ट्रेनिंग माडल को बदलना चा‍हता था। केन्‍द्र सरकार ने उक्‍त इम्‍प्रवूव्‍ड सिस्‍टम को नहीं माना और फण्‍ड नहीं दिया।

दूसरे उदाहरण में, एक राज्‍य सरकार अपने बजट से बच्‍चों के यूनीफार्म को उपलब्‍ध करा रही थी, पर केन्‍द्र के एसएसए के तहत राज्‍य को उक्‍त कार्य करने से रोका गया तथा राज्‍य को इसी कार्य हेतु जबरदस्‍ती केन्‍द्रीय मदद दी गयी।

उक्‍त तथ्‍य एक तरफ साबित करते हैं कि राज्‍य सरकारें भी जनता की वास्‍तविक जरूरतों के हिसाब से प्‍लानिंग नहीं करती, परिणामस्‍वरूप बजट नहीं पास होता। देखा जाये तो इस तरह राज्‍य सरकारों के बजटीय प्राविधान जनता की वास्‍तविक जरूरतों के हिसाब से नहीं होते। इसी कारण व्‍यय एक कठिन-साध्‍य‍ सिस्‍टम है।

इस तरह हम पाते हैं कि प्‍लानिंग की प्रक्रिया काफी अपूर्वानुमानित है। राज्‍यों का कभी भी सही समय पर बजट नहीं मिलता जितनी उसकी जरूरत है।

सन 2014 में केन्‍द्र सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान के अन्‍तर्गत राज्‍यों के प्रस्‍तावों में केवल 58 प्रतिशत को ही मान्‍यता प्रदान किया। इसी तरह नेशनल हेल्‍थ मिशन के 60 प्रतिशत ही प्रस्‍ताव पारित किए गये जो कि नेशनल रूरल हेल्‍थ मिशन फ्लेक्‍सेबुल पूल के अन्‍तर्गत थे।

उक्‍त प्‍लानिंग गैप्‍स बहुत ही बदतर है क्‍योंकि सीएसएस की प्रक्रिया काफी धीमी तथा धुंधली है। परिणामस्‍वरूप सभी राज्‍य और उनके जिलों/ सेवादायी संस्‍थाओं/ केन्‍द्रों के पास किसी तरह की पूर्व सूचना न तो धन पाने और धन की मात्रा के बारे में होती है जिससे समयाभाव का उचित प्रबंधन नहीं हो पाता।

इसी तरह ही सन 2014-15 में स्‍वच्‍छ भारत अभियान के तहत पहली दो तैमासिकी (एफवाई 2014-15) में 15 प्रतिशत का ही फण्‍ड का आबंटन हुआ। ऐसे ही 29 प्रतिशत एनएचएम की पहली त्रैमासिकी में आबंटन हुआ (एफवाई 2014-15) जो कि 46 प्रतिशत (एफवाई 2013-14) में था।

उक्‍त परिस्थितियों में एक अच्‍छे प्रशासक को भी कार्यों को सफल अंजाम देने में प‍रेशानी होगी। कभी कभी अप्रदर्शित अकर्मण्‍यता भी एक साजिश भरी कूटनीति हो सकती है।

धन और उसके उचित उपयोग में सामंजस्‍य नहीं

लेकिन सीएसएस के वर्तमान माडल में जमीनी सच्‍चाइयों को भारी अनदेखा किया जाता है यही वजह है कि उक्‍त सीएसएस माडल में खामियां हैं।

चाहे स्‍वास्‍थ्‍य का क्षेत्र को चाहे शिक्षा का, कर्तव्‍यों के जमीनी प्रदर्शन में आंकड़ों को सही नहीं कलेक्‍ट किया जाता जबकि यह कार्य प्‍लानिंग के समय पूर्व ही होना चाहिए। परिणामस्‍वरूप वर्ष दर वर्ष फण्‍ड्स आबंटित किए जाते हैं बिना उचित परिणामों को देखते हुए। पूरा भारतीय प्रशासनिक तंत्र चाहे केन्‍द्र या राज्‍य द्वारा वित्‍तीय रूप में पोषित हो वह असंवेदनशील है सही प्‍लान बजट तथा उचित व्‍यय के संदर्भ में।

इस तरह हम देखते हैं कि बजटीय आबंटन तथा वास्‍तविक व्‍यय के बीच काफी अंतर है। चौदहवीं कमीशन की संस्‍तुति के अनुसार सीएसएस को रिस्‍ट्रक्‍चर करने का परिणाम हो सकता है कि उक्‍त असंतुलनों से निजात पायी जा सके।

यह तथ्‍य कि राज्‍य सरकारों को अपूर्वनिर्धारित धनाबंटन (अनटाइप्‍ड) अगर अखबारों के समाचारों पर विश्‍वास किया जाये, के कारण सीएसएस को ज्‍यादा संसाधन का आबंटन कर सकते हैं अतीत के तुलना में।

इस तरह हम देखते हैं कि बजटीय आबंटन तथा वास्‍तविक व्‍यय के बीच भारी अंतर है। चौदहवीं कमीशन की संस्‍तुति के अनुसार सीएसएस को रिस्‍ट्रक्‍चर करने का परिणाम हो सकता है कि उक्‍त असंतुलनों से निजात पायी जा सके।

इस नीति से राज्‍यों के ऊपर केन्‍द्र की आर्थिक अधिकारों और नियंत्रणों की जकड़न कम होने से राज्‍य सीएसएस की योजनाओं में अपनी जरूरतों के हिसाब से पूरा कर सकते हैं।

हम निश्‍चय रूप से कह सकते हैं कि सही ढंग से की गयी रिस्‍ट्रक्‍चरिंग उक्‍त समस्‍याओं के निदान में काफी सहायक होगी।

उदाहरणरूप में सीएसएस, राज्‍यों द्वारा किए गये कार्यों के लिए प्रोत्‍साहन पुरस्‍कार तथा स्‍कीमें चला सकता है और राज्‍यों के लिए एक नवीन आविष्‍कार फण्‍ड का निर्माण कर सकता है। इस कार्य से राज्‍यों को अपने को संवारने में स्‍वस्‍थ प्रतिद्वंद्विता का भी आभास होगा। साथ ही साथ सम्‍बन्धित मंत्रालयों कार्यकारी मानीटरिंग करते हुए उचित परिणामों पर निगरानी रख सकते हैं।

अंतत: सभी कार्यक्रमों चाहे केन्‍द्रीय/राज्‍य के हों के ऊपर कार्यकारी रूप से असरदार प्रशासन के होने से सम्‍पूर्ण राष्‍ट्रीय तंत्र सुचारू से संचालित किया जा सकता है।

इस तरह हम उक्‍त तथ्‍यों के प्रकाश में पाते हैं कि भारत सरकार अपने वर्तमान तंत्रात्‍मक ढांचे से बजटीय धन का समुचित उपयोग करने में अपने को अक्षम पा रही है। ऐसे परिणामों को पाने के लिए भारत सरकार को प्रशासनिक तंत्र व्‍यवस्‍थाओं में समुचित पारदर्शिता लाना होगा तभी संशोधित सीएसएस योजनायें सफलता के कगार पर पहुंचेंगी।

इमेज क्रेडिट: प्रेस इन्‍फार्मशन ब्‍यूरो

(आयर कुमार और श्रीनिवास एकाउन्‍टेबिलिटी इनीशिएटिव, सेन्‍टर फार पालिसी रिसर्च, नई दिल्‍ली के साथ हैं)

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