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मुंबई: 11 दिसंबर 2018 को राजस्थाम, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुए चुनाव के परिणाम सामने आए हैं। चुनावी डेटा पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 2013 में जीती गई सीटों में से 180 सीटों को खो दिया, और कांग्रेस ने 162 सीटों की वृद्धि दर्ज की है। वर्ष 2013 में, इन तीन राज्यों में बीजेपी ने 377 सीटें और कांग्रेस ने 118 सीटें जीती थी। मिजोरम में बीजेपी की कोई सीट नहीं थी और 2014 में बने राज्य तेलंगाना के लिए यह पहला राज्य चुनाव था।

इसका मतलब है कि बीजेपी ने 2013 में जीती सीटों में 48 फीसदी सीटें खो दी हैं और कांग्रेस ने 137 फीसदी का लाभ प्राप्त किया है।

दो हिंदी राज्य, राजस्थान और मध्यप्रदेश में दोनों पार्टियों के बीच के वोट शेयर में अंतर बहुत कम था, जैसा कि हम समझाएंगे; राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस वोट शेयर 2013 से 6, 4 और 3 प्रतिशत अंक तक बढ़े हैं।

मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में 678 सीटों में से ( जहां भारत की आबादी का छठवां या 15.2 फीसदी हिस्सा रहता है ) कांग्रेस 305 सीटें (304 जीती और एक लीड) में आगे थी और बीजेपी ने 199 सीटें जीती थी (11 दिसंबर 2018 को सुबह नौ बजे तक)।

मिजोरम और तेलंगाना में क्षेत्रिय पार्टियों ने जीत हासिल की है - तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और मिजो राष्ट्रीय मोर्चा। कांग्रेस ने 90 सीटों में से 67 सीटों (2013 में 39 से) पर जीत हासिल कर छत्तीसगढ़ पर कब्जा किया, जबकि 199 में से 99 (2013 में 21 से) सीटों पर जीत के साथ राजस्थान को भी अपने नाम कर लिया, वहीं 114 सीटों (2013 में 58 से) के साथ मध्यप्रदेश पर भी कांग्रेस का कब्जा हो गया है। जबकि बीजेपी के पास 109 (2013 में 165 से) सीटें आई हैं।

हमारे विश्लेषण की कुछ झलकियां:

  • मध्यप्रदेश में बीजेपी से कांग्रेस 0.1 प्रतिशत आगे थी। राजस्थान, में यह 0.5 प्रतिशत अंक (7 बजे तक) आगे थी।

  • राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में, जहां 70 फीसदी से अधिक आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है, वहां ऐसा प्रतीत होता है कि कृषि संकट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन तेलंगाना में यह मुद्दा नहीं रहा है, जहां 61 फीसदी ग्रामीण है और वे भी इसी तरह की परेशानी को झेल रहे हैं, जैसा कि हमने 6 दिसंबर 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

  • छत्तीसगढ़ में, मध्यप्रदेश और राजस्थान, जहां 43 फीसदी, 36 फीसदी, और 30 फीसदी, सीटें अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं, उनमें राजस्थान को छोड़कर, बीजेपी ने एक दशक में अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया है, जबकि कांग्रेस ने सबसे बेहतर प्रदर्शन किया है।

मध्यप्रदेश, राजस्थान में बहुत कम वोट-शेयर मार्जिन

मध्यप्रदेश और राजस्थान में एंटी-इनकंबेंसी की एक मजबूत लहर थी (मध्यप्रदेश में बीजेपी 2003 से 15 वर्षों तक सत्ता में थी ) और राजस्थान, जहां एक भी पार्टी एक कार्यकाल से अधिक अवधि तक सत्ता में नहीं रही है। मध्यप्रदेश में, बीजेपी और कांग्रेस का वोट शेयर 41.2 फीसदी और 41.3 फीसदी था। 2013 में, ये वोट शेयर 45 फीसदी और 36 फीसदी थे।

राजस्थान में, बीजेपी और कांग्रेस का वोट शेयर 38.8 फीसदी और 39.3 फीसदी था। जबकि 2013 में, बीजेपी वोट शेयर 45 फीसदी और कांग्रेस का वोट शेयर 33 फीसदी था।

छत्तीसगढ़ में, बीजेपी और कांग्रेस का क्रमश: 32.9 फीसदी और 43 फीसदी का वोट शेयर रहा। 2013 में, यह बीजेपी के लिए 41 फीसदी और कांग्रेस के लिए 40 फीसदी था।

ऐसा लगता है कि, बीजेपी के वोट शेयर में गिरावट में कृषि संकट ने अहम भूमिका निभाई है

29 नवंबर, 2018 को, पूरे भारत से 100,000 से अधिक किसान भारत के कृषि संकट को हल करने के लिए संसद के एक विशेष सत्र की मांग के लिए दिल्ली गए थे। छत्तीसगढ़ में लगभग 80 फीसदी या 20.4 मिलियन लोग, राजस्थान में 66 फीसदी या 69 मिलियन और मध्यप्रदेश में 55 फीसदी या 73 मिलियन ( भारतीय औसत 47 फीसदी है ) कृषि में शामिल हैं जो यह दर्शाते हैं कि चुनावी परिणाम में कृषि संकट ने अहम भूमिका निभाई है।

मध्यप्रदेश : आठ वर्षों से 2015 के दौरान, 10.9 फीसदी वार्षिक कृषि वृद्धि दर के बावजूद, राज्य ने किसान आंदोलन देखा, जैसा कि इंडियास्पेन्ड ने 30 नवंबर, 2018 की रिपोर्ट में बताया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में मध्यप्रदेश में 1,321 किसानों ने आत्महत्या की है और यह आंकड़ा 2013 के बाद से सबसे ज्यादा है। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर कृषि आत्महत्या में 10 फीसदी गिरावट हुई थी, वहीं दो वर्षों से 2016 तक मध्यप्रदेश ने 21 फीसदी की वृद्धि देखी है। 11 दिसंबर, 2018 को 7.30 बजे तक, मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए 230 सीटों पर हो रहे मतगणना में कांग्रेस ने 114 सीटों पर जीत हासिल की, जिनमें से 79 सीटें पहले बीजेपी के नाम थी।

छत्तीसगढ़: पिछले 30 महीने से 30 अक्टूबर, 2017 तक भारत का चावल का कटोरा माने जाने वाले राज्य, छत्तीसगढ़ में, 1,344 किसानों ( साल में 519 या प्रति दिन एक से अधिक ) ने आत्महत्या की है, जैसा कि हिंदू बिजनेस लाइन ने 21 दिसंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। 12 दिसंबर, 2018 को सुबह नौ बजे तक, कांग्रेस ने 67 सीटों पर जीत हासिल की और 1 पर आगे चल रही थी, जिनमें से 36 सीटें पहले बीजेपी के नाम थी।

राजस्थान: मध्यप्रदेश की तरह, राजस्थान के किसानों ने शिकायत भी की है कि वे लागत को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं, हालांकि सरकार ने खरीफ (मानसून) और रबी (सर्दी) उपज खरीदे जाने वाले मूल्य में वृद्धि की है।

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने फरवरी, 2018 में घोषणा की कि 50,000 रुपये तक का कर्ज माफ कर दिया जाएगा, लेकिन किसानों ने पूरी छूट की मांग की, जिसका कांग्रेस ने वादा किया है।

राजस्थान विधानसभा में 199 सीटों में से कांग्रेस ने 99 सीटों पर जीत हासिल की है। इनमें से 75 सीटें पहले बीजेपी के नाम थी।

तेलंगाना: राज्य सरकार के पुलिस विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की स्थापना होने के साढ़े चार साल बाद, 2,190 किसानों के आत्महत्या ( हर दिन एक से ज्यादा आत्महत्या )करने के साथ तेलंगाना का कृषि संकट बड़ा है, जैसा कि इंडियास्पेन्ड ने 6 दिसंबर, 2018 की रिपोर्ट में बताया है। तेलंगाना में 89 फीसदी से अधिक ग्रामीण कृषि परिवार कर्ज में हैं ( भारतीय औसत 52 फीसदी है ), जो कि आंध्र प्रदेश के बाद भारत में दूसरा उच्चतम अनुपात है, जैसा कि राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित तेलंगाना सोशल डेवलपमेंट रिपोर्ट से पता चलता है। फिर भी, टीआरएस ने जीत हासिल की है, पार्टी ने 119 सीटों में से 88 (48 फीसदी) अपने नाम किया है और जो बहुमत के लिए आवश्यक 60 से अधिक है। 2014 में राज्य के गठन के बाद से सत्ता में रहे मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, दूसरे कार्यकाल के लिए वापस आ गए हैं।

बीजेपी के नुकसान का एक तिहाई से अधिक एससी / एसटी सीटों में

छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में, बीजेपी को अनुसूचित जातियों, दलितों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 170 सीटों में से 57 या 34 फीसदी पर नुकसान हुआ है।

छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में, जहां 31 फीसदी आबादी आदिवासी है, या अनुसूचित जनजातियां हैं, 29 आदिवासी-वर्चस्व वाले निर्वाचन क्षेत्रों में बीजेपी की लोकप्रियता 2013 से घट गई है।

राज्य विधानसभा की 90 सीटों में से अनुसूचित जातियों (जनसंख्या का 13 फीसदी) और अनुसूचित जनजातियों की संयुक्त हिस्सेदारी 43 फीसदी है।

11 दिसंबर, 2018 को शाम 7 बजे तक, मौजूदा पार्टी (पार्टी के सबसे लंबे समय तक चलने वाले मुख्यमंत्री रमन सिंह के साथ 15 साल से 2018 तक सत्ता में ) आठ आरक्षित सीटों (28 फीसदी) में आगे थी, यह 2013 से तीन कम था, जब पार्टी ने 11 सीटें जीती थी। 2008 में, बीजेपी ने 19 अनुसूचित जनजाति सीटें जीती थीं।

इसके विपरीत, कांग्रेस ने 18 सीटों पर अपनी लीड बरकरार रखी, जो 2013 में जीती गई संख्या के बराबर थी और 2008 में जीती आठ सीटों से ज्यादा थी।

मौजूदा विधायकों के खिलाफ आदिवासी असंतोष की वजह से छत्तीसगढ़ में 29 सीटों में से एसटी के लिए आरक्षित 12 सीटें में से बीजेपी आठ और कांग्रेस चार सीटे हार गई। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ पार्टी ने एक सीट जीती है। अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित छत्तीसगढ़ के विधानसभा क्षेत्रों पर बीजेपी अपनी पकड़ बरकरार रखने में नाकाम रही है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 10 सीटों में से, पार्टी दो में आगे रही थी, जो 2013 में जीतने वाले नौ से नीचे है, जैसा कि नवीनतम परिणाम से पता चलता है। कांग्रेस सात पर आगे थी, जो 2013 से एक ज्यादा है।

छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस

ये चुनाव परिणाम नवंबर 2018 में भारत के आदिवासी इलाकों की यात्रा के बाद निकाले गए हमारे निष्कर्षों को प्रतिबिंबित करते हैं। जनजातीय वर्चस्व वाले इलाकों में वन भूमि दावों को सुलझाने में राज्य की विफलता तनाव का कारण बना, जैसा कि इंडियास्पेन्ड ने 20 नवंबर, 2018 की रिपोर्ट में बताया है और लोगों का गुस्सा अनुसूचित जनजाति निर्वाचन क्षेत्रों में सामने आया। 887,665 टाइटल दावों में से, छत्तीसगढ़ की सरकार ने 2.7 मिलियन एकड़ में 416,359 टाइटल जारी किए, जो टाइटल डेटा पर हमारे विश्लेषण के मुताबिक, राज्य के क्षेत्र का 7.8 फीसदी या वन क्षेत्र का 18 फीसदी है। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि आधे जनजातीय आबादी ने अभी तक अपने अधिकारों की मांग नहीं की है। सामुदायिक वन अधिकार, जो आदिवासी जनजातियों के हक का प्रतिनिधित्व करता है और पारंपरिक जंगलों की रक्षा, प्रबंधन और संरक्षण के लिए ग्राम सभा के अधिकार को मान्यता देती है, 4.4 फीसदी या 18,178 टाइटिल वितरित करने की बात मानता है।

मध्य प्रदेश

मध्यप्रदेश में, जहां आदिवासी आबादी का 21 फीसदी और अनुसूचित जातियों की 16 फीसदी हिस्सेदारी है, बीजेपी ने इन निर्वाचन क्षेत्रों में सबसे खराब प्रदर्शन किया है, 82 में से 25 आरक्षित सीटें, या 36 फीसदी खो दी हैं। कांग्रेस ने 2013 की तुलना में 26 अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजाति सीटों पर बढ़त हासिल की है और एक दशक में इसका यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।

11 दिसंबर, 2018 को शाम 7 बजे तक, बीजेपी एसटी के लिए आरक्षित 47 में से 21 सीटों में आगे थी। बीजेपी ने 2013 से 10 सीटों पर अपनी पकड़ खोई, तब इसने 31 सीटें हासिल की थी। 2008 में बीजेपी ने 29 सीटें जीती थी। कांग्रेस ने 23 सीटें जीती। इसने 2013 में 15 सीटें और 2008 में 17 सीटें जीती थी।

अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित 35 सीटों में से, बीजेपी ने 13 सीटों पर जीत दर्ज की है, जो कि 2013 में जीते गए 28 से 15 कम और 2008 में जीते गए 25 सीटों से कम है। कांग्रेस ने इन सीटों में से 22 सीटें जीतीं, जो 2013 में चार और 2008 में जीते 9 से ज्यादा है।

मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस

राजस्थान

राजस्थान में, 200 विधानसभा सीटों में से 30 फीसदी या 59 सीट अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं।

34 अनुसूचित जातियों की सीटों में से बीजेपी ने 14 सीटें जीती हैं, जो 2013 में जीते 32 सीटों से 18 कम है। 2008 में, पार्टी ने इन सीटों में से 14 सीटें जीती थी।

2013 में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सभी सीटों को खोने के बाद, कांग्रेस ने 2018 में 18 जीते, जो 2008 के प्रदर्शन के बराबर है। 11 दिसंबर, 2018 को 7 बजे तक आदिवासियों के लिए आरक्षित 25 सीटों में से बीजेपी 12 निर्वाचन क्षेत्रों में और कांग्रेस 11 में आगे थी। पिछले चुनाव की तुलना में बीजेपी छह सीट नीचे है। पिछली चुनाव में बीजेपी ने 18 अनुसूचित जनजाति सीटें जीती थी। 2013 में, कांग्रेस ने आदिवासियों के लिए आरक्षित चार सीटें जीतीं।

राजस्थान में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस

(सलदानहा सहायक संपादक हैं और पलियथ विश्लेषक हैं। दोनों इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं। लेख में अभ्यक्ति बनर्जी, अनमोल अल्फांसो और सेजल सिंह के भी इनपुट हैं। ये तीनों इंडियास्पेन्ड में इंटर्न हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 11 दिसंबर 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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