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भारत में, चिकित्सा प्रक्रियाओं में काम आने वाली रक्त की काफी कमी है। सरकारी आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि इस संबंध में भारत में 35 टैंकर रक्त की कमी है। हालांकि, देश के कुछ हिस्सों में अधिक रक्त होने के कारण काफी रक्त बर्बाद हुआ है।

जुलाई 2016 में, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने लोकसभा में बताया कि वर्ष 2015-16 में, रक्त की कमी का अनुमान,1.1 मिलियन युनिट - एक युनिट में 350 मिलीलीटर या 450 मिलीलीटर होने के साथ, रक्त का माप - लगाया गया था। हमने 11,000 लीटर के मानक टैंकर – ट्रक और 350 मिलीलीटर इकाई को मानते हुए इन आंकड़ों को टैंकरों में परिवर्तित किया है।

प्रतिशत के संदर्भ में, भारत को अपनी ज़रुत के हिसाब से 8 फीसदी रक्त की कमी है – यह कमी 2013-2014 में 17 फीसदी से कम हुआ है।

राष्ट्रीय स्तर पर 9 फीसदी कमी स्थानीय कमी और अत्यधिक आपूर्ति को छुपाता है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बिहार आवश्यकता की तुलना में 84 फीसदी रक्त की कमी है जो कि किसी भी राज्य से सबसे अधिक है। इसी संबंध में छत्तीसगढ़ में 66 फीसदी और अरुणाचल प्रदेश में 64 फीसदी रक्त की कमी है। वहीं दूसरी ओर चंढ़ीगढ़ में आवश्यकता की तुलना में नौ गुना, दिल्ली में तीन गुना, दादरा और नगर हवेली, मिजोरम, पांडिचेरी में दो गुना अधिक रक्त है।

रक्तदान की कोई संस्कृति न होने के साथ यह हमेशा वहां उपलब्ध नहीं होता जहां ज़रुरत है

सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 2,708 ब्लड बैंक है, लेकिन अब भी 81 जिलों में इसकी कमी है। छत्तीसगढ़ में ऐसे ज़िले सबसे अधिक हैं (11) जहां ब्लड बैंक नहीं हैं। असम और अरुणाचल प्रदेश में बिना ब्लड बैंक वाले ज़िलों की संख्या 9 है।

राष्ट्र भर में रक्त की कमी में गिरावट

Source: Ministry of Health and family Welfare

ज़रीन भरूचा, पैथोलॉजिस्ट और बॉम्बे रक्त बैंकों के संघ के अध्यक्ष कहते हैं, मोटे तौर पर रक्त दान एक ही समुदाय से और एक ही समुदाय के लिए होती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में रक्त की आपूर्ति की पहुंच कठिन होती है। भरुचा कहते हैं, “भारत की ग्रामीण आबादी विशाल है, लगभग 70 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र में रहती है और हमें सबसे दूरस्थ क्षेत्रों में भी रक्त प्रदान करने में सक्षम होने की जरूरत है।”

रक्त की कमी का एक कारण, एकल रक्त बैंकों और स्थानीय सरकारों पर रक्त एकत्रित करने की संचालन को छोड़ते हुए केंद्रीय संग्रह एजेंसी का न होना भी हो सकता है।

निरंतर प्रवाह करने की बजाय एक ही समय में कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक रक्त एकत्र कर सकते हैं।

भरुचा कहते हैं कि, “इससे दो मुद्दे उत्पन्न होते हैं – पहला उन क्षेत्रों में भविष्य में दान की कमी होने की संभावना है। ऐसे देश में जहां दान की संस्कृति नहीं है, वहां यदि सब एक साथ दान करते हैं तो नहीं दिखेंगे। दूसरा, आपके पास इतना रक्त हो सकता है जितनी आपको आवश्यकता नहीं हो। इसलिए, इसका कुछ हिस्सा बर्बाद हो सकता है।”

रक्त आपूर्ति में व्यापक क्षेत्रीय विविधता

Source: Ministry of Health and Family Welfare

जनवरी 2011 से दिसंबर 2015 के बीच, मुंबई में 63 ब्लड बैंकों से 130,000 लीटर रक्त बर्बाद हुआ है, जैसा कि मई 2016 को एशियन एज की रिपोर्ट में बताया गया है। रिपोर्ट में मुंबई जिला एड्स नियंत्रण सोसायटी द्वारा राईट टू इंफॉर्मेशन (आरटीआई) कार्यकर्ता चेतन कोठारी को प्राप्त हुए जवाब का हवाला दिया गया है जो कहती है कि रक्त को इसलिए खारिज कर दिया गया था क्योंकि यह लंबे समय से जमा कर रखा हुआ था।

20 वर्षों से रक्तदाताओं के भुगतान पर प्रतिबंध है लेकिन अभ्यास अब भी है जारी

रक्त दान पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशा-निर्देशों में कम जोखिम आबादी से स्वैच्छिक दान के माध्यम से आने वाला रक्त शामिल है।

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का एक प्रभाग, जो एचआईवी / एड्स नियंत्रण कार्यक्रम चलाते है, कहता है कि स्वेच्छा से रक्त दान के मामले में वृद्धि हुई है। 2006 में यह आंकड़े 54 फीसदी थे जो कि 2013-14 में बढ़ कर 84 फीसदी हुए हैं।

कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह आंकड़े भ्रामक है। इसके पीछे उनका तर्क है कि नाको ने स्वैच्छिक रूप में परिवार के दान की गिनती शुरू की है, एक अभ्यास जो डब्ल्यूएचओ की स्वैच्छिक दान की परिभाषा के विरुद्ध है।

भुगतान दे कर होने देने वाले "दान" 1996 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद प्रतिबंधित कर दिया गया, लेकिन यह अभ्यास अब भी जारी है। अस्तपताल जहां रक्त की कमी है, वहां अक्सर मरीज़ों के परिवारों से "प्रतिस्थापन दाताओं" को खोजने के लिए कहा जाता है।

भरूचा कहते हैं, “हर किसी के पास दान देने वाला उपलब्ध नहीं होता है, इसलिए ऐसा होता है कि वह भुगतान कर किसी दान देने वाले का बंदोबस्त करें और जिसे वे परिवार के सदस्य के रुप में पेश करें।”

हो सकता है कि पैसे दे कर दान देने वाले पाना सुरक्षित नहीं हो: या तो दाताओं का परिक्षण नहीं होता है या फिर भुगतान के लिए झूठी चिकित्सा इतिहास प्रदान कर सकते हैं जिससे रक्त प्राप्त करने वाले में आधान संचरित संक्रमण (टीटीआई) जैसे कि एचआईवी, हेपेटाइटिस ए और बी और मलेरिया का खतरा बढ़ जाता है।

रक्त की कमी भी काला बाज़ारी को बढ़ावा देती है। 2008 में 17 लोगों का ढाई साल के लिए अपरहरण किया गया था और उन्हें रक्त दान के लिए मजबूर किया गया ताकि अपहरणकर्ता उस रक्त को ब्लड बैंक और अस्पतालों में बेच सकें। इनमें से कुछ पर अपराध में भागीदार होने का आरोप लगाया गया था, जैसा कि जनवरी 2015 में बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था।

उन्हें सप्ताह में तीन बार रक्त दान के लिए मजबूर किया जाता था। रेड क्रॉस का कहना है कि 8-12 सप्ताह में एक बार से अधिक रक्त दान नहीं करना चाहिए।

भरूचा कहते हैं, “चूंकि, रक्त की आवश्यकता में वृद्धि हो रही है, इसलिए नहीं कि सर्जरी के क्षेत्र में सुधार हो रही है और चिकित्सा पर्यटन विस्तार हो रहा है, हम समुदायों के माध्यम से जागरूकता फैलाने की जरूरत है। हमें नियमित रूप से दान की एक संस्कृति पैदा करने की जरूरत है: हर तीन महीने में रक्त दान करने से रक्त आपूर्ति के साथ रक्त सुरक्षा में भी वृद्धि होगी।”

(ग्रोसचेट्टी एक मल्टीमीडिया पत्रकार है और नेपियर विश्वविद्यालय, एडिनबर्ग से पत्रकारिता में बीए (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 3 सितंबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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