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चीन के स्थानीय सरकारो को कुल सार्वजनिक राजस्व का 25 फीसदी प्राप्त होता है जबकि भारत में यह आंकड़ा केवल 3 फीसदी का है। आर्थिक दृष्टि से भारत में तेज़ी से बढ़ते शहरों और कस्बों के लिए,यह आंकड़ा निश्चित तौर से संकट का संकेत है।

विश्व शहरीकरण संभावनाएँ 2014 ( World Urbanisation Prospects 2014) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 से 2015 के बीच भारत की शहरी आबादी में 1.1 फीसदी की वार्षिक वृद्धि पाई गई है जोकि प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है।

रिपोर्ट के अनुसार 2014 से 2050 के बीच भारत में शहरी निवासियों की संख्या 404 मिलियन तक पहुंचने की संभावना है।

शहरी सरकारों, विशेष रूप से भारत में शहरी स्थानीय निकायों की वित्त स्थितिपर विचार-विमर्श करने का शायद यह सही वक्त है।

देश के सकल घरेलू उत्पाद में संपत्ति कर की हिस्सेदारी वैश्विक औसत से कम दर्ज की गई है। भारत में संपत्ति कर, नगर निगम के राजस्व का मुख्य आधार है। केवल वैश्विक औसत ही नहीं यह आंकड़े ज़्यादातर ब्रिक्स (BRICS) समकक्षों सेभी सबसे कम है।

Source: Property taxes across G20 countries: can India get it right?” Working Paper XV, Oxfam India and CBGA

धन के मामूली संकलन एवं सरकार पर आर्थिक रुप से निर्भर रहना भारत में शहरी स्थानीय निकायों के लिए वास्तविकता है।

14 वें वित्त आयोग, एक सांविधिक निकाय, ने केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व हिस्सेदारी की बात करते हुएकुल विभाज्य कर संयोजन में से राज्यों की हिस्सेदारी में 10 फीसदी की वृद्धि करने की सिफारिश की है। यानि राज्यों की हिस्सेदारी का आंकड़ा 32 फीसदी से 42 फीसदी करने की सलाह दी गई है।

13 वें वित्त आयोग ने पहली बार केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व में हिस्सेदारी के विभाजन की सिफारिश की थी। आयोग के सलाह के अनुसार केन्द्र की विभाज्य कर संयोजन में शहरी स्थानीय निकायों को एक निश्चित शेयर आवंटित किया जाना चाहिए।

14 वें वित्त आयोग पद्धति के साथ अटक गया है,और वर्तमान में कुल विभाज्य कर संयोजन में हिस्सेदारी 2 फीसदी है।

शहरी व्यय का अध्ययन क्यों है महत्वपूर्ण

वर्तमान में जहां सरकार सौ स्मार्ट शहर बनाने की योजना में हैं, वहीं अपनीवित्तीय स्थिति को समझने के लिए शहरी स्थानीय निकायों का व्यय जाननाएक महत्वपूर्ण अंश है।आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओ.ई.सी.डी) सकल घरेलू उत्पाद के एक हिस्से के रूप में स्थानीय सरकारी खर्च का डाटा प्रकाशित करता है। लेकिन इसमें चीन और भारत के डाटा को नहीं लिया गया है।

साल 2009 में कुल सरकारी खर्च में चीन के स्थानीय सरकार की हिस्सेदारी 64.7 फीसदी थी। यह आंकड़े कुल सकल घरेलू उत्पाद का 8.66 फीसदीथी, जोकि कनाडा और कुछ यूरोपीय संघ जैसे देशों समेत (जैसे)विश्व स्तर पर सबसे अधिक है।

उपलब्ध भारतीय आंकड़ों को अगर देखा जाए तो इसमें ग्रामीण स्थानीय निकायों को शामिल नहीं किया गया है। 13वें वित्त आयोग की रिपोर्ट के अनुसार साल 2007-2008 में सकल घरेलू उत्पाद के एक हिस्से के रूप में शहरी स्थानीय निकायों का खर्च 1.54 फीसदी था।

भारते में संयुक्त स्थानीय सरकार में हिस्सेदारी के लिए डाटा उलपब्ध नहीं है। इसलिए सदृश रुप से आंकड़े देखने का एक ही रास्ता हैकि शहरी स्थानीय निकायों के व्यय को शहरी सकल घरेलू उत्पाद के एक हिस्से के लिहाज से देखा जाए ( जोकि राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद का 62 फीसदी है)।

Sources: OECD for all countries except China and India; FC-XIII – Chapter 10 for India; Wang and Herd (2013) for China. Figure for India is ULB expenditure as % of urban GDP.

हरियाणा के तीसरे राज्य वित्त आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि “शहरी स्थानीय निकाय अपनी मिली हुई शक्तियों का ठीक प्रकार से उपयोग नहीं कर पा रही हैं। इसके पीछे कुछ आर्थिक और राजनीतिक कारण हैं”।

इंडियास्पेंड ने आपको पहले ही बताया था कि किस प्रकार मुंबई नगर निगम का बजट सबके लिए एक रहस्य की तरह है।

12 वीं पंचवर्षीय योजना के लिए क्षमता निर्माण पर कार्य समूह की एक रिपोर्ट के अनुसार “राजस्व का लुढ़कता प्रतिशत और शहरी स्थानीय निकायों में व्यय शहरों की प्रतिस्पर्धा और अर्थव्यवस्था को चोट पहुँचा रही है”।

(भुनिया नीति विश्लेषक है)

(यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 22 जून 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है)

Image Credit: Flickr/Stephen Wilson


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