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भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने कहा था “देश की महिलाओं की स्थिति देख कर राष्ट्र की हालत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।”

भारत में कम से कम 415 मिलियन लोग ( रुस की कुल जनसंख्या का करीब तीन गुना )देश के किसी भी शैक्षिक संस्थान का हिस्सा नहीं हैं। इसमें से 242 मिलियन ( 58 फीसदी ) महिलाएं हैं। जनगणना आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किये गए विश्लेषण के दौरान यह आंकड़े सामने आए हैं।

आंकड़ों पर एक नज़र

आंकड़ों से तीन प्रमुख प्रवृत्तियों का पता चलता है :

  • प्रति 1,000 पुरुषों पर कम से कम 1,403 महिलाएं ऐसी हैं जो कभी किसी शैक्षिक संस्थान नहीं गई हैं। 17 वर्ष से 30-34 आयु वर्ग के बीच यह अनुपात तेज़ी से बढ़ा है जहां यह आंकड़े 2,009 हैं – यानि कि किसी शैक्षिक संस्थान नहीं गए प्रति पुरुषों पर दो महिलाएं हैं।

  • स्कूलों का हिस्सा बनने के संदर्भ में 16 वर्ष की आयु तक प्रति 1,000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या कफी हद तक स्थिर बनी हुई है एवं 17 से 24 आयु के बीच इस संख्या में उल्लेखनीय गिरावट हुई है। पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं ( 24 वर्ष से अधिक उम्र ), विशेषकर ग्रामीण इलाकों में विवाह के पश्चात स्कूल जा रही हैं।

  • यदि कॉलेज के आंकड़ों पर नज़र डाली जाए तो 18-19 आय़ु वर्ग में यह अनुपात काफी स्थिर है लेकिन 20-24 आयु वर्ग में काफी गिरावट पाई गई है। कॉलेज में ही इस अनुपात में गिरावट शुरु होने का परिणाम है कि कार्यबल में महिलाओं की कुछ ही संख्या शामिल हो पाती है।

कभी शैक्षिक संस्थान का हिस्सा न बने लोगों की संख्या

भारत का लिंग अनुपात ( प्रति 1,000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या ) 943 है लेकिन वर्तमान में प्रति 1,000 पुरुषों पर केवल 845 महिलाएं ही शैक्षिक संस्थान जा रही हैं (स्कूल, कॉलेज, व्यावसायिक केंद्र, साक्षरता केन्द्र और अन्य संस्थानों सहित)।

वर्तमान में कम से कम 314 मिलियन लोग शैक्षिक संस्थान जा रहे हैं जिनमें से केवल 45.7 फीसदी महिलाएं हैं।

0 से 14 आयु वर्ग में, पूरे भारत का अनुपात 905 और 885 के बीच घटता-बढ़ता रहता है एवं 15 वर्ष के बाद गिरता शुरु होता है। 25 से 29 आयु वर्ग के बीच यह अनुपात सबसे बद्तर है। इस आयु वर्ग में प्रति 1,000 पुरुषों पर 587 महिलाओं का अनुपात है।

यदि आंकड़ों पर नज़र डाली जाए तो पता चलता है कि शहरी इलाकों की महिलाओं की तुलना में ग्रामीण इलाकों की महिलाओं की स्थिति ज़्यादा खराब है। ग्रामीण इलाकों में प्रति 1,000 पुरुषों पर केवल 837 महिलाएं ही शैक्षिक संस्थाओं में नामांकित हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़े प्रति 1,000 पुरुषों पर 861 महिलाओं का है।

वर्तमान में शैक्षिक संस्थान जाने वाले लोग

राखी बधवार, सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च में राजस्थान राज्य कार्यक्रम प्रबंधक के अनुसार, इन प्रवृतियों के लिए दो प्रमुख कारण हैं।

  • लड़कियों की कम उम्र में शादी – जैसे ही लड़कियों की उम्र 17-18 होने लगती है, विशेष कर ग्रामण इलाकों में, उनके अभिभावकों को उनकी शादी की चिंता सताने लगती है। जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक भारत में कम से कम 41.3 फीसदी लड़कियों की शादी 19 वर्ष की आयु से पहले हो जाती है।

  • परिवहन का अभाव – ग्रामीण इलाकों में अधिकर स्कूल और कॉलेज लोगों के घरों से काफी दूरी पर बना होता है। सुरक्षा की चिंता एवं परिवहन के अभाव में माता-पिता बच्चों को स्कूल या कॉलेज भेजने से कतराते हैं।

इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 10 से 19 आयु वर्ग के बीच करीब 17 मिलियन लड़कियां विवाहित हैं यानि कि इस वर्ग की 6 फीसदी लड़कियों की शादी हुई है।

जनगणना की आंकड़ों के अनुसार इन विवाहित बच्चों में से 76 फीसदी या 12.7 मिलियन लड़कियां हैं। इस आयु वर्ग में केवल 4 मिलियन लड़के विवाहित हैं। यह आंकड़े संकेत देते हैं कि लड़कियों की स्थिति अधिक बद्तर है।

ग्रामीण - शहरी विभाजन स्पष्ट है – ग्रामीण इलाकों में करीब 47.3 फीसदी महिलाएं जिनकी उम्र 19 वर्ष है, विवाहित हैं जबकि शहरी क्षेत्र में इसी आयु वर्ग की 29.2 फीसदी महिलाएं विवाहित हैं।

माध्यमिक स्तर पर महिलाएं करती हैं ड्राप आउट, ग्रामीण इलाकों में विवाह के पश्चात होता है बदलाव

पूरे भारत में, प्रति 1,000 पुरुषों के मुकाबले 872 महिलाएं स्कूल जाती हैं। यह अनुपात 17 वर्ष की आयु से लेकर 20-24 आयु वर्ग के बीच शुरु होती है। इस आयु वर्ग में यह अनुपात 656 है एवं बाद में उम्र कोष्ठक में यह अनुपात बढ़ जाती है।

इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत ने भले ही प्राथमिक स्तर पर दाखिले का प्रभावशाली स्तर हासिल किया है ( 101.4 फीसदी ) लेकिन माध्यमिक स्तर पर यह दर गिर कर 52 फीसदी ही है।

इन आंकड़ों से एक बहुत ही रोचक प्रवृत्ति का पता चलता है। 24 वर्ष से अधिक उम्र की 1.55 मिलियन महिलाएं स्कूल जाती हैं। इनमें से 1.19 मिलियन ( 77 फीसदी ) महिलाएं ग्रामीण इलाके में रहती हैं।

बधवार ने कहा, “हां, विवाह के बाद पढ़ाई जारी रखने के संबंध में ग्रामीण इलाकों में जागरुकता फैली है लेकिन इसे और मजबूत करने की ज़रुरत है।”

गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) द्वारा कई वयस्क शिक्षा कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं : डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स द्वारा ताराअक्षर, प्रथम द्वारा प्रौढ़ साक्षरता कार्यक्रम (महिलाओं के लिए ) और प्रयास द्वारा प्रौढ़ महिलाओं के लिए शिक्षा कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा देने के उदेश्य से साक्षर भारत कार्यक्रम चलाया जा रहा है।

वर्तमान में स्कूल जाने वाले लोगों की संख्या

कुछ ही महिलाएं जाती हैं कॉलेज; सबसे कम महिला कर्मचारियों की संख्या दरों वाले देशों में से एक है भारत

आंकड़ों से पता चलता है कि स्कूल में महिलाओं की उच्च नामांकन कॉलेज तक जारी नहीं रह पाता है।

वर्तमान में प्रति 1,000 पुरुषों पर 691 महिलाएं कॉलेज जाती हैं। 19 आयु वर्ग में यह अनुपात गिरकर केवल 825 है जबकि 25 से 29 आयु वर्ग में यह केवल 531 ही है।

वर्तमान में कॉलेज जाने वालों की संख्या

कॉलेज में महिलाओं की कम संख्या होने का मतलब है देश के कार्यबल में कम उपस्थिति और इसका मतलब देश की सकल घरेलू उत्पाद ( जीडीपी ) में कम योगदान।

17 फीसदी के आंकड़ों के साथ भारत की जीडीपी में महिलाओं का योगदान, वैश्विक औसत ( 37 फीसदी ) की तुलना में काफी कम है।

इस संबंध में भारत के विपरीत, चीन में 41 फीसदी, उप सहारा अफ्रीका (कई सूचकांकों द्वारा दुनिया के सबसे पिछड़ा क्षेत्र माना जाने वाला ) का 39 फीसदी एवं लैटिन अमरीका में महिलाओं का देश की जीडीपी में 33 फीसदी योगदान है। मैकिंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के आधार पर इंडियास्पेंड ने पहले ही इसकी रिपोर्ट दी है।

रिपोर्ट के अनुसार आने वाले दशक में कार्यबल में महिलाओं की संख्या में वृद्धि के लिए भारत में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में लिंग अंतर को समाप्त करना होगा। साथ की कौशल में सुधार एवं महिलाओं के लिए कानूनी प्रावधानों को मजबूत बनाने और कानूनों को लागू करने की आवश्यकता है।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने पिछले साल हर परिवार से एक लड़की के लिए प्रगति छात्रवृत्ति की घोषणा की है। इस योजना के तहत सालाना छह लाख से कम आय वाले हरेक परिवार से एक लड़की को कॉलेजों में तकनीकी शिक्षा के लिए छात्रवृति दी जाएगी।

आंकड़ों के लिए यहां क्लिक करें।

साहा नई दिल्ली स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 28 नवंबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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