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भारत में होने वाली 5 मौतों में से 4 मौतें चिकित्सा पेशेवरों द्वारा प्रमाणित नहीं होती हैं। यह बात नई जनगणना रिपोर्ट में सामने आई हैं। ज़्यादा भारतीयों की मौत शायद इसलिए हो रही है क्योंकि यह जाने बिना कि लोगों की मौत का कारण क्या है, निवारक उपाय मुश्किल है।

हाल ही में प्रकाशित हुए,मौत के कारण का चिकित्सा प्रमाण पत्र (एमसीसीडी) 2013 की रिपोर्ट के अनुसार, “योजनाकारों, प्रशासकों और विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के लिए उपयुक्त उपचारात्मक और निवारक उपाय के उपक्रम में चिकित्सा पेशेवरों के लिए मौत के कारण पर आंकड़े आवश्यक हैं। यह चिकित्सा अनुसंधान को आगे बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और निगरानी के साथ-साथ निदान और विश्लेषण के तरीकों में सुधार के लिए भी महत्वपूर्ण है।”

एमसीसीडी अध्ययन में एक मिलियन से कम – 9.29 लाख – मौतों का विश्लेषण किया गया है जिसमें से 38 फीसदी महिलाएं हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार, कुल हुए मौतों में से केवल 20 फीसदी मौतें चिकित्सकीय प्रमाणित हैं, जिनमें से अधिकतर मौतें शहरी इलाकों में हुई है।

कुल मौत के प्रतिशत के रुप में चिकित्सकीय प्रमाणित मृत्यु,टॉप पांच बड़े राज्य एवं पांच निचले राज्य

वर्ष 2013 में मौतों की अधिकतम अनुपात, हृदय रोग, फेफड़े की बीमारियों और उच्च रक्तचाप (CVDs, सीवीडी के रूप में वर्गीकृत) सहित संचार प्रणालियों में विफलताओं से हुई है।

भारत में मृत्यु के आठ प्रमुख कारण, 2013

पिछले दो दशकों में संचार प्रणालियों, श्वसन प्रणाली, पाचन प्रणाली से संबंधित रोगों से होने वाली मौतें एवं कैंसर जैसी बीमारियों से होने वाली मौतों की संख्या में वृद्धि हुई है जबकि संक्रमण, विषाक्तता और परजीवी के कारण होने वाली मौतों की संख्या में गिरावट हुई है।

दो दशकों में होने वाले मौतों के कारण

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान जर्नल में इस पेपर के अनुसार तेज़ी से होता विकास और कृषि से शहरी जीवनशैली मे हुए बदलाव से आयु उतने नीचे पहुंच गई है जितनी भारत में लोग सीवीडी से मरते हैं।

वर्तमान में, भारतीयों को मलेरिया जैसे संक्रामक रोग (जिससे एक दशक पहले मौत का जोखिम अधिक होता है) की तुलना में हृदय रोग या कैंसर जैसे संचारी रोग से मौत होने का अधिक ज़ोखिम होता है। इस संबध में इंडियास्पेंड ने पहले की जानकारी दी है।

चार मुख्य कारणों से होने वाले मौत दर्ज करने वाले टॉप चार राज्य

25 से 34 आयु वर्ग के बीच चोट , विषाक्तता और अन्य बाहरी कारणों से ज्यादातर मौतें हुई हैं। यह कामकाजी आबादी, विशेष कर मजदूरों, का इन कारणों के जोखिम की ओर इंगित करता है।

एक दशक में आदतों में हुए बदलाव

2004 से 2006 के दौरान कम से कम 60 फीसदी पुरुष एवं 18.5 फीसदी महिलाओं की मौत धुम्रपान या तंबाकू चबाने से हुई है। यह अनुपात, 2010 से 2013 के दौरान गिरकर 50 फीसदी एवं 10.6 फीसदी तक पहुंचा है। इससे स्पष्ट होता है कि तंबाकू के इस्तेमाल से होने वाली मौतों में कमी हुई है।

पिछले एक दशक में तंबाकू, शराब और मांसाहारी भोजन के कारण होने वाली मौतों की प्रतिशत में गिरावट हुई है।

विकास से गैर-संचारी रोग में वृद्धि

हालांकि कम विकसित क्षेत्रों में संक्रामक रोगों से मौत का अधिक खतरा होता है जबकि गैर संचारी रोग भारत के अधिक विकसित क्षेत्रों में फैल रहे हैं।

मौत के मुख्य कारणो का क्षेत्रीय वितरण

सभी कारणों से होने वाली मौतों में, संक्रामक रोगों का अनुपात अन्य क्षेत्रों की तुलना में (संक्रमण और परजीवी के कारण) ग्रामीण इलाकों एवं भारत के कुछ सबसे पिछड़े राज्यों में (आधिकारिक तौर पर एंपावर्ड एक्शन ग्रूप, ईएजी राज्य, जिसमें उत्तराखंड - बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ , ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश शामिल हैं) में उच्च है।

भारत में जन्म दर में गिरावट

भारत में जन्म दर (प्रति हज़ार आबादी पर जन्म) 2008 में 22.8 से गिरकर 2013 में 21.4 हुआ है।

26.3 के साथ मध्यप्रदेश का सबसे अधिक जन्म दर है जबकि 14.7 के साथ केरल का जन्म दर सबसे कम है।

जनसंख्या आयु समूह, 2011 जनगणना

ग्रामीण केरल ही केवल ऐसा क्षेत्र है जहां जन्म दर में वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2008 में यह आंकड़े 14.6 दर्ज किए गए थे जबकि वर्ष 2013 में यह आंकड़े बढ़ कर 15 हुए हैं। अन्य सभी क्षेत्रों में गिरावट दर्ज की गई है।

केरल की मृत्यु दर के साथ पश्चिम बंगाल की भी मृत्यु दर में वृद्धि हुई है।

केरल में चार बीमार व्यक्तियों में तीन का इलाज सरकारी या निजी अस्पतालों में किया गया – जो देश में उच्चतम है – जबकि देश के बाकि हिस्सों में पांच बीमार व्यक्तियों में से दो का इलाज अस्पताल में कराया गया एवं बिहार और झारखंड में चार में से एक व्यक्ति का अस्पताल में इलाज कराया गया।

(वाघमारे इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 10 फरवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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