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मुंबई: कम से कम 50 फीसदी भारतीय किशोर लड़कियां कम वजन की हैं। 52 फीसदी एनीमिक हैं। करीब 39 फीसदी लड़कियां अब भी खुले में शौच जाती हैं। लगभग 46 फीसदी मासिक धर्म संरक्षण के स्वच्छ तरीकों का उपयोग नहीं करती हैं।ये नंदी फाउंडेशन की एक परियोजना नन्ही कली द्वारा जारी की गई एक नई सर्वेक्षण रिपोर्ट टीन एज गर्ल्स रिपोर्ट (या टैग रिपोर्ट) के निष्कर्ष हैं। यह परियोजना किशोर लड़कियों पर केंद्रित है।

चूंकि किशोर भारतीय लड़कियों की आकांक्षाओं में वृद्धि हुई है, जैसा कि हमने श्रृंखला के पहले भाग में बताया है, उनमें से अधिकतर लिंग मानदंडों और ' न्यू एज स्किल ' ( जैसे कि अकेले यात्रा करना या कंप्यूटर पर अंग्रेजी में दस्तावेज लिखना ) के लिए संघर्ष करती हैं, जैसा कि हमने श्रृंखला के दूसरे भाग में रिपोर्ट की है। श्रृंखला के इस अंतिम भाग में हम स्वास्थ्य की स्थिति और स्वच्छता तक पहुंच को देखेंगे। हम बता दें कि 63.2 मिलियन किशोर भारतीय लड़कियां 2019 में पहली बार मतदान करेंगी। किशोर लड़की का स्वास्थ्य न केवल उनके अपने जीवन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भविष्य में उनके होने वाले बच्चे के लिए भी महत्वपूर्ण है। सर्वेक्षण में 28 राज्यों और सात शहरों की 74,000 किशोर लड़कियों को शामिल किया गया है और उनसे शैक्षिक और स्वास्थ्य की स्थिति, बुनियादी जीवन कौशल, एजेंसी, घर के अंदर और बाहर सशक्तिकरण और आकांक्षाएं सहित नौ विषयों पर सवाल पूछे गए थे। प्रशिक्षित सर्वेक्षकों की एक टीम ने पोषण स्तर को समझने के लिए कद और वजन पर डेटा एकत्र किया, और एनीमिया प्रसार को समझने के लिए हीमोग्लोबिन डेटा एकत्र किया। सर्वेक्षण संकेतों के माध्यम से अन्य संकेतक एकत्र किए गए थे।

52 फीसदी किशोर भारतीय लड़कियां एनीमिक हैं

सर्वेक्षण में पाया गया कि किशोर भारतीय लड़कियों में से 51.8 फीसदी एनीमिक हैं। एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति के पास लाल रक्त कोशिकाओं या हेमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य से कम होती है, जिससे ऑक्सीजन ले जाने के लिए उनके रक्त की क्षमता कम हो जाती है और कई स्वास्थ्य समस्याएं और यहां तक ​​कि मौत भी हो सकती है।

कम हीमोग्लोबिन स्तर कम उत्पादकता और बीमारी और मृत्यु का कारण बनता है, और इस प्रकार आर्थिक लागत लगाता है। 2016 में एनीमिया के सकल घरेलू उत्पाद का नुकसान 22.64 बिलियन डॉलर (1.50 लाख करोड़ रुपये) का अनुमान था जो 2017-18 के लिए स्वास्थ्य बजट से तीन गुना अधिक है, जैसा कि इंडियास्पेन्ड ने नवंबर 2017 में बताया था।

भारतीय किशोर लड़कियों में एनीमिया का प्रसार

सर्वेक्षण में पाया गया कि ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरी इलाकों में किशोर लड़कियों में हीमोग्लोबिन स्तर सामान्य होने की संभावना है।

निवास स्थान के अनुसार भारतीय किशोर लड़कियों में सामान्य हेमोग्लोबिन स्तर

Source: Teen Age Girls Report, Naandi Foundation

इसी प्रकार, उच्च घरेलू संपत्ति वाले घरों में लड़कियों में सामान्य हीमोग्लोबिन के स्तर होने की अधिक संभावना होती है।

घरों को धन क्विंटाइल में बांटा गया है - उपभोक्ता वस्तुओं और घरेलू विशेषताओं के स्वामित्व जैसे स्वच्छ पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता के स्कोर के आधार पर पांच बराबर भाग में बांटा गया।

इस सर्वेक्षण के लिए, शीर्ष दो क्विंटाइल ( या शीर्ष 40 फीसदी घरों ) 'उच्च संपत्ति क्विंटाइल' के रूप में वर्गीकृत थे, जबकि नीचे 60 फीसदी घरों को 'कम संपत्ति क्विंटाइल' के रूप में वर्गीकृत किया गया था। जबकि उच्च संपत्ति वाले क्विंटाइल परिवारों में केवल 51.2 फीसदी लड़कियों में सामान्य हीमोग्लोबिन के स्तर थे, वहीं कम संपत्ति क्विंटाइल परिवारों में 46.2 फीसदी लड़कियों में हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य था।

परिवार की संपत्ति के अनुसार भारतीय किशोर लड़कियों में सामान्य हेमोग्लोबिन स्तर का प्रसार

Source: Teen Age Girls Report, Naandi Foundation

राज्यों में से, त्रिपुरा ने 35.5 फीसदी किशोर लड़कियों में सामान्य हेमोग्लोबिन के स्तर के साथ सबसे खराब प्रदर्शन किया। इसके बाद पंजाब (40.7 फीसदी), गुजरात (41.3 फीसदी) और तेलंगाना (42 फीसदी) का स्थान रहा है। मणिपुर में सबसे ज्यादा किशोर लड़कियों में (89.4 फीसदी) सामान्य हीमोग्लोबिन का स्तर देखा गया है, जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है।

हर दूसरी किशोरी भारतीय लड़की कम वजन वाली

कम से कम 50.2 फीसदी किशोर लड़कियां कम वजन की हैं, जैसा कि सर्वेक्षण में बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) का उपयोग कर पाया गया है। बीएमआई लोगों के वजन-दर-ऊंचाई अनुपात के आधार पर अंडरवेट, सामान्य, अधिक वजन और मोटापे के आधार पर वर्गीकृत करता है।जबकि 2.8 फीसदी अधिक वजन वाले हैं और 0.7 फीसदी मोटापे से ग्रस्त हैं। 46.3 फीसदी किशोर भारतीय लड़कियों के पास सामान्य बीएमआई है।

भारतीय किशोर लड़कियां का पोषण स्तर

Source: Teen Age Girls Report, Naandi Foundation

इनमें से अधिकांश अपने बचपन में कुपोषण से ग्रस्त होते हैं।

भारत में कामकाजी आबादी का लगभग दो तिहाई बचपन के स्टंटिंग ( उम्र के मुकाबले कम कद ) के कारण करीब 13 फीसदी कम कमाते हैं।प्रति व्यक्ति आय में दुनिया की सबसे ज्यादा कटौती है यह, जैसा कि इंडियास्पेन्ड ने 15 2018 में अगस्त की रिपोर्ट में बताया है।

कम मानसिक विकास, जो कम संज्ञानात्मक और सामाजिक भावनात्मक कौशल की ओर जाता है और शैक्षिक प्राप्ति के निम्न स्तर के कारण 66 फीसदी श्रमबल अपनी क्षमता से कम कमाते हैं। जबकि 13 से 15 वर्ष की उम्र के समूह में केवल 38.2 फीसदी लड़कियां सामान्य बीएमआई थीं, वहीं 16 से 19 साल के आयु वर्ग में यह 54.2 फीसदी तक पहुंच गया है, जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है।

आयु वर्ग के अनुसार, भारतीय किशोर लड़कियों के बीच सामान्य बीएमआई का प्रसार

Source: Teen Age Girls Report, Naandi Foundation

किशोरावस्था के बाद यह प्रवृत्ति जारी है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2015-16 (एनएफएचएस -4) के आंकड़ों से पता चलता है कि 40-49 साल की 14 फीसदी महिलाओं की तुलना में 15-19 वर्ष की उम्र की 42 फीसदी लड़कियां कम वजन वाली थीं।

इसी प्रकार, ग्रामीण समकक्षों की तुलना में शहरी इलाकों में लड़कियों में उनके सामान्य बीएमआई स्तर होने की अधिक संभावना थी।

निवास स्थान के अनुसार, भारतीय किशोर लड़कियों के बीच सामान्य बीएमआई का प्रसार

Source: Teen Age Girls Report, Naandi Foundation

जबकि उच्च संपत्ति वाले क्विंटाइल परिवारों में 49.9 फीसदी लड़कियों में सामान्य बीएमआई थीं। जबकि निम्न संपत्ति वाले क्विंटाइल परिवारों में यह आंकड़े 43.9 फीसदी थे।

परिवार की संपत्ति अनुसार भारतीय किशोर लड़कियों के बीच सामान्य बीएमआई का प्रसार

Source: Teen Age Girls Report, Naandi Foundation

राज्यों में बिहार ने सामान्य बीएमआई वाली 39 फीसदी किशोर लड़कियों के साथ सबसे खराब प्रदर्शन किया है। इसके बाद मध्य प्रदेश (39.7 फीसदी), तेलंगाना (40.6 फीसदी) और झारखंड (42.9 फीसदी) का स्थान रहा है। मणिपुर में सामान्य बीएमआई के साथ किशोर लड़कियों (79.4 फीसदी) की संख्या सबसे ज्यादा थीं। एक वैचारिक संस्था ‘इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के वरिष्ठ शोध साथी पूर्णिमा मेनन ने इस सितंबर 2017 साक्षात्कार में इंडियास्पेन्ड को बताया था, " भारत और दक्षिण एशिया में, लिंग भेदभाव खराब पोषण के लिए सबसे महत्वपूर्ण अंतर्निहित कारकों में से एक है। "

नंदी फाउंडेशन के मुख्य नीति अधिकारी रोहिणी मुखर्जी ने इंडियास्पेंड को बताया, "किशोर लड़कियों के लिए सामाजिक-आर्थिक वर्गों में कम बीएमआई और एनीमिया के कारक में परिवार के भीतर महिला की स्थिति, अंधविश्वासों का प्रसार और अच्छे स्वास्थ्य के रूप में जागरूकता की कमी शामिल है।"

इसके अलावा, 15-19 साल की उम्र में 10 लड़कियों में से सात ने कहा कि स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच में उन्हें कम से कम एक समस्या थी। चिकित्सकीय प्रदाताओं और दवाओं की अनुपलब्धता और इलाज के लिए अनुमति प्राप्त करने से संबंधित समस्याओं का उल्लेख किया गया है।

क्यों भारतीय किशोर लड़कियों ( 15-19 वर्ष ) की स्वास्थ देखभाल तक पहुंच नहीं होती

10 किशोर भारतीय लड़कियों में से चार अभी भी खुले में शौच जाती हैं

सर्वेक्षण में दिखाया गया है कि 39.8 फीसदी किशोर भारतीय लड़कियां अभी भी खुले में शौच जाती हैं। 13-15 साल की उम्र में 41.5 फीसदी लड़कियों ने कहा कि वे खुले में शौच जाती हैं। वहीं 16 से 19 साल के आयु वर्ग में 38.2 फीसदी लड़कियों ने इसे स्वीकार किया है। जबकि ग्रामीण इलाकों में 49 फीसदी लड़कियां ने कहा कि वे खुले में शौच जाती हैं, उनके शहरी समकक्षों में से 18 फीसदी ने माना है कि वे खुले में शौच जाती हैं।

निवास स्थान के अनुसार खुले में शौच का प्रसार

Source: Teen Age Girls Report, Naandi Foundation

उच्च घरेलू संपत्ति वाली लड़कियों की खुले में शौच जाने की संभावना कम थी, जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है।

परिवार की संपत्ति के अनुसार खुले में शौच का प्रसार

Source: Teen Age Girls Report, Naandi Foundation

मुखर्जी ने समझाया, "शौचालय होने के बावजूद, कई प्रमुख कारणों से कई लड़कियां बाहर निकलना पसंद करती हैं। एक कारण यह है कि अधिकांश शौचालयों में पानी का कनेक्शन नहीं होता है, जिसका मतलब है कि लड़कियों को पानी लेना पड़ता है, इस प्रकार वे शौचालयों का उपयोग करने के लिए हतोत्साहित होती है।"

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा 2016 स्वच्छता स्थिति रिपोर्ट के अनुसार स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनाए गए 57.5 फीसदी शौचालयों में पानी का कनेक्शन नहीं है।मुखर्जी ने कहा, " हम सभी सहमत हैं कि शौचालयों का उपयोग आसान और आरामदायक होना चाहिए, लेकिन जब इसेके लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है तो वे पुराने अभ्यास पसंद करते हैं।" अपर्याप्त स्वच्छता (मानव उत्सर्जन, ठोस अपशिष्ट, और जल निकासी के प्रबंधन ) के कारण से स्वास्थ्य, पीने के पानी और पर्यटन को नुकसान होता है, जिस कारण हर साल भारत को 2.4 ट्रिलियन (53.8 बिलियन डॉलर) नुकसान होता है, जैसा कि इंडियास्पेन्ड ने जनवरी 2018 में बताया था। दस्त के मामलों, पांच वर्ष से कम मृत्यु दर और बच्चों और वयस्कों के बीच स्टंटिंग के लिए प्रमुख कारणों में से एक अपर्याप्त स्वच्छता है। बेहतर स्वच्छता से उन्हें परिवार के लिए अधिक आय सुनिश्चित करने और अधिक में मदद मिलेगी।खुले में शौच करने के मामले में झारखंड ने सबसे खराब प्रदर्शन किया है। वहां सिर्फ 34.9 फीसदी किशोर लड़कियों ने कहा कि वे खुले में शौच नहीं जाती हैं। इसके बाद बिहार है, वहां 36.9 फीसदी किशोर लड़कियां खुले में शौच नहीं जाती हैं। गुजरात में 40.5 फीसदी और ओडिशा में 42.2 फीसदी लड़किया खुले में सौच नहीं जाती हैं। केरल में सबसे ज्यादा किशोर लड़कियां (99 फीसदी) थीं, जो खुले में शौच नहीं जाती थी।

46 फीसदी किशोर भारतीय लड़कियां मासिक धर्म संरक्षण के स्वच्छ तरीकों का उपयोग नहीं करती हैं

सर्वेक्षण में पाया गया कि केवल 54.4 फीसदी किशोर भारतीय लड़कियां स्वच्छ मासिक धर्म संरक्षण का उपयोग करती हैं। स्वच्छता नैपकिन, टैम्पन और मासिक धर्म कप को 'स्वच्छता संरक्षण' के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जबकि अनैसर्गिक प्रथाओं में कपड़ा, कपड़ा पैड और अन्य स्थानीय सामग्री का उपयोग शामिल होता है।

45.5 फीसदी लड़कियों ने कहा कि उन्होंने कपड़े या कपड़े पैड का इस्तेमाल किया था।

भारतीय किशोर लड़कियों द्वारा मासिक धर्म संरक्षण के स्वच्छ तरीकों का उपयोग

सर्वेक्षण में पाया गया कि शहरी क्षेत्रों में लड़कियों के बीच स्वच्छ मासिक धर्म संरक्षण का उपयोग अधिक था।

निवास के स्थान पर भारतीय किशोर लड़कियों द्वारा मासिक धर्म संरक्षण के स्वच्छ तरीकों का उपयोग

Source: Teen Age Girls Report, Naandi Foundation

इसी तरह, जबकि उच्च संपत्ति वाले क्विंटाइल परिवारों में 71.6 फीसदी लड़कियां स्वच्छ तरीके का उपयोग करती हैं। कम संपत्ति वाले क्विंटाइल परिवारों में केवल 42.6 फीसदी लड़कियां ऐसा करती हैं।

परिवार की संपत्ति के अनुसार भारतीय किशोर लड़कियों द्वारा मासिक धर्म संरक्षण के स्वच्छ तरीकों का उपयोग

Source: Teen Age Girls Report, Naandi Foundation

मुखर्जी कहती हैं, "मासिक धर्म संरक्षण के बेहतर तरीकों के बारे में एक समझ है, भले ही वे बेहतर तरीकों का उपयोग न कर पाएं, लेकिन सभी लड़कियां निश्चित रूप से ब्रांडेड पैड का उपयोग करने की इच्छा रखते हैं।" मुखर्जी ने इंडियास्पेंड को बताया कि भले ही पैड रिमोट मार्केट तक पहुंचे हैं, लेकिन इसे वहन करना एक प्रमुख मुद्दा है।

कम से कम 70 फीसदी माताएं, मासिक धर्म पर चर्चा को गंदा विषय़ मानती हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जुलाई 2018 में रिपोर्ट किया है।

तमिलनाडु मासिक धर्म प्रथाओं में बेहतर तरीकों के लिए सबसे ऊपर है, जिसमें 97.1 फीसदी लड़कियां स्वच्छ सुरक्षा विधियों का उपोयोग करती है, जबकि उत्तर प्रदेश 35.3 फीसदी के साथ सबसे खराब प्रदर्शन करता है। इसके बाद बिहार (37.8 फीसदी), गुजरात (40.1 फीसदी) और मध्य प्रदेश (40.9 फीसदी) का स्थान है।

यह भारत की किशोर लड़कियों पर तीन लेखों की श्रृंखला का तीसरा और अंतिम आलेख है। पहला आलेख आप यहां और दूसरा आलेख यहां पढ़ सकते हैं।

( सोशल वर्क में पोस्ट-ग्रैजुएट प्रगति इंडियास्पेंड के साथ इंटर्न हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 29 अक्टूबर 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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