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वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण और अन्य सामाजिक क्षेत्रों के लिए निधि घटा दी है यह कहते हुए कि क्योंकि पहले की तुलना में सभी राज्यों को कहीं अधिक पूँजी दी जा रही है वे खर्च में प्राथमिकताओं को स्वयं तय कर सकते हैं।

लेकिन इंडिया स्पेंड के एक विश्लेषण के अनुसार राज्यों को दी गई राशि 26% और 39% के बीच हो सकती है जो पिछले साल के मुकाबले में कम है।

इस वर्ष बजट में अंतरण और सहकारी संघवाद जैसे शब्दों की प्रमुखता के साथ ,वित्त आयोग की नवीनतम सिफारिश के अनुसार केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 32% से 42% तक बढ़ने से यह इंगित होता है कि सरकार द्वारा वायदों का मान रखा गया है ।

लेकिन राज्यों की दी गई राशि में 2014-15 में किए गए बजट अनुमान से 39% की कटौती की गई है। 2015-16 के बजट बनाते हुए उन अनुमानों को संशोधित कर के 26% किया गया था।

"14 वीं वित्त आयोग की सिफारिशों के प्रभाव के बारे में आम धारणा के विपरीत, 2015-16 में ( केन्द्र-राज्य के बीच संसाधनों के बंटवारे में किए गए परिवर्तन की वजह से) राज्य सरकारों की खर्च क्षमता में शुद्ध वृद्धि बहुत मामूली ही होगी" एक प्रबुद्ध मंडल, सेंटर फॉर बजट गवर्नेंस एकाउंटेबिलिटी की एक रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है।

इसे जिस प्रकार से भी देखा जाए , घोषणा पत्र में भारतीय जनता पार्टी द्वारा किए गए चुनाव पूर्व वादों के विपरीत, विकास के लिए उपलब्ध राशि काफी कम हो जाएगी।

इंडिया स्पेंड ने जैसे पहले बताया था कि जिस समय भारत के स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य विकास संकेतक निराशाजनक दिख रहे हैं, उसी समय स्वास्थ्य के लिए बजट 15% से नीचे है और शिक्षा बजट 16% से । महिला एवं बाल विकास के लिए बजट में 51% की कटौती, और पर्यावरण के लिए 18% की कटौती की गई है।

74% साक्षरता दर के साथ, भारत एक व्यापक अंतर से, अपने ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) समकक्षों से पिछड़ गया है : अन्य चार देशों में से प्रत्येक में 90% से अधिक की साक्षरता दर है । कुछ यही स्थिति भारत के स्वास्थ्य संकेतों की भी है।

तो, पैसा कहाँ गया ?

सामाजिक क्षेत्र में कटौती कैसे होती है यह समझने के लिए, भारत सरकार के व्यय बजट की जांच महत्त्वपूर्ण है -वह अनुभाग जो व्यय देखता है-जो "नियोजित"और "अनियोजित" मद के तहत राशि का आवंटन करता है ।

नियोजित व्यय विशेष रूप से मानव विकास से संबंधित है; दूसरे शब्दों में, सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों से।

व्यय सारांश: बजट 2014-15 एवं 2015-16 (रु '000 करोड़)

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बजट 2014-15 और 2014-15 संशोधित अनुमानों से बजट अनुमान 2015-16 (%) में बदलाव

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Source: Budget 2015-16

ऊपर दी गई तालिका के अनुसार व्यय आवंटन में पिछले बजट अनुमान की तुलना में कुल योजना आवंटन में 19% की समग्र गिरावट दिखती है। 2014-15 के अंतरिम बजट में पहली बार राज्यों को केंद्रीय सहायता बढ़ाई गई :वर्ष 2013-14 के लिए बजट अनुमान 136,254 करोड़ रुपये (यू एस $ 21.9 बिलियन) से 2014-15 के बजट अनुमान में 338,562 करोड़ रुपये तक।

बाद में सिफारिशों के फलस्वरूप , सरकार ने गैर-योजना व्यय में 2014-15 में 12,19,891.9 करोड़ (यूएस $ 196.9 बिलियन) से 2015-16 के बजट अनुमानों में 13,12,200 करोड़ रुपये (यूएस $ 211.8 बिलियन) तक वृद्धि कर दी।

भारत का विकास, 1951 के बाद से सोवियत शैली केंद्रीकृत योजना पर निर्भर रहा है , जब योजना आयोग का गठन किया गया था। 1991 में उदारीकरण के बाद योजना आयोग काफी हद तक निरर्थक हो गया, उसकी भूमिका राशि आवंटन करने तक सीमित रह गई ।

12 वीं पंचवर्षीय योजना-जो 2012 में उस समय सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के अंतर्गत शुरू हुई -अपने आप में अनूठी है।यह वह योजना थी जिसमे पहली बार योजना आयोग के पुनर्गठन और अंतरण में सुधार की सिफारिश की, जिसके उपरांत राज्यों के लिए पूँजी में वृद्धि हुई थी।

2014 में योजना आयोग की जगह नीति आयोग के प्रतिस्थापन के साथ, अब भी कई परिचालन मुद्दों पर अभी तक स्पष्टता नहीं हैं।

किस प्रकार राज्यों के लिए पूँजी आवंटन के ज़िम्मेदार शीर्ष पांच मंत्रालयों का सामाजिक क्षेत्र कार्यक्रमों के बजटमें कटौती की गई है:

मुख्य विकास मंत्रालयों के लिए राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों के योजना आवंटन में गिरावट (रु '000 करोड़ रुपये)

बजट 2014-15 और 2014-15 संशोधित अनुमानों से बजट अनुमान 2015-16 (%) में बदलाव

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Source: Union Budget

अपने घोषणा पत्र में भाजपा ने स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए राशि में वृद्धि का वादा किया था।

कृषि बजट में भी योजना आवंटन में कुछ कटौती देखी गई । सरकार ने कहा कि उसने प्रोत्साहन के लिए कृषि अवसंरचना विकास और कौशल विकास योजनाओं में इसकी प्रतिपूर्ति की है।

14 वें वित्त आयोग की रिपोर्ट के अनुसार राज्यों को अक्सर केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के लिए अलग से रखे संसाधनों का उपयोग करने में मुश्किल आती है क्योंकि उन्हें कुछ शर्तें पूरी करनी पड़ती है (उदाहरण के लिए, राज्यों को पहले य बताना होता है कि उनको किसकी जरूरत है और दिहना होता है कि वे राशि खर्च करने में समर्थ हैं )। अन्य हस्तांतरण बिना शर्त होते हैं।

हम कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं की जांच करते हैं जिनके लिए केंद्र अपने मंत्रालयों के माध्यम से भुगतान करता है। हालाँकि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ) और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) द्वारा अधिक परिवर्तन नहीं हुआ है, वहीं बाल विकास और शिक्षा के लिए निधी को आधा कर दिया गया है। और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) का बजट, हालाँकि 2014-15 के लिए संशोधित अनुमान की तुलना में अधिक है, लेकिन फिर भी 16.5% से नीचे हुआ है।

राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों की योजनाओं के लिए नियोजित आवंटन(रु '000 करोड़ )

बजट 2014-15 और 2014-15 संशोधित अनुमानों से बजट अनुमान 2015-16 (%) में बदलाव

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Source: Union Budget

'सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस अकाउंटेबिलिटी की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015-16 से , केंद्र , आवर्ती व्यय के लिए भुगतान नहीं करेगा, जैसे राज्यों में चल रही इन 24 योजनाओं के अंतर्गत कर्मचारियों का वेतन ; जैसे कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, एकीकृत बाल विकास सेवा, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (किसानों के लिए राष्ट्रीय योजना), राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (माध्यमिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय मिशन) , राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, स्वच्छ भारत अभियान, इंदिरा आवास योजना और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन।

बहुत सम्भव है कि कई राज्य सरकारें इन योजनाओं को बंद कर सकती हैं।

अद्यतन: सीबीजीए रिपोर्ट का लिंक सही किया गया है।

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