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एक सर्वेक्षण में 18 में से, 12 पोल्ट्री फार्म ने चूजों की वृद्धि बढ़ाने के लिए एंटीबायोटिक्स का उपयोग करने की बात मानी। उपयोग किए जा रहे एंटीबायोटिक्स में टेट्रासाइक्लिन और फ्लुरोक्विनोलोनेस शामिल हैं, जिनका मानवों के उपचार में काफी उपयोग होता है। एंटीबायोटिक्स के अंधाधुंध इस्तेमाल से एंटीबायोटिक्स को बेअसर करने वाले बैक्टीरिया के विकसित होने की आशंका बढ़ गई है, जिससे व्यक्तियों में ऐसे संक्रमण पैदा हो सकते हैं, जिनका इलाज करना मुश्किल या असंभव होगा।

‘सेंटर फॉर डिजीज डायनैमिक्स, इकनॉमिक्स एंड पॉलिसी के वाशिंगटन डीसी और नई दिल्ली के डायरेक्टर, रामानन लक्ष्मीनारायण की अगुवाई में किए गए एक नए अध्ययन में बताया गया है कि भारतीय पोल्ट्री फार्म पर एंटीबायोटिक्स को चूजों को नियमित तौर पर छोटी खुराकों में वृद्धि बढ़ाने और बीमारी को दूर रखने के लिए दिया जा रहा है। यह पोषण और स्वच्छता का एक प्रकार से विकल्प है। यह अध्ययन ‘एनवायरमेंटल एंड हेल्थ पर्सपेक्टिव्स’ नाम के जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

अध्ययन में शामिल 18 में से 12 फार्म, या 67% ने वृद्धि बढ़ाने के लिए ‘एंटीमाइक्रोबायल्स’ का इस्तेमाल करने की जानकारी दी थी। ‘टेट्रासाइक्लिन’ और ‘फ्लुरोक्विनोलोनेस’ एंटीबायोटिक्स का उपयोग मनुष्यों में हैजा, मलेशिया, सांस और मूत्र मार्ग के संक्रमणों के उपचार के लिए किया जाता है। टेट्रासाइक्लिन और फ्लुरोक्विनोलोनेस पोल्ट्री फार्म में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले एंटीमाइक्रोबायल हैं। नौ फार्म ने इनके इस्तेमाल को स्वीकार किया है।

दुनिया में मानवीय उपयोग के लिए एंटीबायोटिक्स के सबसे बड़े उपभोक्ता भारत और दुनिया के लिए इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं क्योंकि यह एंटीबायोटिक को बेअसर करने वाले बैक्टीरिया को पैदा करने में योगदान देता है।

लक्ष्मीनारायण का कहना है कि एंटीबायोटिक्स में उनकी अधिक दिलचस्पी का कारण इनका ‘हमारी आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था को सहारा देना है।’ उन्होंने एक साझा वैश्विक संसाधन के प्रबंधन की एक समस्या के रूप में दवा की प्रतिरोधक क्षमता को समझने में काफी समय लगाया है। उन्होंने पाया कि भारत में एंटीबायोटिक्स को लेकर जागरूकता की कमी बड़ी चिंता की बात है। ऐसा लगता है कि भारत में उपभोक्ता उन परिस्थितियों को नहीं जानते जिनमें उनका बटर चिकन पाला जाता है।

इंडियास्पेंड को दिए एक इंटरव्यू में, डॉ. लक्ष्मीनारायण ने पोल्ट्री उद्योग में सुधार करने में उपभोक्ता की भूमिका पर बात की। विशेषतौर पर भारत में चिकन की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता और मवेशियों के लिए एंटीबायोटिक के उपयोग में 312 फीसदी की अनुमानित वृद्धि के कारण।

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लक्ष्मीनारायण ‘बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस’ (पिलानी) से डिग्री लेने वाले इंजीनियर हैं, और उन्होंने ‘यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन’ से एपिडेमिओलॉजी में मास्टर्स की डिग्री और इकनॉमिक्स में डॉक्टरेट और हासिल की है। उन्होंने इसके बाद अपने पसंदीदा क्षेत्र सार्वजनिक स्वास्थ्य शोध को करियर के तौर पर चुना। वह अभी भी ‘यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन’ के साथ ही ‘प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी’, ‘यूनिवर्सिटी ऑफ स्ट्रेथक्लाइड’, ‘जॉन हॉपिकिंस स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ’ और दक्षिण अफ्रीका में ‘यूनिवर्सिटी ऑफ क्वाजुलु नटाल’ से जुड़े हैं। वर्ष 2011 से 2015 के बीच, उन्हें भारत के ‘पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन’ के लिए शोध और नीति कार्यक्रम के विस्तार की जिम्मेदारी दी गई थी।

प्रश्नः जिन चूजों को अच्छा पोषण, साफ पानी उपलब्ध कराया जाता है और स्वच्छ बाड़ों में रखा जाता है, उन्हें एंटीबायोटिक्स की आवश्यकता नहीं होती। विदेश में उपभोक्ता फ्री-रेंज चिकन फार्मिंग और पास्टर्ड पोल्ट्री जैसी अवधारणों को लेकर जागरूक हैं, जिनमें पशुओं को प्राकृतिक-नैतिक तरीकों से पाला जाता है। लेकिन भारतीय उपभोक्ता इन मुद्दों से काफी हद तक अनजान हैं। आपने यहां पाया है कि एंटीबायोटिक्स का मूल पोषण और उपचार के सस्ते विकल्प के तौर पर उपयोग किया जा रहा है। आपने जिन 18 फार्म का दौरा किया, वहां आपने बड़े समूह पाए, 50,000 से अधिक पक्षियों को बिना उपयुक्त सफाई के बंद जगहों पर रखा गया था। भारत में उपभोक्ता जागरूकता की कमी किस हद तक सुधार में रुकावट डालती है? अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और भारत में पोल्ट्री उद्योग में वृद्धि बढ़ाने के लिए एंटीबायोटिक्स के उपयोग पर क्या कानून हैं?

उत्तर:स्वीडन ने उपभोक्ता जागरूकता के परिणाम में 1986 में ही पोल्ट्री उद्योग में वृद्धि बढ़ाने के लिए एंटीबायोटिक्स के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था। यूरोपियन यूनियन और अमेरिका में उपभोक्ता आंदोलनों ने पोल्ट्री फार्मिंग मानकों की शुरुआत और एंटीबायोटिक्स के उपयोग पर नियंत्रण के लिए कानून बनाने में एक बड़ी भूमिका निभाई है। 2006 में, यूरोपियन यूनियन ने मानवों में उपयोग किए जाने वाले एंटीबायोटिक्स के पोल्ट्री में वृद्धि बढ़ाने के जरिए के तौर पर उपयोग पर प्रतिबंध लगाया था। 2015 में, अमेरिका ने वेटरनेरी फीड डिरेक्टिव पेश किया था जिसमें पशुओं के चारे में दवाओं का उपयोग केवल एक लाइसेंस प्राप्त पशु चिकित्सक के पेशेवर निगरानी में करने की अनुमति दी गई थी। यह एक सही दिशा में उठाया गया कदम है।

भारत में ‘सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन’ और ‘फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ के पास पोल्ट्री में वृद्धि बढ़ाने के रूप में एंटीबायोटिक्स के उपयोग पर बंदिशें लागू करने का नियामक अधिकार है, लेकिन इन्होंने अभी तक इस दिशा में कुछ नहीं किया है।

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‘एनवायरमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स’ अध्ययन में पाया गया कि बड़े पोल्ट्री फार्म में 50,000 से अधिक पक्षियों को स्वच्छता की कमी वाले बंद स्थानों पर रखा जाता है और उन्हें खराब खुराक दी जाती है। भारत में उपलब्ध अधिकांश पोल्ट्री चारा बाजार की आवश्यकता पूरी करने के लिए पहले से एंटीबायोटिक्स मिला होता है।

भारत में किसानों में जागरूकता की कमी कम उपभोक्ता जागरूकता के समान ही चिंता का विषय है। नियम न होने के कारण, बाजार में उपलब्ध पोल्ट्री चारे में से अधिकांश में पहले से दवा मिली होती है। लेकिन सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश किसानों ने चारा मिलों से खरीदे गए चूजों के चारे में वृद्धि बढ़ाने वाले एंटीबायोटिक्स की मौजूदगी की जानकारी न होने की बात कही। एक किसान का कहना था कि सफाई या स्वच्छता की तुलना में ‘एंटीमाइक्रोबायल’ अधिक प्रभावी हैं, क्योंकि पोल्ट्री फार्म पर श्रमिक अकुशल हैं। निश्चित तौर पर, यह एंटीबायोटिक्स का गलत इस्तेमाल जारी रखने का एक बहाना है। भारत में एक रात में नोटबंदी हो गई थी। अगर एंटीबायोटिक्स के बड़े स्तर पर दुरुपयोग पर लगाम लगाने के लिए राज्य और केंद्र सरकारें इसी तरह की इच्छा शक्ति दिखाएं, तो हम जल्द एक बड़ा बदलाव देख सकते हैं।

प्रश्नः भारतीय उपभोक्ताओं को अक्सर यह जानकारी नहीं होती कि एंटीबायोटिक को बेअसर करने वाले बैक्टीरिया से संक्रमित मीट आपको बीमार कर सकता है। यह क्यों होता है? क्या उच्च तापमान पर मीट पकाने से, जैसा हम भारत में करते हैं, सभी बैक्टीरिया नहीं मरते? इसके साथ ही, आपके अध्ययन में कहा गया है कि “बेअसर करने वाले बैक्टीरिया की मौजूदगी वाले मवेशियों के साथ सीधा संपर्क कृषि क्षेत्रों से मानवीय जनसंख्या में पहुंचने का सबसे दस्तावेजी रास्ता है।” इसका अर्थ है कि फार्म में काम करने वालों से प्रतिरोधक क्षमता वाले बैक्टीरिया संक्रमणों के सबसे अधिक फैलने की आशंका है, विशेषतौर पर यह देखते हुए कि आपने जिन श्रमिकों से बात की थी उनमें से 67फीसदी ने माना है कि वे खुद को पोल्ट्री शेड संक्रमणों से सुरक्षित करने के लिए कोई सतर्कता नहीं बरतते।

उत्तर:उदाहरण के लिए, जब आप वजन वृद्धि बढ़ाने वाले तरीकों का इस्तेमाल करने वाली पोल्ट्री से खरीदे गए चिकन खाते हैं, आप एंटीबायोटिक की प्रतिरोधक क्षमता वाले बैक्टीरिया को अंदर लेते हैं, जो चिकन के साथ मिला था। यह बैक्टीरिया आपको बीमार कर सकता है। यह बैक्टीरिया परंपरागत तौर पर दिए जाने वाले एंटीबायोटिक्स पर प्रतिक्रिया नहीं देता जिससे आपकी बीमारी का इलाज मुश्किल या असंभव भी हो सकता है। उच्च तापमान पर पकाने से सभी बैक्टीरिया मर जाते हैं, लेकिन बिना पका मीट प्रतिरोधक क्षमता वाला बैक्टीरिया पैदा कर सकता है। इसके साथ ही गर्मी एंटीबायोटिक के कुछ अवशेषों को नहीं खत्म करती जो मीट में बचे हो सकते हैं।

इसके अलावा, फार्म पर श्रमिकों के पैर और शरीर के अन्य हिस्से संक्रमित पोल्ट्री के संपर्क में होते हैं या वे हवा में मौजूद प्रतिरोध ङमता वाले बैक्टीरिया को सांस के साथ अंदर लेते हैं। श्रमिक एक ऐसा संक्रमण प्राप्त कर सकते हैं, जिसका इलाज नहीं हो सकता, जिसे वे अपने रिश्तेदारों के साथ सीधे संपर्क या हवा के रास्ते के जरिए फैला सकते हैं।

ये और अन्य रास्ते सभी गंभीर हैं। हम यह अनुमान नहीं लगा सकते कि संपर्क का कौन सा जरिया भारतीय उपभोक्ताओं के लिए अधिक खतरनाक साबित होगा।

प्रश्नः उपभोक्ताओं को सब्जियों, फल और दूध में कीटनाशक के अवशेष होने के निष्कर्ष लगातार मिलते रहते हैं। इससे एक विशेष धारणा बनी है- कि लगभग सभी (अगर सभी नहीं) खाद्य उत्पादों में कोई न कोई जहरीला तत्व है, इस वजह से उनके पास अधिक विकल्प नहीं हैं? क्या आप कहेंगे कि एंटीबायोटिक की प्रतिरोधक क्षमता वाला बैक्टीरिया कृषि उत्पाद में कीटनाशक के अवशेष की तुलना में एक बड़ी चिंता है?

उत्तर:हमने कृषि उत्पादों को कृत्रिम तरीके से तैयार करने के लिए सायनाइड का इस्तेमाल करने और अन्य कीटनाशकों का बहुत अधिक उपयोग करने के बारे में सुना है। सब्जियों और फलों में कीटनाशक के अवशेषों से शरीर पर धीरे-धीरे प्रभाव पड़ता है। ये जहरीले तत्व धीरे-धीरे शरीर में जमा होते हैं और बाद में आपको बीमार कर सकते हैं। पोल्ट्री में एंटीबायोटिक प्रतिरोधक क्षमता वाले बैक्टीरिया अवशेष तब एक समस्या हैं जब मीट को पर्याप्त नहीं पकाया जाता और खाद्य जनित संक्रमण हैं। ये दोनों समस्याएं गंभीर चिंताएं हैं।

प्रश्नः आपके अध्ययन ने 11 एंटीबायोटिक्सः एम्पिसिलिन, सेफ्ट्रियाजोन, सेफ्युरोजाइम, क्लोराफेनिकोल, सिप्रोफ्लोक्सासिन, को-ट्राइमोक्साजोल, जेंटामाइसिन, इमिपेनेम, नैलिडिक्सिक एसिड, नाइट्रोफ्युरैनटोइन और टेट्रासाइक्लिन के लिए प्रतिरोधक क्षमता का मूल्यांकन किया है। ये एंटीबायोटिक्स कौन सी बीमारियों के उपचार में सहायता करते हैं? अगर ये उपलब्ध नहीं होंगे तो क्या दवा को नुकसान होगा?

उत्तर:जैसा कि हम जानते हैं आधुनिक चिकित्सा में बिना एंटीबायोटिक्स के चलना असंभव होगा, और इन 11 एंटीबायोटिक्स में से बहुत से एक बड़ी भूमिका निभाते हैं। इनमें से अधिकतर बड़े दायरे वाली दवाएं हैं जिन्हें सांस से संबंधित संक्रमणों, डायरिया, मूत्र मार्ग संक्रमणों जैसी कई प्रकार की बीमारियों के लिए लेने का सुझाव दिया जाता है। हमारे अध्ययन में ‘सिप्रोफ्लोक्सासिन’ शामिल थी, जो ‘फ्लुरोक्विओनोलोन’ वर्ग से संबंधित है, और भारत में लोगों को सबसे अधिक दिए जाने वाले एंटीबायोटिक्स में से एक है। इन दवाओं के न होने से मानवता को एक बड़ा नुकसान होगा; इससे बहुत से लोगों की सामान्य संक्रमण वाली बीमारियों से मृत्यु हो सकती है। आधुनिक चिकित्सा के इन महत्वपूर्ण जरियों के संरक्षण में उपभोक्ता जागरूकता एक बड़ी भूमिका निभा सकती है।

प्रश्नः आपने पाया है कि मीट का उत्पादन करने वाले पोल्ट्री फार्म मानवों में विशेषतौर पर उपचार के लिए मुश्किल ईएसबीएल-बैक्टीरिया को पैदा करने में उन फार्म की तुलना में दोगुने जिम्मेदार होते हैं तो केवल अंडों का उत्पादन करते हैं। इसके अतिरिक्त, मीट फार्म में कई दवाओं की प्रतिरोधक क्षमता वाले बैक्टीरिया की मौजूदगी 94फीसदी थी जबकि अंडों का उत्पादन करने वाले फार्म में यह 60% थी। और, मीट फार्म डायरिया का कारण बनने वाले और कई एंटीबायोटिक्स की प्रतिरोध क्षमता वाले बैक्टीरिया एस्चेरिचिया कोलि (ई.कोलि) को पैदा करने में अंडो के फार्म की तुलना में 2.2 और 23 गुणा के बीच अधिक संभावना वाले थे। इनमें सांस से जुड़े संक्रमणों के उपचार में इस्तेमाल होने वाली सिप्रोफ्लोक्सासिन, और मूत्र मार्ग संक्रमणों के उपचार के लिए इस्तेमाल होने वाला नेलिडिक्सिक एसिड शामिल है। क्या यह मानना सही है कि पोल्ट्री (मीट) की खपत की तुलना में अंडे खाना कम खतरनाक है?

उत्तर:एंटीबायोटिक प्रतिरोधक क्षमता के नजरिए से, पोल्ट्री की तुलना में अंडे खाना अधिक सुरक्षित हो सकता है। ब्रॉयलर (मीट के लिए पाले जाने वाले पशु) को लेयर्स (अंडे देने वाली मुर्गियां) की तुलना में अधिक एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं क्योंकि उत्पादक का लक्ष्य कम समय में अधिक वजन बढ़ाना होता है।

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शोधकर्ताओं ने मीट फार्म के साथ ही अंडो के फार्म पर एस्चेरिचिया कोलि (ई.कोलि)- डायरिया का कारण बनने वाला एक बैक्टीरिया- कई एंटीबायोटिक्स के लिए प्रतिरोध क्षमता वाला- जैसे सिप्रोफ्लोक्सासिन, जिसका उपयोग सांस के संक्रमणों के उपचार में होता है और नेलिडिक्सिक एसिड, जिसका इस्तेमाल मूत्र मार्ग संक्रमणों के इलाज में किया जाता है। हालांकि, कई एंटीबायोटिक्स की प्रतिरोधक क्षमता वाले बैक्टीरिया पैदा करने के लिए अंडों के फार्म की तुलना में मीट फार्म 2.2 से 23 गुणा अधिक संभावना वाले थे।

प्रश्नः आपने पाया है कि स्वतंत्र फार्म के साथ अनुबंधित फार्म की तुलना में परीक्षण किए गए सभी एंटीबायोटिक्स (नाइट्रोफ्युरेशन को छोड़कर) की प्रतिरोधक क्षमता वाले ई-कोलि का जोखिम अधिक था। एंटीबायोटिक प्रतिरोधक क्षमता के जोखिम पर फार्म के प्रकार का प्रभाव क्यों पड़ना चाहिए?

उत्तर:बड़े स्तर पर कार्य करने वाले पोल्ट्री उत्पादकों के अनुबंधित फार्म संचालन पोल्ट्री बढ़ाने के लिए जमीन और श्रम की आपूर्ति के लिए छोटे किसानों पर निर्भर करते हैं। अनुबंधित फार्म के प्रबंधक उत्पादक द्वारा तय किए गए सभी निर्देशों, प्रोटोकॉल और उत्पादन प्रक्रियाओं का पालन करने के लिए बाध्य होते हैं। कुछ दिन के चूजे, चारा, एंटीमाइक्रोबायल, आदि उनका सभी कच्चा माल अनुबंध करने वाली फर्म द्वारा दिया जाता है। यह संभव है कि अनुबंध फार्म कुछ अच्छे प्रचलनों का उपयोग कर रहे हों, लेकिन मैंने अधिकतर देखा है कि आंकड़ों के लिहाज से अनुबंध और स्वतंत्र फार्मों के बीच अंतर बहुत अधिक नहीं है।

(बाहरी एक स्वतंत्र लेखिका और संपादक हैं, राजस्थान के माउंट आबू में रहती हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 06 अगस्त 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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