नई दिल्ली: भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक, ओडिशा ने भारत में बाल कुपोषण कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है-पूरे भारत की तुमना में कम, लेकिन अन्य गरीब राज्यों, जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की तुलना में ज्यादा। यह जानकारी ‘इंटरनेश्नल फूड रिसर्च इंस्टिटूट’ (आईएफपीआरआई) द्वारा सरकारी आंकड़ों के अध्ययन में सामने आई है।

ओडिशा में, स्टंटिंग ( उम्र के अनुसार कम ऊंचाई और कुपोषण का संकेत ) पांच साल से कम आयु के बच्चों के बीच 2005-06 में 46.5 फीसदी से घटकर 2015-16 में 35.3 फीसदी हो गया है; पांच साल से कम उम्र केकम वजन वाले बच्चों का अनुपात 42.3 फीसदी से घटकर 35.8 फीसदी हो गया है; और 2014 की तुलना में, सरकार का बाल पोषण और शिक्षा कार्यक्रम, समेकित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) 2017 में 34 फीसदी अधिक लोगों तक पहुंचा।

जैसा कि राष्ट्रीय पोषण सप्ताह 1 सितंबर, 2019 से शुरु है,और भारत सरकार बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के बीच पोषण में सुधार लाने और 2022 तक भारत को कुपोषण मुक्त बनाने के उद्देश्य से पोषण अभियान शुरू करने की तैयारी कर रही है, हमने ओडिशा की सफलता की परख की है। वाशिंगटन डीसी में स्थित एक संस्था, ‘आईएफडीआई’ ने कई देशों और 28 भारतीय राज्यों की प्रगति का अध्ययन किया है, जिसमें थाईलैंड, ब्राजील, बांग्लादेश, नेपाल, पेरू, वियतनाम और इथियोपिया के साथ ओडिशा को ‘पोषण चैंपियन’ के रूप में पहचाना गया है I

ओडिशा ने अन्य गरीब राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया

भारत का ‘आईसीडीएस’ कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा पोषण कार्यक्रम है, जिसे 1975 में छह साल से कम उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण और पूर्व-विद्यालय शिक्षा को संबोधित करने के लिए शुरू किया गया था। कार्यक्रम आंगनवाड़ी केंद्रों के एक नेटवर्क के माध्यम से संचालित होता है, जो गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं और छह महीने से छह साल तक के बच्चों के लिए सेवाएं प्रदान करता है। कार्यक्रम के तहत प्रति गांव या एक हजार की आबादी के लिए आंगनवाड़ी केंद्र अनिवार्य है।

इस कार्यक्रम के माध्यम से बच्चों और माताओं को स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाएं प्रदान करने के बारे में ओडिशा का प्रदर्शन भारत में सर्वश्रेष्ठ रहा और 1992 से 2014 के बीच यह और बेहतर हुआ है, जैसा कि आईएफपीआरआई द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन, किताब का हिस्सा,नरिशिंग मिलियन्स: स्टोरीज टू चेंज इन न्यूट्रीशनमें पाया गया है।

‘आईएफपीआरआई’ में रिसर्च फेलो रश्मि अवुला ने बताया, "ओडिशा ने कुपोषण को कम करने के लिए महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया है, राष्ट्रीय स्तर पर प्रायोजित पोषण-विशिष्ट कार्यक्रमों का विस्तार किया है, और पोषण में सुधार के लिए प्रासंगिक राज्य के नेतृत्व वाली पहल शुरू की है।" उन्होंने बताया कि ओडिशा ने स्व-सहायता समूहों के माध्यम से सेवा वितरण को विकेन्द्रीकृत किया और पूरी आबादी के लिए समान पहुंच पर ध्यान केंद्रित किया।

भारत पर अध्ययन में, भारत का एकीकृत बाल विकास सेवा कार्यक्रम; 2006 और 2016 में इक्विटी और कवरेज की मात्रा, और पुस्तक का हिस्सा, जिसमें आईएफपीआरआई और वाशिंगटन विश्वविद्यालय, अमेरिका के शोधकर्ताओं द्वारा सह-लेखन किया गया था, और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) और रैपिड सर्वे ऑन चिल्ड्रन (आरएसओसी) के तीन राउंड के डेटा का उपयोग किया गया।

अध्ययन में पाया गया है कि ओडिशा में बचपन की स्टंटिंग में गिरावट की दर ( उम्र के लिए कम ऊंचाई ) बिहार जैसे अन्य गरीब राज्यों में गिरावट की दर से कम से कम तीन गुना है। अध्ययन में पाया गया है कि, ओडिशा में स्टंटिंग में गिरावट की दर पिछले 10 वर्षों में 1.8 फीसदी प्रति वर्ष से 2.1 फीसदी प्रति वर्ष हो गई है।

ओडिशा ने आईसीडीएस देने में गुजरात जैसे अमीर राज्यों, और बिहार जैसे गरीब राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है।

ओडिशा में, प्रसवपूर्व देखभाल का कवरेज 2005 में 48.3 फीसदी लाभार्थियों से बढ़कर 2015 तक 64 फीसदी तक पहुंच गया है, जबकि बिहार में यह 2005-06 में 16.9 फीसदी से बढ़कर 2014-15 में 18.7 फीसदी हो गया है। महाराष्ट्र में, यह अनुपात 62.1 फीसदी से बढ़कर 67.6 फीसदी हो गया है।

ओडिशा में 10 साल से 2015 तक, संस्थागत जन्म (एक चिकित्सा पेशेवर की देखरेख में एक चिकित्सा केंद्र में जन्म ) सभी जन्मों में 35.6 फीसदी बढ़ कर 85.3 फीसदी हुआ है। बिहार में, यह 2005 में 19.9 फीसदी से बढ़कर 2015 में 63.8 फीसदी हो गया है।

ओडिशा में, 12 से 23 महीने के बच्चों में टीकाकरण का अनुपात 2005 में 51.8 फीसदी से बढ़कर 2015 में 78.6 फीसदी हुआ है। बिहार में, यह 2005 में 32.8 फीसदी से बढ़कर 2015 में 61.7 फीसदी हो गया है। महाराष्ट्र में, यह 2005 में 58.8 फीसदी और 2015 में 56.2 फीसदी था।

ओडिशा में प्री-स्कूल शिक्षा में नामांकित बच्चों की संख्या में वृद्धि

नई दिल्ली स्थित थिंकटैंक, अकाउन्टबिलिटी इनिशटिव की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, ओडिशा, जम्मू-कश्मीर, मेघालय, त्रिपुरा और बिहार में प्री-स्कूल लाभार्थियों की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि हुई है।

अकाउन्टबिलिटी इनिशटिव के विश्लेषण के अनुसार, ओडिशा में, 2014 की तुलना में 2017 में आंगनवाड़ी केंद्रों में प्री-स्कूल शिक्षा में 34 फीसदी अधिक बच्चों ने दाखिला लिया था। इसकी तुलना में, इसी अवधि में राजस्थान में, बच्चों की संख्या में 12 फीसदी और महाराष्ट्र में 15 फीसदी की कमी हुई है।

कुल मिलाकर, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में छह साल तक के बच्चों की पंजीकृत आबादी में से सबसे अधिक आईसीडीएस लाभार्थी थे। ओडिशा में, सभी जातियों में से, अनुसूचित जातियों और जनजातियों ( हाशिए के समुदाय भारतीय संविधान के तहत कुछ लाभों के हकदार हैं ) में आईसीडीएस सेवाओं का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है, जैसा कि अकाउन्टबिलिटी इनिशटिव की रिपोर्ट में बताया गया है।

आंगनवाड़ी केंद्र में पंजीकृत सभी बच्चों को टेक होम घर राशन और गर्म, पका हुआ भोजन मिलना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि, मार्च 2017 तक इन बच्चों को मिलने वाला अनुपात ओडिशा में 88 फीसदी, गुजरात में 83 फीसदी, हरियाणा में 39 फीसदी और राजस्थान में 33 फीसदी था।

आईएफपीआरआई के अवुला ने कहा, “ अमीर राज्यों की तुलना में ओडिशा ने कई कारकों के कारण कुपोषण को कम करने में अधिक दृढ़ता से प्रदर्शन किया। उदाहरण के लिए, पोषण-विशिष्ट कार्यक्रमों के कवरेज का विस्तार मजबूत रहा है।”

आंगनवाड़ियों में सुधार, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का पारिश्रमिक

आंगनवाड़ी केंद्र ग्रामीण स्तर पर बच्चों के लिए स्वास्थ्य, पोषण और प्रारंभिक शिक्षा के लिए सेवा प्रदान करने का पहला बिंदु हैं। अकाउन्टबिलिटी इनिशटिव की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 14 लाख स्वीकृत केंद्रों में से,सितंबर 2017 में 13.6 लाख (97 फीसदी) चालू थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि, ओडिशा में गैर-कार्यात्मक आंगनवाड़ियों (3 फीसदी) के सबसे कम अनुपात है।

अध्ययन किए गए 11 राज्यों में से, अक्टूबर 2017 में,ओडिशा उन कुछ राज्यों में से एक था, जिन्होंने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ( स्थानीय समुदाय के मानद कार्यकर्ता, जो बच्चों, गर्भवती और नर्सिंग महिलाओं को सरकारी सेवाएं प्रदान करते हैं ) के पारिश्रमिक में वृद्धि की, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 23 फरवरी 2018 की रिपोर्ट में बताया है।उनका वेतन 4,000 रुपये से बढ़कर 6,000 रुपये हो गया।

अकाउन्टबिलिटी इनिशटिव की विश्लेषण के अनुसार, बाल विकास परियोजना अधिकारियों (आईसीडीएस के अंतर्गत प्रमुख कार्यवाहक ) के लिए स्वीकृत पदों में से 39 फीसदी और आईसीडीएस पर्यवेक्षकों के लिए स्वीकृत पदों में से 35 फीसदी मार्च 2017 तक देश भर में रिक्त थे।

ओडिशा में, बाल विकास अधिकारी पदों का 2 फीसदी और पर्यवेक्षक के 27 फीसदी पद रिक्त थे, जबकि महाराष्ट्र में क्रमशः 76 फीसदी और 23 फीसदी, और राजस्थान में 69 फीसदी और 39 फीसदी रिक्त थे, जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है।

ओडिशा को अभी भी एनीमिया को कम करने में प्रगति करने की आवश्यकता है।

कुल मिलाकर, ओडिशा ने अन्य गरीब राज्यों की तुलना में तेजी से प्रगति की है, लेकिन इसे अभी भी भारत के औसत के साथ पहुंचने की जरूरत है।

सभी पोषण संकेतकों ने अग्रिम नहीं दिखाया - ओडिशा में बच्चों और गर्भवती महिलाओं में एनीमिया की दर बढ़ी या स्थिर रही।

Progress On Reducing Anaemia in Women Has Been Slow in Odisha
Year All India/State Women, 14-59, with Anaemia (%)
1998-99 India 52
Odisha 63
2005-06 India 55.3
Odisha 51
2015-16 India 53.1
Odisha 61.1

Source: National Family Health Survey, 2, 3 and 4

“हालांकि, राज्य ने पूरक आहार को बेहतर बनाने में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है-नए खाद्य पदार्थों को पेश करने में कमी रही, जो विशेष रूप से स्तनपान करने वाले शिशुओं के छह महीने बाद उन्हें आवश्यक पोषण प्रदान करते हैं। कमजोरी का एक क्षेत्र स्वच्छता तक बेहद कम पहुंच है,यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसपर राजनीतिक जागरूकता और प्रतिबद्धता के उच्च स्तर की आवश्यकता है,” जैसा कि अवुजा कहते हैं।

Odisha’s Maternal, Infant Mortality Still Lower Than India Average
Year All India/State Infant Mortality Rate (No. of child deaths, less than one year, per 1000 live births) Maternal Mortality Rate (deaths per 100,000 live births)
1992-93 India 79 437
Odisha 112 NA
1998-99 India 68 540
Odisha 81 NA
2005-06 India 57 NA
Odisha 65 NA
2013-14 India NA 178
Odisha 56 230

Source: IFPRI

( अली रिपोर्टर हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 20 अगस्त 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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