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अमरिका ने वोक्सवैगन कंपनि से डीज़ल उत्सर्जन की गलत जानकारी के एवज़ में 48 बिलियन डॉल (3.26 लाख करोड़ रुपए) का हर्जाना मांगा है जो कि भारत में अमेरिकी परमाणु संयंत्रों में हादसे की स्थिति से निपटने बीमा कंपनियों द्वारा तय की गई 1500 करोड़ रुपयों से 200 गुना अधिक है।

यदि अमेरिकी कंपनी भारत में परमाणु रिएक्टर का निर्माण करती जिसका परिणाम बुरा होता और भारत में लोग मर रहे होते तो अमेरिका सरकार की स्थिति शायद ऐसी होती कि अमेरिकी आपूर्तिकर्ताओं को सिविल या आपराधिक दायित्व का सामना नहीं करना चाहिए। अमेरिका का मानना है कि भारतीय नागरिक परमाणु दायित्व कानून, जिसके तहत दोनों दंड आते है, अनावश्यक रूप से कठोर है। सीधे कहने की बजाए, अमेरिकी अधिकारी यह दोहराते रहते हैं कि, “भारतीय कानून अंतरराष्ट्रीय दायित्व शासन के साथ असंगत है।”

भारतीय असैन्य परमाणु दायित्व कानून, आपूर्तिकर्ता या उसके कर्मचारियों की वजह से हुई घटना के लिए उपकरण आपूर्तिकर्ता को ज़िम्मेदार मानती है। भारतीय दायित्व कानून अन्य देशों के कानून से अलग है क्योंकि यह 1984 के भोपाल त्रासदी को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया था - जहां 5,000 लोगों की मृत्यु और पीढ़ियों पर प्रभाव के पड़ने के बावजूद, किसी को भी आपराधिक उत्तरदायी नहीं बनाया गया था।

वोक्सवैगन मामले में हरजाने की मांग, भोपाल गैस त्रासदी के बाद अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड द्वारा भुगतान किए गए 470 मिलियन डॉलर (2014 में 907 मिलियन डॉलर) से 100 गुना अधिक है। गौर हो कि भोपाल त्रासदी में 70,000 लोग या लो घायल या अपंग हुए थे। वोक्सवैगन द्वारा दी गई जानकारी से किसी की मौत या चोट का कारण नहीं बना है।

हालांकि, भारत सरकार भारतीय दायित्व कानून के खिलाफ अमेरिकी परमाणु कंपनियों की रक्षा करना चाहती है, आलोचकों का तर्क है कि यह कंपनियां, कुछ गलत हो जाने की स्थिति में दायित्व से बचने के लिए भारत की उत्सुकता का इस्तेमाल कर रही हैं।

बिजली उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी कम करने की कोशिश में भारत और अधिक परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण करना चाहता है। परमाणु ऊर्जा के उपयोग में वृद्धि, देश का जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए रणनीति का एक हिस्सा भी है।

वर्तमान में, संचालन में भारत के पास परमाणु ऊर्जा का 5780 मेगा वाट (एमडब्लू) है एवं 17,400 मेगावाट क्षमता और जोड़ने की योजना है जिससे यह संभवतः चीन के बाद परमाणु ऊर्जा के लिए सबसे बड़ा बाजार बनेगा एवं सीमित घरेलू बिक्री का सामना कर रहे पश्चिमी कंपनियों के लिए आर्थिक रूप से आकर्षक संभावना होगी।

हालांकि, भूकंप से आई सुनामी के कारण हए, 2011 फुकुशिमा परमाणु आपदा से परमाणु सुरक्षा और दुर्घटना की लागत की चिंता बढ़ गई है। इन आपदाओं के परिणाम के कारण भारत के दायित्व कानून को बदलना मुश्किल है।

अमरिका करता है बड़े समझौते

अमरिका में बड़े समझौते का भुगतान करना नियमित विशेषता है। अक्टूबर 2015 में, अमेरिकी न्याय विभाग ने तेल कंपनी बीपी के साथ समझौता किया है जो कि 2010 से मैक्सिको की खाड़ी में तेल फैलने से हुए आर्थिक और पर्यावरण नुकसान की भरपाई के लिए 20.8 बिलियन डॉलर का भुगतान करेगी।

वोक्सवैगन – कंपनी पर 6,00,000 कारों में ऐसी उपकरण स्थापित करने का आरोप है जो उत्सर्जन मानकों के अनुरुप नहीं हैं – उल्लघंन किए गए दो कानून में से प्रत्येक के लिए, प्रति वाहन 37,500 डॉलर का जुर्माना देना पड़ सकता है; प्रति "डीफीट डिवाइस" के लिए 3750 डॉलर तक एवं उल्लंघन के प्रत्येक दिन के लिए 37,500 डॉलर, जैसा कि रायटर की यह रिपोर्ट कहती है।

अप्रैल 2010 में, ब्रिटिश तेल कंपनीबीपी” के समुद्र स्थित एक तेल संयंत्र में विस्फोट होने से 11 लोगों की मौत हुई थी एवं मैक्सिको की खाड़ी में पांच मिलियन बैरल तेल रिस गया था। (टेबल 1 देखें)

यह विभाग के इतिहास में किया गया सबसे बड़ा समझौता था ; वोक्सवैगन हर्जाना इससे बड़ा हो सकता है।

अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा लगाया गया प्रमुख हर्जाना

पिछले दशक में, अमेरिकी कानून तोड़ने के लिए, कई कंपनियों ने हर्जाने के रुप में कई बिलियन डॉलर का भुगलान किया है।

टॉप अमरिकी बैंक, जैसे कि बैंक ऑफ अमेरिका , जेपी मॉर्गन , सिटीग्रुप और मॉर्गन स्टेनली, ने 2008 में बड़े पश्चिमी बैंकों की लापरवाह व्यवसाय प्रथाओं के कारण उत्पन्न हुए वैश्विक वित्तीय संकट में उनकी भूमिकाओं के लिए बहु बिलियन डॉलर के जुर्माने का भुगतान किया है।

अमेरिकी न्याय विभाग के परिहार अपनी सीमाओं से परे एवं विदेशी कंपनियों तक फैली है। मई 2015 में, पांच वैश्विक बैंकों - सिटीकॉर्प, जेपी मॉर्गन, बार्कलेज, यूबीएस और रॉयल बैंक - व्यापक रूप से इस्तेमाल वित्तीय बेंचमार्क में जोड़-तोड़ के लिए 2.5 बिलियन डॉलर जुर्माना भुगतान करने के लिए सहमत हुए थे। इसी के साथ, हेरफेर में अपनी भूमिकाओं के लिए इन बैंकों द्वारा कुल हर्जाना 9 बिलियन डॉलर का था।

ब्रिटेन स्थित एचएसबीसी पर “क्यूबा, ईरान, लीबिया, सूडान और बर्मा में ग्राहकों की ओर से अवैध रुप से लेनदेन का आयोजन” करने के लिए जुर्माना लगाया गया – (अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों के तहत देश)।

वित्तीय वर्ष 2015 के दौरान, अमेरिका के न्याय विभाग , विभिन्न सिविल और आपराधिक मामलों में दंड के रुप में 23 बिलियन डॉलर एकत्र किया है, जो 2013 में किए गए संग्रह की तुलना में थोड़ा कम है (टेबल 2 देखें)।

अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा एकत्र जुर्माना

अमरिका में भारतीय कंपनियों पर भी जुर्माना

जबकि अमेरिकी परमाणु उद्योग चूक या कृत्यों के लिए भारत में किसी भी दायित्व से बचना चाहता है, लेकिन अमरिकी कानून के उल्लंघन पर अक्सर भारतीय कंपनियों से हर्जाना लिया जाता है।

2013 में, दवा निर्माता कंपनी रैनबैक्सी ने अपनी दवाओं संबंधित आंकड़ो में हेराफेरी और उचित निर्माण प्रथाओं का पालन नहीं करने के लिए 500 मिलियन डॉलर (3,400 करोड़ रुपये) हर्जाना का भुगतान किया है – जो कि भारत में अमेरिकी परमाणु संयंत्रों में हादसे की स्थिति से निपटने बीमा कंपनियों द्वारा तय मूल्य से दोगुना है।

2013 में, टेक फर्म इंफोसिस ने वीजा दुरुपयोग के आरोपों के लिए सीविल समझौते में 35 मिलियन डॉलर जुर्माने का भुगतान किया है; फर्म का कहना है कि "दावे असत्य और अप्रमाणित" हैं।

भारत ने भी जुर्माना लगाना किया है शुरु

भारत ने भी बड़े जुर्माने लगाना शुरू कर दिया है। उद्हारण के लिए, कार्टेल के रूप में काम कर रहे हैं और उपभोक्ताओं से अधिक कीमत लेने के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग द्वारा भारतीय सीमेंट कंपनियों के एक समूह पर 6698 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। मौतों एवं चोटों की बजाए अनुचित व्यापार व्यवहार के लिए लगाई गई यह राशि, परमाणु घटनाओं के लिए प्रस्तावित दायित्व का 4.4 गुना है।

इसी तरह, दिल्ली स्थित रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ को हाल ही में अनुचित व्यापार व्यवहार के लिए 630 करोड़ रुपये का जुर्माना देने का आदेश दिया गया है।

(भंडारी एक मीडिया , अनुसंधान और वित्त पेशेवर है। भंडारी आईआईटी- बीएचयू से बी - टेक और आईआईएम- अहमदाबाद से एमबीए हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 19 फरवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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