Students_620

दो विश्वविद्यालयों की अल्पसंख्यक स्थिति को रद्द करने से संस्थानों को विनियमित करने या भारत में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने में कम ही मदद मिलेगी, जबकि समस्या नियामक प्रणाली स्तर निकायों के साथ है। ( कम से कम आठ केन्द्रीय आठ केंद्रीय स्तर के निकाय शामिल हैं। ) इनमें से कुछ अक्षम हैं, जबकि कुछ भ्रष्टाचार के आरोप के साथ जांच के दायरे में हैं।

केंद्र सरकार करदाता द्वारा वित्त पोषित दो विश्वविद्यालयों की अल्पसंख्यक स्थिति का विरोध कर रही है। इससे संकेत मिलता है कि वह जामिया मिलिया इस्लामिया की अल्पसंख्यक स्थिति (यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में जारी है।) के लिए जल्द ही अपना समर्थन वापस लेगा, जैसा कि जुलाई 2016 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के लिए सर्वोच्च न्यायालय में किया था। इसके पीछे केंद्र का तर्क यह था कि इन विश्वविद्यालयों को संसद के अधिनियमों द्वारा स्थापित किया गया था, न कि मुसलमानों द्वारा।

सरकार ने इन दो विश्वविद्यालयों की अल्पसंख्यक स्थिति को रद्द करने का मन बनाया है, हालांकि सिर्फ इन दो विश्वविद्यालयों के पास ही केवल अल्पमत का दर्जा नहीं है। “जामिया और एएमयू पर सरकार अपने रुख में विचारधारा पर फोकस करने की बजाय, शिक्षा में बड़े नियामकों की गड़बड़ी पर बहस चलाना चाहिए था,” जैसा कि हरियाणा स्थित ‘अशोक विश्वविद्यालय’ के कुलपति प्रताप भानु मेहता ने 8 अगस्त, 2017 को इंडियन एक्सप्रेस में लिखा था।

मेहता ने आगे तर्क दिया कि सेंट स्टीफंस जैसे एक अल्पसंख्यक कॉलेज में प्रवेश पर उनकी स्वायत्तता है, जिसका श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स जैसे कॉलेजों में अभाव है, हालांकि दोनों ही कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय में आते हैं। वह लिखते हैं, " इससे ऐसी परिस्थितियां पैदा हुईं कि संस्थाओं का उद्देश्य समान रहते हुए भी सिर्फ इस बहस पर कि इसकी शुरुआत किसने की, इससे विनियमन अंतर का सामना करना पड़ता है। ”

अल्पसंख्यक स्तर की संस्थाओं को एक विशेष समुदाय के लिए आधी सीटें अलग रखने की अनुमति है, जैसे कि मुस्लिम या सिख के लिए और दलितों के लिए कोई सीट आरक्षित नहीं होती है। एक अल्पसंख्यक संस्थान यह भी तय कर सकता है कि उनके शासी परिषद का हिस्सा कौन होगा, लेकिन अधिकांश अन्य विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक-स्थिति संस्थान अन्य सार्वजनिक-वित्त पोषित विश्वविद्यालयों के लिए बंधनकारी नियमों का भी पालन भी करते हैं, जैसे शिक्षक रोजगार और वेतन पर नियम।

इतिहासकार और एएमयू में प्रोफेसर एमेरिटस, इसफान हबीब कहते हैं, उदाहरण के लिए, अल्पसंख्यक संस्थान "यह नहीं कह सकते कि कुलपति के लिए हमारे पास अन्य योग्यताएं होंगी (अन्य संस्थाओं से अलग)।"

ये नियम सेंट स्टीफंस कॉलेज के फैसले के हिस्से के रूप में बनाए गए थे, जिन्होंने अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में काम करने के लिए ईसाई-अल्पसंख्यक कॉलेज के अधिकार को बरकरार रखा था, हालांकि यह दिल्ली विश्वविद्यालय का हिस्सा है। इस फैसले में कहा गया है कि यह कॉलेज विनियमन के अधीन होगा।

दो विश्वविद्यालयों की अल्पसंख्यक स्थिति को रद्द करने के बाद भी, यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (यूजीसी) अभी भी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की अध्यक्षता करता है, जो कि कई श्रेणियों में आते हैं- निजी विश्वविद्यालय, जो कि केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित हैं, राज्य सरकारों द्वारा वित्त पोषित हैं, और होने वाले डीमड विश्वविद्यालय । ( ऐसे संस्थानों को किसी क्षेत्र में उच्चतम स्तर का माना जाता है, और केंद्रीय सरकार द्वारा "विश्वविद्यालयों" के रूप में लेबल किया जाता है। इसमें निजी विश्वविद्यालय शामिल हो सकते हैं)।

कम से कम 8 केंद्रीय स्तर के नियामक, कई अन्य राज्य स्तर के नियामक

भारतीय उच्च शिक्षा में मुख्य समस्या इसके अति-नियमन में निहित है, और आसान नियमों से देश में कई और अधिक विश्वविद्यालय खोले जा सकते हैं। वर्ष 2015-16 में 18 से 23 वर्ष की आयु के बीच एक चौथाई लोगों को उच्च शिक्षा संस्थानों में नामांकित किया गया था। सरकारी आंकड़ों से यह पता चलता है।

अभी आठ से ज्यादा नियामक हैं। निजी तौर पर स्वामित्व वाली ओ पी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर सी. राज कुमार कहते हैं, “राज्य स्तर पर उच्च शिक्षा आयोग और नियामक भी हैं।” सी. राज कुमार ने कम हस्तक्षेप वाले विनियमन और सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के लिए अभियान चलाया है। उन्होंने कहा कि नियामकों की संख्या लगभग 20 हो सकती है।

ओ पी जिंदल विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक, ‘भारत में उच्च शिक्षा में दाखिला लेने वालों में से कम से कम आधे लोग निजी उच्च शिक्षा में नामांकित हैं।’

आठ उच्च शिक्षा नियामकों के पास विभिन्न संरचनाएं हैं और विभिन्न मंत्रालयों को रिपोर्ट करती हैं। कुछ संसद द्वारा निर्मित सांविधिक निकाय हैं। वे नए पाठ्यक्रमों और कॉलेजों के लिए अनुमति देते हैं, मौजूदा कॉलेजों में अतिरिक्त सीटें, सार्वजनिक धन का भुगतान करते हैं, और गुणवत्ता पर नजर रखते हैं।

भारत में जटिल उच्च शिक्षा नियंत्रण प्रणाली
Central-Level RegulatorsFunctionInstitutions ManagedNodal Body/Ministry
University Grants Commission or UGCApproves courses in private and deemed-to-be universities, disburses money to central universitiesMinistry of Human Resource Development (MHRD)
Publicly-funded central universities47 (of which 7 don't get funds via UGC)
Publicly-funded state universities365
Deemed-to-be universities122
Private univerities282
All India Council of Technical Education or AICTERegulates mostly private engineering schools10,363MHRD
Council of ArchitectureRegulates Departments/ Schools of Architecture458MHRD
Medical Council of IndiaGives permission to and regulates medical colleges, and holds medical entrance examStatutory body
Trusts220
Private medical colleges10
Govt221
Ret are described as Society or Govt-society23
Dental Council of IndiaRegulates dental colleges, gives permission to increase seats, sets standards for exams
Colleges offering BDS/MDS647Statutory body
Bar Council of IndiaRegulates law schools and holds law examStatutory body
National Law Universities12
Faculty of Law, Delhi University1
Govt. law college, Mumbai University1
Private law college1
India Nursing CouncilRegulates nurse education, schools
Nurse training schools766Ministry of Health & Family Welfare
Private659
Govt107
National Council for Teacher EducationRegulating teacher education collegesTotal not available (But a state such as Uttar Pradesh had more than 1,000 colleges in 2016-17)Statutory body

Source: University Grants Commission, All India Council for Technical Education, Council of Architecture, Medical Council of India, Dental Council of India, Bar Council of India, Indian Nursing Council, National Council for Teacher Education

इनमें से कई के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप हैं। इंजीनियरिंग कॉलेजों को विनियमित करने वाले ‘ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन’ (एआईसीटीई) की छवि अच्छी नहीं है और कहा जाता है कि इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले के लिए लोग रिश्वत देने के लिए मजबूर हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल एक संसदीय समिति की रिपोर्ट के बाद, मेडिकल स्कूलों को नियंत्रित करने वाली ‘मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया’ (एमसीआई) की आलोचना की थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि नियामक ‘सक्षम मूल चिकित्सक का उत्पादन’ करने में विफल रहा है। मेडिकल कौंसिल नए कॉलेजों को अनुमति देने की एक पारदर्शी प्रणाली बनाने में विफल रहा, सभी संस्थानों के लिए समान नियमों को बनाए रखने में भी सरहानीय प्रदर्शन नहीं रहा और मेडिकल कॉलेजों में दाखिले में योग्यता घट गया है। मीडिया ने व्यापक रूप से एमसीआई के भ्रष्ट प्रथाओं की सूचना दी है, और इसके पूर्व निदेशक केतन देसाई के खिलाफ अदालत के मामले चल रहे हैं।

नियामक के सुधार में पहले कदम के रूप में, डॉक्टरों के एक नए पैनल की नियुक्ति के बाद, अदालत द्वारा नियुक्त ‘एमसीआई-निरीक्षण समिति’ का कार्यकाल, जुलाई 2017 में एक और साल के लिए बढ़ा दिया गया था।

इसके अलावा, भारत में उच्च शिक्षा के विनियमन में दृष्टि का अभाव है और यहां दो-तरफा बातचीत संभव नहीं है, जैसा कि नवंबर 2016 को Scroll.in वेबसाइट में प्रकाशित एक लेख में बताया गया है।

सभी सरकारों ने अलग-अलग नीति अपनाकर संस्थानों को कमजोर ही किया है, जबकि साझेदार उन परिवर्तनों के खिलाफ थे। उदाहरण के लिए, कांग्रेस पार्टी की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन II ने सेमेस्टर प्रणाली और दिल्ली विश्वविद्यालय में एक चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम को आगे बढ़ाया, हालांकि इन दोनों कदम का शिक्षकों ने कड़ा विरोध किया था।

विश्वविद्यालयों की स्वायत्ता उच्च शिक्षा में मददगार

पाठ्यक्रम सुधार की बात तो विनियामक निकाय के जिम्मे होना चाहिए, जिसके पास उच्च शिक्षा के लिए एक दृष्टि है और जो , गुणवत्ता की निगरानी करता है लेकिन होता क्या है? किसी बड़े राष्ट्रीय व्यक्तित्व के जन्मदिन का जश्न या योग दिवस मनाने के लिए विश्वविद्यालयों को खुली छूट मिलती है। विभिन्न विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञ कुछ ऐसा ही मानते हैं।

खराब या भ्रष्ट विनियमन के वातावरण में विश्वविद्यालयों को स्वतंत्रता, एकरूपता या अधिक विनियमन नहीं चाहिए।

भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली सरकार ने कई प्रस्तावों पर नजर डाला है, जिनमें ‘जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय’, ‘फिल्म एंड टेलीविजन इन्स्टिटूट ऑफ इंडिया’ और ‘जामिया मिलिया’ जैसे स्वायत्त विश्वविद्यालयों के निगम और कई नियामक निकायों को एक के साथ बदलना शामिल है । लेकिन 10 अगस्त, 2017 को, सरकार ने संसद में इनकार किया कि उसने यूजीसी और एआईसीटीई को एक एकल नियामक बनाने के लिए विलय करने की कोई योजना बनाई थी।

सरकार ने भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) विधेयक को प्रस्तावित किया है, जो आईआईएम को अपने निर्देशकों का चयन करने का अधिकार देकर और अधिक स्वायत्तता प्रदान करता है और वर्तमान स्नातकोत्तर डिप्लोमा के विरोध में छात्रों को डिग्री देने की इजाजत देता है। जुलाई, 2017 में लोकसभा द्वारा विधेयक पारित कर दिया गया था, लेकिन अभी तक राज्यसभा या संसद के ऊपरी सदन में पारित नहीं किया गया है।

कुमार कहते हैं, "आईआईएम बिल मुझे उम्मीद देता है। यह एक अनूठा विधेयक है। "

विनियमन को कम करने का दूसरा कदम सरकार के 10 सार्वजनिक और 10 निजी विश्वविद्यालयों का चयन करने और उन्हें स्वायत्त बनाने का इरादा है। इन संस्थानों को चुनने के लिए नियम और आजादी उन्हें मिलेगी, लेकिन उन्हें सार्वजनिक नहीं बनाया गया है, हालांकि मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने नियमों का उल्लेख कई बार किया है।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को स्वतंत्रता दिवस के संबोधन के दौरान कहा, "20 विश्वविद्यालयों को अपने भाग्य का फैसला करने के लिए आमंत्रित किया गया है, सरकार हस्तक्षेप नहीं करेगी। वास्तव में, हम उनकी सहायता के लिए 1000 करोड़ रुपये का एक संग्रह बनाएंगे।"

‘ओ पी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी’ के कुलपति कुमार कहते हैं, “यह विश्वविद्यालय परिसर में एक दृष्टि विकसित करने का पहला कदम हो सकता है।”

वह कहते हैं, "एक नया दृष्टिकोण बनाने के लिए सरकार कुछ अलग करने के लिए 10 सार्वजनिक और 10 निजी संस्थानों को सक्षम करेगी। यह उच्च स्तर पर नीति आयुक्त और अन्य नियामकों के दिमाग में चल रहा है। यह केवल समय बताएगा कि इसे कैसे लागू किया जाता है।"

(कालरा दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स की पूर्व छात्रा एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह शिक्षा, सरकारी नीति के प्रभाव, और राजनीति के मुद्दों पर अक्सर लिखती हैं। )

यह लेख मूलत:अंग्रेजी में 28 अगस्त 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।

__________________________________________________________________

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :