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महिलाओं के मुकाबले ऐसे पुरुषों की संख्या दोगुनी है जो खुद अपनी जान देते हैं लेकिन आत्महत्या के तरीकों में आत्मदाह पुरुषों की तुलना में महिलाओं द्वारा अधिक की जाती है। यह बात राष्ट्रीय अपराध के आंकड़ों में सामने आई है।

आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या पर राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार 2014 में – ताज़ा उपलब्ध आंकड़े – आत्महत्या करने के संयुक्त तरीकों ( 28 फीसदी ) में पीड़ित महिलाओं द्वारा आत्मदाह करने वाली महिलाओं (61 फीसदी ) के मामले होने की संभावना अधिक है।

पुरुषों की तुलना में महिलाओं के आत्मदाह करने के मामले अधिक

Source: National Crime Records Bureau

निरपेक्ष संख्या में, जान लेने की लिए महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला मुख्य तरीका फांसी और ज़हर लेना है। भारत में किसी भी अन्य जनसांख्यिकीय समूह की तुलना में गृहिणियों – किसान नहीं, जिन्हें आमतौर पर समझा जाता है – द्वारा जान देने की संभावना सबसे अधिक है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है। 2014 में, कम से कम 20,148 गृहिणियों ने आत्महत्या की है।

गृहणियों की आत्महत्या करने की संभावना अधिक

Source: National Crime Records Bureau

फ्लाविया एग्नेस , महिलाओं के अधिकार के लिए काम करने वाली कार्यकर्ता जो मजलिस नाम की संस्था चलाती हैं, कहती हैं कि भारत में आत्महत्या करने वाली गृहणियों में उच्च दर की आत्मदाह की घटनाएं होना घरेलू हिंसा का परिणाम है। फ्लाविया एग्नेस कहती हं कि महिलाएं फांसी या ज़हर की तुलना में अग्नि का इस्तेमाल इसके सांस्कृतिक महत्व के कारण करती हैं।

अनुष्ठान आत्मदाह , एक भारतीय परंपरा है, 2013 के इस अध्ययन में उल्लेख किया गया है, जिसमें दहेज की पहचान एक आधुनिक प्रेरित कारक के रूप में की गई है। वीरेन्द्र कुमार, एक फोरेंसिक प्रोफेसर एवं लेखक लिखते हैं, “जब दहेज की अपेक्षाएं पूरी नहीं होती हैं तो दुल्हन या तो मार दी जाती है या आत्महत्या के लिए मजबूर की जाती है, अधिकांश मामलों में जलने से उनकी जान जाती है।” कुमार लिखते हैं कि आत्महत्या की घटनाएं अधिकतर शादी के दो से पांच वर्ष के भीतर होती है।

मुख्य समस्या – महिलाओं के जीवन का केंद्र बिंदु है शादी

एग्नेस , जो एक समय घरेलू हिंसा की शिकार रही एवं एक बार आत्मदाह की कोशिश की, कहती हैं कि, “भारत में अब भी महिलाओं के लिए शादी को ही एकमात्र विकल्प देखना जारी है। जब भी कोई समस्या आती है तो उनके पास दो ही विकल्प होते हैं, या तो सहते हुए शादी बरकरार रखें या फिर अपनी जान दे दें। महिलाओं को अधिक विकल्प देने की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया गया है। किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में शादी को सबसे अधिक महत्व दिया गया है। ”

एग्नेस कहती हैं कि, अक्सर जब महिलाएं कानूनी सहारा लेती हैं तो मामले लंबे समय तक चलते हैं और समाज उन्हें ही कानून का दुरुपयोग करने के आरोप लगाता है। ऐसे में महिलाओं के पास जान देने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं बचता है।

पुरुषों की जान देने की संख्या अधिक; महिलाओं की आत्मदाह की संख्या अधिक

Source: National Crime Records Bureau

घर में मिट्टी के तेल की आसान पहुंच महिलाओं की आत्मदाह की उच्च दर के पीछे एक कारक हो सकता है, जैसा कि पिछले शोध में संकेत दिया गया है।

फांसी और ज़हर, मरने के आसान तरीके

2014 में, पुरुषों और महिलाओं की आत्महत्या का अनुपात, " आग / आत्मदाह " के लिए सबसे कम था ( प्रति महिला 0.63 पुरुष ) जबकि " नींद की गोलियों की खपत " के आंकड़े इससे थोड़ा अधिक रहा है ( प्रति महिला 1.63 पुरुष) । उच्चतम अनुपात उन लोगों की रही है जो गाड़ियों या वाहनों के नीचे ( प्रति महिला 5.46 पुरुष) और बिजली के तारों ( प्रति महिला 4.08 पुरुष) के साथ संपर्क में आए हैं।

निरपेक्ष संख्या में, 2014 में 3545 पुरुषों की तुलना में 5576 महिलाओं ने आत्मदाह किया है। आत्महत्या के 11 तरीकों में से सात में प्रत्येक महिला के लिए दो से अधिक पुरुषों का अनुपात था । हालांकि, निरपेक्ष संख्या में , महिलाओं के लिए आत्मदाह की तुलना में फांसी ( 15631 ) और विषाक्तता ( 11,126 ) का दावा अधिक किया गया है।

अधिकांश आत्महत्याएं फांसी, स्व - विषाक्तता से

2011 से 2014 के बीच करीब 27,000 महिलाओं ने आत्मदाह किया है जबकि पुरुषों के लिए यह संख्या 16,000 से कम रहे हैं। आत्मदाह दक्षिण एशियाई महिलाओं के लिए विशेष रूप से मरने की एक विधा प्रतीत होता है।

विकसित देशों में आत्मदाह दुर्लभ

दक्षिण एशिया में आत्मदाह आम है लेकिन दुनिया में अन्य जगह यह दुर्लभ है। एग्नेस कहती हैं, "अन्य देशों में घरेलू मौत के लिए आम कारण विषाक्तता , गोलियां आदि हैं, लेकिन भारत में अधिकतर मौत जलने से ही होती हैं।"

2016 में आई किताब, द साएकोलोजी ऑफ आरसन में उल्लेख किया गया है कि पश्चिमी समाजों की तुलना में भारत में आत्मदाह के दर उच्च हैं। यह कहा गया है कि, “खुद को जला कर मरने के लिए मजबूर होने वाली महिलाओं की बढ़ती संख्या चिंता का विषय बन गया था और इस पर नियंत्रण पाने के लिए ही भारत सरकार ने 1961 में दहेज प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाए थे। ”

हालांकि, प्रेरणा स्थापित करना कठिन है क्योंकि अधिकांश महिलाएं इस संबंध में बात नहीं करती हैं और कुछ मामलों में उन्हें यह जानकारी ही नहीं होती कि उन्होंने यह कदम क्यों उठाया, जैसा कि इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बर्न्स एवं ट्रामा के 2012 के इस अध्ययन में उल्लेख किया गया है।

2005 में एक ईरानी अध्ययन में पाया गया है कि आत्मदाह के कुल मामलों में से 15 फीसदी तक मामले मानसिक विकारों के कारण होते हैं। तुर्की (83 फीसदी ), फिनलैंड (87 फीसदी ), मिस्र (30 फीसदी) और जर्मनी (33 फीसदी) के आंकड़े अधिक उच्च हैं।

“हालांकि, विकसित देशों में आत्मदाह द्वारा आत्महत्या करना दुर्लभ है, यह बाल्टिक क्षेत्र ( लिथुआनिया, फिनलैंड, रूस , आदि सहित ), अफ्रीका (मिस्र सहित) , मध्य पूर्व (ईरान सहित) , सुदूर पूर्व, विशेष रूप से भारत और वियतनाम में अधिक पाए जाते हैं”।

( सुकुमार एक व्यंग्यकार एवं पत्रकार हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 9 मई 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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