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जनवरी 2016 में भारत के सोने के आयात में 85 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि संकेत देती है कि किस प्रकार शेयर बाज़ार में गिरावट एवं वित्त मंत्री अरुण जेटली के तीसरे बजट को ऊपर करने में कुछ आर्थिक संकेतक बिगड़ने से भारतीय, धन आयोजन की एक पारंपरिक विधा की ओर वापस जा रहे हैं।

यह काफी स्पष्ट है कि भारतीय, जिनके पास करीब 20,000 टन सोना है – विश्व के कुल सोने का दसवां हिस्सा एवं मौजूदा वैश्विक सोने की मांग का एक चौथाई – अपने पास रखे सोने को पैसे या किसी अन्य रुप में, जिससे कि अर्थव्यवस्था में लाभ हो सकता है, उसे परिवर्तित करने के इच्छुक नहीं हैं।

वर्ष 2015 में सरकार ने गोल्ड मोनेटिसेशन योजना की शुरुआत की है – पुराने गोल्ड डिपॉजिट स्कीम का नया संस्करण – उपभोक्ताओं को अपना सोना बेच कर या बैंक में जमा कर, बेकार रखे सोने को अधिक उत्पादक बनाने की य़ोजना है ताकि यह औपचारिक अर्थव्यवस्था में उभर सके और देश में सोने की आयात को कम कर सके।

लेकिन, भारत के निष्क्रिय 20,000 टन सोने का केवल 900 किलोग्राम या 0.0045 फीसदी ही उभरा है; इस तरह “मोनिटाइज़” किया गया 1 फीसदी सोना 54,000 करोड़ रुपए जारी कर सकता है एवं भारतीय बैंकिंग प्रणाली को मजबूत बना सकता है।

20,000 टन सोना का मूल्य, जो व्यक्तियों और मंदिरों द्वारा निजी तौर पर रखा हुआ है, 54 लाख करोड़ रुपए है (प्रति ग्राम 2,690 रुपए की मौजूदा कीमत पर) केंद्रीय बजट 2015-16 में 17.77 करोड़ लाख रुपए का तीन गुना राजस्व व्यय है।

गोल्ड मोनेटिसेशन योजना उन लोगों को ब्याज भुगतान करती है जो बैंकों में सोना जमा कराते हैं, बैंकों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में वस्तु विनिमय पर इसे बेचने एवं विदेशी मुद्रा खरीदने या जौहरी को सोना उधार देने के लिए सक्षम बनाता है। भारतीय यह करने में हिचकिचाते हैं क्योंकि सोना देने का मतलब उसे घोषित करना होगा एवं इसके बजाय सोना लॉकर में रखने के लिए वे अधिक भुगतान करते हैं।

वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में जनवरी 2016 में सोने की आयात 1.57 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2.91 बिलियन डॉलर हुई है, जिसे देखते हुए आदित्य बिड़ला समूह के मुख्य अर्थशास्त्री अजित रानाडे ने यह ट्वीट किया है:

निस्संदेह, भारतीयों को कुछ डॉलर ही मिल रहे हैं।

2015: डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट

भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, जनवरी 2015 से जनवरी 2016 के बीच भारत की विदेशी मुद्रा संपत्ति में 10 फीसदी की वृद्धि हुई है जबकि शेयर बाज़ार में गिरावट हुई है, सेंसेक्स, बंबई स्टॉक एक्सचेंज सूचकांक के मूल्य में 19 फीसदी की गिरावट परिलक्षित करती है।

2015: मूल्य अनुसार सेंसेक्स में 19 फीसदी की गिरावट

तेजी से बढ़ते अस्थिर दुनिया में भारतीयों को पसंद है सोने की स्थिरता

इंडियास्पेंड से बातचीत करते हुए यू आर भानुमूर्ति , लोक वित्त एवं नीति के दिल्ली के राष्ट्रीय संस्थान (एनआईपीएफपी), में प्रोफेसर, कहते हैं कि, “सोने के आयात में वृद्धि अस्थिर वित्तीय बाजारों से तुलनात्मक रूप से स्थिर सर्राफा बाजारों में निवेश के फोकस में बदलाव को दर्शाता है।”

हालंकि, सोने के आयात में उतार-चढ़ाव होता रहा है, 2015-16 की पहली तीन तिमाही में 2.4 फीसदी की वृद्धि (2014-15 की पहली तीन तिमाही की तुलना में), और फिर, जनवरी 2015 की तुलना में जनवरी 2016 में 85 फीसदी की वृद्धी हुई है।

किस प्रकार सोने की आयात में हुई वृद्धि, 2015 से 2016

सोने की मांग कुछ कमज़ोर आर्थिक संकेतकों के साथ एक जैसी हो गई है।

उद्हारण को लिए, अप्रैल 2015 से जनवरी 2016 तक निर्यात में 17.7 फीसदी की गिरावट हुई है, जो कि 2000 के बाद से सबसे कमजोर निर्यात प्रदर्शन है; इससे पहले सबसे कम आंकड़े 2009-10 में 3.5 फीसदी की गिरावट का दर्ज की गई थी।

भारत के निर्यात और आयात की वृद्धि, 2005 से 2015(%)

इस साल (अप्रैल 2015 से जनवरी 2016 तक ) में आयात में 15.5 की गिरावट हुई है, जो कि पिछले 15 सालों में सबसे बड़ी गिरावट है। इससे पहले सबसे बड़ी गिरावट वित्त वर्ष 2013-14 में 8.3 फीसदी की दर्ज की गई है।

जबकि कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों के आयात की लागत - 2014-15 में आयात के 31 फीसदी की हिस्सेदारी है - लगभग आधी हुई है, आयात पेट्रोलियम की मात्रा (कच्चा एवं उत्पाद) में वृद्धि हुई है, जोकि भारत में ईंधन की बढ़ती मांग की ओर संकेत देती है।

तेल आयात की लागत में 41 फीसदी की गिरावट हुई है, जबकि अप्रैल से दिसंबर 2014 की तुलना में इसी अवधि के दौरान, गैर -तेल आयात की लागत में केवल 3 फीसदी की गिरावट हुई है।

जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी अपनी खास रिपोर्ट में बताया है कि, भारत कम कीमत पर अधिक पेट्रोलियम खरीद रहा है, आबकारी लगा कर और ऊंची कीमत पर बेचता है।

2015-16 की पहली तीन तिमाही के दौरान, पिछले 30 वर्षों में जब पहली बार भारत लगातार दो सालों से सूखे की समस्या के साथ संघर्ष कर रहा है, कृषि आयात में 21 फीसदी की वृद्धि हुई है।

वैश्विक मंदी से भारत में निवेश में कटौती

पिछले तीन वर्षों में नियंत्रित वैश्विक मांग - एनआईपीएफपी के भानुमूर्ति "वैश्वीकरण रिवर्स" के रूप में रखते हैं – का नतीजा उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्रा अवमूल्यन है। तेल की गिरती कीमतों के साथ मिलकर विश्व व्यवसाय में गिरावट हुई है।

हालांकि, भारत 7 फीसदी से 7.5 फीसदी की आर्थिक विकास दर की उम्मीद रखता है – चीन से अधिक – लेकिन बाज़ार का उतार-चढ़ाव भी बढ़ा है जोकि भविष्य के विकास को खतरे में डालता है।

निवेशक शेयर बाजारों से बच रहे हैं। वर्ष 2016 की शुरुआती दिनों में दुनिया भर के शेयर बाजारों में उछाल आई है। भारत में विदेशी निवेश, प्रत्यक्ष और पोर्टफोलियो, दोनों में गिरावट हुई है।

भारत में विदेशी निवेश, 2015-16

भारत में विदेशी निवेश, 2012-13 से 2015-16

पोर्टफोलियो निवेश (भारतीय शेयर या बांड बाजार में विदेशी निवेश) में गिरावट हुई है जैसा कि जनवरी 2016 में विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजारों से 11,000 करोड़ रुपए (1.6 बिलियन डॉलर) वापस लिया है।

इसी महीने में, भारतीयों ने अंतरराष्ट्रीय बाजार से 20,000 करोड़ रुपए (2.91 बिलियन डॉलर) कीमत का सोना खरीदा है।

सोने के आयात से भारतीय सुरक्षित, स्थिर महसूस करते हैं लेकिन अर्थव्यवस्था अस्थिर है

इसलिए, भारतीय निवेशक सुरक्षित, स्थिर सोने में बदल रहें है – लेकिन ऐसा कर के भारत की अर्थव्यवस्था अस्थिर हो रही है।

भारत का सोना आयात, 2012-13 से 2015-16

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा सोने और सोने के ऋण से संबंधित मुद्दों का अध्ययन के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की एक मसौदा रिपोर्ट कहती है कि, “सोने की बड़ी आयात मौजूदा खाता घाटा को प्रतिकूल रुप से प्रभावित कर रहा है। सोने की आयात की मांग को सीमित करने की आवश्यकता है जैसा कि बाह्य क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।”

सोने की कीमत

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Price in Rs/Gram of gold. Image retrieved from Interactive chart accessed from the website of World Gold Council

रिपोर्ट कहती है कि घरेलू मांग और आयात “मूल्य-निरपेक्ष” हैं, जिसका अर्थ हुआ कि भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों की परवाह किए बगैर भारतीय घरेलू उपयोग के लिए सोना खरीदते हैं।

2011 से 2015 तक, चार वर्षों के दौरान भारत का सोना निर्यात आधा हुआ है, जो कि संयुक्त अरब अमीरात, करीब 2 मिलियन भारतीय प्रवासियों के लिए घर, में मांग की गिरावट होने का संकेत देता है। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार भारत का 99 फीसदी से अधिक सोना निर्यात अरब जाता है।

भारत से सोना निर्यात 2012-13 से 2015-16

आरबीआई की रिपोर्ट, जो निजी पकड़ से सोना बाहर निकालने के लिए “अभिनव वित्तीय साधनों" की सिफारिश करती है, कहती है कि, “2012 में लगाई गई 10 फीसदी की आयात शुल्क से पिछले 10 वर्षों में सोने की कीमत में 10 फीसदी की वृद्धि हुई है लेकिन सोने की मांग को सीमित करने में असफल रहा है।”

स्रोवन गोल्ड बांड स्कीम, सरकारी बांड जो भौतिक सोने के लिए विकल्प का का रुप है, 246 करोड़ रुपये की सब्सक्रिप्शन प्राप्त करते हुए सबसे पहली बार नवंबर 2015 में बेचा गया था। फरवरी 2016 में, दूसरे दौर में, पहले के मुकाबले तिगुना, 726 करोड़ रुपये की सब्सक्रिप्शन को आकर्षित करने में सफल रहा है।

सोने की आयात में समग्र आर्थिक अनिश्चितता भी दर्शाती है।

जनवरी में सोने की आयात में उछाल, अब फरवरी मंदी में तब्दील हो गया है। ऑल इंडिया जेम्स एंड ज्वैलरी ट्रेड फेडरेशन और भारत बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन जैसे व्यापार संघों ने वित्त मंत्रालय को सोने पर आयात शुल्क 10 फीसदी से 2 फीसदी तक कम करने की सिफारिश की है।

(वाघमारे इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 24 फरवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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