पिछले दस वर्षों (2005-2014) में भारत में साइबर अपराधों में 19 गुना की वृद्धि हुई है। 2005 में जहां यह आंकड़े 481 थे वहीं 2014 में यह बढ़ कर 9,622 हुए हैं। और वैश्विक स्तर पर इंटरनेट पर “दुर्भावनापूर्ण गतिविधि” के एक स्रोत के रूप में भारत तीसरे स्थान – अमरीका एवं चीन के बाद - पर है एवं “दुर्भावनापूर्ण कोड” के स्रोत के रुप में दूसरे स्थान पर है।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार साइबर अपराधों से जुड़े गिरफ्तारियों के मामले में भी नौ गुना की वृद्धि हुई है – 2005 में 569 से बढ़ कर 2014 में 5,752 हुआ है। यह आंकड़े भारतीयों के इंटरनेट पर लॉग ऑन करने के आंकड़ों से भी अधिक हैं।

भारत में इंटरनेट सब्स्क्राइबर की संख्या 400 मिलियन या 40 करोड़ पार कर गई है एवं जून 2016 तक 462 मिलियन या 46.2 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है।

भारत अब दुर्भावनापूर्ण कोड और साइबर अपराध का प्रमुख स्रोत है

सिमेंटेक कॉर्प, एक सॉफ्टवेयर सुरक्षा फर्म द्वारा इस 2016 की रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में विश्व भर में दुर्भावनापूर्ण गतिविधि के स्रोत के रूप में भारत, अमरीका एवं चीन के बाद तीसरे स्थान पर है।

स्रोत अनुसार दुर्भावनापूर्ण गतिविधि – वैश्विक रैंकिंग

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Source: Symantec Corp

2015 में भारत दुर्भावनापूर्ण कोड के स्रोत के रूप में दूसरे स्थान पर था और वेब हमलों और नेटवर्क के हमलों के स्रोत के रुप में चौथे और आठवें स्थान पर था।

2014 में कम से कम 9622 साइबर अपराध दर्ज किए गए हैं, जो 2013 की तुलना में 69 फीसदी अधिक हैं। दर्ज किए गए 9622 साइबर अपराधों में से 7201 सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम अपराधों के तहत दर्ज की गई है जबकि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और 149 के विशेष और स्थानीय कानूनों (एसएलएल ) के तहत 2,272 अपराध दर्ज किए गए हैं।

एक दशक में साइबर क्राइम

आईटी अधिनियम के तहत दर्ज किए गए सबसे अधिक मामले – 5548 - कंप्यूटर संबंधित अपराध हैं, इनमें से 4192 मामले धारा 66 ए के तहत थे जिसके अनुसार "संचार सेवा के माध्यम से आक्रामक संदेश" भेजने के आरोप में दो-तीन साल तक की जेल की सजा दी जाती है।

आईटी अधिनियम की धारा 66 ए को मार्च 2015 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह कहते हुए हटाया गया था कि "इस तरह के एक कानून, लोकतंत्र की दो प्रमुख स्तंभों - स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को जड़ से मारता है।”

इंडियास्पेंड ने पहले बताया है कि किस प्रकार भारत तुर्की और रुस की तरह इंटरनेट कानूनों पर प्रतिबंध लगा रहा है। पेरिस स्थित गैर लाभकारी संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर द्वारा जारी की गई 2015 प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत 136, तुर्की 149 और रूस 152 वें स्थान पर है।

अश्लीलता, धोखाधड़ी, यौन शोषण - भारत की प्रमुख साइबर अपराध

आईटी अधिनियम के तहत प्रकाशन या अश्लील या यौन स्पष्ट सामग्री के प्रसारण के आरोप में कम से कम 758 मामले दर्ज किए गए हैं।

धोखाधड़ी के सबसे मामले सबसे अधिक - 1,115 – दर्ज किए गए हैं, आईपीसी अपराधों में ऐसे अपराधों की 50 फीसदी हिस्सेदारी है। एसएसएल अपराधों के तहत, सबसे अधिक मामले कॉपीराइट उल्लंघन (149 में से 118) के दर्ज किए गए हैं।

2014 में, 1,736 मामलों के साथ साइबर अपराध के मामलों के पीछे के प्रमुख इरादा "लालच / वित्तीय लाभ " था। जबकि "महिलाओं का शील के अपमान" करने के इरादे से 599 मामले, धोखाधड़ी या अवैध लाभ के 495, यौन शोषण के 357 और व्यक्तिगत बदला लेने के 285 मामले दर्ज किए गए थे।

2014 में, महारष्ट्र में साइबर अपराध के सबसे अधिक मामले, 1,879, दर्ज किए गए हैं। यह आंकड़े, इसके पिछले वर्ष की तुलना में दोगुना – 907 – है।

इसी अवधि के दौरान, 1,737 मामलों के साथ उत्तरप्रदेश दूसरे, 1,020 मामलों के साथ कर्नाटक तीसरे, 703 के साथ तेलंगना चौथे एवं 697 मामलों के साथ राजस्थान पांचवें स्थान पर है। 2014 में, देश भर में हुए साइबर अपराध में टॉप पांच राज्यों की 63 फीसदी की हिस्सेदारी रही है।

2014 में, साइबर अपराध के आरोप में कम से कम 5752 लोगों को गिरफ्तार किया गया है जिसमें से 5744 भारतीय एवं आठ विदेशी थे। कम से कम 95 लोगों को साइबर अपराध के लिए सज़ा हुई है और 276 लोगों को बरी किया गया है।

साइबर अपराध – टॉप पांच राज्य

2014 में, उत्तरप्रदेश में सबसे अधिक गिरफ्तारियां - 1,223 – हुई हैं। इसके बाद महाराष्ट्र (942), तेलंगाना (429), मध्य प्रदेश (386) और कर्नाटक (372) का स्थान रहा है।

4 मई 2016 को लोकसभा में दिए गए एक जवाब के अनुसार, 2016 के पहले तीन महीने के भीतर कम से कम 8,000 वेबसाइटों को हैक किया गया है और कम से कम स्पैमिंग के उल्लंघन के 13,851 मामले दर्ज किए गए हैं।

साइबर हमले, 2011 से 2016

पिछले पांच वर्षों में साइबर सुरक्षा अपराधों - जैसे कि स्कैनिंग, दुर्भावनापूर्ण कोड शुरू करने, वेबसाइट में अनधिकार प्रवेश करना और सेवा से वंचित करना – 76 फीसदी की वृद्धि हुई है। 2011 में ऐसे मामलों की संख्या 28127 थी जबकि 2016 में यह बढ़ कर 49455 हुआ है।

2014-15 और 2015-16 (दिसंबर 2015 तक) के दौरान बैंकों द्वारा स्वचालित टेलर मशीन (एटीएम) , क्रेडिट / डेबिट कार्ड और नेट बैंकिंग धोखाधड़ी संबंधित 13,083 एवं 11,997 मामले दर्ज किए गए हैं। यह आंकड़े 29 अप्रैल 2016 को राज्यसभा में दिए गए एक जवाब में सामने आए हैं।

पिछले तीन वित्तीय वर्षों में, 2012-13 से 2014-15 के बीच साइबर धोखाधड़ी - एटीएम / क्रेडिट / डेबिट कार्ड और नेट बैंकिंग – के ज़रिए 226 करोड़ रुपए (38 मिलियन डॉलर) की हेराफेरी की गई है।

दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा कमीशन एक रिपोर्ट के अनुसार, 2013 में, भारत में 4 बिलियन डॉलर (24,630 करोड़ रुपए) की लागत के साइबर अपराध हुए हैं।

विश्व बैंक की 2016 की रिपोर्ट, 2014 के अध्ययन का हवाला देते हुए कहती है कि साइबर अपराध के वैश्विक लागत का अनुमान 375 बिलियन डॉलर (2512500 करोड़ रुपए) एवं 575 बिलियन डॉलर (3852500 करोड़ रुपए) के बीच लगया गया है। रिपोर्ट कहती है कि भारत में प्रति व्यक्ति डेटा उल्लंघन की औसत लागत 51 डॉलर है जबकि अमरीका में 201 डॉलर है।

(मल्लापुर इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 02 जून 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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