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हालांकि,कई अन्य गरीब देशों की तुलना में भारत में इंटरनेट का उपयोग कम है लेकिन भारत के ई-कॉमर्स क्षेत्र में तीन गुना वृद्धि हुई है – या पांच वर्षों में 209 फीसदी की वृद्धि हुई है – 2010 में 4.4 बिलियन डॉलर (20,020 करोड़ रुपए) से बढ़ कर 2014 में 13.6 बिलियन डॉलर (83,096 करोड़ रुपए) हुआ है।

यह आंकड़े मार्च 2016 में लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में दिए गए थे। 2015 के अंत तक ऑनलाइन व्यापार 16 बिलियन डॉलर (104,000 करोड़ रुपए) तक पहुंचने की उम्मीद की गई थी।

जनवरी 2016 में, भारत के वाणिज्य और उद्योग एसोसिएटेड चैम्बर्स (एसोचैम) द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2016 में भारत में ई- कॉमर्स बाजार 38 बिलियन डॉलर (252,700 करोड़ रुपए) तक पहुंचने की संभावना है।

हाल ही में भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) और डेलॉइट , एक संस्था द्वारा जारी किए गए रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 तक भारत में ऑनलाइन खुदरा क्षेत्र एक ट्रिलियन डॉलर (6,60,000 करोड़ रुपए) तक होने की उम्मीद है। अध्ययन से पता चलता है कि भारत में ई-कॉमर्स से बड़े नवाचार सक्रिय होंगे।

सीआईआई - डेलॉइट रिपोर्ट में कहा गया है कि, वस्तु एवं सेवा कर (एक बार लागू किया गया) से कराधान और रसद सरल बनाते हुए ई-कॉमर्स के विकास को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।

ई-कॉमर्स के विकास/अनुमान

Source: LokSabha/ASSOCHAM-Deloitte/Confederation of Indian Industry(CII)-DeloitteNote: * indicates projected figures

देश भर में इंटरनेट की पहुंच बढ़ रही है। सितंबर 2015 तक, कम से कम 354 मिलियन (35.4 करोड़) इंटरनेट उपयोगकर्ता थे। भारत में ऑनलाइन खरीदार, वर्ष 2013 में 20 मिलियन (2 करोड़) से बढ़ कर 2015 में 39 मिलियन (3.9 करोड़) हुआ है, यानि पिछले तीन सालों में 95 फीसदी की वृद्धि हुई है।

कम इंटरनेट इस्तेमाल के बावजूद भारत के ई-कॉमर्स बाज़ार में वृद्धि

2014 में, 100 में से केवल 18 भारतीय इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे। वहीं इसकी तुलना ऑस्ट्रेलिया (90 फीसदी) , संयुक्त राज्य अमेरिका (87 फीसदी) , जापान (86 फीसदी), ब्राजील (53 फीसदी) , वियतनाम (48.3 फीसदी) और चीन (49.3 फीसदी) के साथ करते हैं। यहां तक की सबसे गरीब देश, जैसे कि घाना में भी इंटरनेट की पहुंच अधिक है – मिंट की इस रिपोर्ट के अनुसार प्रति 100 लोगों पर 18.9 उपयोगकर्ता हैं।

हालांकि, भारत में इंटरनेट की पहुंच में वृद्धि हुई है, जैसा कि हमने बताया है, 2015 तक 29 फीसदी हुई है एवं जून 2016 तक 462 मिलियन (39 फीसदी) तक पहुंचने की उम्मीद है।

इसी प्रकार, 2014 में, भारत में मोबाइल सब्स्क्रिप्शन प्रति 100 लोगों पर 74 था, जो कि बांग्लादेश (80) , चीन (92), इंडोनेशिया (129) और वियतनाम (147) की तुलना में कम है।

मोबाइल इंटरनेट खर्च 2014 में 54 फीसदी से बढ़ कर 2015 में 64 फीसदी हुआ है। कम कीमतों पर उच्च गति 3 जी और 4 जी इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए जिम्मेदार है जिससे ई-कॉमर्स का और विकास हुआ है।

ब्रॉडबैंड और मोबाइल इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में वृद्धि के बावजूद , गति एक बड़ी बाधा बनी हुई है। भारत में औसत ब्रॉडबैंड की गति प्रति सेकंड 2 मेगा बिट्स (एमबीपीएस) है, जो कि वैश्विक स्तर पर 115वें स्थान पर है, इस संबंध में इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है। इसी तरह, औसत मोबाइल इंटरनेट की गति 1.7 एमबीपीएस है , जो रैंकिंग के अनुसार थाईलैंड, चीन, हांगकांग और सिंगापुर से नीचे है।

इस साल मार्च में, सरकार ने ऑनलाइन खुदरा बाजारों में 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दी है – एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म जो खरीदार और विक्रेता को जोड़ता है।

भारत के ई-कॉमर्स दिग्गजों का संघर्ष

विशषज्ञों के अनुमान के अनुसार, जैसे प्रतिस्पर्धा बढ़ती है एवं और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगी कदम रखते हैं, घरेलू ऑनलाइन खुदरा विक्रेताओं का संघर्ष बढ़ेगा।

अमेरिकी रिटेलर अमेजन, घरेलू प्रतिद्वंद्वी फ्लिपकार्ट के बाद, पिछले महीने भारत में लदान से दूसरा सबसे बड़ा ऑनलाइन बाजार बन गया है। स्नैपडील तीसरे स्थान पर है।

इंडिया वैल्यू फंड एडवाइजर्स पार्टनर हरेश चावला के अनुसार, फ्लिपकार्ट का विकास, करीब पिछले साल मध्य के बाद से लगभग रुक गई है गई है एवं लीडरशिप टीम अब तक इसकी बिक्री में रफ्तार लाने के लिए कोई रास्ता नहीं ढूंढ़ पाई है।

चावला आगे कहते हैं कि, “इसकी सकल माल की मात्रा (जीएमवी ) - ऑनलाइन खुदरा बिक्री में बिक्री या राजस्व – दिए गए अवधि में काफी हद तक नहीं बढ़ा है जोकि पिछले तीन वर्षों में, सालाना 200 फीसदी बढ़ा है।”

इसी तरह, टैक्सी व्यवसाय में, बहुराष्ट्रीय उबर भारत के ओला के साथ दौड़ में है जो वर्तमान में घरेलू बाज़ार का नेतृत्व कर रहा है। पिछले महीने, उबर ने दावा किया है कि 30 दिनों के भीतर शेयर बाजार से ओला से आगे निकल जाएगा।

जबोंग - एक ऑनलाइन फैशन पोर्टल – ने 2015 में बिक्री में गिरावट और घाटा कटौती दर्ज की है और अब खरीददार खोजने के लिए संघर्ष कर रही है।

चावला कहते हैं कि, “उपभोक्ता इंटरनेट स्टार्ट-अप के लिए मंदी का मार्गदर्शन करना मुश्किल है। पारंपरिक कंपनियां आम तौर पर इन चक्र से उबर जाती हैं। लेकिन प्रौद्योगिकी नेतृत्व वाली कंपनियों के लिए यह मुश्किल है। उनके पास बहुत कम उपभोक्ता वफादारी होती है। विकास के लिए अधिक कंपनियां उपभोक्ताओं को लालच देती हैं औऱ मुनाफे पर कटौती करती हैं और जिस कारण उन्हें बंद होना पड़ता है। ”

(मल्लापुर इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 13 मई 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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