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मुंबई में एक कार्यशाला में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों को पेंट करती एक कलाकार। देश के पांच राज्यों तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में महिलाओं के स्वामित्व वाले व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की संख्या सबसे अधिक है। यदि आंकड़ों पर नजर डालें तो इन राज्यों में महिला उद्यमियों की हिस्सेदारी 53 फीसदी है। गौर हो कि इन पांच राज्यों में महिला साक्षरता की दर भी दूसरे राज्यों की तुलना में ज्यादा है।

भारत के पांच राज्यों में महिला साक्षरता दर सबसे उच्च है और इन्हीं राज्यों में महिला उद्यमियों की संख्या भी ज्यादा है। ये राज्य हैं, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र।

आंकड़ों के हिसाब से देश भर में महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे कारोबार में इन पांच राज्यों की 53 फीसदी की हिस्सेदारी है। यहां यह बात भी गौर करने लायक है कि भारत में महिलाओं की जो आबादी है, उनमें से 33 पीसदी से ज्यादा इन राज्यों में नहीं रहतीं।यह जानकारी 2012 के आर्थिक जनगणना के बाद जारी किए गए आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आई है।

2012 की आर्थिक जनगणना के मुताबिक तमिलनाडु, जो कि केरल और महाराष्ट्र के बाद तीसरा बड़ा राज्य है, में साक्षर महिलाओं की संख्या 73.4 फीसदी है। तमिलनाडु में महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे कारोबार की संख्या भी सबसे अधिक है। करीब 10 लाख इकाइयां यहां महिलाओं के द्वारा चलाए जा रहे हैं।

इस संबंध में, तमिलनाडु के बाद दूसरा स्थान केरल का है। केरल में महिला साक्षरता दर भारत में सबसे ज्यादा है। यहां 90 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं। महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे कारोबार में केरल की हिस्सेदारी 11 फीसदी है।

राज्य अनुसार महिला उद्यमी और महिला साक्षरता

Source: Economic Census 2012, Men and Women 2011

2011 की जनगणना के अनुसार, देश भर में महिला साक्षरता दर 65.5 फीसदी था, जबकि कुल श्रम-शक्ति में महिलाओं की भागीदारी 25.5 फीसदी दर्ज की गई थी।

भारत की श्रम-शक्ति में महिलाओं की भागीदारी में गिरावट हुई है। गौर हो कि 1999 में जहां महिलाओं की भागीदारी 34 फीसदी थी वहीं 2014 में यह गिर कर 27 फीसदी हो गई। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने विस्तार से अगस्त, 2016 में बताया है। ब्रिक्स देशों की तुलना में, भारत की श्रम-शक्ति में महिलाओं की भागीदारी सबसे कम दर्ज की गई है। बांग्लादेश की श्रम शक्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी 57.4 फीसदी है, नेपाल में 79.9 फीसदी और श्रीलंका में 35.1 फीसदी। भारत में यह हिस्सेदारी श्रीलंका से भी कम है।

महिला उद्यमियों की सबसे अधिक संख्या के साथ इन पांच राज्यों, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र, में महिला साक्षर दर भी राष्ट्रीय औसत से अधिक है।

कारोबारी और महिला सशक्तिकरण संकेतक, टॉप पांच राज्य

Source: Economic Census 2012, National Family Health Survey 4

2014 की विश्व बैंक की एक रिपोर्ट कहती है कि वित्तीय सेवाओं तक महिलाओं की सीमित पहुंच और सीमित लाभ मिलने का प्रमुख कारण वित्तीय शिक्षा का अभाव है।

टॉप पांच राज्यों में दस वर्ष या अधिक वर्षों की शिक्षा पूरा करने वाली महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है। महिला उद्यमियों के संबंध में महाराष्ट्र पांचवे स्थान पर है। यहां भी दस वर्ष या अधिक वर्षों तक की शिक्षा पूरी करने वाली महिलाओं की संख्या 77.4 फीसदी है।

उदाहरण के लिए, बिहार में 153610 संस्थान महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे हैं । कारोबारी महिलाओं में बिहार की हिस्सेदारी 1.9 फीसदी है और सभी राज्यों के बीच यह14 वें स्थान पर है। इस राज्य में केवल 56 फीसदी महिलाओं ने दस वर्ष की शिक्षा पूरी की है।

भारत में 585 लाख प्रतिष्ठानों में से 80.5 लाख महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे हैं। यानी महिलाओं की 13.7 फीसदी की हिस्सेदारी। इससे 134 लाख लोगों को रोजगार मिलता है। इंडियास्पेंड ने मई 2016 में इसके बारे में विस्तार से बताया है। इनमें से 89 प्रतिशत संस्थान ऐसे हैं, जहां कम से कम 10 लोग काम करते हैं।

लंदन स्थित ग्लोबल उद्यमिता संस्थान द्वारा जारी महिला उद्यमिता सूचकांक-2015 में 77 देशों की सूची में भारत 70वें स्थान पर है।

छोटे कदमों से लघु व्यवसाय का निर्माण – कहानी एक महिला की

43 वर्षीय अर्चना आंग्रे मुंबई के चेंबूर में एक टिफिन सेवा और एक छोटा सा रेस्तरां चलाती हैं। अर्चना कक्षा नौ तक पढ़ी हैं।

अर्चना आंग्रे ने 1997 में अपना कारोबार शुरु किया था। इससे पहले वह वह दूसरो के घरों में खाना बनाने का काम करती थीं। हालांकि यह कारोबार शुरु करने के लिए उन्हें अपने ससुराल वालों के खिलाफ जाना पड़ा था।

अर्चना आंग्रे और उसके पति अशोक अर्जुन आंग्रे ने 2,000 रुपए का प्रारंभिक निवेश किया था। शुरुआत में आंग्रे ने परिवार के तीन लोगों को अपने इस नए काम में लगाया। पति, बेटा और बेटी ने हाथ बंटाना शुरू किया।

कारोबार शुरु करने के एक वर्ष के भीतर ही आंग्रे को ग्राहकों से मदद मिली। ग्राहकों ने कुछ पूंजी और कुछ उपकरण जैसे कि गैस सिलेंडर और चूल्हे आदि दे कर आंग्रे की सहायता की। दो वर्ष के भीतर उसका कारोबार बढ़ा। टिफिन की संख्या 10 से बढ़ कर 100 हो गए।

आंग्रे के कुछ ग्राहकों ने उसे यूको बैंक से 50,000 रुपए का ऋण दिलाने में मदद की। कुछ ही दिनों में आंग्रे का कारोबार ऑफिस जाने वाले लोगों के लिए टिफिन बनाने से बढ़ पर शादियों और पार्टियों ‘कैटरिंग’ का हो गया।

2010 में प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत आंग्रे को 2,95,000 रुपए का ऋण मिला। इस राशि का इस्तेमाल उसने व्यापार के लिए बर्तन और अन्य आवश्यक वस्तुओं को खरीदने के लिए किया।

उन्नीस साल बाद, आंग्रे के इस कारोबार में छह लोग काम कर रहे हैं। तीन परिवार से और अन्य तीन बाहर के लोग उसके साथ काम करे हैं।

आंग्रे अब रेस्तरां खोलने की योजना बना रही है। आंग्रे अपनी बेटी की होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए पैसे जुटाने में सक्षम है।

आंग्रे कहती है कि, “व्यवसाय शुरु करने के लिए दृष्टिकोण में बदलाव की जरुरत है।”

(सालवे विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड से जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 04 अक्तूबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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