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मुंबई: दक्षिण भारतीय राज्य के नेताओं ने 15 वें वित्त आयोग के संदर्भ में चिंताओं को उठाते हुए इसपर आपत्ति जाहिर की है। दक्षिण दक्षिण भारतीय राज्यों में प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर के नीचे है, जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की दर स्तर से ऊपर है। जैसा कि सरकारी आंकड़ों पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण से पता चलता है।

प्रजनन क्षमता की प्रतिस्थापन दर 2.1 है, वह स्तर जिस पर आबादी एक पीढ़ी से अगले पीढ़ी तक खुद को बदल देती है।

2016 में, तमिलनाडु की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) ( महिला के जीवन काल में होने वाले बच्चों की संख्या ) 1.6 रहा, जो भारत के बड़े राज्यों में सबसे कम था। दक्षिण भारतीय राज्यों ( आंध्र प्रदेश और तेलंगाना (1.7), केरल और कर्नाटक (1.8) ) की दरे भी प्रजनन क्षमता के प्रतिस्थापन स्तर के नीचे हैं, जैसा कि भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त के कार्यालय के तहत नवीनतम नमूना पंजीकरण प्रणाली डेटा से पता चलता है। राष्ट्रीय औसत टीएफआर 2.3 था।

2016 में, 3.3 पर भारत में बड़े राज्यों में बिहार ने सबसे खराब टीएफआर दर्ज किया है। इसके बाद उत्तर प्रदेश (3.1), मध्य प्रदेश (2.8) और राजस्थान (2.7) का स्थान रहा है।

15 वें वित्त आयोग को प्रस्तावित संदर्भ की शर्तों में (टीओआर, जो केंद्र और राज्यों और राज्यों के बीच राजस्व साझा करने के लिए रोडमैप बताता है ) पहले इस्तेमाल होने वाले 1971 की जनगणना की बजाय 2011 की जनगणना को ध्यान में रखने का सुझाव हैं।

1971 की जनगणना आबादी के लिए 14 वें वित्त आयोग ने 17.5 फीसदी, 2011 की जनगणना आबादी के लिए 10 फीसदी, क्षेत्र के लिए 15 फीसदी, राजकोषीय अनुशासन के लिए 50 फीसदी और वन कवर के लिए 7.5 फीसदी वजन का उपयोग किया है।

केंद्र सरकार ने प्रस्ताव दिया है कि 15 वें वित्त आयोग ने उन राज्यों को प्रोत्साहित किया, जिन्होंने जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के प्रयास किए हैं, जैसा कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 अप्रैल, 2018 को चेन्नई में कहा था।

दक्षिणी राज्यों द्वारा केंद्रीय वित्त पोषण में भेदभाव और कुछ राज्यों के प्रति पक्षपात पर किए गए आरोपों के जवाब में मोदी ने कहा, "तमिलनाडु जैसे राज्य ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए बहुत सारे प्रयास, ऊर्जा और संसाधनों को समर्पित किया है।"

उत्तरी राज्यों में प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से ऊपर

1981 में बिहार का टीएफआर 5.7 था, जो 2016 तक घट कर 3.3 हुआ है। इसकी तुलना में, 1981 में तमिलनाडु के टीएफआर में 3.4 से आधे से भी ज्यादा की गिरावट आई और यह दर्शाता है कि राज्य आबादी नियंत्रण उपायों को लागू करने में सफल रहा है।

उत्तर के राज्यों ( उत्तर प्रदेश (3.1), मध्य प्रदेश (2.8) और राजस्थान (2.7) ) में उच्च टीएफआर है और प्रजनन क्षमता के प्रतिस्थापन स्तर से ऊपर है।

दक्षिणी राज्यों का आरोप लगाया कि नए वित्त आयोग के नियम में बड़ी आबादी वाले उत्तर के राज्य लाभान्वित होंगे, हालंकि, पिछले कुछ वर्षों में जनसंख्या नियंत्रण जैसे प्रशासन / विकास मानकों पर दक्षिणी राज्य बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।

केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसहाक ने 24 अप्रैल, 2018 को न्यूज मिंट में कहा, "यदि टीओआर लागू किया गया था, तो दक्षिणी राज्यों को संभावित रूप से 8,000 करोड़ रुपये तक नुकसान हो सकता है।"

हालांकि, पश्चिम में महाराष्ट्र और पूर्व में पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कम टीएफआर, 1.8 और 1.6 (तमिलनाडु के समान) हैं।

दांव पर 1.25 लाख करोड़ रुपये

यदि 14 वित्त आयोग ने संशोधित शर्तों का उपयोग किया होता, तो 1.25 लाख करोड़ रुपये का पुनर्वितरण किया होता, जैसा कि आंध्र प्रदेश सरकार के पूर्व विशेष मुख्य सचिव (वित्त) और पूर्व संयुक्त सचिव (तेरहवां वित्त आयोग) वी भास्कर द्वारा इकोनोमिक एंड पॉलिटीकल विक्ली में 10 मार्च, 2018 की लेख में बताया गया है।

भास्कर ने 14 वीं वित्त आयोग के तहत आवंटित शेयर का उपयोग करके 2011 की जनगणना के आधार पर राज्यों को संभावित लाभ और हानियों की गणना की।

भास्कर ने पंद्रहवीं वित्त आयोग से पहले चैलेंज नामक अपने लेख में लिखा था, "पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और पंजाब के साथ-साथ सभी पांच दक्षिणी राज्यों को घाटा होगा। "

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'हार्टलैंड राज्य केंद्रीय निधि पर अधिक निर्भर'

‘बिजनेस स्टैंडर्ड प्राइवेट लिमिटेड’ के चेयरमैन टीएन निनान ने 30 मार्च, 2018 को बिजनेस स्टैंडर्ड में एक कॉलम में लिखा था, “केंद्र से हस्तांतरण उनके कुल राजस्व का आधा या अधिक है। बिहार के मामले में, यह तीन-चौथाई है। जबकि दक्षिणी राज्य अपने कुल राजस्व का केवल एक तिहाई केंद्र पर निर्भर हैं। "

निनान ने तर्क दिया, "विघटन के बाद असंतुलन भी जारी रहता है, जैसा कि प्रति व्यय में देखा जाता है। अधिक संसाधनों के बिना, बेहतर जनसंख्या नियंत्रण प्राप्त करने के लिए गरीब राज्य अपने लोगों के स्वास्थ्य और शिक्षा सूचकांक में सुधार कैसे करते हैं? "

दक्षिणी राज्य जो जनसंख्या वृद्धि को सीमित करने में सक्षम हैं, उत्तर में राज्यों की तुलना में प्रति व्यक्ति आय के मामले में बेहतर प्रदर्शन करते हैं।

उदाहरण के लिए, 1991-2011 के बीच, केरल की आबादी में 14 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि प्रति व्यक्ति आय (निरंतर कीमतों पर) 53 गुना (5,262 फीसदी) बढ़ी है, यानी 1991-92 (आधार 1980-81) में 1,826 रुपये से 2011-12 (आधार 2011-12) में 97,912 तक।

तुलनात्मक रूप से, जबकि इसी अवधि के दौरान राजस्थान की जनसंख्या में 56 फीसदी की वृद्धि हुई है, इसकी प्रति व्यक्ति आय 1991-9 2 में 1,755 रुपये से केवल 32 गुना (3,172 फीसदी) बढ़कर 2011-12 में 57,427 रुपये हो गई है।

Per Capita Net State Domestic Product of Selected States, 1991-92 to 2014-15
State/UT1991-92 (Base 1980-81)2011-12 (Base 2011-12)2014-15 (Base 2011-12)
Uttar Pradesh16273200235694
Maharashtra339998910113379
Bihar11052175025400
West Bengal2267NANA
Andhra Pradesh*21346900078039
Madhya Pradesh15383855044110
Tamil Nadu227092984106034
Rajasthan17555742764002
Karnataka226289899108908
Kerala182697912115848

Source: Reserve Bank of India;
Note: 1991-92 figures are for undivided Andhra Pradesh; 2011-12, 2014-15 are for newly formed state of Andhra Pradesh; NA-not available

22 जनवरी 2018 को परिवार नियोजन पर काम कर रहे एक संस्था, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तारेजा ने इंडियास्पेंड को बताया था, “शिक्षा सबसे अच्छी गर्भनिरोधक गोली है।”

15 से 49 साल के बीच महिलाओं के लिए, 12 साल से अधिक शिक्षा के साथ टीएफआर 1.71 पर कम है जबकि बिना शिक्षा वाली महिलाओं के लिए यह आंकड़े 3.06 हैं और सभी महिलाओं के लिए 2.2 हैं

दक्षिणी राज्यों की तुलना में उत्तर के बड़े राज्यों की जनसंख्या में वृद्धि तेज

1971 में, चार दक्षिण भारतीय राज्यों में भारत की आबादी का 25 फीसदी (135 मिलियन) शामिल था। 2011 तक, यह आंकड़ा कम हो कर 21 फीसदी (251 मिलियन) तक हुआ है। इसकी तुलना में, उत्तर भारतीय राज्यों ( उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश ) का हिस्सा 1971 में 33 फीसदी (182 मिलियन) से बढ़कर 2011 में 37 फीसदी (445 मिलियन) हो गया था।

1971-2011 के बीच, उत्तर भारतीय राज्यों की जनसंख्या वृद्धि दक्षिण में राज्यों की तुलना में अधिक है।

मिसाल के तौर पर, 2011 में बिहार की आबादी 104 मिलियन से अधिक हो गई थी, यानी 1971 में 42 मिलियन से 147 फीसदी की वृद्धि हुई थी। 1971 में तमिलनाडु जिसकी आबादी 41 मिलियन थी, उसकी इसी अवधि के दौरान जनसंख्या में 75 फीसदी वृद्धि होकर 72 मिलियन तक पहुंची है।

1971 से 2011 में राजस्थान की जनसंख्या में 166 फीसदी की वृद्धि हुई है। इसके बाद बिहार (147 फीसदी), मध्य प्रदेश (142 फीसदी) और उत्तर प्रदेश (138 फीसदी) का स्थान रहा है। तुलनात्मक रूप से, इसी अवधि के दौरान केरल में 56 फीसदी वृद्धि की सूचना दी है, तमिलनाडु ने 75 फीसदी, आंध्र प्रदेश ने 94 फीसदी और कर्नाटक ने 109 फीसदी वृद्धि की सूचना दी है।

जनसंख्या नियंत्रण प्रोत्साहन के लिए एकमात्र कारक नहीं

राज्यों को प्रोत्साहन प्रदान करने का जनसंख्या एकमात्र पैरामीटर नहीं है। राज्यों पर अन्य विकास संकेतकों पर भी निर्णय लिया जाएगा जैसे माल और सेवा कर, कार्यान्वयन योजनाएं, टिकाऊ विकास लक्ष्यों के लिए कार्यान्वयन और व्यवसाय में सुगमता को बढ़ाने का मामला।

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व्यवसाय करने में आसानी के मामले में, राज्यों के प्रदर्शन मिश्रित परिणाम दिखाते हैं। 17 अप्रैल, 2018 को व्यवसाय मानकों को करने में आसानी से कार्यान्वयन में हरियाणा, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्य टॉप तीन राज्यों में शामिल थे।

आंध्र प्रदेश चौथे स्थान पर, तेलंगाना छठा स्थान, और राजस्थान आठवें जबकि कर्नटक दसवें स्थान पर रहा है। इसी प्रकार, उत्तर प्रदेश 14वें ( तमिलनाडु से उपर ), बिहार 18वें और केरल 21वें स्थान पर रहा है।

निनान ने लिखा है, "हर वित्त आयोग अपने विजेताओं और हारने वालों को बनाता है। 11 वीं और 14 वीं आयोगों के बीच, दक्षिणी राज्यों में से तीन (संयुक्त आंध्र प्रदेश का अपवाद) केंद्रीय करों के हिस्से के मामले में महत्वपूर्ण घाटे वाले थे। लेकिन उत्तरी और पूर्वी राज्य, यूपी, बिहार (झारखंड सहित), पश्चिम बंगाल और ओडिशा, भी हारने वाले थे। "

निनान ने तर्क दिया, "लाभ में पश्चिम के राज्यों में महाराष्ट्र और गुजरात शामिल थे। इसलिए किसी को उत्तर-दक्षिण निष्कर्षों पर नहीं जाना चाहिए, खासकर जब आयोग से राजकोषीय प्रदर्शन और जनसंख्या नियंत्रण को पुरस्कृत करने के लिए कहा गया है।"

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( मल्लापुर विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हुए हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 30 अप्रैल, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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