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उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के महोबा जिले से 40 किलोमिटर दूर खन्ना कस्बे में प्राकृतिक भूमिगत सुरंग से पानी निकालती महिला. Image: Khabar Lahariya.

महोबा, उत्तर प्रदेश: भारत के एक गरीब राज्य, उत्तर प्रदेश के 250 बेहद गरीब ज़िलों में से एक है महोबा। मथुरानपुरा के नज़दीक बसे महोबा ज़िले की स्थिति बेहद खराब है। इस बस्ती में करीब 1,000 दलित (हिंदु धर्म के मुताबिक नीची जाति ) रहते हैं। महोबा के 1,000 लोगों के लिए बुनियादी चीज़ेजैसे ‘पानी’ तक उपलब्ध नहीं है।

महोबा में रह रहे इन 1,000 लोगों के पास जीवन यापन का कोई स्थाई ज़रिया नहीं है। मिट्टी और टाट के घरों में रहने वाले यह लोग रोज़ कमा कर खाने वाले हैं। इस बस्ती के आस-पास न तो कोई स्कूल है और न हीं इनके घरों तक पानी की पाइप लाइनें पहुंची हैं।

इंडियास्पेंड ने पहले ही बताया कि बेमौसम बरसात ने किस प्रकार किसान की फसलों को बरबाद किया। 23, जून को मथुरानपुरा के दलितों ने मिल कर जिला मजिस्ट्रेट, विरेश्वर सिंह के पास पानी की पाइप लाइन के लिए याचिका दायर की है।

मथुरानपुर के निवासियों ने खबर लहरिया से बातचीत करते हुए बताया कि एक साल पहले इलाके में पाइप लाइन बिछाई गई थी। लेकिन पंचायत के एक घर तक आते आते पाइप लाइन के काम पर रोक लगा दिया गया। गांव वालों का आरोप है कि पंचायत ने उनके मोहल्ले तक पाइप लाइन ले जाने की इजाजज़त नहीं दी।

खबर लहेरिया ने पहले ही बताया है कि इस इलाके में पानी का संकट कितना गहराया हुआ है। कभी-कभी यहां के लोगों को पानीइकट्ठा करने के लिए जमीन में खुदाई तक करनी पड़ती है। यह एक संकेत है कि भूजल की स्थिति, न केवल महोबा में जो लखनऊ से दक्षिण पूर्वी 240 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है बल्कि पूरे उत्तरी भारत में कितनी बिगड़ गई है। पानी के गहराते संकट पर सरकार और मिडिया द्वारा कम ही ध्यान दिया जा रहा है। ‘द’ गार्जियन, ब्रिटिश अखबार के अनुसार, पानीका अत्यधिक इस्तेमाल होना या अनुपलब्ध होना खराब प्रबंधन दर्शाता है।

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फोटो : खन्ना कस्बा में(उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में महोबा शहर से 40 किमी दूर ) सर्दियों में भरपूर मात्रा में बारिश के बावजूद स्थानीय लोगों को पानी के मुख्य स्रोत, , भूमिगत भंडारण सुरंगों की ओर , जाना पड़ रहा है

महोबा में पानी की गहन समस्या तब शुरु हुई जब पानी के मुख्य श्रोत दूषित हो गए। मथुरानपुरा में पानी का मुख्य श्रोत हैंडपंप हैं जिससे कम ही पानी की आपूर्ति हो पाती है। मथुरानपुरा के स्थानीय लोगों ने बताया कि हैंडपंप चलाते चलाते उनकी “बाजूएं” थक जाती हैं साथ ही पानी के लिए दिन-रात लाइन में भी लगे रहना पड़ता है। पानी का स्तर नीचे होता जाता है और उनका इंतज़ार बढ़ता जाता है। इसलिए उन्होंने पानी की पाइप लाइन की अर्ज़ी दी है।

खबर लहेरिया को जिला मजिस्ट्रेट ने बताया कि इस समस्या की ओर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। साथ ही खबर लहेरिया की मौजूदगी में मजिस्ट्रेट ने पाइप लाइन बिछाने के लिए जल विभाग को आदेश भी दिया।

यदि पाइप लाइन बिछ जाता है तो मथुरानपुरा के लोगों के लिए सौभाग्य की बात होगी। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार ,महोबा जिले के केवल 7 फीसदी लोगों के घरों में या आस-पास पीने का पानी का श्रोत मौजूद है। मोहाबा के ग्रामीण इलाकों में 95.3फीसदी लोगों के पास नलके का पानी नहीं पहुंचता है। हालांकि 30 फीसदी गांव के घरों तक नल के पानी की पहुंच है।

Households Without Piped Water: Mahoba District
CategorySubcategoryRuralUrbanTotal
Main Source of Drinking WaterTapwater from treated source4.722.88.4
Tapwater from untreated source25.32.6
Covered well111
Uncovered well18.44.115.4
Handpump73.463.371.3
Tubewell/Borehole0.22.70.7
Spring0.10.10.1
River/ Canal0.10.10.1
Tank/ Pond/Lake0.10.20.1
Other sources0.20.50.2
Location of drinking water sourceWithin premises732.112.2
Near premises6442.559.5
Away2925.428.3

Source: Census 2011, figures in %

उत्तरी भारत में संकट की स्थिति

माथुरनपुरा और महोबा की स्थिति भारत में असामान्य नहीं है जहां ग्रामीण इलाकों के 22.2 फीसदी घरों में पीने के पानी का श्रोत घरों से करीब आधे घंटे की दूरी पर होती है। ग्रामीण इलाकों में 116 मिलियन से अधिक घरों में नल का पानी नहीं पहुंचता है। माहोबा ज़िले में केवल 7 फीसदी घरों में पीने के पानी का श्रोत घर या आस-पास देखा गया है।

दिखाए गए ग्राफ के अनुसार इन घरों में पानी पहुंचा पाना अब और कठिन काम होगा क्योंकि देश के आधे से अधिक इलाकों में पानी की समस्या दिन पर दिन गहराती ही जा रही है। उत्तरी भारत के क्षेत्रों में बढ़ती आबादी एवं कृषि के लिए पानी की बढ़ती मांग से भूजल स्तर और नीचे हो गया है।

मैथ्यू रॉडल , अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के साथ एक जलविज्ञानी, ने साल 2009 में बताया कि “यदि समय रहते भूजल उपयोग के लिए ठोस काम नहीं किए गए तो इसका खामियाज़ा इलाके के 114 मिलियन लोगों को भुगतना पड़ेगा। पानी के कमी से कृषि एवं पीने के पानी में सकंट हो सकती है”। रॉडल ने यह प्रतिक्रिया जुड़वा उपग्रह से प्राप्त डाटा देखने के बाद दी थी। प्राप्त डाटा के अनुसार पश्चिमोत्तर भारत ( हरियाणा, पंजाब , राजस्थान और दिल्ली) में भूजल जितनी तेजी से समाप्त हो रहा है उस गति से उसकी पूर्ति नहीं हो पा रही है। 2002 से 2008 के बीच हर वर्ष एक फुट यानि 126 क्यूबिक किलोमीटर पानी दूर होता गया है। भूजल में कमी आ रही है यह तो पता था लेकिन रॉडल के डाटा से कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। भारत सरकार द्वारा जारी किए गए डाटा की तुलना मेंरॉडल के डाटा में20 फीसदी अधिक तेजी से पानी का स्तर नीचे गिरने का संकेत दिया गया है।

कई और अध्ययन से पता चलता है कि गंगा के मैदानी इलाकों पर स्थिति और गंभीर है।

साल 2014 में भारतीय और अमेरिकी वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा अमेरिकी भूभौतिकीय संघ की बैठक में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश भूजल संकटवाले क्षेत्र गंगा -ब्रह्मपुत्र बेसिन की बेहद उपजाऊ जलोढ़ जलवाही स्तर पर स्थित हैं (महोबा दक्षिण – पूर्वी में स्थित है), जो कि फसल की सिंचाई के लिएभूजल निकासी के लिए ज़िम्मेदार हैं।

नासा के एक बयान के मुताबिक, “मौसम में बदलाव के कारण भूजल में उतनी तेजी से प्रतिक्रिया नहीं होती जितनी की झील और नदियों में होती है। इसलिए सिंचाई के लिए जब पंप द्वारा भूजल को निकाला जाता है तो उसकी पूर्ति करने में महीनों या सालों लग जाते हैं”।

भूजल का गिरता स्तर माहोबा जिले के लिए एक उद्हारण है जहां हाल ही में हुए बारिश से भी कुछ फर्क नहीं पड़ा।

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फोटो : पानी की खोज में बुंदेलखंड क्षेत्र की , खन्ना कस्बा में महोबा शहर से 40 किमी दूर तक चलती महिलाएं। यहां महिलाएं भूमिगत सुरंगों से पानी लाने के लिए कम से कम आधा किलोमीटर चलती हैं

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बाढ़ के बाद मोहाबा क स्थिति और बद्तर

सर्दियों में आई बाढ़ के बाद मोहाबा में पानी का संकट और गहरा गया है जिससे स्थानीय लोगों के जीवन पर खासा असर पड़ रहा है।

यह इलाका भले ही तलाब, नहर और नदियों के लिए जाना जाता हो लेकिन पीने का पानी यहां सीमित ही है। यहां के अधिकांश बड़े एवं सुंदर जल निकाय अब बहुत ही गंदे और खराब अवस्था में हैं। पानी का पीने योग्य बनाने के लिए अब तक कोई विशेष काम या योजना नहीं लागू किया गया है। चरखरी बलॉक में सात बड़े तालाब हैं जोकि कई घरों में अब घरेलू जल निकासी का काम कर रहे हैं लेकिन नालियों का पानी नहर में ही खाली हो रहा है। एक दशक पहले ही महोबा की प्रमुख नही चंद्रावल ने सूखे का संकेत दिया था। हालांकि नदी पूरी तरह से 2008 में सूख गई। नदी को पुनर्जीवित करने के प्रयास अब शुरु किए गए हैं।

भूजल का स्तर नीचे गिरते जाने के बावजूद, महोबा और अन्य उत्तरी राज्यों के पास, पीने के पानी के लिए, नदी और नहरों के ज़रिए पाइप लाइन घरों तक लाने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है।

चालू वित्त वर्ष बजट में केंद्र द्वारा 11,000 करोड़ रुपए राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना के लिए दिए गए हैं। यह योजना अब स्वच्छ भारत योजना का एक हिस्सा है जो साल 2007 में शुरु किया गया था। इस योजना का उदेश्य भारत के ग्रामीण इलाकों के उन 116 मिलियन परिवारों तक पीने का पानी पहुंचाना है जहां अब तक पानी नहीं पहुंचा है। जल परियोजनाओं और जल गुणवत्ता परीक्षण के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दिल्ली द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

लेकिन इस साल अब तक पानी की समस्या से निपटने के लिए महोबा को कोई राशि नहीं दी गई है।

वित्तीय हस्तांतरण( राज्यों को व्यय करने के लिए उनके हाथों में ही राशि देने की प्रक्रिया )के कारण दिल्ली द्वारा देने वाले वित्तय सहायता में कमी आई है। ऐसे में महोबा का क्या होगा कहना मुश्किल है।

District Statistics for Mahoba: 2014-15: National Rural Drinking Water Programme
Administrative DetailsNo. of Blocks4
No. of Panchayats252
No. of Villages440
Financial Progress (In Rs crore)Allocation0
Release20.3
Expenditure18.2

Source: Ministry of Drinking Water and Sanitation

योजना के अंतर्गत साल 2012-13 में महोबा के करीब 95घरों तक पीने का पानी पहुंचाया गया। मिली राशि का 90 फीसदी खर्चने के साथ तब तक कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया गया था। पानी के लिए महोबा के लोगों को और अधिक सुरंगों की खुदाई करनी होगी और मथुरानपुर के लोगों के लिए जिला मजिस्ट्रेट ही एक उम्मीद की किरण है जो शायद पानी के पाइप लाइन को घरों तक पहुंचा सकते हैं।

( यह लेख खबर लहेरिया के साझेदारी के साथ प्रस्तुत की गई है। खबर लहेरिया एक साप्ताहिक ग्रामीण पत्रिका है जो महिला पत्रकारों द्वारा उत्तर प्रदेश के पांच ज़िलों एवं बिहार के एक ज़िले में प्रकाशित होता है। हर ज़िले का अपना संस्करण है। तिवारी इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 10 जुलाई 15 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।


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